Kalplata
Author:
Hazariprasad DwivediPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 64
₹
80
Unavailable
Awating description for this book
ISBN: 9788171788934
Pages: 207
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
भारत में स्त्री-आन्दोलन के लिहाज़ से बीसवीं सदी के शुरुआती तीन दशक बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। स्वतंत्रता आन्दोलन के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर जो आत्ममंथन की प्रक्रिया चल रही थी, उसी के एक बड़े हिस्से के रूप में स्त्री-स्वातंत्र्य की चेतना भी एक ठोस रूप ग्रहण कर रही थी।
हिन्दी में तत्कालीन नारीवादी चिन्तन में जिन लोगों ने दूरगामी भूमिका अदा की उनमें उमा नेहरू अग्रणी हैं। यह देखना दिलचस्प है कि स्त्री की निम्न दशा के लिए उनकी आर्थिक पराधीनता मुख्य कारण है, इस सच्चाई को उन्होंने उसी समय समझ लिया था; और पुरुष नारीवादियों द्वारा पाश्चात्य स्त्री-छवि के सन्दर्भ में किए गए ‘किन्तु-परन्तु’ वाले नारी-विमर्श की सीमाओं को भी। उमा नेहरू ने इन दोनों बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए स्त्री-पराधीनता और स्वाधीनता, दोनों की ठीक-ठीक पहचान की।
‘अच्छी स्त्री’ और ‘स्त्री के आत्मत्याग’ जैसी धारणाओं पर उन्होंने निर्भीकतापूर्वक लिखा कि ‘जो आत्मत्याग अपनी आत्मा, अपने शरीर का विनाशक हो...वह आत्महत्या है।’ भारतीय समाज के अन्धे परम्परा-प्रेम पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय और राजनीतिक प्रश्नों के अलावा जो सबसे बड़ा प्रश्न संसार के सामने है, वह यह कि आनेवाले समय और समाज में स्त्री के अधिकार क्या होंगे।
यह पुस्तक उमा नेहरू के 1910 से 1935 तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपे आलेखों का संग्रह है। संसद में दिए उनके कुछ भाषणों को भी इसमें शामिल किया गया है जिनसे उनके स्त्री-चिन्तन के कुछ और पहलू स्पष्ट होते हैं।
परम्परा-पोषक समाज को नई चेतना का आईना दिखानेवाले ये आलेख आज की परिस्थितियों में भी प्रासंगिकता रखते हैं और भारत में नारीवाद के इतिहास को समझने के सिलसिले में भी।
Bihari Ratnakar
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Jagannath Das Ratnakar
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प्रस्तुत पुस्तक बिहारी-रत्नाकर में विशेषत: इस बात का ध्यान रखा गया है कि पाठकों की समझ में शब्दार्थ तथा भावार्थ भली-भाँति आ जाएँ। दोहे के शब्दों के पारस्परिक व्याकरणिक सम्बन्ध तथा कारक इत्यादि को स्पष्ट रूप से प्रकट करने का भी यथासम्भव प्रयत्न किया गया है। प्रत्येक दोहे के पश्चात् उसके कठिन शब्दों के अर्थ हैं और फिर उस दोहे के कहे जाने का अवसर, वक्ता, बोधव्य इत्यादि, ‘अवतरण' शीर्षक के अन्तर्गत बतलाए गए हैं। उसके पश्चात् ‘अर्थ' शीर्षक के अन्तर्गत दोहे का अर्थ लिखा गया है। अर्थ लिखने में जो कोई शब्द अथवा वाक्यांश कठिन ज्ञात हुआ, उसका अर्थ, उसके पश्चात् गोल कोष्ठक में दे दिया गया है और जिस किसी शब्द अथवा वाक्यखंड का अध्याहार करना उचित समझा गया, वह चौखूँटे कोष्ठक में रख दिया गया है। जहाँ कहीं कोई विशेष बात कहने की आवश्यकता प्रतीत हुई, वहाँ टिप्पणी एक भिन्न वाक्य-विच्छेद (पैराग्राफ़) में
लिखी गई है। इस टीका में अधिकांश दोहों के अर्थ अन्यान्य टीकाओं से भिन्न हैं। उनके यथार्थ होने की विवेचना पाठकों की समझ, रुचि तथा न्याय पर निर्भर है।
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