Dilli Mein Uninde
Author:
Gagan GillPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
गगन गिल की ये गद्य रचनाएँ एक ठोस वस्तुजगत, एक साकार संसार को अपने भीतर की छायाओं में पकड़ना है। यथार्थ की चेतना और स्मृति का संसार—इन दो पाटों के बीच बहती हुई अनुभव-धारा जो कुछ किनारे पर छोड़ जाती है, गगन गिल उसे बड़े जतन से समेटकर अपनी रचनाओं में लाती हैं—मोती, पत्थर, जलजीव—जो भी उनके हाथ का स्पर्श पाता है, जग उठता है। यह एक कवि का स्वप्निल गद्य न होकर गद्य के भीतर से उसकी काव्यात्मक संभावनाओं को उजागर करना है...कविता की आँच में तपकर गगन गिल की ये गद्य रचनाएँ एक अलग तरह की ऊष्मा और ऐंद्रिक स्वप्नमयता प्राप्त करती हैं।</p>
<p>दिल्ली का उनींदा ऑटोवाला जो कहता है कि मैं जब धुएँ में साँस लेता हूँ तो मेरा भीतर तक सिकुड़ जाता है। कैलोंग की निस्तब्ध पहाड़ियाँ और वह उदास भिक्षु जिसकी भिक्षु बनने की इच्छा न थी, श्रीनगर का वह ट्रक ड्राइवर जो कहता है कि मेरा दिल जल गया है; भिक्षु, गोम्पा, मठ, बुद्ध और समूचे पाठ में तैरता अकंप बौद्ध-भाव जो पूछता है कि क्या समस्त मानवता एक-दूसरे से इसीलिए नहीं चिमटी है कि वह डरी हुई है! यह सब इस पुस्तक को एक विशिष्ट परिपक्वता देता है।</p>
<p>‘दिल्ली में उनींदे’ डायरी, नोट्स, यात्राओं, यात्राओं में मिले लोगों की स्मृतियों का एक अनूठा संचयन है।
ISBN: 9789360867355
Pages: 200
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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अगर यह संचयन साहित्य के प्रति निष्ठा से समर्पित एक रचनाकार की सोच-समझ का छोटा-सा किन्तु प्रमाणिक जीवन-भर होता तो मूल्यवान होते हुए भी वह गहरी विचारोत्तेजना का वैसा स्पंदित दस्तावेज़ न होता जैसा कि वह है। कुँवर नारायण आधुनिक दौर के कवि-आलोचकों की उस परम्परा के हैं जिसमें अज्ञेय और मुक्तिबोध, विजयदेव नारायण साही और मलयज आदि रहे हैं और जिसे पिछली अधसदी में हिन्दी की केन्द्रीय आलोचना कहा जा सकता है। अपने समय और समाज को, अपने साहित्य और समकालीनों को, अपनी उलझनों-सरोकारों और संघर्ष को समझने-बूझने और उन्हें मूल्यांकित करने के लिए नए प्रत्यय, नई अवधारणाएँ और नए औज़ार इसी आलोचना ने खोजे और विन्यस्त किए हैं। कुँवर नारायण का वैचारिक खुलापन और तीक्ष्णता, सुरुचि और सजगता तथा बौद्धिक अध्यवसाय उन्हें एक निरीक्षक और विवेचक की तरह 'अपने समय और समाज पर चौकन्नी नजर' रखने में सक्षम बनाते हैं।
यह संचयन कुँवर नारायण का हिन्दी परिदृश्य पर पिछले चार दशकों से सक्रिय बने रहने का साक्ष्य ही नहीं, उनकी दृष्टि की उदारता, उनकी रुचि की पारदर्शिता और उनके व्यापक फ़लक का भी प्रमाण है। प्रेमचन्द, यशपाल, भगवतीचरण वर्मा, हजारीप्रसाद द्विवेदी से लेकर अज्ञेय, शमशेर, नेमिचन्द्र जैन, मुक्तिबोध, रघुवीर सहाय, निर्मल वर्मा, श्रीकान्त वर्मा, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, श्रीलाल शुक्ल, अशोक वाजपेयी तक उनके दृष्टिपथ में आते हैं और उनमें से हरेक के बारे में उनके पास कुछ-न-कुछ गम्भीर और सार्थक कहने को रहा है। इसी तरह कविता, उपन्यास, कहानी, आलोचना, भाषा आदि सभी पर उनकी नज़र जाती रही है।
जो लोग साहित्य और हिन्दी के आज और आज के पहले को समझना और अपनी समझ को एक बृहत्तर प्रसंग में देखना-रखना चाहते हैं, उनके लिए यह एक ज़रूरी किताब है। कुँवर नारायण में समझ का धीरज है, अपना फ़ैसला आयद करने की उतावली नहीं है और ब्योरों को समझने में एक कृतिकार का अचूक अनुशासन है। हिन्दी आलोचना आज जिन थोड़े से लोगों से अपना आत्मविश्वास और विचार-ऊर्जा साधिकार पाती है। उनमें निश्चय ही कुँवर नारायण एक हैं।
यह बात अचरज की है कि यह कुँवर नारायण की पहली आलोचना-पुस्तक है। बिना किसी पुस्तक के दशकों तक अपनी आलोचनात्मक उपस्थिति अगर कुँवर नारायण बनाए रख सके हैं तो इसलिए कि उनका आलोचनात्मक लेखन लगातार धारदार और ज़िम्मेदार रहा है।
Ram Manohar Lohiya Aacharan Ki Bhasha
- Author Name:
Ram Kamal Rai
- Book Type:

- Description: डॉ. राममनोहर लोहिया जितने बड़े विचार- पुरुष थे, उतने ही बड़े आचारण-पुरुष; जितने बड़े संस्कृति-पुरुष थे, उतने ही बड़े विधि पुरुष थे; उतने ही बड़े सत्याग्रह-पुरुष। डा. लोहिया के लिए धर्म दीर्घकालिक राजनीति था, और राजनीति अल्पकालिक धर्म। लोहिया सिद्धान्त को साधारणीकृत कार्यक्रम मानते थे और कार्यक्रम को ठोस व्यवहार-गत सिद्धान्त। वे कथनी और करनी के बीच किसी भेद को स्वीकार नहीं करते थे। लोहिया विश्व बन्धुत्व में विश्वास करते थे और विश्वयारी को गर्हित समझते थे। आचरण उनके लिए विचार की कसौटी था । लोहिया वैचारिकता के धरातल पर बहुत परिपक्व और स्पष्ट दृष्टि वाले नेता थे। उन्होंने समाजवाद के अपने चिन्तन को भारतीय परिस्थितियों और भारतीय संस्कृति-चेतना से जोड़कर महात्मा गाँधी के विचारों और आचरण से सम्बद्ध करके विकसित किया था। आचरण और विचार की एकता की परम्परा भारतीय समाज में अधिक से अधिक जगह बना सके, यही इस पुस्तक का उद्देश्य है।
Aadhunik Kavita Ka Punarpath
- Author Name:
Karunashankar Upadhyay
- Book Type:

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Description:
प्रस्तुत पुस्तक भारतेन्दु से लेकर समसामयिक कविता तक में विद्यमान नए पाठ की सम्भावना का सन्धान करते हुए उसका वस्तुनिष्ठ एवं गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। इसमें ‘भारतेन्दु का काव्यदर्शन’, ‘शलाकापुरुष महावीर प्रसाद द्विवेदी की नारी चेतना’, ‘साकेत की उर्मिला का पुनर्पाठ’, ‘गुप्त जी की कैकेयी का नूतन पक्ष’, ‘जयशंकर प्रसाद के पुनर्मूल्यांकन के ठोस आयाम’, ‘प्रसाद साहित्य में राष्ट्रीय चेतना का स्वरूप’, ‘कामायनी में प्रकृति-चित्रण का स्वरूप’, ‘कामायनी : एक उत्तर आधुनिक विमर्श’, ‘स्त्री-विमर्श और प्रसाद काव्य के शिखर नारी चरित्र’, ‘निराला की आलोचना-दृष्टि का विश्लेषण’, ‘दिनकर का कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी का पुनर्पाठ’, ‘शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ के काव्य में राष्ट्रीय चेतना’, ‘अज्ञेय के काव्य में संवेदनशीलता’, ‘भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य में गांधीवादी चेतना’, ‘नरेश मेहता का संवेदनात्मक औदात्य’, ‘मुक्तककार बेकल’, ‘अन्तस् के स्वर : कवि मन की पारदर्शी अभिव्यक्ति’, ‘धूमिल अर्थात् कविता में लोकतंत्र’, ‘ग़ज़ल दुष्यन्त के बाद : एक विश्लेषण’, ‘कविता का समाजशास्त्र एवं शोभनाथ यादव की कविताएँ’, ‘कविताओं का सौन्दर्यशास्त्र और शोभनाथ की कविताएँ’, ‘रुद्रावतार : अद्भुत भाषा सामर्थ्य की विलक्षण कविता’, ‘संशयात्मा के ख़तरे से आगाह कराती कविताएँ’, ‘हिन्दी ग़ज़ल का दूसरा शिखर : दीक्षित दनकौरी’, ‘ग़ज़ल का अन्दाज़ ‘कुछ और तरह से भी’’, ‘चहचहाते प्यार की गन्ध से घर-बार महकाते गीत’, ‘सामाजिक प्रतिबद्धता का दलित-स्त्रीवादी वृत्त’, ‘समकालीन हिन्दी कविता : दशा एवं दिशा’ तथा ‘समकालीन कविता के सामाजिक सरोकार’ जैसे विषयों के अन्तर्गत इस युग के समूचे काव्य का विशद् विश्लेषण किया गया है। साथ ही परिशिष्ट के अन्तर्गत ‘जन अमरता के गायक विंदा करंदीकर’ तथा ‘परम्परा एवं आधुनिकता के समरस कवि अरुण कोलटकर’ जैसे शीर्षकों के अन्तर्गत मराठी के दो शिखर कवियों का सम्यक् विश्लेषण किया गया है।
छात्रों, मनीषियों, चिन्तकों तथा सामान्य पाठकों के लिए समान रूप से उपयोगी यह पुस्तक आधुनिक काव्य पर विशिष्ट अध्ययन होने के साथ-साथ नवीन समीक्षात्मक प्रतिमानों के सन्धान द्वारा उसका पुनर्पाठ तैयार करने का एक गम्भीर और साहसिक प्रयास है।
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