Philhal
Author:
Ashok VajpeyiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
पचास साल पहले प्रकाशित यह पुस्तक ऐसे समीक्षात्मक लेखों का संग्रह है, जिससे हिन्दी आलोचना में एक ‘रेडिकल चेंज’ आया, और आज भी इसका महत्त्व अपनी उल्लेखनीय भूमिका में बना हुआ है।</p>
<p>पुस्तक में शामिल अपने लेखों के बारे में अशोक वाजपेयी ने ख़ुद ‘दृश्यालेख’ में स्पष्ट किया है कि ये लेख ‘जब-तब लिखे गए हैं और इसलिए इनमें बहुत स्पष्ट तारतम्य नहीं है’। पर अपनी समग्रता में ये ‘उन खोजों और आग्रहों को’ उजागर करते हैं जो समकालीन कविता के मूल में हैं। युवा कविता के घटाटोप से बौखलाकर जब सिद्ध और प्रतिष्ठित समीक्षक आँख मींच बैठे हों, तब उस ढेर में से सही और सार्थक कविता की पहचान करने-कराने का अशोक वाजपेयी का यह प्रयत्न कल भी आत्यन्तिक महत्त्व रखता था, आज भी रखता है।</p>
<p>इस पुस्तक में अपने समय के युवा-लेखन की गड़बड़ियों और उनके स्रोतों को स्पष्ट करते हुए अशोक वाजपेयी अच्छे कवियों की रचना की मूल्यवत्ता को रेखांकित करने में सफल हुए हैं। वैज्ञानिक समझ और बेलाग सफ़ाई से उन्होंने काव्य-सृजन को परखा है और मुक्तिबोध, कमलेश, धूमिल आदि समकालीन कवियों की कविता की विशेषताओं को सही रोशनी में रखा है। अपने लेखन से उन्होंने समकालीन आलोचना को जो नई समझ और उसके लिए जो ज़रूरी मुहावरा दिया, उसके बल पर हम कह सकते हैं कि इस पुस्तक के प्रकाशन का हिन्दी समीक्षा पर ही नहीं, हिन्दी कविता पर भी गहरा प्रभाव पड़ा।</p>
<p>निस्सन्देह, आलोचना साहित्य में एक बहुमूल्य और विरल कृति का नाम है ‘फ़िलहाल’।
ISBN: 9788126713684
Pages: 162
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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मनोविज्ञान के परिप्रेक्ष्य में खंडित व्यक्तित्व एक आधुनिक संकल्पना है। आज का मानव टूटा हुआ, थका हुआ, हारा हुआ व्यक्ति है और इसी कारण उसका व्यक्तित्व भी खंडित है। इस विषय पर फुटकर रूप में कुछ विवेचन कतिपय पुस्तकों में अवश्य हुआ है किंतु अपनी समग्रता में खंडित व्यक्तित्व की परिधि में इसके अध्ययन की आवश्यकता बनी हुई थी। डॉ. टी. आर. पाटील की यह पुस्तक ‘समसामयिक हिंदी नाटकों में खंडित व्यक्तित्व अंकन’ इस अभाव की पूर्ति का एक सफल प्रयास है ।
डॉ. पाटील ने अपनी इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक में जहाँ खंडित व्यक्तित्व के अर्थबोध और अर्थ-विस्तार के साथ उसकी अवधारणा पर अपने गम्भीर विचार प्रस्तुत किए हैं, वहीं 1947 से 1985 तक प्रकाशित प्रतिनिधि नाटकों को परिलक्षित कर उनमें अंकित खंडित व्यक्तित्व के विविध आयामों को विवेचित-विश्लेषित किया है। इस संदर्भ में उन्होंने प्रेम और यौन समस्या, आत्मविश्लेषणवाद, मानव का असंगत जीवन, राजनीतिक-आर्थिक चेतना, सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना से प्रभावित हिंदी नाटकों में प्रतिबिंबित खंडित व्यक्तित्व को विस्तार के साथ विश्लेषित किया है।
खंडित व्यक्तित्व को रंगमंच पर प्रस्तुत करने की दृष्टि से नाटककारों ने जिस रंगमंच की अभिनव कल्पना की है उसमें मंच-सज्जा, पात्रों के क्रिया-व्यापार, पात्रों का अतर्द्वंद्व, पात्रों की वेश-भूषा, प्रकाश-योजना, ध्वनि-योजना, गीत-संगीत के विशिष्ट प्रयोग, नव्य यांत्रिक साधन तथा विविध रंगकर्मियों और निर्देशकों का योगदान और दर्शकों की प्रतिक्रियाओं को दिखाने का जो सफल प्रयास डॉ. पाटील ने किया है, वह इस पुस्तक की एक अनुपम उपलब्धि है।
Hindi Aalochana : Drishti Aur Pravritiyan
- Author Name:
Manoj Pandey
- Book Type:

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Description:
प्रस्तुत पुस्तक ‘हिन्दी आलोचना : दृष्टि और प्रवृत्तियाँ’ के अन्तर्गत समूची हिन्दी आलोचना की परख-पड़ताल आलोचकों की रचना-दृष्टि के साक्ष्य पर करने का प्रयास किया गया है। दरअसल, आलोचकों के कृतित्व को केन्द्र में रखते हुए रचना-आलोचना के गतिमान तत्त्वों की पहचान ही लेखक का ध्येय रहा है। इसलिए आलोचना के इतिहास को रेखांकित करने के बजाय यहाँ आलोचकों की गवाही पर उसको प्रभावित करनेवाले कारकों को उद्घाटित करने का प्रयास हुआ है।
हिन्दी आलोचना के शलाका-पुरुष आचार्य शुक्ल से लेकर रचनाकार-आलोचक रमेशचन्द्र शाह तक की आलोचना-दृष्टि की विवेचना करते हुए उन पक्षों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है, जो आलोचना के विकास को चिन्हित करते हैं। साथ ही, आलोचना की उन प्रवृत्तियों पर भी यहाँ विचार किया गया है, जिनका सन्दर्भ भारतीय हो या पाश्चात्य, जिन्होंने हिन्दी आलोचना को गहरे तक प्रभावित किया है। शास्त्रीय परम्परावादी, तुलनात्मक, समाजशास्त्रीय पद्धति से लेकर उत्तर-आधुनिक विमर्शों तक पर विचार करना पुस्तक का उद्देश्य है।
Hindi Ke Vikas Mein Apbhransh Ka Yog
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

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Description:
प्रस्तुत पुस्तक का संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण पाठकों के समक्ष नई साज-सज्जा के साथ प्रस्तुत है जिसमें परवर्ती अपभ्रंश और आरम्भिक हिन्दी सम्बन्धी नवीन सामग्री, अपभ्रंश और हिन्दी वाक्य-विन्यास का तुलनात्मक विवेचन, अपभ्रंश के कुछ विशिष्ट तद्भव तथा देशी शब्द और उनके हिन्दी रूपों की सूची, अपभ्रंश के प्रायः सभी सूचित और ज्ञात ग्रन्थों की सूची, अपभ्रंश के मुख्य कवियों, काव्यों और काव्य-प्रवृत्तियों की विस्तृत समीक्षा, अपभ्रंश और हिन्दी साहित्य के ऐतिहासिक सम्बन्ध पर विशेष विचारों का समावेश किया गया है।
आशा है, पुस्तक विद्यार्थियों, शोधार्थियों तथा पाठकों का मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होगी।
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