Shabdon Ka Safar : Vol. 1
Author:
Ajit WadnerkarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
‘शब्दों का सफ़र’ शब्दों के जन्म-सूत्रों की तलाश है। यह तलाश भारोपीय परिवार के व्यापक पटल पर की गई है, जो पूर्व में भारत से लेकर पश्चिम में यूरोपीय देशों तक व्याप्त है। इतना ही नहीं, अपनी खोज में लेखक ने सेमेटिक परिवार का दरवाज़ा भी खटखटाया और ज़रूरत पड़ने पर चीनी एकाक्षर परिवार की दहलीज़ को भी स्पर्श किया। उनका सबसे बड़ा प्रदेय यह है कि उन्होंने शब्दों के माध्यम से एक अन्तरराष्ट्रीय बिरादरी का धरातल तैयार किया, जिस पर विभिन्न देशों के निवासी अपनी भाषाओं के शब्दों में ध्वनि और अर्थ की विरासत सँजोकर एक साथ खड़े हो सकें। पूर्व और पश्चिम को ऐसी ही किसी साझा धरातल की तलाश थी।</p>
<p>व्युत्पत्ति-विज्ञानी विवेच्य शब्द तक ही अपने को सीमित रखता है। वह शब्द के मूल तक पहुँचकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेता है। अजित वडनेरकर के व्युत्पत्ति-विश्लेषण का दायरा बहुत व्यापक है। वे भाषाविज्ञान की समस्त शाखाओं का आधार लेकर ध्वन्यात्मक परिणमन और अर्थान्तर की क्रमिक सीढ़ियाँ चढ़ते हुए शब्द के विकास की सारी सम्भावनाओं तक पहुँचते हैं। उन्होंने आवश्यकतानुसार धर्म, इतिहास, समाजशास्त्र, नृतत्त्वशास्त्र आदि के अन्तर्तत्त्वों को कभी आधारभूत सामग्री के रूप में, तो कहीं मापदंडों के रूप में इस्तेमाल किया। उनकी एक विशिष्ट शैली है। अजित वडनेरकर के इस विवेचन में विश्वकोश-लेखन की झलक मिलती है। उन्होंने एक शब्द के 'प्रिज़्म' में सम्बन्धित विभिन्न देशों के इतिहास और उनकी जातीय संस्कृति की बहुरंगी झलक दिखलाई है। यह विश्वकोश लेखन का एक लक्षण है कि किसी शब्द या संज्ञा को उसके समस्त संज्ञात सन्दर्भों के साथ निरूपित किया जाए। अजित वडनेरकर ने इस लक्षण को तरह देते हुए व्याख्येय शब्दों को यथोचित ऐतिहासिक भूमिका और सामाजिक परिदृश्य में, सभी सम्भव कोणों के साथ सन्दर्भित किया है।</p>
<p>ग्रन्थ में शब्दों के चयन का क्षेत्र बहुत व्यापक है। जीवन के प्रायः हर कार्य-क्षेत्र तक लेखक की खोजी दृष्टि पहुँची है। तिल से लेकर तिलोत्तमा तक, जनपद से लेकर राष्ट्र तक, सिपाही से लेकर सम्राट् तक, वरुण से लेकर बूरनेई तक, और भी यहाँ से वहाँ तक, जहाँ कहीं उन्हें लगा कि किन्हीं शब्दों के जन्म-सूत्र दूर-दूर तक बिखर गए हैं, उन्होंने इन शब्दों को अपने विदग्ध अन्वीक्षण के दायरे में समेट लिया और उन बिखरे सूत्रों के बीच यथोचित तर्कणा के साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश की।
ISBN: 9789394902633
Pages: 460
Avg Reading Time: 15 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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कार्ल मार्क्स की दिलचस्पी के मुख्य विषय दर्शन, राजनीति और अर्थशास्त्र थे, लेकिन प्रसंगतः उन्होंने कला और साहित्यशास्त्र की समस्याओं पर भी गम्भीर और महत्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किए हैं। पिछले सात-आठ दशकों के दौरान इन बिखरे हुए विचारों को एकत्र करके उनकी मीमांसा करने का प्रयास लगातार चलता रहा और विश्व की अनेक भाषाओं में इस विषय पर बहुत कुछ लिखा गया तथा मार्क्सवादी सौन्दर्यशास्त्र का एक समग्र रूप विकसित किया गया। इस प्रक्रिया में मार्क्स के कला और साहित्य विषयक विचारों पर मार्क्सवादी और ग़ैर-मार्क्सवादी दोनों ही तरह के लेखकों ने अपने विचार प्रकट किए हैं, और डॉ. नामवर सिंह द्वारा सम्पादित प्रस्तुत संकलन में इन दोनों ही धाराओं के लेखकों के विचारों को संकलित किया गया है।
कार्ल मार्क्स ने कला और साहित्य विषयक जिन प्रश्नों पर विचार किया है, उनमें से कुछ हैं—कला का मनुष्य के कर्म से सम्बन्ध; सौन्दर्यशास्त्र का स्वरूप, कला के सामाजिक और रचनात्मक पहलू, सौन्दर्यानुभूति का सामाजिक स्वरूप, विचारधारात्मक अधिरचना में कला; कला या साहित्यिक कृति का वर्गीय आधार और उसकी सापेक्षिक स्वायत्तता; कला का यथार्थ से सौन्दर्यशास्त्रीय रिश्ता, विचारधारा और संज्ञान; पूँजीवादी व्यवस्था में कलात्मक सृजन तथा माल का उत्पादन, कला में दीर्घजीविता के तत्त्व और उपकरण, रूप और अन्तर्वस्तु का रिश्ता; कला के सामाजिक उद्देश्य, कला की लौकिकता का स्वरूप आदि। प्रस्तुत पुस्तक में संकलित लेखों को पढ़कर पाठक साहित्य और कला से सम्बन्धित इन सभी मुद्दों से परिचित हो सकेगा। मोटे तौर पर यह पुस्तक मार्क्सवादी कला और साहित्य-चिन्तन में होनेवाली बहसों से पाठक का परिचय कराएगी तथा एक हद तक इस विषय में उनकी दृष्टि निर्मित करने में भी मदद करेगी। इस पुस्तक से मार्क्सवादी साहित्य और कला-चिन्तन की गहराई में जाकर उसका अध्ययन करने का रास्ता भी साफ़ होगा।
Bhartiya Kavya Shastra Ki Bhumika
- Author Name:
Yogendra Pratap Singh
- Book Type:

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Description:
भारतीय काव्य-चिन्तन की दृष्टि कविता के स्थापत्य से जुड़ी है। काव्य-सृजन शब्दार्थ का एक अद्वैत सहयोग है और कवि अपनी प्रतिभा के संयोग से इस शब्दार्थ में चित्त को विगलित करने की सामर्थ्य उत्पन्न करता है। पश्चिम में, यदि प्लेटो तथा अरस्तू से इसका प्रारम्भ माने तो सत्रहवीं शती तक वहाँ इसका अव्यवस्थित एवं अक्रमबद्ध विवेचन मिलता है, जबकि आचार्य भरत से प्रारम्भ होकर भारतीय काव्य-चिन्तन सत्रहवीं शती तक अपने विकास के चरम शीर्ष पर पहुँच जाता है।
‘शब्दार्थ’ रचना की प्रमुख समस्याएँ—‘सर्जन का मूलाधार’ (काव्य हेतु), ‘सृजन की केन्द्रीय चेतना’ (काव्यात्मा), ‘सृजन का मूल उद्देश्य’ (काव्य प्रयोजन), ‘कवि-कर्म का वैशिष्ट्य’ जैसे महत्त्वपूर्ण पक्षों पर यहाँ क्रमश: चिन्तन किया गया है और सार्वभौम हल निकालने की चेष्टा की गई है। भारतीय काव्य चिन्तन की केन्द्रीय धुरी ‘शब्दार्थ’ रचना ही है क्योंकि कविता की निष्पत्ति के लिए एकमात्र और अन्तिम मूल सामग्री वही है—भारतीय काव्य-चिन्तन का समग्र विकास अर्थात् शब्द सौष्ठव से लेकर आस्वादन तक का विवेचन, इसी शब्दार्थ पर ही आधारित रहा है और प्रस्तुत कृति का सम्बन्ध भारतीय कविता-चिन्तन के इसी वैशिष्ट्य को इंगित करना है।
Celebrating The City Kolkata in Indian Literature
- Author Name:
Sayantan Dasgupta
- Book Type:

- Description: This anthology has its roots in a Sahitya Akademi symposium in which the Centre for Translation of Indian Literatue, Jadhapur University collaborated under the aegis of its UGC RUSA 2.0 project on Redefining Indian Literature.
Zamane Se Do Do Hath
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

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Description:
प्रो. नामवर सिंह हिन्दी का चेहरा हैं। उनमें हिन्दी समाज, साहित्य-परम्परा और सर्जना की संवेदना रूपायित होती है। वे न सीमित अर्थों में साहित्यकार हैं और न आलोचक। वे हिन्दी में मानवतावादी, लोकतांत्रिक और समाजवादी विचारों की व्यापक स्वीकृति के लिए सतत संघर्षशील प्रगतिशील आन्दोलन के अग्रणी विचारक थे। स्वातंत्र्योत्तर भारतीय समाज और राजनीति की जनपक्षधर शक्तियों को उन्होंने अपनी वैचारिकता, आलोचकीय प्रतिभा और लोकसंवेदी-तर्कप्रवण वक्तृता से निरन्तर मज़बूत किया। वे देश में समतावादी समाज का सपना सँजोये रखनेवाली सामाजिक शक्तियों के पक्ष में सामन्तवादी-पुनरुत्थानवादी शक्तियों और पूँजीवादी शक्तियों से निरन्तर मुठभेड़ जारी रखनेवाले वैचारिक योद्धा थे। उन्होंने जहाँ एक ओर धर्म, लोक, परम्परा और संस्कृति के मानवीय मूल्यों पर ज़ोर देनेवाली विरासत की सटीक व्याख्या की है, वहीं इनको उपकरण बनाकर सामाजिक भेदों को स्वीकृत करानेवाले बौद्धिक प्रयत्नों के ख़िलाफ़ हमलावर तेवर भी अपनाए। उन्होंने परम्परा और आधुनिकता के मूल्यांकन की प्रगतिशील परम्परा को आगे बढ़ाया।
प्रस्तुत संग्रह में नामवर जी के विगत दो दशकों में दिए गए अनेक व्याख्यानों एवं वाचिक टिप्पणियों के साथ दो आलेख शामिल हैं, जिनमें भूमंडलीकरण, फासीवाद, साम्प्रदायिकता भाषा और संस्कृति के ज्वलन्त सवालों पर नामवर जी के विचार हिन्दी समाज की जड़ता को तोड़ने के क्रम में हमारे सामने आते हैं।
Acharya Ramchandra Shukla Ke Shreshtha Nibandh
- Author Name:
Acharya Ramchandra Shukla
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
The Untold Story Of Kakori
- Author Name:
Smita Dhruv
- Book Type:

- Description: Do you remember “Kakori train loot” by Ten heroes ? It happened on 9th August, 1925. A real life drama by India’s martyrs around which this fiction is written. India’s Non Co-operation Movement against the British Government was started with a promise to free India within a year. When it was withdrawn abruptly in 1922, thousands of young freedom fighters were disillusioned. This deceit saw birth of a large number of revolutionaries fighting with all their might single-handedly against the ruling British in India. On this day, a team of ten young boys looted treasury of the Indian Railways near Kakori Railway Station, next to Lucknow. An event in the Golden history of India’s freedom fights and is a fictional story woven around it. This book brings alive those shining moments of gallantry by young, brave martyrs, who till today remain unknown to us. A nail biting portrayal of mental agony, dilemma and _ survival issues from the lives of heroes of our country and their families is a tribute to the Kakori boys
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