Bhartiya Mukti- Andolan Aur Premchand
Author:
Saroj SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 640
₹
800
Available
प्रेमचन्द के सम्पूर्ण कृतित्व को भारतीय मुक्ति-आन्दोलन की महागाथा कहा जाए तो शायद यह अत्युक्ति नहीं होगी। 1907 से लेकर 1936 तक के भारतीय जीवन-सन्दर्भों का उनके द्वारा प्रस्तुत सर्वांगीण चित्रण का केन्द्र-बिन्दु भारतीय जनता को मुक्ति की प्रबल आकांक्षा है। वे मानते थे कि साहित्यकार—“देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलनेवाली सच्चाई नहीं, बल्कि उससे आगे मशाल दिखाती हुई चलनेवाली सच्चाई है।”</p>
<p>भारतीय मुक्ति-आन्दोलन के सन्दर्भ में उनके इस कथन का विशेष अर्थ इसलिए है कि साहित्य में राजनीतिज्ञों के विचारों का अनुगम करने की आशा की जाती है। लेकिन प्रेमचन्द इस भ्रम को वैचारिक और रचनात्मक दोनों स्तरों पर तोड़ते हैं। सन् 1930 ई. में बनारसीदास चतुर्वेदी को लिखे पत्र में प्रेमचन्द की अभिलाषा इसका प्रमाण है—“मेरी अभिलाषाएँ बहुत सीमित हैं। इस समय सबसे बड़ी अभिलाषा यही है कि हम अपने स्वतंत्रता-संग्राम में सफल हों। मैं दौलत और सोहरत का इच्छुक नहीं हूँ। खाने को मिल जाता है। मोटर और बँगले की मुझे हविश नहीं है। हाँ, यह ज़रूर चाहता हूँ कि दो-चार उच्चकोटि की रचनाएँ छोड़ जाऊँ लेकिन उनका उद्देश्य स्वतंत्रता-प्राप्ति ही हो।” प्रेमचन्द के भारतीय मुक्ति की इसी अप्रतिम सरोकारों को अभिव्यक्त करना ही मेरा लक्ष्य रहा है।</p>
<p>—इसी पुस्तक से।
ISBN: 9789352211821
Pages: 352
Avg Reading Time: 12 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘कवि और कविता’ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के छब्बीस विचारोत्तेजक निबन्धों का पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय संकलन है।
इस संग्रह में ‘मैथिल कोकिल विद्यापति’, ‘विद्यापति और ब्रजबुलि’, ‘कबीर साहब से भेंट’, ‘गुप्त जी : कवि के रूप में’, ‘महादेवी जी की वेदना’, ‘कविवर मधुर’, ‘रवीन्द्र-जयन्ती के दिन’, ‘कला के अर्धनारीश्वर’, ‘महर्षि अरविन्द की साहित्य-साधना’, ‘रजत और आलोक की कविता’, ‘मराठी के कवि केशवसुत और समकालीन हिन्दी कविता’, ‘शेक्सपियर’, ‘इलियट का हिन्दी अनुवाद’ जैसे शाश्वत विषयों के अलावा ‘कविता में परिवेश और मूल्य’, ‘कविता’, ‘राजनीति और विज्ञान’, ‘युद्ध और कविता’, ‘कविता का भविष्य’, ‘महाकाव्य की वेला’, ‘हिन्दी-साहित्य में निगम-धारा’, ‘निर्गुण पंथ की सामाजिक पृष्ठभूमि’, ‘सगुणोपासना’, ‘हिन्दी कविता में एकता का प्रवाह’, ‘सर्वभाषा कवि-सम्मेलन’, ‘नई कविता के उत्थान की रेखाएँ’, ‘चार काव्य-संग्रह’, ‘डोगरी की कविताएँ’ जैसे ज्वलन्त प्रश्नों पर राष्ट्रकवि दिनकर का मौलिक चिन्तन शामिल है, जो आज भी उतना ही सार्थक और उपादेय है।
सरल-सुबोध भाषा-शैली तथा नए कलेवर में सजाई, सँवारी गई कविवर-विचारक दिनकर की यह एक अनुपम कृति है।
Yashpal Ka Kahani Sansar : Ek Antrang Parichya
- Author Name:
C. M. Yohannan
- Book Type:

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यह सर्वविदित है कि यशपाल प्रेमचन्दोत्तर कथाकारों में श्रेष्ठतम हैं। भारतीय जीवन के आदर्शवादी विचारों और व्यवहार में जो झूठ की दीवारें खड़ी थीं, उन्हें गिराने में यशपाल ने अपनी क़लम का इस्तेमाल किया। जीवन का कोई भी क्षेत्र उनके प्रहारों से बच न सका।
यशपाल कालजयी लेखक हैं। कथाकार की हैसियत से यशपाल की लोकप्रियता हिन्दी-जगत में जितनी व्यापक है, हिन्दीतर-जगत में उससे थोड़ी भी कम नहीं है। इसका कारण यह है कि कथाकार यशपाल ने शोषित वर्ग के जीवन का यथार्थपरक चित्र अंकित किया है।
Sahitya Ka Bhashik Chintan
- Author Name:
Ravindranath Shrivastava
- Book Type:

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सर्जनात्मक समीक्षा पर यह एक अनूठी पुस्तक है। प्रो. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव के लेखों के इस संकलन से आन्तरिक और पाठ-केन्द्रित आलोचना की एक मुकम्मल तस्वीर सामने आ गई है।
आलोचना स्वयं में एक अनुशासन है, जो अपनी सिद्धि के लिए एक निश्चित कार्य-प्रणाली का विकास करती है। व्यावहारिक आलोचना के इस सूत्र कथन को प्रो. श्रीवास्तव ने हिन्दी साहित्य को साक्षी बनाकर समीक्षा का संक्रियात्मक प्रारूप तैयार किया है।
कविता या किसी भी कृति को भाषा की ही एक विधा मानते हुए समीक्षा की नवीन और वैज्ञानिक पद्धति के उद्देश्य प्रो. श्रीवास्तव ने भाषावादी समीक्षा-चिन्तन के परिप्रेक्ष्य में घटित करके दिखाए हैं कि कविता को शैली के रूप में देखना, नार्म से अलग हटी हुई भाषा के रूप में देखना, देखना कि शब्द ख़ुद क्या बोलते हैं, अधिक समीचीन और सार्थक दृष्टि है। अर्थात् पाठ को निकट से पढ़कर शिल्प और भाषा-कौशलों के विश्लेषण के माध्यम से कृति को आलोकित करना, समीक्षा का परम लक्ष्य है, क्योंकि कविता शब्द नहीं शाब्दिक होती है, वह भाषा के माध्यम द्वारा केवल व्यक्त नहीं होती, अपितु भाषा में ही अपना अस्तित्व पाती है।
रचना की स्वनिष्ठता या उसकी सत्ता की स्वायत्तता इस पुस्तक में मात्र सैद्धान्तिक स्तर पर विवेचित नहीं है और यही इसकी नव्यता है, विशेषता है। तुलसी, सूर, प्रेमचन्द, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी आदि के पाठ में और इनके बहाने पुनर्जागरण काल, छायावादी युग, गद्य-भाषा आन्दोलन में साहित्यिक भाषा हिन्दी के बनते-बिगड़ते भाषायी समीकरणों पर इतनी आन्दोलित करनेवाली सामग्री कम ही मिलती है।
इस किताब में मार्क्सवादी आलोचना का भाषाकेन्द्रित दृष्टिकोण, नई कविता की सम्प्रेषण-युक्तियों में परिवर्तन की दिशाओं, भिन्न समयों में साहित्यिक हिन्दी की भाषा-संघटना में आए विघटनों और उनके कारणों पर भी विस्तृत चर्चा है। पाठ-केन्द्रित आलोचना के इतिहास और विचारों पर तो इस पुस्तक में विपुल सामग्री है ही।
आज की उत्तर-आधुनिक साहित्य समीक्षा में वि-संरचना का जो पक्ष अनजाने में कहीं छूट-सा गया है, वह इस पुस्तक में भरपूर मौजूद है। अतः आज की हिन्दी समीक्षा को भी यह पुस्तक बहुत कुछ देने की सामर्थ्य रखती है।
Hindi Bhasha : Vikas Aur Swaroop
- Author Name:
Dr. Kailash Chandra Bhatia
- Book Type:

- Description: हिंदी के ऐतिहासिक संदर्भ में जहाँ अपभ्रंश, अवहट्ट और पुरानी हिंदी महत्त्व है वहीं उसके स्वरूप-निर्धारण में उसकी उपभाषाओं-बोलियों का, विशेष रूप से ब्रजभाषा और अवधी का, अप्रतिम महत्त्व है। हिंदी की प्रमुख बोलियों और उनके पारस्परिक संबंध पर भी विवेचन प्रस्तुत किया गया है। हिंदी भाषा के मानकीकरण की समस्या भी है। प्रयोग क्षेत्र में हिंदी की कोई समानता नहीं है, जिसको हिंदी क्रियाओं के विविध प्रयोगों को लेकर प्रस्तुत किया गया है। इससे दो प्रयोगों में सूक्ष्म अंतर स्पष्ट हो सकेगा। शुद्ध हिंदी लिखने के लिए हिंदी व्याकरण के प्रमुख नियमों का ज्ञान भी आवश्यक है। अपनी अभिव्यक्ति का रंग-रूप निखारने के लिए व्याकरणसम्मत भाषा का प्रयोग अच्छा रहता है। पुस्तक की विषय-वस्तु बहुत सरल तथा सहज भाषा में प्रस्तुत की गई है, जिससे हिंदी भाषा के जिज्ञासु उससे अधिकाधिक लाभान्वित हो सकें।
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