Dhumil Ki Kavita Mein Virodh Aur Sangharsh
Author:
Nilam SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
धूमिल की कविता उस आम आदमी की कविता है जो आज की राजनीति के केन्द्र में है। कभी हाशिये पर रखे जानेवाले इस आम आदमी को संसद से लेकर सड़क तक जिस प्रकार धूमिल ने देखा, शायद उसका पुनर्नवीकरण हम आज की राजनीति में देख रहे हैं। ऐसे में धूमिल की कविता के विविध पहलुओं को उजागर करती यह किताब धूमिल की कविता में विरोध और संघर्ष छोटी परन्तु मुकम्मल दास्तान प्रस्तुत करती है।</p>
<p>जैसा कि नामवर जी ने आमुख में इंगित किया है—धूमिल अपने दौर के सबसे समर्थ कवियों में एक है। ऐसे कवि जिनकी कविता की अनुगूँज साठोत्तरी कविता को प्रतिबिम्बित करती है, पर उससे भी आगे जाकर भविष्य का एक रास्ता तलाशने की राह दिखाती है। काशीनाथ सिंह धूमिल की साहित्य-यात्रा के सबसे घनिष्ठ सहचर थे और उनसे लेखिका की बातचीत में धूमिल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की सार्थक पहचान व्यंजित होती है। नामवर जी की आलोचना-दृष्टि ने धूमिल की कविता की विशिष्टता को पहली बार साहित्य संसार के सामने रखा था और इतने अरसे बाद उनकी नज़र से धूमिल का गुज़रना सुखद संयोग है।</p>
<p>संसद एवं राजनीति के बदलते परिदृश्य में धूमिल की कविता पर आलोचना की यह किताब धूमिल के माध्यम से अपने दौर की समीक्षा है।
ISBN: 9788183616294
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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सच्चिदानन्द वात्स्यायन अज्ञेय, निर्मल वर्मा तथा रमेशचन्द्र शाह स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के ऐसे विचारक रचनाकार हैं, जिन्होंने पश्चिम के बौद्धिक जगत के समक्ष भारतीय चिन्तन परम्परा के वैशिष्ट्य को आत्मविश्वास के साथ आधुनिक परिप्रेक्ष्य में रखा।
भारतीय ज्ञान एवं साधना परंपरा के वैशिष्ट्य को रूपायित करने और सम्पूर्ण भारतीय समाज को दिशा देने में नाथपंथ तथा उसके प्रवर्तक के रूप में महायोगी गुरु गोरखनाथ का सर्वाधिक योगदान है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय राजनीति के विरले ऐसे शिखर पुरुष रहे हैं, जिनके चिंतन की दिशा पश्चिमोन्मुख नहीं रही है, उनपर भारतीय अद्वैत दर्शन का गहरा प्रभाव है। इसलिए इस पुस्तक में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को विवेचन का विषय बनाया गया है। भारतेन्दु-युग के तेजस्वी रचनाकार राधाचरण गोस्वामी और द्विवेदी युग के महत्त्वपूर्ण कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' के रचनाकार व्यक्तित्व से सम्बन्धित आलेख को इस पुस्तक में स्थान दिया गया है।
Aaj Ki Kavita
- Author Name:
Vinay Vishwas
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Description:
'आज की कविता’ आलोचना के नए दर खोलती है और समकालीन कविता के तज़ुर्बों को मुख़्तलिफ़ ढंग से विश्लेषित करती है। समकालीन कविता के लिए, जिस विनम्र और बाशऊर नज़रिए की ज़रूरत थी, वो यहाँ मौजूद है। पूरी किताब विनम्र लेकिन सचेत नज़रिए का प्रतिफल है। ...इस आलोचना-पुस्तक में कविता का होना, जीवन के होने जैसा है। विनय विश्वास इतने शालीन और एकाग्र ढंग से हिन्दी-उर्दू कविता को ज़िन्दगी के तत्त्वों से जोड़ते चलते हैं कि आलोचना-पुस्तक सिर्फ़ विनय की नहीं, बल्कि समकालीन हिन्दी के तमाम कवियों और उर्दू के शायरों की हो जाती है। ...आलोचना में जो उखाड़-पछाड़ (और गुटबाज़ी) चल रही है, यह आलोचना उससे कोसों दूर है। यहाँ मक़सद, बड़ी दयानतदारी के साथ समकालीन कविता को परखना है। उसकी सामाजिकता को पहचानना है। सच मायने में 'आज की कविता’ महज़ आलोचना का नहीं, बल्कि मौजूदा कविता का पर्यावरण रचती है। यही इस आलोचना की विशेषता है और मौलिकता भी। ...इस आलोचना में लोकतांत्रिक छवियाँ हैं। कमज़र्फ़ आग्रह, फ़रेब और छल का नकार है। ...विनय विश्वास ने कविताओं को अपनी आलोचना-पुस्तक में 'भर’ नहीं दिया, उन्हें माकूल और मुस्तकिल स्थान दिया है। संवेदनशील आलोचक यही करते हैं। ...विनय विश्वास के सरोकार स्पष्ट हैं। वो आज की कविता में जीवन की लय तलाश करते हैं। यहाँ एक सादगी है। यही आलोचकीय शक्ति भी है। वो इसी शक्ति के सहारे, समकालीन कविता के जिस्म तक नहीं बल्कि उसकी आत्मा तक पहुँचते हैं।
—ज्ञान प्रकाश विवेक, ‘वागर्थ’, अक्तूबर, 2009
Hindi Navjagaran Ka Aarthik Chintan
- Author Name:
Jay Singh Neerad
- Book Type:

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Description:
हिन्दी नवजागरण भारतीय नवजागरण से प्रेरित और प्रभावित होते हुए भी इस दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण है कि वह हिन्दी पट्टी के सामाजिक-सांस्कृतिक और राष्ट्रीय जनजागरण का वाहक बना रहा। विशेष रूप से सामाजिक-सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में ही उसकी विवेचना भी की गई लेकिन पता नहीं क्यों विद्वानों का ध्यान इस वास्तविकता की ओर नहीं गया कि हिन्दी पट्टी में सामाजिक-सांस्कृतिक जागरण के साथ जो स्वातंत्र्य आन्दोलन परवान चढ़े उनके मूल में विद्यमान हिन्दी नवजागरण का आर्थिक चिन्तन उनकी अपरिहार्य प्रेरणा-भूमि है। इस दौर के अधिकांश लेखकों और साहित्यकारों ने राष्ट्रीय और सामाजिक उद्देश्यों के लिए अपने आर्थिक चिन्तन को हथियार की तरह इस्तेमाल किया। इस आर्थिक चिन्तन को आत्मसात किए बिना हिन्दी नवजागरण को सम्पूर्णता से नहीं समझा जा सकता।
इस पुस्तक में लेखक ने हिन्दी नवजागरण के आर्थिक चिन्तन के अनुशीलन का प्रयास किया है। इस चिन्तन को आधुनिक युग के आर्थिक परिप्रेक्ष्य से जोड़ने की कोशिश भी की गई है। इस अध्ययन से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि उत्तर भारत के स्वातंत्र्य आन्दोलनों और सामाजिक जागरण को औपनिवेशिक शासन द्वारा किए गए भारतीयों के आर्थिक शोषण ने अपने ढंग से प्रेरित और प्रभावित किया। यही कारण है कि तत्कालीन राजनीतिक परिप्रेक्ष्य भी इस आर्थिक चिन्तन से अनिवार्यतः जुड़ा रहा है।
वर्तमान में यह आवश्यक है कि आधुनिक अर्थव्यवस्था को हिन्दी नवजागरणकालीन औपनिवेशिक शोषण के परिप्रेक्ष्य में भी समझा जाए। यह पुस्तक इसी दिशा में पहल करने का एक प्रयास है।
Madhyakaleen Hindi Kavya Bhasha
- Author Name:
Ramswaroop Chaturvedi
- Book Type:

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Description:
काव्यभाषा साहित्य चिन्तन की नई दिशा है। इस दृष्टि से यहाँ समूचे मध्यकालीन काव्य को एक साथ देखने-परखने का पहली बार प्रयास हुआ है। आधुनिक समीक्षा-प्रक्रिया और मध्यकालीन काव्य-धारा का यह सम्पर्क जितना जीवन्त है, उतना ही विचारोत्तेजक भी। सन्त कबीरदास से लेकर आचार्य भिखारीदास तक सभी प्रमुख भक्तिकाल और रीतिकाल के कवियों पर अलग-अलग अध्ययन है। भाषा, शिल्प, विधान के विविध पक्षों को इस कृति में एक सार्थक अन्विति मिलती है, जहाँ कविता बनने की प्रक्रिया ही समीक्षा के केन्द्र में है। अन्त में कई परिशिष्ट अध्ययन को व्यावहारिक स्तर पर उपयोगी बनाते हैं।
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