Jayasi : Ek Nai Drishti
Author:
RaghuvanshPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
प्रस्तुत पुस्तक जायसी साहित्य के अध्ययन-चिन्तन में एक नई दृष्टि की शुरुआत करती है। धर्म, दर्शन और आचरण की मूल्यपरक रचना-प्रक्रिया मानवीय संस्कृति की आन्तरिक प्रकृति है—इस ज्ञान के साथ उन्होंने पाया है कि इसी की अभिव्यक्ति मनुष्य की कलाओं और साहित्य में होती है।</p>
<p>प्रस्तुत पुस्तक के विभिन्न प्रकरणों में जायसी के जीवन, दार्शनिक चिन्तन, उनकी आध्यात्मिक दृष्टि, साधना की भाव-भूमि, मानवीय जीवन के सारे परिवेश के साथ उसके मूल्य प्रक्रिया के विविध पक्षों को विवेचित करने में लेखक ने सर्वथा नई दृष्टि से काम लिया है।</p>
<p>जायसी साहित्य के अध्येताओं के लिए डॉ. रघुवंश की यह पुस्तक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और उपयोगी है।
ISBN: 9789352210312
Pages: 166
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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भारत की स्वाधीनता के लिए प्राणों को हथेली पर रखकर चलनेवाले, चन्द्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह के साथी, क्रान्तिकारी यशपाल जी का शोषण-मुक्त समाज और निजी स्वामित्व के ख़ात्मे पर आजीवन अटल विश्वास रहा है। इस खंड में संकलित ‘गांधीवाद की शव परीक्षा’, ‘रामराज्य की कथा’, ‘मार्क्सवाद’, ‘देखा सोचा समझा’ और ‘बीबी जी कहती हैं, मेरा चेहरा रोबीला है’ में उनके इन विचारों की सतर्क और सजग झलक ही नहीं भारतीय समाज के भिन्न वर्गों और जातियों की गहरी समझ तथा दुनिया में हो रहे सामाजिक-आर्थिक और वैचारिक परिवर्तनों की ध्वनि-प्रतिध्वनि निरन्तर सुनाई देती है।
‘गांधीवाद की शव परीक्षा’ में शोषण में निरीहता, अहिंसा और दरिद्र नारायण की सेवा आदि सिद्धान्तों का मूल्यांकन करते हुए कहा गया है कि ‘गांधीवाद जनता की मुक्ति, सामन्तकालीन घरेलू उद्योग-धन्धों और स्वामी-सेवक के सम्बन्ध की पुन: स्थापना में समझता है जो इतिहास की क़ब्र में दफ़न हो चुकी हैं। मुर्दा व्यवस्थाएँ और आदर्श समाज को विकास की ओर ले जाने का काम नहीं कर सकते। उनका उपयोग, उन्हें समाप्त कर देनेवाले कारणों को समझने के लिए या उनकी शव-परीक्षा के लिए ही हो सकता है।’ ‘रामराज्य की कथा’ में गांधी जी की ‘रामराज्य’ की कल्पना और उसके व्यावहारिक रूप के अध्ययन के साथ ही साथ रामराज्य के समता, न्याय और अहिंसा जैसे मूल्यों के माध्यम से जनता के शोषण की व्याख्या की गई है। ‘मार्क्सवाद’ में सेंट साइमन, ओवेन आदि सन्त साम्यवादियों के विचारों के साथ मार्क्स के विचारों और सिद्धान्तों की व्याख्या की गई है तथा अन्य राजनैतिक सिद्धान्तों से उसके अन्तर को स्पष्ट किया गया है। ‘देखा सोचा समझा’ में नैनीताल, कुल्लूमनाली आदि यात्रा-वर्णनों के साथ-साथ समकालीन साहित्यिक और राजनैतिक गतिविधियों का विश्लेषण भी है। ‘बीबी जी कहती हैं, मेरा चेहरा रोबीला है’ में व्यंगात्मक निबन्धों के माध्यम से भी हिंसा-अहिंसा आदि के साथ अपने समय को परिभाषित करने का प्रयत्न मार्क्सवाद की दृष्टि से किया गया है।
यशपाल के इन निबन्धों में उनके युग के राजनैतिक, सामाजिक और साहित्यिक सरोकारों से सम्बद्ध तेज़ बहसों और विवादों की झलक मिलती है। ये निबन्ध एक सर्जक की गहरी निष्ठा और व्यावहारिक समझ से विकसित हैं। दलित, शोषित और पीड़ित के प्रति गहरे लगाव के कारण वे गांधीवाद, मार्क्सवाद आदि सब कुछ को उन कारणों के परिवर्तन की दृष्टि से आँकते हैं जो ग़रीबी और शोषण के कारण हैं। इन निबन्धों में ऐतिहासिकता के साथ-साथ समकालीनता भी है। इन निबन्धों से यशपाल और उनके समय को समझने में मदद मिलती है। जो लोग इन्हें गांधीवाद और मार्क्सवाद की दृष्टि से पढ़ना चाहते हैं, उन्हें भी आज के सन्दर्भ के कारण इनकी ताक़तों और कमज़ोरियों का पता चलेगा, क्योंकि इनमें प्रस्तुतीकरण ही नहीं, विश्लेषण है। इन सब में कसौटी शोषित वर्ग की भौतिक स्थितियों और उनके कारणों का बना रहना या बदलना ही है।
Mahakavi Soordas
- Author Name:
Nandulare Vajpeyi
- Book Type:

- Description: भक्तिकाल के इस अप्रतिम कवि के जीवन और साहित्य पर जितना कुछ उल्लेखनीय अध्ययन अब तक हुआ है, उसमें आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी की यह पुस्तक विशिष्ट स्थान रखती है। उपलब्ध स्रोत-सामग्री का तुलनात्मक अध्ययन करके आचार्य वाजपेयी ने महाकवि के जीवन-तथ्यों की प्रामाणिक जानकारी इस पुस्तक में दी है, और साथ ही उनके कृतित्व और भक्ति के सिद्धान्त-पक्ष का विवेचन भी किया है। आकार में लघु होते हुए भी सूर-साहित्य का इतना समग्र अनुशीलन इस पुस्तक में है कि निस्संकोच भाव से इसे 'गागर में सागर' की संज्ञा दी जा सकती है।
Renu Ka Hai Andaze Bayan Aur
- Author Name:
Bharat Yayawar
- Book Type:

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Description:
फणीश्वरनाथ रेणु का जीवन और साहित्य जितना बहुआयामी है उतना ही रसग्राही। रेणु के व्यक्तित्व-कृतित्व के विविध पक्षों की गहन खोज करने में भारत यायावर ने अपने जीवन के कई वर्ष लगा दिए हैं। उनके सम्पादन में अब तक रेणु की लगभग बीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से 'रेणु रचनावली' का सम्पादन किया है, जो बेहद प्रशंसित हुआ है। रेणु पर अपनी लम्बी खोज-यात्रा के उपरान्त उन्होंने 'रेणु का है अन्दाज़े-बयाँ और' लिखी है। इस पुस्तक में रेणु के जीवन और साहित्य के नए और अनछुए पहलुओं की तलाश की गई है। रेणु पर यह पहली पुस्तक है जिसमें विस्तार से उनकी रचनाओं की पड़ताल की गई है। रेणु के साहित्य में उपन्यास एवं कहानी के साथ ही रिपोर्ताज सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विधा है, जिस पर विस्तार से विवेचन किया गया है।
भारत यायावर की इस पुस्तक में रेणु के जीवन और साहित्य के गहन अनुसंधानपरक विवेचन के बावजूद सबसे महत्त्वपूर्ण है एक जीवन्त यानी हँसती-बतियाती हुई रचनात्मक भाषा। इस भाषा का एक अपना ही स्वाद है, साथ ही अपना ही रंग है। इसके कारण यह पुस्तक रोचक, दिलचस्प और बेहद पठनीय है। इस पुस्तक के परिशिष्ट में भारत यायावर ने फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन-परिचय जोड़ दिया है एवं दो असंकलित रचनाओं ‘जै गंगा’ एवं ‘डायन कोशी’ को भी संकलित कर दिया है, इससे इस पुस्तक की महत्ता और अधिक बढ़ गई है। कुल मिलाकर, रेणु के अन्दाज़े-बयाँ को अपने ही ढंग से प्रस्तुत करनेवाली यह अनोखी पुस्तक है।
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