
Nirala Kriti Se Sakshatkar
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
524
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
1048 mins
Book Description
हिन्दी आलोचना में डॉ. नंदकिशोर नवल का मुख्य कार्य-भार रहा है पाठ से हटी हुई आलोचना को पाठाधारित करना। यह काम उन्होंने इस तरह किया है कि आलोचना पाठ-केन्द्रित भी हो और वह अपने भीतर रचना के अदृश्य विस्तार को भी समेट सके। वे निराला-काव्य के समर्पित अध्येता रहे हैं और उन्होंने निराला पर शोध करने के साथ विश्वविद्यालय में लम्बे समय तक निराला-काव्य का अध्यापन भी किया है। हिन्दी संसार उनके द्वारा सम्पादित ‘निराला रचनावली’ के आठ खंडों में उनका श्रम और निष्ठा देख चुका है। प्रस्तुत पुस्तक के दो खंडों में उन्होंने निराला की महत्त्वपूर्ण काव्य-कृतियों का ऐसा पाठाधारित विश्लेषण किया है, जो जितना ही पांडित्य के पाखंड से शून्य है, उतना ही सरस और रचनात्मक। उचित ही उन्होंने कहा है कि उन्होंने निराला की कविता की पंखुड़ियाँ छिन्न-भिन्न नहीं कीं, सिर्फ़ इसके लिए प्रयास किया है कि वह अपनी नाल पर प्रस्फुटित हो जाए।</p> <p>‘कृति से साक्षात्कार’ के प्रथम खंड में निराला की कालजयी पूर्ववर्ती कविताओं का विवेचन है और द्वितीय खंड में गीतों के साथ उनकी मध्यवर्ती और परवर्ती उन कविताओं का, जिन्होंने हिन्दी कविता में नए-नए वाग्द्वार खोले। 1936 में निराला ऐसा मानते थे कि उनकी शमा पूरी-पूरी नहीं जली, उसमें हज़ार-दो हज़ार बत्तियों की ताक़त नहीं आई। उनके पूर्ववर्ती कृतित्व के साथ मध्यवर्ती और परवर्ती कृतित्व को भी दृष्टि में रखने पर वह अपनी रोशनी से आँखें चौंधियाती दिखलाई पड़ती हैं।</p> <p>डॉ. नवल के इस अध्ययन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह परवर्ती पीढ़ी के एक आलोचक द्वारा किया गया अध्ययन है, जिसमें दृष्टि की वस्तुपरकता तो है ही, नई काव्य-संवेदना की दीप्ति भी है।