Vichar Ka Aina : Kala Sahitya Sanskriti : Ram Manohar Lohia
Author:
Rammanohar LohiaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
विचार का आईना शृंखला के अन्तर्गत ऐसे साहित्यकारों, चिन्तकों और राजनेताओं के ‘कला साहित्य संस्कृति’ केन्द्रित चिन्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। इसके पहले चरण में हम मोहनदास करमचन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, रामचन्द्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारपरक लेखन से एक ऐसा मुकम्मल संचयन प्रस्तुत कर रहे हैं जो हर लिहाज से संग्रहणीय है। </p>
<p>स्वतंत्रता आन्दोलन की कोख से जन्मे राममनोहर लोहिया ऐसे विचारक राजनेता हैं जिन्होंने अपने लिए लोकतंत्र की आत्मा यानी एक सक्षम और निडर विपक्ष की भूमिका चुनी। जवाहरलाल नेहरू जैसे लोकप्रिय जननेता की असफलताओं को खुलकर सामने रखते हुए उन्होंने दिखाया कि विपक्ष को सरकार की तथ्यात्मक आलोचना करते हुए किस कदर निर्मम होना चाहिए। समाजवाद का भारतीयकरण करते हुए उसे उन्होंने संस्कृति और परम्परा से जोड़ा। धर्म और संस्कृति के अनेक मिथकों को डिकोड करते हुए उन्होंने परम्परा के जरूरी हिस्सों को पुनर्नवा बनाने का काम किया। हमें उम्मीद है कि उनके प्रतिनिधि निबन्धों की यह किताब उन सबको रास्ता दिखाएगी जो अपनी सुदीर्घ परम्परा और संस्कृति से प्रेम करते हैं और धर्म के राजनीतिक दुरुपयोग और लोकतंत्र को संकुचित करने वाली शक्तियों के हावी होने के खतरों से समाज को बचाना चाहते हैं।
ISBN: 9789392186660
Pages: 200
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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‘प्रगतिवाद और समानान्तर साहित्य’ यह पुस्तक शोधग्रन्थ भी है और धारदार तर्क-वितर्क से भरी एक सृजनात्मक कृति भी है। इसमें प्रगतिशील आन्दोलन के ऐतिहासिक विकास-क्रम, उसके दस्तावेज़ों, उसके रचनात्मक और समालोचनात्मक पहलुओं तथा उस दौर में प्रचलित समानान्तर प्रवृत्तियों से उसके द्वन्द्वात्मक रिश्ते की पड़ताल की गई है।
यह पुस्तक शोध, अन्वेषण, स्रोत सामग्री की छानबीन पर आधारित ऐतिहासिक विवेचना के क्षेत्र में एक नए ढंग की प्रामाणिकता के कारण हिन्दी के सभी प्रमुख समालोचकों के द्वारा सराही गई है तथा पाठक समुदाय ने इसका हार्दिक स्वागत किया है। अतः अध्यापकों, शोधार्थियों तथा नई पीढ़ी के साहित्यप्रेमी पाठकों के लिए यह प्रेरणादायी पठनीय पुस्तक है। 1930 से 1950 के साहित्यिक इतिहास के मुखर आईने के रूप में यह अद्वितीय आलोचनात्मक कृति है।
पारदर्शी तार्किकता और सांस्कृतिक उत्ताप से भरपूर संवेदनशील मीमांसा के अपने गुणों के कारण रेखा अवस्थी की यह पुस्तक प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के 75 वर्ष पूरा होने के मौक़े पर फिर से उपलब्ध कराई जा रही है क्योंकि पिछले दस सालों से यह पुस्तक बाज़ार में लाख ढूँढ़ने पर भी मिलती नहीं थी। इस नए संस्करण की विशिष्टता यह है कि परिशिष्ट के अन्तर्गत कुछ नए दस्तावेज़ भी जोड़े गए हैं।
इस पुस्तक के पाँच अध्यायों में इतनी भरपूर विवेचनात्मक सामग्री है कि यह पुस्तक बीसवीं सदी के हिन्दी साहित्य के पूर्वार्द्ध का इतिहास ग्रन्थ बन जाने का गौरव प्राप्त कर चुकी है।
उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक में शमशेर, केदार, नागार्जुन, अज्ञेय, गोपाल सिंह नेपाली के कृतित्व का मूल्यांकन तत्कालीन ऐतिहासिक सन्दर्भ में किया गया है। इसके साथ ही यह पुस्तक प्रगतिशील आन्दोलन के बारे में फैलाई गई भ्रान्तियों को तोड़ती है और दुराग्रहों पर पुनर्विचार करने के लिए विवश करती है।
Mopala Kand Arthat Mujhe Usse Kya?
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Vinayak Damodar Savarkar
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- Description: Awating description for this book
Rakta Ka Kan-Kan Samarpit
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Chiranjeev Sinha
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- Description: विश्व के शीर्ष राष्ट्रों में शुमार भारतवर्ष को देखकर आज किस भारतीय का सीना चौड़ा नहीं होता होगा; लेकिन आज बराबरी और सम्मान के जिस मुकाम पर हम खड़े हैं, वहाँ हम यों ही नहीं पहुँचे हैं। इसके लिए हमें अनगिनत कुरबानियाँ देनी पड़ी हैं, लाखों जवानियाँ काल-कोठरी के पीछे खुशी- खुशी कैद हुई हैं। उनमें से कुछ को ही हम जानते हैं और बाकियों की स्मृति कस्बों एवं गाँवों में सिमटकर रह गई है। यह पुस्तक ऐसे ही गुमनाम स्वातंत्र्य साथकों के बारे में है, जिन्होंने अपना सर्वस्व भारतमाता की स्वाधीनता के लिए हँसते-हँसते न्योछावर कर दिया, पर वे इतिहास की नामचीन क्या, साधारण सी पुस्तकों का भी हिस्सा नहीं बन सके। वैसे यह उनको इच्छा भी नहीं थी कि उनका नाम हो, लेकिन आज को युवा पीढ़ी और स्कूली बच्चों को उनके बारे में जानना आवश्यक है कि वे कौन महापुरुष थे। 'जरा याद उन्हें भी कर लो' इसी उद्देश्य को लेकर कहानी-दर-कहानी मजबूती से आगे बढ़ती है। चिरंजीव सिन्हा की पुस्तक ' रक्त का कण-कण समर्पित” उत्तर प्रदेश के गुमनाम स्वाधीनता सेनानियों की प्रेरक गाथाओं का पठनीय संकलन है।
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