Teen Sau Ramayane Evam Anya Nibandh
Author:
Sanjeev KumarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
विवेक और विमर्श की अवहेलना करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय ने ए.के. रामानुजन के प्रसिद्ध आलेख ‘थ्री हंड्रेड रामायणाज़ : फ़ाइव एक्ज़ाम्पल्ज़ एंड थ्री थॉट्स ऑन ट्रांसलेशन’ को अक्टूबर, 2011 में अपने पाठ्य-क्रम से निरस्त कर दिया था। कुछ अवान्तर उपद्रव भी प्रकट हुए थे। इस आलेख को सर्वसुलभ बनाने एवं सम्यक् विश्लेषित करने के उद्देश्य से संजीव कुमार ने इसका हिन्दी अनुवाद किया। यह अनुवाद ‘नया पथ’ पत्रिका के एक अंक में प्रकाशित हुआ।</p>
<p>प्रस्तुत पुस्तक के केन्द्र में यही आलेख है। पुस्तक की भूमिका के अनुसार, ‘जिन्होंने भी रामानुजन के आलेख को पढ़ा है, उन्होंने महसूस किया है कि यह शोध और विश्लेषण की गहराई का कितना नायाब नमूना है। और यह कि हिन्दू भावनाओं को आहत करना तथा रामकथा पर कोई नकारात्मक टिप्पणी करना तो दूर, यह लेख रामकथा के सांस्कृतिक महत्त्व, उसकी आश्चर्यजनक व्यापकता और अर्थगर्भत्व का—जिसके कारण उसके शताधिक रूप प्रचलित हैं—एक अद्भुत निदर्शन है। लेखक की इस गुणवत्ता का साक्षात्कार करनेवाले के मुँह से आह निकलती है कि काश, हिन्दुत्व के पैरोकारों को थोड़ा पढ़ने का शऊर भी होता।</p>
<p>यह किताब रामानुजन के आलेख को आपके सामने पेश करने के साथ-साथ ख़ूबसूरती के ख़िलाफ़ खड़े इन लोगों की ख़बर देती और लेती भी है। यहाँ रामानुजन के अलावा कामिल बुल्के हैं, रोमिला थापर हैं, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह और प्रभात कुमार बसन्त हैं।
ISBN: 9788126724413
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Book Type:

- Description: सजग रचनाकार को अक्सर यह बोध हो जाता है कि जिन पूर्वजों को वह अर्घ्य देता आया है, जिनका पितृ-ऋण वह अदा करना चाहता है, उन्होंने दरअसल उसकी चेतना को अपनी गिरफ़्त में ले रखा है। उनसे मुक्ति पाने के इस संघर्ष की परिणति एक अन्य बोध में होती है कि गुरु-वध के बग़ैर गुरु-दक्षिणा शायद असम्भव है। लेकिन किसी रचनाकार के लिए यह स्वीकार करना आसान नहीं कि उसका रचना-कर्म उसके पितामह की शव-साधना है क्योंकि यह आकांक्षा उस लेखक को असहनीय अपराध-बोध में डुबो देती है। वह पूर्वज अपने परवर्ती की आकांक्षा से अनजान नहीं है, शायद वह भी यही चाहता है। यही उसकी मुक्ति है। पहले से कहीं विराट पुनर्जन्म है। संस्कृत का श्लोक है—सर्वतो जयमिच्छेत। पुत्राच्छिष्यात्पराजयम्। सबको जीतना चाहता हूँ, लेकिन पुत्र और शिष्य से पराजय की इच्छा रखता हूँ। यहाँ पराजय का एक अर्थ और भी है। परा+जय यानि परम विजय। पुत्र और शिष्य के हाथों इसी पराजय में मेरी परम विजय निहित है। आशुतोष भारद्वाज की यह सयानी किताब टैगोर, निर्मल वर्मा, अनन्तमूर्ति, अरुंधति रॉय जैसे उपन्यासकारों और मुक्तिबोध, श्रीकान्त वर्मा और अशोक वाजपेयी की कविताओं को एकदम नयी निगाह से बरतती है। अज्ञेय और रामचन्द्र गाँधी सरीखी संज्ञाओं से अपने रचनात्मक सम्बन्ध को टटोलती हुई यह उस आत्मालोचन से जन्म लेती है जो वर्तमान परिदृश्य में दुर्लभ है। डायरी, निबन्ध, संस्मरण इत्यादि गद्य की विविध विधाओं में खुद को कहती इस किताब की एक अन्य उपलब्धि है भारतीय उपन्यास के आधुनिकता के साथ हुए संवाद पर अत्यन्त आत्मीय विमर्श। उपन्यास की स्त्री के एकान्त पर तो अंग्रेज़ी समेत किसी भी भारतीय भाषा में यह पहला आलोचना-कर्म है। सुचरिता, चन्द्री, बिट्टी और अम्मू की अव्यक्त आकांक्षाएँ इन पृष्ठों में ख़ुद को हासिल करती है
Bharatiya Sahitya : Asha Aur Astha
- Author Name:
Dr. Arsu
- Book Type:

-
Description:
सांस्कृतिक और भाषाई एकता के उद्देश्य से सृजित एक विशिष्ट कृति। व्यापक भाषिक विविधता के बावजूद भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक चेतना मूलतः एक है। यह पुस्तक इस सार्वकालिक सत्य को नए ढंग से प्रमाणित करती है।
दो खंडों में विभाजित इस पुस्तक के पहले खंड ‘आशा’ में हिन्दी के उत्थान में अन्य भारतीय भाषाओं की भूमिका के साथ अन्य भाषाओं के साहित्य के माध्यम से उन प्रदेशों की भाषा, संस्कृति व इतिहास से परिचय कराया गया है और यह स्थापित किया गया है कि साहित्य का सन्देश एक ही होता है—मानवीय संस्कृति को जाग्रत कर मानव को संवेदना से परिपूर्ण बनाना।
इस खंड में उल्लिखित लेखकों तथा विश्व-शान्ति के सन्दर्भ में भारतीय साहित्य व दर्शन के विवेचन से परिचित कराने के साथ ही राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, तमिल के कवि सुब्रह्मण्य भारती और मलयालम के कवि वल्लत्तोल के काव्य और उनके विचारों से भी अवगत कराया गया है।
दूसरे खंड ‘आस्था’ में विभिन्न भाषाओं—असमिया, बांग्ला, डोगरी, अंग्रेज़ी, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मराठी, मणिपुरी, मलयालम, मैथिली, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, राजस्थानी, संस्कृत, सिन्धी, तमिल व उर्दू के शीर्षस्थ साहित्यकारों से भेंटवार्ताएँ दी गई हैं। इन भेंटवार्ताओं के माध्यम से हमें साहित्यकारों के व्यक्तित्व व कृतित्व से ही परिचय नहीं मिलता, बल्कि उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं तथा तत्कालीन समाज की राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक समस्याओं का भी पता चलता है।
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