Shabdon Ka Safar : Vol. 3
Author:
Ajit WadnerkarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 360
₹
450
Available
शब्दों में ज्योति है...इंसान के पास शब्द ना होते तो इंसान का रिश्ता भी संसार के साथ वैसा ही होता जैसाकि जानवर का होता है। आचार्य दंडी को याद करें, ‘शब्दों की ज्योति न होती तो तीनों लोक अँधियारे होते’। शब्दों में ज्योति है क्योंकि उनका अपना एक जीवन है। कहाँ से शुरू होकर कहाँ तक जाता है, एक-एक शब्द का सफ़र! कैसे-कैसे अर्थ भरते जाते हैं शब्द में!</p>
<p>हिन्दी की जीवन्तता का सबसे बड़ा कारण यह है कि इस भाषा ने संकीर्ण शुद्धतावाद को संस्कार कभी नहीं बनने दिया। न जाने कहाँ-कहाँ से आए शब्दों को हिन्दी ने अपनाया है। हिन्दी शब्दों के सफ़र को जानना हिन्दी भाषा के विकास के साथ-साथ हिन्दी समाज के मिज़ाज को भी जानना है।</p>
<p>अजित वडनेरकर कई वर्षों से शब्दों के इस रोमांचक सफ़र में हम सबको शामिल करते रहे हैं। कमाल की सूझ-बूझ है उनकी और कमाल की मेहनत। कहने का अन्दाज़ निराला। ‘शब्दों का सफ़र’ कितने रोचक, प्रामाणिक और विश्वसनीय ढंग से एक-एक शब्द के विकास-क्रम और अन्य शब्दों के साथ उसके सम्बन्ध को पाठक के सामने रखता है, यह पढ़कर ही जाना जा सकता है। सफ़र के इस तीसरे पड़ाव पर उन्हें बधाई और साथ ही शुक्रिया भी।</p>
<p>—डॉ. पुरुषोत्तम अग्रवाल
ISBN: 9789394902657
Pages: 384
Avg Reading Time: 13 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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अद्वितीय प्रतिभा के धनी महापंडित राहुल सांकृत्यायन की लेखनी से कोई भी ऐसी विधा अछूती नहीं रह गई थी, जिसका सम्बन्ध जन-जीवन से हो। एक साथ कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, आलोचक, भाषाशास्त्री, इतिहासकार, पुरातत्त्ववेत्ता, दार्शनिक, पर्यटक, समाज सुधारक, राजनेता, विज्ञान और भूगोलवेत्ता, गणितज्ञ, शिक्षक, कुशल वक्ता तथा जितने भी समाज के स्वीकार्य रूप हो सकते हैं, उनमें सब विद्यमान थे।
अपने विचार स्वातंत्र्य के लिए ज्ञात राहुल जी ने जो भी लिखा, साक्ष्य सहित और निर्भीकतापूर्वक लिखा बिना यह सोचे कि उनके विचारों से किसी की भावना आहत भी हो सकती है।
संघर्षों से भरा उनका जीवन अन्धविश्वास उन्मूलन और अमीरी-ग़रीबी के भेद से रहित समानधर्मा समाज की स्थापना के लिए समर्पित था। इस त्याग के लिए उन्हें विरोधियों की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा, जेल- जीवन और दंड-प्रहार की यातनाएँ भी सहनी पड़ी थीं।
वे कई भारतीय और विदेशी भाषाओं के ज्ञाता थे किन्तु उनका हिन्दी के प्रति प्रेम अटूट था।
जन-जन में यात्राओं के प्रति उत्साह भरनेवाले राहुल जी ने ऐसे-ऐसे दुर्गम स्थानों की यात्राएँ की हैं और उन्हें लिपिबद्ध किया है, जिनके बारे में सोचते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
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