
Kavi Ajneya
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
132
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
264 mins
Book Description
अज्ञेय का नाम हिन्दी कविता में एक विवादास्पद नाम रहा है। ख़ास तौर से प्रगतिशीलों और जनवादियों ने न केवल उन्हें व्यक्तिवादी कहा, बल्कि उनके विरुद्ध घृणा तक का प्रचार किया और इस तरह एक बड़े पाठक-समूह को इस महान शब्द-शिल्पी से दूर रखने की कोशिश की। सबसे बड़ा अन्याय उनकी कविता के साथ यह किया गया कि उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़े बग़ैर उनके सम्बन्ध में ग़लत धारणा बनाई गई और उसे उनका अन्तिम मूल्यांकन करार दिया गया। हिन्दी के प्रगतिशील कवियों में सबसे बड़े काव्य-मर्मज्ञ शमशेर थे। उन्हें अपना माननेवाले लोगों ने यह भी नहीं देखा कि अज्ञेय के प्रति वे कैसी उच्च धारणा रखते हैं।</p> <p>आज जब देश और विश्व का परिदृश्य बदल गया है और वैचारिक स्तर पर सभी बुद्धिजीवी पूँजीवाद और समाजवाद के बीच से एक नया रास्ता निकलने के लिए बेचैन हैं, अज्ञेय नए सिरे से पठनीय हो उठे हैं। अब जब हम उनकी कविता पढ़ते हैं, तो यह देखकर विस्मित होते हैं कि बिना व्यक्तित्व का निषेध किए उन्होंने हमेशा समाज को ही अपना लक्ष्य बनाया। इतना ही नहीं, अत्यन्त सुरुचि-सम्पन्न और शालीन इस कवि की कविता का नायक भी ‘नर’ ही है, जिसकी आँखों में नारायण की व्यथा भरी है। उस नर को उन्होंने कभी अपनी आँखों से ओझल नहीं होने दिया और उसकी चिन्ता में हमेशा लीन रहे। निराला और मुक्तिबोध के साथ वे हिन्दी के तीसरे कवि थे, जो एक साथ महान बौद्धिक और महान भावात्मक थे।</p> <p>उनके काव्य में आधुनिकता-बोध, प्रेमानुभूति, प्रकृति-प्रेम और रहस्य-चेतना—ये सभी एक नए आलोक से जगमग कर रहे हैं। प्रसिद्ध आलोचक डॉ. नवल की यह पुस्तक आपको आपकी सीमाओं से मुक्त करेगी और आपकी आँखों के सामने एक नए काव्य-लोक का पटोन्मीलन। आप इसे अवश्य पढ़ें।