Hindi Kavya Chintan Ke Mooladhar
Author:
Yogendra Pratap SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
वैश्विक परिदृश्य की ओर बढ़ती हिन्दी भाषा के अपने काव्य-चिन्तन के मूलाधार का न होना स्वयं में चिन्ताजनक सन्दर्भ है। आठवीं शती में प्रारम्भ होनेवाली आज की इस राष्ट्रभाषा के रचनात्मक साहित्य का मूल्यांकन या तो भारतीय संस्कृत भाषा साहित्य के काव्यशास्त्रीय मानकों पर दृष्टि डालने के लिए विवश करता है या फिर विदेशी साहित्य सिद्धान्तों की ओर दृष्टि दौड़ते हैं। राष्ट्रभाषा हिन्दी की कविता के लिए यह कितना लज्जाजनक है। देश-भर के विश्वविद्यालयों से जुडी भारतीय हिन्दी परिषद संस्था की राष्ट्रीय संगोष्ठियों में डॉ. धीरेन्द्र वर्मा, डॉ. नागेन्द्र, डॉ. भागीरथ मिश्र आदि विद्वान इस विषय पर बार-बार प्रश्न उठा चुके हैं किन्तु अभी तक इस दिशा में किए गए प्रयास सार्थक नहीं हो पाए।</p>
<p>इस प्रश्न के सन्दर्भ में यहाँ यदि यह कहा जाए कि ‘हिन्दी काव्य चिन्तन के मूलाधार’ शीर्षक ग्रन्थ हिन्दी की अपनी अस्मिता से जुड़े अपने नए मानकों की तलाश तथा हिन्दी भाषा की प्रकृति एवं उसकी वैचारिक पृष्ठभूमि के साथ इतिहासबोध तथा संस्कृति को गहराई से देखने का एक मौलिक सन्दर्भ है। हिन्दी काव्य-चिन्तन की दिशा में निश्चित ही उसकी मौलिकता की प्रस्तुति को रखने, देखने, विश्लेषित करते हुए नए रूप में निष्कर्षबद्ध करने का यह सर्वथा नवीन प्रयास है।
ISBN: 9789352211630
Pages: 320
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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क. पदमावत के कथानक का सूत्र अटूट बना रहे.
ख. काव्य की दृष्टि से उत्कृष्ट सभी अंशों कासमावेश हो जाय,
ग. पदमावत के सभी पात्रों का चरित्र स्पष्ट हो जाय।
ठेठ अवधी भाषा के माधुर्य और भावों की गम्भीरता की दृष्टि से यह काव्य निराला है। इसके पठन-पाठन का मार्ग कठिनाइयों के कारण अब तक बन्द-सा रहा। एक तो इसकी भाषा पुरानी और ठेठ अवधी, दूसरे भाव भी गूढ़, अतः किसी शुद्ध अच्छे संस्करण के बिना इसके अध्ययन का प्रयास मुश्किल था। पदमावत का अनुशीलन पुस्तक इसी ओर एक प्रयास मात्र है।
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‘दूसरी दुनिया’ निर्मल वर्मा की चर्चित और पाठक-प्रिय रचनाओं का संकलन है। यात्रावृत्त, कहानी, डायरी और चिन्तनपरक निबन्धों का यह चयन स्वयं निर्मल जी ने किया था, जिसमें ज़ाहिर है, उनकी वे रचनाएँ शामिल हैं जो उन्हें स्वयं भी प्रिय थीं।
कहना ग़लत न होगा कि निर्मल जी ने हिन्दी गद्य को जो ऊष्मा दी, वह पाठक को एक जीवित इकाई की तरह आकर्षित करती है। कहानी हो या निबन्ध या फिर यात्रा-कथाएँ, कहीं भी निर्मल वर्मा का पाठक उस आन्तरिक छुअन और साहचर्य से वंचित नहीं रहता, जो उनका गद्य उसे उपलब्ध कराता है।
कई लोग कहते हैं कि आप निर्मल जी का एक वाक्य पढ़ते हैं, और अपनी दुनिया से उठकर उनकी रची हुई दुनिया में चले जाते हैं। कभी पात्रों के साथ जीते हुए, कभी उस परिवेश को महसूस करते हुए जिसकी रचना वे उन्हीं शब्दों और वाक्यों में करते हैं, जिनसे हम हमेशा से परिचित थे, लेकिन जो पहले कभी इतने प्रभावशाली नहीं लगे थे।
यह पुस्तक ऐसी ही रचनाओं का संकलन है; चाहें तो इसे आप उस लेखक की दुनिया में प्रवेश करने का द्वार भी कह सकते हैं, जो आपके स्मृति-तंत्र में हमेशा-हमेशा के लिए बस जानेवाला है। और यह दुनिया दूसरी नहीं है, आपकी अपनी ही है, वहाँ जाकर बस आप दूसरे हो जाते हैं।
Meghdoot : Ek Adhyayan
- Author Name:
Kalidas
- Book Type:

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Description:
महाकवि कालिदास की कालजयी कृति ‘मेघदूत’ सदियों से प्रेम और विरह की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति के रूप में समादृत रही है।
संस्कृत साहित्य में ‘उपमा कालिदासस्य’ प्रसिद्ध उक्ति है ही और इस कृति में कालिदास की रचनात्मकता शिखर पर है। इसीलिए ‘मेघदूत’ शताब्दियों से काव्य का प्रतिमान रहा है। रसिकों-विज्ञजनों में महान कृतियों के विशेष अध्ययन की सुस्थापित परम्परा रही है ताकि कृतियों में निहित विशेष भावों, सन्दर्भों, उक्तियों-अन्योक्तियों, कथाओं-अन्तर्कथाओं का खुलासा कर रचना का पूरा आनन्द लिया जा सके, और यदि यह अध्ययन डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल जैसे इतिहास-संस्कृति-मर्मज्ञ का हो तो पाठक रचना-रस से आप्लावित हो उठेंगे।
डॉ. अग्रवाल ने स्वयं लिखा : ‘‘यह अध्ययन ‘मेघदूत मीमांसा’ के नाम से 1927 की शरद ऋतु में लिखा गया था। उस समय मैं यौवन के ललाम भाव से परिचित ही हुआ था और मेरा मन उसके अतिरेक सुखों की उस भावभूमि के लिए उन्मुक्त था, जो ‘मेघदूत’ काव्य का सनातन धरातल है। न जाने किस पूर्व पुण्य से काशी विश्वविद्यालय में जब मैं बी.ए. की शिक्षा प्राप्त कर रहा था, तब किसी एकान्त दिवस में स्वर्गिक ज्योति की कोई किरण मेरे मानस में वह अभिज्ञान ले आई, जिसने मेरे लिए इस काव्य का अर्थ ही बदल डाला और इसके स्थूल रूप को सूक्ष्म बाण से बेध दिया। उसने एक साथ ही अध्यात्म और श्रृंगार के नील-लोहित धनुष से ‘मेघदूत’ के भावलोक को जीतकर मुझे भी उसका नागरिक बना लिया।’’
अरसे से अनुपलब्ध इस कृति का प्रकाशन हमारा गौरव है और काव्य-रसिकों के लिए उल्लास का अवसर भी।
Hindi Ki Shabd Sampada
- Author Name:
Vidhyaniwas Mishra
- Book Type:

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Description:
ललित निबन्ध की शैली में लिखी गई भाषाविज्ञान की यह पुस्तक अपने आपमें अनोखी है। इस नए संशोधित-संवर्द्धित संस्करण में 12 नए अध्याय शामिल किए गए हैं और कुछ पुराने अध्यायों में भी छूटे हुए पारिभाषिक शब्दों को जोड़ दिया गया है। जजमानी, भेड़-बकरी पालन, पर्व-त्योहार और मेले, राजगीर और संगतरास आदि से लेकर वनौषधि तथा कारख़ाना शब्दावली जैसे ज़रूरी विषयों को भी इसमें शामिल कर लिया गया है। अनुक्रमणिका में भी शब्दों की संख्या बढ़ा दी गई है।
बकौल लेखक : “यह साहित्यिक दृष्टि से हिन्दी की विभिन्न अर्थच्छटाओं को अभिव्यक्त करने की क्षमता की मनमौजी पैमाइश है : न यह पूरी है, न सर्वांगीण। यह एक दिङ्मात्र दिग्दर्शन है। इससे किसी अध्येता को हिन्दी की आंचलिक भाषाओं की शब्द-समृद्धि की वैज्ञानिक खोज की प्रेरणा मिले, किसी साहित्यकार को अपने अंचल से रस ग्रहण करके अपनी भाषा और पैनी बनाने के लिए उपालम्भ मिले, देहात के रहनेवाले पाठक को हिन्दी के भदेसी शब्दों के प्रयोग की सम्भावना से हार्दिक प्रसन्नता हो, मुझे बड़ी खुशी होगी।’’
Pandit Nehru Aur Anya Mahapurush
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

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Description:
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की यह पुस्तक पंडित जवाहरलाल नेहरू और तीन अन्य महापुरुषों—स्वामी विवेकानन्द, महर्षि रमण और महात्मा गांधी—के विषय में हमें विशेष जानकारी देती है।
राष्ट्रकवि दिनकर पंडित जवाहरलाल नेहरू के संस्मरण में लिखते हैं—‘‘कि क्या पंडित जवाहरलाल नेहरू तानाशाह थे?’’ दिनकर जी नेहरू जी के जीवन-दर्शन, गांधी और नेहरू के आपसी रिश्ते और भारतीय एकता के लिए पंडित जी के प्रयासों को हमारे सामने लाते हैं।
इस पुस्तक में दिनकर जी के तीन रेडियो-रूपकों को भी संगृहीत किया गया, जो क्रमशः स्वामी विवेकानन्द, महर्षि रमण और महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों के जीवन को आधार बनाकर लिखे गए हैं। इन रूपकों में न केवल उनके प्रेरक जीवन की झलकियाँ हैं, बल्कि उनमें इन महापुरुषों का जीवन-दर्शन भी समाहित है। ये रेडियो-रूपक जितने श्रवणीय हैं, उतने ही पठनीय भी।
नए रूप और आकार में यह पुस्तक न केवल सामान्य पाठक, बल्कि दिनकर-साहित्य के शोधकर्ताओं के लिए भी महत्त्वपूर्ण है।
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