Ramcharitmanas (Sahityik Mulyankan)
Author:
Sudhakar PandeyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Unavailable
जनसाधारण से लेकर उद्भट विद्वानों तक में अगर समान भाव से कोई ग्रन्थ प्रतिष्ठित है तो वह है तुलसी का <strong>‘</strong>रामचरितमानस<strong>’</strong>। अपनी काव्यगत श्रेष्ठता<strong>, </strong>मूल्यबोध की समग्रता और प्रभावशीलता तथा मानव की चिरन्तन गुत्थियों<strong>, </strong>पीड़ाओं व ख़ुशियों के जीवन्त चित्रण के कारण यह महाकाव्य हर पीढ़ी को एक नए ढंग से अपनी ओर खींचता है। हर युग उसमें अपने हर्ष-विषाद का कोई-न-कोई चित्र पा लेता है। और बार-बार नई-नई व्याख्याओं-टीकाओं के सहारे इसे समझने की कोशिश की जाती है।</p>
<p>लेकिन अपने दायरे में उन सब प्रयासों की अपनी एक सीमा रही है। इस पुस्तक में एकांगिता से बचने और <strong>‘</strong>मानस<strong>’</strong> की यथासम्भव सम्पूर्ण व्याख्या तक पहुँचने की कोशिश की गई है। सम्पादक का भरसक प्रयास रहा है कि जहाँ तक हो सके<strong>,</strong> अच्छे-से-अच्छे निबन्धों का चुनाव हो ताकि ‘मानस’ के छात्रों-शोधार्थियों के अलावा सुरुचिवान् सामान्य पाठक भी इससे लाभान्वित हों। कोशिश यह भी रही है कि <strong>‘</strong>मानस<strong>’</strong> के शिल्प<strong>, </strong>विषय-वस्तु<strong>, </strong>चरित्र-योजना<strong>, </strong>उसके काव्यगत वैशिष्ट्य<strong>, </strong>रस-व्यंजना<strong>, </strong>उसमें निहित तत्कालीन सांस्कृतिक<strong>, </strong>सामाजिक मूल्यों समेत उन सभी पक्षों से सम्बद्ध निबन्ध शामिल हों<strong>, </strong>जिन पर <strong>‘</strong>मानस<strong>’</strong> के सम्बन्ध में किसी की भी नज़र जा सकती है।</p>
<p><strong>‘</strong>मानस<strong>’</strong> के जीवन-मूल्यों के मनोवैज्ञानिक पहलू और तुलसी व वाल्मीकि का तुलनात्मक विवेचन जैसे कुछ अप्रचलित और कतिपय नवीन निबन्धों को भी इसमें सम्मिलित किया गया है।
ISBN: 9788171194391
Pages: 245
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: बसन्त आ गया पर कोई उत्कण्ठा नहीं निबंध मन की जिस तरंगायित अभिव्यक्ति का नाम है, श्री विद्यानिवास मिश्र के ये निबंध अत्यन्त सच्चाई और सूक्ष्मता के साथ इसका प्रतिनिधित्व करते हैं। पं. रामचन्द्र शुक्ल और आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के बाद हिन्दी निबंध को लोक तत्त्व और परम्परा की गहन अनुभूति से समृद्ध करने वाला तीसरा नाम पं. विद्यानिवास मिश्र का ही है। इन निबंधों में विषय तो मात्र एक 'बहाना' है। उस बहाने से निबंधकार आधुनिक जीवन की भीतरी विसंगतियों को बड़ी सूक्ष्मता से उजागर करता है। उसकी भाषा लोकोन्मुखी होने के साथ-ही-साथ संस्कृत और पाश्चात्य साहित्य के गहरे अध्ययन से अत्यन्त काव्यमयी हो उठी है। भाषा की इस काव्यमयता के भीतर ही जीवन के वे छलछलाते प्रसंग छिपे हैं जो बार-बार निबंधकार को एक 'मुक्त आवेश' की सृष्टि करने को विवश करते हैं। लेखक के व्यक्तित्व और अभिव्यक्ति से सन्निहित यह 'मुक्त आवेश' ही उनके निबंधों को उस नैतिक अनुशासन से समृद्ध करता है जो हर आधुनिक लेखन की पहली शर्त है। आधुनिक हिन्दी साहित्य में जब गद्य की अन्य विधायें आज अधिक प्रमुख और महत्त्वपूर्ण मानी जाने लगी हैं, यह निबंध-संग्रह निबंध-विधा को पुनरुज्जीवित करने का एक महत्त्वपूर्ण और सफल प्रयास है।
Sahitya Ki Pahachan
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

-
Description:
नामवर सिंह का आलोचक समाज में बातचीत करते हुए, वाद-विवाद-संवाद करते, प्रश्न-प्रतिप्रश्न करते सक्रिय रहता है और विचार, तर्क और संवाद की उस प्रक्रिया से गुज़रता है जो आलोचना की बुनियादी भूमि है। आलोचना लिखित हो या वाचिक—उसके पीछे बुनियादी प्रक्रिया है पढ़ना, विवेचना, विचारना। तर्क और संवाद। नामवर जी के व्याख्यानों और उनकी वाचिक टिप्पणियों में इसका व्यापक समावेश है। उनकी वाचिक आलोचना मूल्यांकन की ऊपरी सीढ़ी तक पहुँचती है। निकष बनाती है। प्रतिमानों पर बहस करती है। उसमें ‘लिखित’ की तरह की ‘कौंध’ मौजूद होती है।
‘साहित्य की पहचान’ मुख्यतः कविता और कहानी केन्द्रित व्याख्यानों और वाचिक टीपों का संग्रह है। व्याख्यान ज़्यादा हैं, वाचिक टीपें कम। इनमें भी कविता से जुड़े व्याख्यान संख्या की दृष्टि से अधिक हैं।
पहले खंड में कविता केन्द्रित व्याख्यान हैं। ज़्यादातर व्याख्यान आधुनिक कवियों पर केन्द्रित हैं। निराला पर तीन स्वतंत्र व्याख्यान इस पुस्तक की उपलब्धि कहे जा सकते हैं। तीनों ही निराला की उत्तरवर्ती कविताओं पर केन्द्रित हैं और प्रायः इन पर एक नए कोण से विचार किया गया है। तीनों व्याख्यानों में एक आन्तरिक एकता है। सुमित्रानन्दन पन्त और महादेवी पर केन्द्रित व्याख्यानों से भी इनकी एक संगति बैठती है। ‘स्वच्छन्दतावाद और छायावाद’ तथा ‘रोमांटिक बनाम आधुनिक’ शीर्षक व्याख्यान इन पाँच व्याख्यानों की वैचारिक भूमि स्पष्ट करते हैं। हरिवंश राय बच्चन, दिनकर, भारतभूषण अग्रवाल पर केन्द्रित छोटे व्याख्यान यहाँ संकलित हैं। समकालीन कविता के अनेक महत्त्वपूर्ण पक्षों को ‘इधर की कविता’ व्याख्यान में नामवर जी पहचानते और व्याख्यायित करते हैं।
दूसरे खंड में उपन्यास और कहानी पर केन्द्रित अनेक व्याख्यान और वाचिक टिप्पणियाँ हैं। हिन्दी में कहानी के विश्लेषण की प्रविधियों का पहला महत्त्वपूर्ण आविष्कार करनेवाली पुस्तक ‘कहानी नयी कहानी’ के लेखक नामवर सिंह की समकालीन कहानी से सम्बन्धित अनेक चिन्ताएँ यहाँ मुखरित हैं।
Kavita Ka Shahar : Ek Kavi Ki Notebook
- Author Name:
Rajesh Joshi
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Description:
कविता का नगर चाहे बहुत भिन्न हो, उसमें कल्पना का तत्त्व बहुत अधिक या कम हो, लेकिन बाहर स्थित नगर से उसकी शक्ल थोड़ी-बहुत तो मिलती है। पर हर बार मेरी शक्ल को वास्तविक नगर की शक्ल से मिला-जुलाकर देखने की क़वायद फ़िज़ूल है। कई बार कवियों को भी यह भ्रम हो जाता है कि वे अपनी कविता में वास्तविक शहर के यथार्थ को समेट रहे हैं। उन्हें लगता है कि वो कविता में शब्दों से वो ही शहर बना सकते हैं जो वास्तविक शहर है। लेकिन दोनों के निर्माण में लगनेवाली सामग्री ही भिन्न है। जब भी वास्तविक शहर शब्दों में रूपान्तरित होता है, उसका चेहरा-मोहरा वही नहीं रहता जो उसका वास्तविक चेहरा है। यह शहर का पुनर्रचित चेहरा है। यह कविता का नगर है।
लेकिन मुझे बसाना या बनाना भी कोई आसान काम नहीं है। मेरे भवनों, सड़कों, गलियों, नदियों और सरोवरों को बनाने के लिए एक कवि को भी जाने कितने शब्द, कितने वाक्य, बिम्ब, प्रतीक, छन्द, लय, मिथक-कथाओं और कल्पनाओं की ज़रूरत होती है। कवि का श्रम किसी वास्तुशिल्पी या नगरशिल्पी से किसी बात में कम नहीं होता।
मेरा इतिहास उतना ही पुराना है जितना मनुष्य द्वारा किए गए नगरीकरण का। इसे मेरा दम्भ न समझा जाए तो कई बार तो मुझे लगता है कि मनुष्य द्वारा बसाए गए शहर से भी पहले मैं अस्तित्व में आया होऊँगा। एक शहर में जैसे हमेशा ही कुछ न कुछ जुड़ता रहता है, कुछ टूटता रहता है, इसी तरह मुझमें भी कुछ न कुछ बदलता रहता है। प्राचीन कविता का नगर और आज की कविता का नगर एक-सा तो नहीं है। आधुनिक शहरों की तरह मुझमें भी भीड़ है, शोर है और तेज़ गतियाँ हैं, परिचित और अपरिचित चेहरे हैं। आख़िरकार मैं भी एक नगर हूँ और भीड़ और शोर से मैं भी कैसे बच सकता हूँ।
तो आइए, मैं आपको वास्तविक नगर की भीड़ और शोर से निकालकर कविता के नगर की भीड़ और शोर के बीच लिए चलता हूँ।
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