Keshavdas
Author:
Vijaypal SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 480
₹
600
Available
केशवदास ऐतिहासिक दृष्टि से हिन्दी ही के प्रथम आचार्य नहीं हैं, वरन् प्रौढ़ता, व्यापकता एवं मौलिकता की दृष्टि से वे रीतिकाल के भी सर्वश्रेष्ठ आचार्य हैं। वे रीतिकाल के युग-निर्माता साहित्यकार हैं। समस्त रीतिकाल में केशव के समान व्यापक अध्ययन, गहरी एवं मौलिक दृष्टि वाला अन्य आचार्य दिखाई नहीं देता।</p>
<p>केशव के महत्त्व को व्याख्यायित करनेवाले प्रस्तुत ग्रन्थ को सम्पादित करते समय विद्वान सम्पादक ने रीतिकालीन साहित्य के मूर्धन्य विद्वानों और आलोचकों का सहयोग प्राप्त किया है। पूरी पुस्तक का संयोजन इस तरह किया गया है, जिससे अध्येताओं और शोधार्थियों के साथ छात्रों को केशवदास और उनके काव्य अवदान का सम्पूर्ण ज्ञान एक जगह उपलब्ध हो जाए। आचार्य केशवदास सम्बन्धी अध्ययन के क्षेत्र में प्रस्तुत पुस्तक एक बड़े अभाव की पूर्ति करती है।
ISBN: 9789352210725
Pages: 272
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Aasan Arooz
- Author Name:
Dr. Azam
- Book Type:

- Description: Urdu Grammer Book
Kabeer (Radha)
- Author Name:
Vijendra Snatak
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Antim Dashak Ki Hindi Kavita
- Author Name:
Ravindranath Mishra
- Book Type:

-
Description:
बीसवीं सदी का अन्तिम दशक कई तरह से सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों का साक्षी रहा। विश्व में समाजवाद के पतन के उपरान्त भारत में उदारीकरण के चलते कई नई चुनौतियाँ हमारी चेतना के समक्ष उपस्थित हुईं। बाज़ारवाद, मीडिया विस्फोट और सूचना तकनीकी के आगमन के कारण भाषिक-संवेदना के तार बिखरने लगे।
इन परिस्थितियों में हिन्दी कवि को इन चुनौतियों का सामना करते हुए वैकल्पिक और सम्पूर्ण भावबोध प्रस्तुत करना था। और, इस दशक की कविता ने यह किया भी। इस पुस्तक में इस दशक में सक्रिय महत्त्वपूर्ण कवियों पर अलग-अलग विचार करते हुए उस संक्रमण काल की कविताओं की मुख्य चिन्ताएँ और सरोकार रेखांकित किए गए हैं।
अरुण कमल, कुमार अम्बुज, अष्टभुजा शुक्ल, बोधिसत्व, एकान्त श्रीवास्तव, हरीशचन्द्र पांडे, स्वप्निल श्रीवास्तव निलय उपाध्याय, काव्यायनी, अनामिका, गगन गिल और नीलेश रघुवंशी के काव्य पर अलग-अलग अध्यायों में विस्तार से विचार करते हुए लेखक ने उस समय की सामाजिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक और आर्थिक पृष्ठभूमि को भी समझने का प्रयास किया है।
कवियों के शिल्प और भाषा की संरचनात्मक विशेषताओं को रेखांकित करते हुए उन्होंने उनकी सीमाओं और सम्भावनाओं की तरफ़ भी संकेत किया है, और एक पूरे दशक की कविता के सम्पूर्ण को सरल रूप में प्रस्तुत किया है।
Aalochkatha
- Author Name:
Ramswaroop Chaturvedi
- Book Type:

- Description: हिन्दी में आत्म-वृत्त कम हैं। इधर तो कहना चाहिए, उनका चलन कम ही हुआ है। सामाजिक शिष्टाचार और दबावों के कारण गोपन और संकोच की बढ़ती मनोवृत्ति शायद इसका एक कारण हो। ऐसे में 'आलोचकथा' का अपेक्षया नया विधान पाठकों का ध्यान सहज ही आकर्षित करेगा। यों तो क्या कहना है, क्या नहीं कहना है, इसकी चिन्ता लेखक-मात्र को होती है पर आत्मकथा में यह समस्या कुछ और प्रबल हो उठती है। इस सामान्य लेखकीय समस्या का मूल स्रोत वस्तुत: भाषा की अपनी प्रकृति में ही अंतर्निहित है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह कहती भी है और छिपाती भी है, प्रकट भी करती है, छलती भी है। तब भाषा में ही सक्रिय रहनेवाले रचनाकार को यह कला सहज ही आ भी जानी चाहिए। 'आलोचकथा' से तो इसका प्रमाण और मिलना चाहिए, क्योंकि इसके लेखक का मुख्य कार्यक्षेत्र भाषा और संवेदना की अंतर्क्रिया के प्रदेशों में रहा है। यों, 'आलोचकथा' अकाल्पनिक गद्य को सम्पूर्ण रूप में बरतती है, जहाँ आत्मकथा-संस्मरण-रेखाचित्र-जर्नल-आलोचना के विविध रूप एक-दूसरे में घुलमिल गए हैं। तब रचना के इन दोनों स्तरों पर 'आलोचकथा' का वैशिष्ट्य पाठक प्रीतिकर रूप में अनुभव कर सकेगा।
Ardhanareeshwar
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

- Description: इस पुस्तक के निबन्ध अपने समय के दस्तावेज हैं जिनको पढ़ते दिनकर के वैचारिक-स्रोतों और सन्दर्भों से हम अवगत हो सकते हैं; और जान सकते हैं कि एक युगद्रष्टा साहित्यकार अपने जीवन में अपनी कलम के साथ किस द्वन्द्व-अन्तर्द्वन्द्व के साथ जीता रहा। ‘अर्धनारीश्वर’ दिनकर का वह निबन्ध-संग्रह हैं जिसमें समाज, साहित्य, राजनीति, स्वतंत्रता, राष्ट्रीयता, अन्तरराष्ट्रीयता, धर्म, विज्ञान के साथ-साथ लेखकों, चिन्तकों, मनीषियों, राजनेताओं के कृतित्व और व्यक्तित्व से जुड़े अनेक पहलुओं का व्यापक परिप्रेक्ष्य में गम्भीरता से आकलन किया गया है और तर्क-सम्मत निष्कर्ष निकाले गए हैं। इस संग्रह का नाम ‘अर्धनारीश्वर’ क्यों रखा गया, इसके बारे में स्वयं लेखक का कहना है कि, '“इसमें ऐसे भी निबन्ध हैं जो मन-बहलाव में लिखे जाने के कारण कविता की चौहद्दी के पास पड़ते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जिनमें बौद्धिक चिन्तन या विश्लेषण प्रधान है। इसीलिए मैंने इस संग्रह का नाम ‘अर्धनारीश्वर’ रखा है, यद्यपि इसमें अनुपातत: नरत्व अधिक और नारीत्व कम है।” अतएव स्पष्ट है कि राष्ट्रकवि दिनकर की कविताएँ जिन्हें पसन्द हैं, उन्हें ये निबन्ध भी उनकी सोच-संवेदना के बेहद करीब लगेंगे।
Shabd Shuddh Uchcharan Avm Padbhar
- Author Name:
Dr. Azam
- Book Type:

- Description: Book
Uth Naari Ab To Jaag Jaag
- Author Name:
Neeta Awasthi
- Rating:
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत संग्रह में नीता जी की अनुक्रमानुसार दोहा छंद, सर्प कुंडली राज छंद, मुक्तक विन्यास, पद शैली,और नव कुण्डलिया राज छंद में लिखी गई इन तेवरियों में हर सामाजिक विकृति के के प्रति तीखी असहमति और क्षुब्धता है और तीखापन है। समाज में जहां भी क्रंदन है, अभाव है, व्यवस्था का दिया हुआ घाव है। वहां एक करुणा के भाव के साथ ये तेवरियां वंचित शोषित उत्पीड़ित के आंसू पोंछने को गहन संवेदना के साथ दिखलाई देती हैं।
Aaj Ka Samaj
- Author Name:
Manohar Shyam Joshi
- Book Type:

-
Description:
मनोहर श्याम जोशी सृजनात्मक लेखन की तरह ही अपने विशिष्ट वैचारिक लेखन के लिए भी जाने जाते रहे हैं। उनके वैचारिक लेखन का दायरा बहुत ही व्यापक रहा है। उन्होंने अमेरिकी साम्राज्यवाद, आतंकवाद तथा साम्प्रदायिकता जैसे ज्वलंत मुद्दों के साथ-साथ बच्चों के इम्तिहान, साइबर प्रेम, उत्तर आधुनिक फतवेबाजी, हिन्दी डे जैसे छोटे-छोटे मगर जरूरी मसलों पर भी कलम चलाई है। देश और समाज से जुड़े हर ज्वलंत सवाल से टकराते हुए उसकी विशेषताओं और विसंगतियों पर वे बिना किसी पूर्वाग्रह के बेवाक टिप्पणी करते हैं। जीवन और समय की विडम्बनाओं को उजागर करने के लिए भाषा की अभिव्यंजना शक्ति का सटीक इस्तेमाल उनके लेखन की ख़ास विशेषता रही है।
समय और समाज को देखने का उनका दृष्टिकोण विज्ञान की शिक्षा और पत्राकारिता की पृष्ठभूमि से निर्मित था जिसे हिन्दी के बौद्धिक संसार में दुर्लभ ही कहा जाएगा। अपने देश में ही नहीं पूरी दुनिया की हर छोटी-बड़ी घटना पर उनकी नजर रहती थी। पहले वे संवेदना के स्तर पर उससे जुड़ते थे, फिर एक पेशेवर राजनीतिक-सामाजिक विश्लेषक की तरह उसकी पड़ताल करते थे। एक संवेदनशील साहित्यकार और चेतनशील राजनीतिक टिप्पणीकार का अद्भुत संयोग उनके व्यक्तित्व में था जिसका उदाहरण हैं इस संकलन में शामिल वैचारिक टिप्पणियाँ।
Hindu-Muslim Rishton Ke Bahane
- Author Name:
Rama Kant Roy
- Book Type:

- Description: ‘हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों के बहाने : राही के उपन्यास’ पुस्तक में न सिर्फ़ हिन्दू-मुसलमान सम्बन्ध को गहराई और व्यवस्थित तरीक़े से विवेचित किया गया है, अपितु हिन्दी उपन्यासों में आए ऐसे सम्बन्धों को बहुत सजगता से प्रस्तुत किया गया है। किताब साझी-संस्कृति के मुखर पैरोकार राही मासूम रज़ा के उपन्यासों पर आत्मिक तरीक़े से विवेचन करती है। राही मासूम रज़ा के उपन्यास ‘समय’ का दस्तावेज़ है। ‘समय’ के इस दस्तावेज़ में हिन्दू-मुसलमान सम्बन्ध सबसे ज्वलन्त पहलू है। रमाकांत राय की यह किताब राही मासूम रज़ा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर सबसे प्रामाणिक किताब है।
Sahityamukhi
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

-
Description:
साहित्य में निबन्धों की अपनी एक विशिष्ट क़िस्म की प्रमुखता रही है। यही कारण है कि गद्य की इस तार्किक और बौद्धिक विवेचना वाली विधा में हिन्दी के कालजयी साहित्यकार रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के निबन्ध अपने उद्देश्य में आज भी ऐतिहासिक महत्त्व रखते हैं।
‘साहित्यमुखी’ साहित्य की विभिन्न विधाओं और समस्याओं को समर्पित चिन्तनपूर्ण निबन्धों का संग्रहणीय श्रेष्ठ संकलन है जिसमें शामिल कई निबन्ध दिनकर के ओजस्वी वक्ता होने के प्रमाण और मिसाल हैं।
इन पठनीय और मननीय निबन्धों में प्रस्तुत हैं–‘आधुनिकता और भारत-धर्म’, ‘कविता में परिवेश और मूल्य’, ‘आधुनिकता का वरण’, ‘साहित्य में आधुनिकता’, ‘युद्ध और कविता’ जिन पर दिनकर के चिन्तन-जन्य विचार हैं तो वहीं गांधी, निराला, केशवसुत, टाल्स्टाय, शेक्सपियर और इलियट के प्रति आदरांजलि के साथ विचारोत्तेजक निबन्ध ‘शीर्षकमुक्त चिन्तन’ भी संकलित है।
‘साहित्यमुखी’ दिनकर की एक विशिष्ट विचारप्रधान कृति है।
Shrilal Shukla Ki Duniya
- Author Name:
Shrilal Shukla
- Book Type:

-
Description:
स्वातंत्र्योत्तर भारतीय यथार्थ के अत्यन्त सतर्क और विलक्षण उद्घाटनकर्ता हैं श्रीलाल शुक्ल। उन्होंने रचनात्मकता का जैसा जादू बिखेरा, वैसा उनके अतिरिक्त अन्य किसी से सम्भव न हुआ। उपन्यास, कहानी, निबन्ध, व्यंग्य, आलोचना आदि विविध विधाओं में फैला उनका साहित्य भारतीय समाज का महायथार्थ प्रकट करता है। साथ ही वह भाषा और शिल्प के अभूतपूर्व और अप्रतिम रूपों का आविष्कार भी करता है। ऐसे में श्रीलाल शुक्ल के जीवन और साहित्य के सत्यों, प्रश्नों, रहस्यों और जिज्ञासाओं को सुलझाने और उनका मूल्यांकन प्रस्तुत करनेवाले पुस्तक की आवश्यकता लम्बे अर्से से थी। उस आवश्यकता को पूरा करती है यह पुस्तक ‘श्रीलाल शुक्ल की दुनिया’।
प्रसिद्ध युवा कथाकार अखिलेश द्वारा सम्पादित यह कृति श्रीलाल शुक्ल के व्यक्तित्व और सृजन के अध्ययन की विभिन्न विचारोत्तेजक छवियाँ प्रस्तुत करती है। अनेक विख्यात रचनाकारों के लेखों से समृद्ध यह पुस्तक हिन्दी में सर्वाधिक पढ़े जा रहे साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल को विधिवत् जानने का अचूक ज़रिया है।
‘श्रीलाल शुक्ल की दुनिया’ कोई अभिनन्दन ग्रन्थ नहीं है। यहाँ तो व्यक्ति और लेखक श्रीलाल शुक्ल को लेकर बहसें हैं, मत वैभिन्य हैं, विश्लेषण हैं, सन्देह और भरोसे हैं। इसीलिए श्रीलाल शुक्ल और उनके लेखक की तरह ही जीवन्त, उत्तेजक, बेलौस और संजीदा बन सका है उनके समग्र मूल्यांकन का यह संसार।
‘श्रीलाल शुक्ल की दुनिया’ में श्रीलाल शुक्ल पर इतनी अधिक, इतनी बेशक़ीमती सामग्री उपस्थित है और मूल्यांकन की इतनी प्रविधियाँ हैं कि पाठक, विद्वान, लेखक, शोधार्थी सदा लाभान्वित होते रहेंगे।
Bhartiya Evam Paschatya Kavya Siddant
- Author Name:
Ganpatichandra Gupt
- Book Type:

- Description: डॉ. गणपतिचन्द्र गुप्त के भारतीय एवं पाश्चात्य काव्य-सिद्धान्तों से सम्बन्धित मौलिक एवं विचारपूर्ण निबन्ध इस पुस्तक में संकलित हैं। पुस्तक को सर्वांगीण बनाने के लिए कुछ नए निबन्ध इसमें जोड़ दिए गए हैं। डॉ. गुप्त की पुस्तकें छात्रों और अध्यापकों में सर्वाधिक प्रचलित हैं और शैक्षिक जगत् में उन्हें प्रचुर सम्मान प्राप्त है। इसका स्पष्ट कारण उनकी भाषा-शैली और विषय पर गहरी पकड़ है। गम्भीर विषयों के मूल सिद्धान्तों की स्पष्ट समझ के अभाव में अभिव्यक्त उलझावपूर्ण और अस्पष्ट हो जाना सहज है। भारतीय और पाश्चात्य सिद्धान्तों की स्पष्ट समझ के लिए डॉ. गुप्त की प्रस्तुत पुस्तक बेजोड़ है, क्योंकि काव्य-सिद्धान्तों की मूल पुस्तकों के गहन अध्ययन-मनन के बाद लेखक ने उन्हें आत्मसात् कर इन निबन्धों की रचना की है। यही कारण है कि जिन युक्तियों का आश्रय लेखक ने ग्रहण किया है, वे उनकी अपनी हैं। निश्चय ही काव्य-सिद्धान्तों में रुचि रखनेवालों के लिए यह एक अन्यतम ग्रन्थ है।
Kitabnama
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

-
Description:
नामवर सिंह पाठ से गहरा, आत्मीय और संवादी तादात्म्य स्थापित कर सकने वाले आलोचक थे। अपने व्याख्यानों और साक्षात्कारों में वे उपन्यासों, कहानियों, कविताओं, निबन्धों, नाटकों और आलोचना-निबन्धों पर जिस तरह बात करते थे, उससे इसकी पुष्टि होती है।
पाठ का आस्वाद करने की क्षमता आलोचक के संवेदनात्मक आधारों पर निर्भर करती है और उसका विवेचन कर पाने की शक्ति उसकी ज्ञानात्मक तैयारी पर। यदि वह अपनी तैयारी के दौरान अन्तरानुशासित होकर जीवन-जगत को देखने की दृष्टि विकसित कर पाया है, तभी वह रचना के पाठ के जीवन-जगत में फैले आधारों को देख पाएगा।
प्रत्येक कृति अन्तत: एक विशिष्ट भाषा, उसकी साहित्यिक परम्परा और विधागत विरासत से संबद्ध होती है। एक परम्परा-सजग आलोचक ही इस बात की पहचान कर सकता है कि रचना परम्परा में कहाँ और किस वैचारिक-सौन्दर्यात्मक धारा में स्थित है। नामवर सिंह एक आलोचक के रूप में ‘पाठ’ से ऐसा गहरा और संवादी रिश्ता बना पाते थे, जहाँ उनकी ये सारी खूबियाँ एक साथ देखी जा सकती हैं।
Aadybimb Aur Godan
- Author Name:
Krishna Murari Mishra
- Book Type:

-
Description:
'आद्यबिम्ब और गोदान’ पुस्तक हिन्दी आलोचना को एक नई दिशा प्रदान करती है। कविता की आद्य बिम्बात्मक आलोचना से सम्बन्धित कई पुस्तकों का प्रकाशन हिन्दी में हो चुका है, किन्तु कथा साहित्य के क्षेत्र में यह प्रथम प्रयास है।
'आद्यबिम्ब’ शीर्षक पहले निबन्ध में आद्यबिम्ब की स्वरूप-विवृत्ति के लिये हिन्दी में पहली बार युग के ऊर्जीय दूष्टिकोण का सारभूत आख्यान तथा यौगपत्य-सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय है। 'आद्यबिम्ब और उपन्यास’ शीर्षक द्वितीय निबन्ध उपन्यासालोचन के क्षेत्र में आद्यबिम्ब की धारणा के संप्रयोग से सम्बन्धित है। इसमें लेखक ने अनेक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों की स्थापना की है जिनसे हिन्दी आलोचना के नए विकास की संभावनाएँ बलवती होती हैं। 'आद्यबिम्ब और गोदान' शीर्षक तीसरे निबन्ध में ‘गोदान' का आद्यबिम्बात्मक अध्ययन है। लेखक ने मुख्यत कथानक, उद्देश्य एवं भाषा के बिम्बत्व का गभीर विवेचन किया है।
'गोदान' की संरचनात्मक गहनताओं का यह अध्ययन उसके लगभग सभी विवादास्पद पहलुओं पर नई रोशनी डालता है। निस्सन्देह, यह पुस्तक हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में मील का पत्थर है।
Samkalin Laghukatha ka Samiksha Saundharya
- Author Name:
Jitendra Jeetu
- Book Type:

- Description: लघुकथा लेखन को आसान सी विधा मानकर बहुत लोग इस विधा के लेखन की ओर मुड़े और जाने–अनजाने अपनी अधकचरी बौद्धिकता और अज्ञान के बूते इस विधा का अहित करते चले गए। इन बहुत से लोगों में वे भी थे जो खालिस पाठक थे और लेखक बनना चाहते थे। जो कुछ बनना चाहते हैं उन्हें कोई नहीं रोक सकता। वे बन गए। वे बिना पढ़े लेखक बन गए। उन्होंने बस उसी तरह की लघुकथाएं पढ़ी थीं और वे उसी तरह के लघुकथा लेखक बन गए। यह विराट स्तर पर धर्म परिवर्तन से भी अधिक संगीन मामला था जिसने साहित्य को बहुत बड़े पैमाने पर चोट पहुंचाई लेकिन इसकी कोई चर्चा नहीं हुई। इस पुस्तक में लघु कथा के सौन्दर्यशास्त्र पर चर्चा की गई है और इस विधा की महत्ता को स्थापित करने का प्रयास ही प्रधान है।
Sikkh Guruon Ka Punysmaran
- Author Name:
Hazariprasad Dwivedi
- Book Type:

-
Description:
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने इस पुस्तक में गुरु नानक देव व अर्जुन देव आदि सिख गुरुओं के साहित्यिक पक्ष पर अपने विचार व्यक्त किए हैं ।
आचार्य द्विवेदी ने इस पुस्तक में गुरुनानक देव के व्यक्तित्व, सन्देश और महिमा के साथ-साथ शिष्य परम्परा और गुरू अर्जुन देव द्वारा ग्रंथ साहिब के संपादन पर प्रकाश डालते हुए गुरु गोविंद सिंह के जीवन-दर्शन, दशम ग्रंथ तथा भारतीय साहित्य में दशम ग्रंथ के स्थान के बारे में गंभीरतापूर्वक विचार किया है । निश्चय ही यह पुस्तक शोधार्थियों और सिक्सों के धार्मिक साहित्य में रुचि रखनेवाले अध्येताओं के लिए उपयोगी होगी ।
Kaalyatri Hai Kavita
- Author Name:
Prabhakar Shrotriya
- Book Type:

- Description: सुपरिचित आलोचक डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय द्वारा हिन्दी कविता की यह काल-यात्रा विशेष महत्त्व रखती है। कोई रचना इतिहास के दौर में क्या रूप लेती है और मानवीय संवेदन की अन्तर्धारा उसमें किन माध्यमों से परिचालित होती है, इसकी प्रामाणिक और गहरी समझ डॉ. श्रोत्रिय को थी। अक्सर इतिहास के कालबोध की परवर्ती दृष्टि के दौर में लोग अतीत की परिस्थितियों और कवि-सीमाओं को उपेक्षित कर जाते हैं। इस पुस्तक में ऐसा आवश्यक लचीलापन है, जिससे यह अतीत को जहाँ आधुनिकता की सार्थकता में देख सकी है, वहीं युग और कवि सीमा को भी संवेदित परकाय-प्रवेश की भाँति अपने मौलिक स्वरूप में प्रतिष्ठित कर सकी है। इससे कविता इतिवृत्त नहीं रहती, बल्कि वह आगामी काल-प्रवाह में सक्रिय और प्रेरक साझीदार प्रतीत होती है। अपने समय की नवीनतम काव्य-प्रवृत्तियों को भी लेखक ने गहराई से पकड़ा है, तभी वह आदिकाल से लेकर सातवें, आठवें और नवें दशक तक के विभिन्न कविता-दौरों पर समान रूप से विचार कर सका है। यही नहीं, इस संस्करण के लिए पुस्तक को संशोधित करते हुए डॉ. श्रोत्रिय ने दो नए अध्याय भी जोड़े थे। इनमें से एक है ‘भारतीय साहित्य की परम्परा’ और दूसरा, ‘नवाँ दशक : बदलाव की नई पहल’। लम्बी कविता और हिन्दी-नवगीत पर पहले से ही दो अध्याय पुस्तक में हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि डॉ. श्रोत्रिय की यह आलोचना-कृति हिन्दी कविता का एक व्यापक और मूल्यवान अध्ययन है और मनुष्यता के चिर उपेक्षित हिस्से की पीड़ाओं को काव्य-साहित्य की प्रमुख मानवीय चिन्ताओं में शामिल करने का आग्रह करती है।
Vichar Ka Aina : Kala Sahitya Sanskriti : Ravindra Nath Tagore
- Author Name:
Rabindranath Thakur
- Book Type:

-
Description:
विचार का आईना शृंखला के अन्तर्गत ऐसे साहित्यकारों, चिन्तकों और राजनेताओं के ‘कला साहित्य संस्कृति’ केन्द्रित चिन्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। इसके पहले चरण में हम मोहनदास करमचन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, रामचन्द्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारपरक लेखन से एक ऐसा मुकम्मल संचयन प्रस्तुत कर रहे हैं जो हर लिहाज से संग्रहणीय है।
आधुनिक भारतीय मनीषा जिन व्यक्तित्त्वों में सर्वाधिक प्रखर रूप में प्रकट हुई उनमें रवीन्द्रनाथ ठाकुर अग्रणी हैं। साहित्य, संगीत, कला, शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में उनका अप्रतिम योगदान है। परम्परा से लगातार बहस और संवाद करते हुए वे ऐसे चिन्तक के रूप में सामने आते हैं जिनका लक्ष्य सम्पूर्ण मानवता है। वे पश्चिम और पूरब के बीच एक मनोहारी पुल की तरह रहे। गांधी समेत अपने समय की सभी बड़ी राजनैतिक और सांस्कृतिक हस्तियों से उनका सघन संवाद रहा। हमें उम्मीद है कि राष्ट्रवाद के आलोचक और सम्पूर्ण मानवता के उल्लास और विकास के हामी टैगोर के कला, साहित्य और संस्कृति सम्बन्धी प्रतिनिधि निबन्धों की यह किताब सभी पाठकों के लिए एक सुन्दर, समृद्ध और न भूलनेवाला अनुभव साबित होगी।
Vaikalpik Bharat Ki Talash
- Author Name:
Ravibhushan
- Book Type:

-
Description:
आज़ादी के बाद हमने एक नया भारत बनाने की योजनाएँ बनाई थीं। एक शोषणविहीन, स्वतंत्र, आत्मनिर्भर, समतामूलक भारत जहाँ न कोई किसी की दया का मोहताज हो, न किसी को किसी से भय हो, न धर्म के नाम पर लोग मरें, न जाति के नाम पर कोई समाज की मुख्यधारा से बाहर रहे। लेकिन ऐसा हो न सका।
कुल मिलाकर हम उतना आगे नहीं बढ़ सके, जितना अपेक्षित था। हममें से अनेक आज भी उस आज़ादी को तरस रहे जो उनके पुरखों ने गांधी, भगत सिंह की मौजूदगी में सोची थी। लोग बीमार हैं और अस्पतालों में उनके लिए जगह नहीं है, वो जिन्हें अपने उद्धारक प्रतिनिधियों के रूप में चुनकर संसद और विधानसभाओं में भेजते हैं, वो अगले दिन उन्हें पहचानने से इनकार कर देते हैं, जिस व्यवस्था के दायरे में वे अपने घर-परिवार के सपने बुनते हैं, वह एक दिन सिर्फ़ अपने लिए काम करती नज़र आती है।
वैकल्पिक भारत कोई दिमाग़ी शग़ल नहीं है। ज़रूरत है। जिन्हें अपने अलावा किसी भी और की चिन्ता है, वे सब इस ज़रूरत को महसूस करते हैं। रविभूषण सजग आलोचक और सरोकारों के साथ जीनेवाले विचारक हैं। इस पुस्तक में उनके उन आलेखों को शामिल किया गया है जो उन्होंने पिछले दिनों एक चिन्तनशील नागरिक और बौद्धिक के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए लिखे हैं।
पुस्तक का विषय-क्रम देश के समय को एक-एक चरण में पार करते हुए आज तक आता है। दादाभाई नौरोजी, विवेकानन्द से शुरू करते हुए वे आज़ादी, बाद की सत्ता और समाज के चरित्र पर आते हैं और अन्त राष्ट्रवाद पर करते हैं। वही राष्ट्रवाद जो आज उन तमाम ताक़तों का मुखौटा बना हुआ है जिन्हें अपने अलावा किसी भी और का बोलना पसन्द नहीं। जो हिंसा को अपने अस्तित्व का पर्याय मानते हैं, और जिन्हें जाने क्यों लगने लगा है कि यह देश सिर्फ़ उनका है।
Meera Ka Jeevan
- Author Name:
Arvind Singh Tejawat
- Book Type:

-
Description:
मीराँ के जीवन में रुचि रखनेवाले पाठकों के लिए यह पुस्तक न केवल मीराँ की एक प्रामाणिक जीवनी है वरन् यह जीवनी इतिहास-दृष्टि से परिपूर्ण एवं महत्त्वपूर्ण शोध निष्कर्षों का समन्वित परिणाम है।
यह पुस्तक बताती है कि मीराँ के लिए कृष्ण भक्ति एक साधन थी न कि साध्य। कृष्ण भक्ति का सहारा लेकर मीराँ ने मध्यकालीन सामन्ती समाज में व्याप्त सती-प्रथा जैसी तमाम सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया एवं स्त्री-स्वतंत्रता के पक्ष में विद्रोह का स्वर बुलन्द किया।
यह पुस्तक ब्राह्मण कथाकारों एवं परवर्ती आलोचकों द्वारा निर्मित मीराँ की उस पारम्परिक छवि को तोड़ती है जो उसे केवल प्रेम-दीवानी कवयित्री की परिधि में सीमित कर देना चाहते थे। निश्चय ही, मीराँ को समग्र रूप से समझने में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...