Mahadevi "Doodhnath Singh"
Author:
Doodhnath SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 1196
₹
1495
Available
यह किताब महादेवी की लिखत-पढ़त, उनके चित्रों-रेखांकनों, उनके जीवन-वृत्त और उनके बारे में लेखक की संस्कृतियों के भीतर से उनको समझने की एक निजी कोशिश है। लेखक की निजी संस्मृतियाँ भी महादेवी के कर्तृत्व को व्याख्यायित करने और उसके सारतत्त्व तक पहुँचने की बुनियाद के बतौर हैं। महादेवी का संसार जितना अन्तरंग है, उतना ही बहिरंग। अन्तरंग में दीपक की खोज है और बहिरंग के कुरूप-काले संसार में सूरज की एक किरण की। महादेवी के सम्पूर्ण कृतित्व में अद्भुत संघर्ष है और पराजय कहीं नहीं। इस किताब का हर शीर्षक एक नया अध्याय है और इसका शिल्प आलोचना के क्षेत्र में एक नई सूझ। साहित्य की अन्य विधाओं की तरह ही आलोचना की पठनीयता भी ज़रूरी है। दरअसल किसी कविता, कला, कथा, विचार या लेखक के प्रति सहज उत्सुकता जगाना और उसे समझने का मार्ग प्रशस्त करना ही आलोचना का उद्देश्य है। और यह किताब यही काम करती है। महादेवी के रचनात्मक विवेक को जानने के लिए यह किताब एक समानान्तर रूपक की तरह है। उनकी कविता, गद्य और उनकी चित्र-वीथी—तीनों मिलकर ही महादेवी के सौन्दर्यशास्त्र का चेहरा निर्मित करते हैं। यह किताब इसी चेहरे का दर्शन-दिग्दर्शन है।
ISBN: 9788126717538
Pages: 443
Avg Reading Time: 15 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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भारतीय काव्य-चिन्तन की दृष्टि कविता के स्थापत्य से जुड़ी है। काव्य-सृजन शब्दार्थ का एक अद्वैत सहयोग है और कवि अपनी प्रतिभा के संयोग से इस शब्दार्थ में चित्त को विगलित करने की सामर्थ्य उत्पन्न करता है। पश्चिम में, यदि प्लेटो तथा अरस्तू से इसका प्रारम्भ माने तो सत्रहवीं शती तक वहाँ इसका अव्यवस्थित एवं अक्रमबद्ध विवेचन मिलता है, जबकि आचार्य भरत से प्रारम्भ होकर भारतीय काव्य-चिन्तन सत्रहवीं शती तक अपने विकास के चरम शीर्ष पर पहुँच जाता है।
‘शब्दार्थ’ रचना की प्रमुख समस्याएँ—‘सर्जन का मूलाधार’ (काव्य हेतु), ‘सृजन की केन्द्रीय चेतना’ (काव्यात्मा), ‘सृजन का मूल उद्देश्य’ (काव्य प्रयोजन), ‘कवि-कर्म का वैशिष्ट्य’ जैसे महत्त्वपूर्ण पक्षों पर यहाँ क्रमश: चिन्तन किया गया है और सार्वभौम हल निकालने की चेष्टा की गई है। भारतीय काव्य चिन्तन की केन्द्रीय धुरी ‘शब्दार्थ’ रचना ही है क्योंकि कविता की निष्पत्ति के लिए एकमात्र और अन्तिम मूल सामग्री वही है—भारतीय काव्य-चिन्तन का समग्र विकास अर्थात् शब्द सौष्ठव से लेकर आस्वादन तक का विवेचन, इसी शब्दार्थ पर ही आधारित रहा है और प्रस्तुत कृति का सम्बन्ध भारतीय कविता-चिन्तन के इसी वैशिष्ट्य को इंगित करना है।
Sun Mere Bandhu re
- Author Name:
Narayan Singh
- Book Type:

- Description: 'सुन मेरे बंधु रे' नारायण सिंह की नव्यतम कृति है। यहाँ उपस्थित अलग-अलग आलेख आपस में गुम्फित हैं, एक-दूसरे के साथ आबद्ध हैं। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है; क्योंकि लेखक किसी कहानी-उपन्यास में उपस्थित घटना, रंग-ढंग और दृष्टि को महज आलोचकीय दृष्टि से नहीं देख रहा, बल्कि तत्कालीन समय में उनकी उपस्थिति को, कहानी के पीछे मौजूद जीवन को भी देखना-दिखाना चाहता है। ये आलेख किसी कहानी, उपन्यास के ज़रिये शुरू तो होते हैं लेकिन उक्त कहानी उपन्यास या सिनेमा से बाहर आकर हमारी दृष्टि का आयतन विस्तारित करते मिलते हैं। एक दृष्टि सम्पन्न कथाकार अपने पूर्वज कथाकारों, सृजनशील व्यक्तित्वों के जीवन, उनके अन्तर्विरोध और मनुष्य के दुख को, सामाजिक विभेदकारी दृष्टि की जाँच-पड़ताल करते हुए उन मूल्यों को सामने लाने की कोशिश करता है जिन वजहों ने रचना को रचना बनाये रखा है। नारायण सिंह स्वयं एक कथाकार-उपन्यासकार हैं लेकिन यहाँ कथाकार अपने कथा प्रतिमान के आलोक में किसी रचना की व्याख्या नहीं करता, बल्कि रचना की केन्द्रीय समस्या को उठाते हुए सिंहावलोकन और विहंगावलोकन दोनों आयामों का भरपूर इस्तेमाल करता है। यह सिफत ही इन आलेखों को परंपरागत समीक्षकीय पद्धति से इतर पहचान लिये पाठकों से मुखातिब है। चेखव की कहानी के ज़रिये प्रेम को पुनर्परिभाषित करती बात हो या 'सुजाता' में उपस्थित अकुंठ प्रेम गीत में उपस्थित पुरुष बोध को सामने लाती आलोचकीय निगाह हो; हर जगह लेखक कलात्मकता, बुनावट और ध्वनि सौंदर्य के पीछे दबे जा रहे या दबाये जा रहे मनुष्य की पीड़ा से सहानुभूति प्रकट करता मिलता है। इसीलिए यहाँ उपस्थित रचनाओं का पाठ नये सिरे से पढ़े जाने की माँग करता मिलता है। —आशीष सिंह
Sanskriti Ke Chaar Adhyay
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

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...यह सम्भव है कि संसार में जो बड़ी-बड़ी ताक़तें काम कर रही हैं, उन्हें हम पूरी तरह न समझ सकें, लेकिन, इतना तो हमें समझना ही चाहिए कि भारत क्या है और कैसे इस राष्ट्र ने अपने सामाजिक व्यक्तित्व का विकास किया गया है। उसके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू कौन-से हैं और उसकी सुदृढ़ एकता कहाँ छिपी हुई है। भारत के समस्त मन और विचारों पर उसी का एकाधिकार है। भारत आज जो कुछ है, उसकी रचना में भारतीय जनता के प्रत्येक भाग का योगदान है। यदि हम इस बुनियादी बात को नहीं समझ पाते तो फिर हम भारत को भी समझने में असमर्थ रहेंगे। और यदि भारत को हम नहीं समझ सके तो हमारे भाव, विचार और काम, सब-के-सब अधूरे रह जाएँगे और हम देश की ऐसी कोई सेवा नहीं कर सकेंगे, जो ठोस और प्रभावपूर्ण हों।
मेरा विचार है कि दिनकर की पुस्तक इन बातों को समझने में, एक हद तक, सहायक होगी। इसलिए, मैं इसकी सराहना करता हूँ और आशा करता हूँ कि इसे पढ़कर अनेक लोग लाभान्वित होंगे।
Doosare Shabdon Mein
- Author Name:
Nirmal Verma
- Book Type:

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निर्मल वर्मा के लिए निबन्ध हमेशा ऐसी विधा रही जिसके माध्यम से उन्होंने सभ्यता, संस्कृति, साहित्य और रचनात्मकता के मूलभूत प्रश्नों पर सोचते हुए जितनी बाहर, उतनी ही अपने भीतर भी यात्रा की। किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से ज़्यादा सत्य के पीछे एक सजग यात्रा।
इस पुस्तक में शामिल निबन्ध इस लिहाज से और भी विशेष हैं। भाषा, अस्मिता, परम्परा और आधुनिकता के बार-बार चिह्नित प्रश्नों को यहाँ उन्होंने एक बार फिर से अपने चिन्तन का विषय बनाया है।
इसमें कुछ साक्षात्कार भी संकलित हैं जिनके प्रश्नों ने निर्मल वर्मा को पुन: एक अवसर दिया कि वे अपने सोचे और कहे गए को नए ढंग से व्यक्त करें। इस बहाने उनके कुछ अप्रत्याशित पहलू भी उजागर हुए।
स्वतंत्रता के समय देश को नए सिरे से रचने के जो स्वप्न हमने देखे, ख़ासकर सांस्कृतिक सन्दर्भ में, क्या वे हमारे साथ बने रहे या धीरे-धीरे हमारे हाथ से छूट गए? हमारी प्राथमिकताओं ने हमें क्या दिया, और अगर कोई नई शुरुआत करनी ज़रूरी है तो वह कहाँ से हो?
ऐसे अनेक प्रश्नों पर मनन-रत ये निबन्ध हमारी वर्तमान दुविधाओं और दुश्चिंताओं के लिए भी उपयोगी कहे जा सकते हैं।
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