Hindi Upanyas Ka Stree-Path
Author:
Rohini AgrawalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 716
₹
895
Available
कहा जाता है कि आज की ज़मीन पर खड़े होकर पुरानी कृतियों का पाठ नहीं किया जाना चाहिए, ख़ासकर स्त्री एवं दलित दृष्टि से क्योंकि उस समय समाज स्त्री एवं दलित प्रश्नों को लेकर न इतना संवेदनशील था, न सजग। यह भी तर्क दिया जाता है कि लेखक अपने युग की वैचारिक हदबन्दियों के बीच रहकर ही अभिव्यक्ति की राह चुनता है। मुझे इस मान्यता पर आपत्ति है। एक, यदि युगीन वैचारिक हदबन्दियाँ ही रचना की घेरेबन्दी करती हैं, तब वह कालजयी कृति कैसे हुई? दूसरे, यदि साहित्यकार रचयिता/स्रष्टा है तो उसे अपनी गहन अन्तर्दृष्टि, उन्नत भावबोध और प्रखर कल्पना द्वारा वह सब साक्षात् करना है जो उसके अन्य समकालीनों की कर्मेन्द्रियों और ज्ञानेन्द्रियों की पहुँच से बाहर छूट रहा है। सृजन के समय अन्तर्दृष्टि के पंखों पर सवार लेखक जब कल्पनाशीलता के आकाश में विचरण करता है तो सोलहों आने लेखक होता है। मुक्ति की आकांक्षा से दिपदिपाती उसकी चेतना जड़ता और पराधीनता, बन्धन और व्यवस्थागत दबावों का निषेध कर व्यक्ति को ‘मनुष्य’ रूप में देखने लगती है।</p>
<p>मनुष्य को केन्द्र में रखनेवाला, मनुष्य-संसार की गति, ऊर्जा और सपनों से स्पन्दित होनेवाला साहित्य निर्वैयक्तिक हो ही नहीं सकता। एक ठोस सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान मनुष्य और समाज की तरह साहित्य और साहित्यकार की भी है। लाख छुपाने की कोशिश करे इंसान, बड़े-बड़े दावों और डींगों के बीच अपनी क्षुद्रताओं और शातिरबाज़ियों को रंचमात्र भी नहीं छुपा पाता। लेखक भी इसका अपवाद नहीं।</p>
<p>पात्रों-स्थितियों-घटनाओं के ज़रिए बेशक वह नए वक़्त की आहटें लेने में सजग भाव से सन्नद्ध रहे, लेकिन इन्हें पाटती दरारों के बीच वह अभिव्यक्त हो ही जाता है। प्रेमचन्द से बहुत पहले पहली स्त्री शिक्षिका सावित्रीबाई फुले पर सड़े अंडे-टमाटर फेंककर स्त्रीद्वेषी दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करता रहा है पुरुष-समाज।</p>
<p>यह पुस्तक प्रतिष्ठित रचनाकारों के दायित्वपूर्ण योगदान को धुँधलाने की धृष्टता नहीं, आलोचना के पुंसवादी स्वर के बरअक्स स्त्री-स्वर को धार देने की कोशिश है। यों भी साहित्य शब्दों-पंक्तियों-पन्नों-जिल्द में बँधी हदबन्दियों का मोहताज नहीं कि लाइब्रेरियों में पड़ा सड़ता रहे। जब वह एक नई समाज-संस्कृति, विचार या चरित्र बनकर लौकिक जगत के बीचोबीच आ बैठता है, तब उसे नई चुनौतियों और नए बदलावों के बीच निरन्तर अपने को प्रमाणित भी करते रहना पड़ता है।
ISBN: 9788126728732
Pages: 232
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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संसार के साहित्य में एक समर्थ विधा के रूप में अपनी पद-प्रतिष्ठा के लिए कहानी को बीसवीं शताब्दी तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। हिन्दी में तो उसका जन्म ही इस सदी में आकर हुआ। यही कारण है कि मनुष्य की नियति, उसके दुःख और उसकी जिजीविषा को अभिव्यक्ति देनेवाली अनेक कहानियों के सामने आने के बाद भी कहानी को लम्बे समय तक हलके-फुल्के मनोरंजन का साधन ही माना जाता रहा। हिन्दी में यह स्थिति और भी बाद तक रही और स्वातंत्र्योत्तर काल तक में वर्षों तक साहित्य-चिन्तन और आलोचना का केन्द्र कविता ही बनी रही। कहानी को लेकर अगर कोई चर्चा होती भी थी तो वह पाठ्यक्रमों के लिए तैयार किए जानेवाले संग्रहों की भूमिकाओं तक ही सीमित थी।
कहानी की गम्भीर चर्चा सन् 1995 के आसपास ‘कहानी’ पत्रिका के पुनर्प्रकाशन के बाद ही शुरू हुई। उसी समय इस बात को भी गम्भीरता से चिन्हित किया गया कि नई कहानी को समझने-समझानेवाले आलोचकों का प्रायः आभाव है। तब 1959 में ‘कहानी’ पत्रिका ने अपनी पहलक़दमी पर कहानी की तत्कालीन अवस्थिति के उद्घाटन के लिए स्वयं रचनाकारों को प्रोत्साहित किया जिससे नई कहानी के अनेक पहलू स्पष्ट हुए। उसके कुछ सालों बाद कहानी-आलोचना विभिन्न उतार-चढ़ावों से गुज़रती हुई एक ऐसी जगह भी पहुँची जहाँ ‘नई कहानी’ न सिर्फ़ प्रतिष्ठापित हो गई, बल्कि उसने एक प्रतिष्ठान का रूप भी धारण कर लिया। उसके बाद नेत्रृत्व की छीना-झपटी आती है और आते हैं नई कहानी बनाम नई कविता और नई कहानी बनाम सचेतन कहानी जैसे विवाद जिन्हें स्वस्थ आलोचना-विवेक का उदहारण नहीं कहा जा सकता। प्रस्तुत संकलन ‘नई कहानी’ से सम्बन्धित इसी वैचारिक आपाधापी और बेचैनी का जायज़ा लेने का एक प्रयास है। पुस्तक में तत्कालीन विमर्श के तमाम महत्त्वपूर्ण विचार-कोण समाहित किए गए हैं जो आज भी ‘नई कहानी’ की अवधारणा को समझने में मददगार साबित हो सकते हैं।
Akbar Allahabadi Par Ek Aur Nazar
- Author Name:
Shamsurrahman Farooqui
- Book Type:

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उर्दू के विख्यात आलोचक, उपन्यासकार, कवि शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी के ये तीन आलेख अकबर इलाहाबादी को एक नए ढंग से देखते हैं और अकबर की कविता और उनके चिन्तन को बिलकुल नए मायने देते हैं। आमतौर पर व्यंग्य को दूसरी श्रेणी का साहित्य कहा जाता रहा है। यह इस कारण भी हुआ कि अंग्रेज़ी साम्राज्य शिक्षण की रोशनी में अकबर के विचार पुराने, और पुराने ही नहीं पीछे की तरफ़ लौट जाने का तक़ाज़ा करते मालूम होते थे। शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी ने पहली बार इस भ्रम को तोड़ा है और इन आलेखों में बताया है कि व्यंग्य को दूसरी श्रेणी का साहित्य कहना बहुत बड़ी भूल है। वे अकबर इलाहाबादी को उर्दू के छह सबसे बड़े शायरों में मानते हैं। उन्होंने यह भी बताया है कि अकबर नई चीज़ों के ख़िलाफ़ नहीं थे, मगर वो यह भी जानते थे कि अंग्रेज़ों ने ये नई चीज़ें हिन्दुस्तानियों के उद्धार के लिए नहीं, बल्कि अपनी उपनिवेशीय शक्तियों को फैलाने और बढ़ाने के लिए स्थापित की थीं। फ़ारूक़ी इन आलेखों में बताते हैं कि कल्चर भी उपनिवेशीय आक्रमण का प्रतीक और माध्यम बन जाता है।
अकबर कहते हैं कि अंग्रेज़ पहले तो तोप लगाकर साम्राज्य को क़ायम करते हैं, फिर ग़ुलामों की ज़हनियत को अपने अनुकूल बनाने के लिए उन्हें अपने ढंग की तालीम देते हैं। फ़ारूक़ी कहते हैं कि इन बातों से साफ़ ज़ाहिर होता है कि तथाकथित उन्नति लानेवाली चीज़ों के पीछे दरअसल उपनिवेश और साम्राज्य को फैलाने की पॉलिसी थी। उनका कहना है कि अकबर इलाहाबादी पहले हिन्दुस्तानी हैं, जिन्होंने इस बात को पूरी तरह महसूस किया और साफ़–साफ़ बयान किया।
फ़ारूक़ी पहले आलोचक हैं जिन्होंने इन आलेखों में अकबर इलाहाबादी और उनके व्यंग्य को, पोस्ट कोलोनियल दृष्टिकोण से देखने की भरपूर कोशिश की है।
फ़ज़्ले हसनैन और ताहिरा परवीन ने उर्दू से हिन्दी में अनुवाद करते समय ग्राह्यता व भाषिक प्रवाह का विशेष ध्यान रखा है ।
Kahani : Vastu Aur Antarvastu
- Author Name:
Shambhu Gupt
- Book Type:

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Description:
हिन्दी में कहानी-आलोचना पर्याप्त समृद्ध और बहुआयामी होते हुए भी आलोचना की मुख्यधारा में अनादृत ही रही है। हिन्दी में केवल कथाकार या कहानीकार तो बहुत-से मिल जाएँगे लेकिन केवल कथा या कहानी का आलोचक ढूँढ़ने पर बहुत मुश्किल से ही मिल पाएगा। जो दो-चार कहानी-आलोचक हमारे यहाँ रहे या हैं भी तो उनका कार्य इतना सीमित और कालबद्ध रहा है कि उससे कहानी-आलोचना की कोई सामान्य सैद्धान्तिकी निर्मित हो पाना सम्भव नहीं हो पाया।
हिन्दी की कहानी-समीक्षा पर अधिकांशतः एक आरोप यह लगाया जाता रहा है कि उसके प्रतिमान कविता-समीक्षा के क्षेत्र से आयत्त किए जाते हैं, हिन्दी-आलोचना के पास कहानी-समीक्षा के ऐसे प्रतिमान लगभग न के बराबर हैं, जो कहानी को कहानी की तरह देख सकें, जो नितरां कहानी-विधा के और उसी के लिए हों। फ़िलहाल यह कहना पर्याप्त होगा कि एक कहानी की समीक्षा एक कहानी की तरह ही की जानी चाहिए, उसे कविता या उपन्यास की तराजू में नहीं चढ़ा देना चाहिए।
कविता और उपन्यास के प्रतिमानों से यदा-कदा मदद तो ली जा सकती है, एक सप्लीमेंट के रूप में उनका उपयोग तो किया जा सकता है लेकिन कहानी-समीक्षा की असल ज़मीन तो स्वयं कहानी-विधा के संघटक तत्त्वों से ही निर्मित की जा सकती है। परम्परा में इस असल ज़मीन की पहचान कई बार की भी गई है। जहाँ नहीं है, या कहीं कोई चीज़ छूट गई है तो नए प्रयोगों द्वारा उसकी सम्भावनाओं की तलाश की जा सकती है। इससे परम्परा का मूल्यांकन भी होगा और आगे के नए रास्ते भी खुलेंगे।
Bharatendu Yug Aur Hindi Bhasha Ki Vikas Parampara
- Author Name:
Ramvilas Sharma
- Book Type:

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भारतेन्दु युग हिन्दी साहित्य का सबसे जीवन्त युग रहा है। सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक-आर्थिक हर मुद्दे पर तत्कालीन रचनाकारों ने ध्यान दिया और अपना अभिमत व्यक्त किया, जिसमें उनकी राष्ट्रीय और जनवादी दृष्टि का उन्मेष है। वे साहित्यकार अपने देश की मिट्टी से, अपनी जनता से, उस जनता की आशा-आकांक्षाओं से जुड़े हुए थे, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण उनकी रचनाएँ हैं। लेकिन उनकी, उनके युग की इस भूमिका को सही परिप्रेक्ष्य में देखने-समझने का प्रयास पहली बार डॉ. रामविलास शर्मा ने ही किया। वे ही हिन्दी के पहले आलोचक हैं, जिन्होंने भारतेन्दु-युग में रचे गए साहित्य के जनवादी स्वर को पहचाना और उसका सन्तुलित वैज्ञानिक मूल्यांकन किया।
प्रस्तुत पुस्तक इसीलिए ऐतिहासिक महत्त्व की है कि उसमें भारतेन्दु-युग की सांस्कृतिक विरासत को, उसके जनवादी रूप को पहली बार रेखांकित किया गया है। लेकिन पुस्तक में जैसे एक ओर उस युग में रचे गए साहित्य की मूल प्रेरणाओं और प्रवृत्तियों का विवेचन है, वैसे ही दूसरी ओर प्रायः तीन शताब्दियों के भाषा-सम्बन्धी विकास की रूपरेखा भी प्रस्तुत है, जो डॉ. शर्मा के भाषा-सम्बन्धी गहन अध्ययन का परिणाम है।
Bhartiya Bhakti Andolan Aur Shrimant Shankardev
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

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भक्ति आन्दोलन का प्रसार और विकास क्षेत्रीय-प्रान्तीय और अखिल भारतीय दोनों स्तरों पर हुआ। उसके क्षेत्रीय और प्रान्तीय रूप एक समान नहीं हैं। उनके देश-काल, धर्म-संस्कृति, भाषा में अन्तर अवश्य है। यहाँ तक कि उनके विकास के स्वरूप में भी अन्तर है। बावजूद इसके इन क्षेत्रीय और प्रान्तीय रूपों में एक अन्तर्सूत्र मौजूद है और वह अन्तर्सूत्र है भक्ति। वह सारे क्षेत्रीय-प्रान्तीय भक्ति आन्दोलन को जोड़कर रखती है। यही कारण है कि भक्ति आन्दोलन के अखिल भारतीय रूप और उसकी सामान्य विशेषता को जानने-समझने के लिए उसके क्षेत्रीय-प्रान्तीय रूपों का ध्यान रखना जरूरी है। इसी प्रकार क्षेत्रीय-प्रान्तीय रूपों की विशिष्टता को पहचानने के लिए उन्हें अखिल भारतीय भक्ति आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में देखने-समझने की जरूरत है।
असम के वैष्णव भक्ति आन्दोलन के प्रवेश द्वार शंकरदेव हैं। इसलिए उनसे और उनके जीवन कर्म एवं उनकी वैष्णव भक्ति से गुजरे बगैर असम के भक्ति आन्दोलन और भक्ति कविता को ठीक से नहीं समझा जा सकता है।
Mahadevi "Doodhnath Singh"
- Author Name:
Doodhnath Singh
- Book Type:

- Description: यह किताब महादेवी की लिखत-पढ़त, उनके चित्रों-रेखांकनों, उनके जीवन-वृत्त और उनके बारे में लेखक की संस्कृतियों के भीतर से उनको समझने की एक निजी कोशिश है। लेखक की निजी संस्मृतियाँ भी महादेवी के कर्तृत्व को व्याख्यायित करने और उसके सारतत्त्व तक पहुँचने की बुनियाद के बतौर हैं। महादेवी का संसार जितना अन्तरंग है, उतना ही बहिरंग। अन्तरंग में दीपक की खोज है और बहिरंग के कुरूप-काले संसार में सूरज की एक किरण की। महादेवी के सम्पूर्ण कृतित्व में अद्भुत संघर्ष है और पराजय कहीं नहीं। इस किताब का हर शीर्षक एक नया अध्याय है और इसका शिल्प आलोचना के क्षेत्र में एक नई सूझ। साहित्य की अन्य विधाओं की तरह ही आलोचना की पठनीयता भी ज़रूरी है। दरअसल किसी कविता, कला, कथा, विचार या लेखक के प्रति सहज उत्सुकता जगाना और उसे समझने का मार्ग प्रशस्त करना ही आलोचना का उद्देश्य है। और यह किताब यही काम करती है। महादेवी के रचनात्मक विवेक को जानने के लिए यह किताब एक समानान्तर रूपक की तरह है। उनकी कविता, गद्य और उनकी चित्र-वीथी—तीनों मिलकर ही महादेवी के सौन्दर्यशास्त्र का चेहरा निर्मित करते हैं। यह किताब इसी चेहरे का दर्शन-दिग्दर्शन है।
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