Bharatiya Sahitya : Asha Aur Astha
Author:
Dr. ArsuPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 636
₹
795
Available
सांस्कृतिक और भाषाई एकता के उद्देश्य से सृजित एक विशिष्ट कृति। व्यापक भाषिक विविधता के बावजूद भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक चेतना मूलतः एक है। यह पुस्तक इस सार्वकालिक सत्य को नए ढंग से प्रमाणित करती है।</p>
<p>दो खंडों में विभाजित इस पुस्तक के पहले खंड ‘आशा’ में हिन्दी के उत्थान में अन्य भारतीय भाषाओं की भूमिका के साथ अन्य भाषाओं के साहित्य के माध्यम से उन प्रदेशों की भाषा, संस्कृति व इतिहास से परिचय कराया गया है और यह स्थापित किया गया है कि साहित्य का सन्देश एक ही होता है—मानवीय संस्कृति को जाग्रत कर मानव को संवेदना से परिपूर्ण बनाना।</p>
<p>इस खंड में उल्लिखित लेखकों तथा विश्व-शान्ति के सन्दर्भ में भारतीय साहित्य व दर्शन के विवेचन से परिचित कराने के साथ ही राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, तमिल के कवि सुब्रह्मण्य भारती और मलयालम के कवि वल्लत्तोल के काव्य और उनके विचारों से भी अवगत कराया गया है।</p>
<p>दूसरे खंड ‘आस्था’ में विभिन्न भाषाओं—असमिया, बांग्ला, डोगरी, अंग्रेज़ी, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मराठी, मणिपुरी, मलयालम, मैथिली, नेपाली, ओड़िया, पंजाबी, राजस्थानी, संस्कृत, सिन्धी, तमिल व उर्दू के शीर्षस्थ साहित्यकारों से भेंटवार्ताएँ दी गई हैं। इन भेंटवार्ताओं के माध्यम से हमें साहित्यकारों के व्यक्तित्व व कृतित्व से ही परिचय नहीं मिलता, बल्कि उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं तथा तत्कालीन समाज की राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक समस्याओं का भी पता चलता है।
ISBN: 9788183614146
Pages: 256
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: डॉ. गणपतिचन्द्र गुप्त के भारतीय एवं पाश्चात्य काव्य-सिद्धान्तों से सम्बन्धित मौलिक एवं विचारपूर्ण निबन्ध इस पुस्तक में संकलित हैं। पुस्तक को सर्वांगीण बनाने के लिए कुछ नए निबन्ध इसमें जोड़ दिए गए हैं। डॉ. गुप्त की पुस्तकें छात्रों और अध्यापकों में सर्वाधिक प्रचलित हैं और शैक्षिक जगत् में उन्हें प्रचुर सम्मान प्राप्त है। इसका स्पष्ट कारण उनकी भाषा-शैली और विषय पर गहरी पकड़ है। गम्भीर विषयों के मूल सिद्धान्तों की स्पष्ट समझ के अभाव में अभिव्यक्त उलझावपूर्ण और अस्पष्ट हो जाना सहज है। भारतीय और पाश्चात्य सिद्धान्तों की स्पष्ट समझ के लिए डॉ. गुप्त की प्रस्तुत पुस्तक बेजोड़ है, क्योंकि काव्य-सिद्धान्तों की मूल पुस्तकों के गहन अध्ययन-मनन के बाद लेखक ने उन्हें आत्मसात् कर इन निबन्धों की रचना की है। यही कारण है कि जिन युक्तियों का आश्रय लेखक ने ग्रहण किया है, वे उनकी अपनी हैं। निश्चय ही काव्य-सिद्धान्तों में रुचि रखनेवालों के लिए यह एक अन्यतम ग्रन्थ है।
Sarjana Path Ke Sahyatri
- Author Name:
Nirmal Verma
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Description:
निर्मल वर्मा ने जिस तरह कथाभाषा पर अपनी एक विशिष्ट छाप छोड़ी, उसी तरह रचना-चिन्तन और हिन्दी व अन्य भाषाओं के रचनाकारों पर केन्द्रित अपने लेखन में भी विश्लेषण और विवेचन का एक अलग मुहावरा गढ़ा। उन्होंने समय-समय पर अपने प्रिय लेखकों-कलाकारों पर लिखा। इन लेखों में उन्होंने ‘आलोचना की लगी-बँधी खूँटी से अपने को छुड़ाकर’ आत्मीय प्रतिक्रियाओं के प्रवाह में स्वयं को बहने दिया है। इसी आत्मीयता के चलते ये निबन्ध रचनात्मकता का एक अत्यन्त सकारात्मक और प्रेरक वातावरण रचते हैं।
भाषा के नैतिक और आध्यात्मिक आयामों को विकसित करती उनकी ये पारदर्शी गद्य रचनाएँ मूर्धन्य व्यक्तियों के आलोक और अँधेरे को जिस सजीवता के साथ प्रकट करती हैं वह दुर्लभ साधना और अनिवार्य जिज्ञासा से ही अर्जित की जा सकती है।
इस पुस्तक में देश के महत्त्वपूर्ण रचनाकारों—प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, हजारीप्रसाद द्विवेदी, अज्ञेय, रेणु, मुक्तिबोध, भीष्म साहनी, धर्मवीर भारती, मलयज और चित्रकारों-कलाकारों—हुसेन, रामकुमार, स्वामीनाथन पर तो आलेख हैं ही, बोर्ख़ेज़, नायपॉल, नाबोकोव, राब्ब ग्रिये और लैक्सनेस पर भी बेहद संजीदगी और तरल संवेदना से लैस रचनाएँ संकलित हैं।
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