Pashchim Se Samvad : Hindi, Samaj, Alochana
Author:
Dilip Kumar GuptPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 480
₹
600
Available
संसार के मानव-समुदायों और राष्ट्रों का वर्तमान समय बीती सदियों की जिजीविषा के मोहक संघर्ष का अद्यतन रूप है। एक मानव समुदाय द्वारा दूसरे को अधीन करने या अन्य की दासता का भोग करने की कामना अत्यन्त प्राचीन है। किन्तु इसके साधन और उपकरण एक जैसे नहीं होते। आज ये उपकरण इतने महीन और सूक्ष्म हैं कि इनकी पहचान करना सामान्यत: सरल नहीं है। इनमें सर्वाधिक दक्ष और प्रचलित है—अन्य के सपनों और आकांक्षाओं के टेक्सचर पर नियंत्रण। मुख्यत: संस्कृति में घटित होने वाली इन प्रक्रियाओं का प्रकटन भाषा और साहित्य में सर्वाधिक प्रामाणिक और स्थायी होता है। भारत के बारे में सोचते हुए और हिन्दी समाज से गुज़रते हुए जब हम कुछ समकालीन प्रश्नों से संवाद करते हैं तो धर्म और संस्कृति तथा भाषा और साहित्य के कई रूपक व्याख्यायित करने पड़ते हैं और बात बहुत दूर तक जाती है।
ISBN: 9789389742398
Pages: 224
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘कविता के नए प्रतिमान’ में समकालीन हिन्दी आलोचना के अन्तर्गत व्याप्त मूल्यान्ध वातावरण का विश्लेषण करते हुए उन काव्यमूल्यों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है जो आज की स्थिति के लिए प्रासंगिक हैं।
प्रथम खंड के अन्तर्गत विशेषतः ‘तारसप्तक’, ‘कामायनी’, ‘उर्वशी’ आदि कृतियों और सामान्यतः छायावादोत्तर कविता की उपलब्धियों को लेकर पिछले दो दशकों में जो विवाद हुए हैं, उनमें टकरानेवाले मूल्यों की पड़ताल की गई है; और इस प्रसंग में नए दावे के साथ प्रस्तुत ‘रस सिद्धान्त’ की प्रसंगानुकूलता पर भी विचार किया गया है।
दूसरे खंड में ‘कविता के नए प्रतिमान’ के नाम पर प्रस्तुत अनुभूति की ‘प्रामाणिकता’, ‘ईमानदारी’, ‘जटिलता’, ‘द्वन्द्व’, ‘तनाव’, ‘विसंगति’, ‘विडम्बना’, ‘सर्जनात्मक भाषा’, ‘बिम्बात्मकता’, ‘सपाटबयानी’, ‘फ़ैंटेसी’, ‘नाटकीयता’ आदि आलोचनात्मक पदों की सार्थकता का परीक्षण किया गया है। इस प्रक्रिया में यथाप्रसंग कुछ कविताओं की संक्षिप्त अर्थमीमांसा भी की गई है, जिनसे लेखक द्वारा समर्थित काव्य-मूल्यों की प्रतीति होती है।
निष्कर्ष स्वरूप नए प्रतिमान एक जगह सूत्रबद्ध नहीं हैं, क्योंकि लेखक इस प्रकार के रूढ़ि-निर्माण को अनुपयोगी ही नहीं, बल्कि घातक समझता है। मुख्य बल काव्यार्थ ग्रहण की उस प्रक्रिया पर है जो अनुभव के खुलेपन के बावजूद सही अर्थमीमांसा के द्वारा मूल्यबोध के विकास में सहायक होती है।
Itihas Aur Aalochak-Drishti
- Author Name:
Ramswaroop Chaturvedi
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Description:
साहित्य जीवन की पुनर्रचना है तो आलोचना साहित्य की पुनर्रचना है। साहित्य के इतिहास को तब जीवन, साहित्य और आलोचना की गति तथा उनके आपसी रिश्तों को समझना तथा व्याख्यायित करना है। रचना से पुनर्रचना के इन स्वचेतन होते क्रमिक चरणों में वैचारिकता का सम्पर्क बढ़ता जाए तो यह स्वाभाविक है। इस स्थिति में कह सकते हैं कि साहित्य का इतिहास अनुभव और विचार की अन्तर्क्रिया की पुनर्रचना है। और उसके लिए सबसे बड़ी समस्या और चुनौती यह है कि अपने स्वयं तो इतिहास की प्रक्रिया में अंगीकृत हो।
‘इतिहास और आलोचक-दृष्टि’ में हिन्दी साहित्य के इतिहास का एक नए स्तर पर अनुभावन और विवेचन सम्भव हुआ है। पूरे अध्ययन में दो प्रक्रियाएँ साथ-साथ चलती हैं। एक ओर तो ख्यात आलोचकों के वैशिष्ट्य का रूप उभरता है, और दूसरी ओर उनके द्वारा विवेचित अलग-अलग इतिहास-युगों का चित्र स्पष्ट होता चलता है। इतिहास और आलोचना का हिन्दी साहित्य के सन्दर्भ में ऐसा सम्पृक्त और द्वन्द्वात्मक रूप पहली बार देखने को मिलता है। कविता-यात्रा और गद्य की सत्ता के विविध रूपों के विवेचन और भाषिक सर्जनात्मक अन्वेषण के बाद समीक्षक ने अगले चरण में इतिहास-आलोचना की विशिष्ट प्रक्रिया का यह अध्ययन प्रस्तुत किया है, जिस विकास-क्रम में उसकी प्रामाणिकता प्रशस्त होती है।
हिन्दी साहित्य के इतिहास का कोई भी अध्ययन इस कृति के द्वारा समृद्ध और समग्रतर होगा।
Nayi Parampara Ki Khoj
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- Description: यह पुस्तक २१ वीं सदी की बदलती हुई सभ्यता , संस्कृति और प्रकृति के द्वन्द्व का आलोचनात्मक रचाव है । इस समयावधि की सामाजिक , राजनीतिक एवं सांस्कृतिक हलचल हिलोरों को जितनी प्रामाणिकता के साथ यहाँ प्रस्तुत किया गया है , वह बहुत महत्त्वपूर्ण और अलग है । इसमें जीवन, समाज, देश और प्रकृति को यथार्थवादी दृष्टि से देखती कविताओं की सूक्ष्म परख है । आज की हिन्दी कविताएँ किस तरह से अपने समय प्रदूषण का प्रतिकार करते हुए मानवता का महाआख्यान रच रही हैं इसे भी इस पुस्तक से समझा जा सकता है । इसमें उदारीकरण , निजीकरण , पूँजीवाद और बाजारवाद के छल - छद्म से बदलते समाज की स्पष्ट छवि देखी जा सकती है । यहाँ निराला , मुक्तिबोध , धूमिल , त्रिलोचन , केदारनाथ सिंह , अरुण कमल , मदन कश्यप आदि की कविताओं के साथ - साथ इक्कीसवीं सदी की दलित, स्त्री और आदिवासी हिन्दी कविता का गहन विवेचन और विश्लेषण प्रस्तुत है ।
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