Aalochana Ke Pratyay Itihas Aur Vimarsh
Author:
Kanhaiya SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
आलोचक किसी कृति के सौन्दर्य-विमर्श में उसके मर्म से लेकर उसके रूप-विन्यास, शब्द संयोजन, अलंकृति आदि तत्त्वों की तलाश में एक नई सृष्टि का सर्जना करता है। संस्कृत में एक उक्ति है :</p>
<p>पंडित या आलोचक ही काव्य के रस को जानता है और 'रस' में ही सौन्दर्य और लावण्य है। काव्य-रस या काव्य-सौन्दर्य का भोक्ता तो कोई भी सहृदय पाठक होता है पर उसका विशिष्ट भोक्ता और उस भोज्य को पचाकर उसके सौन्दर्य की वस्तु-व्यंजना से लेकर उसकी बारीक अन्तरंग परतों को उद्घाटित करने का काम आलोचक करता है। आलोचना में प्रचलित समाज-विमर्श, मनोविमर्श, दलित-विमर्श, नारी-विमर्श आदि सभी विमर्शों का केन्द्रीय तत्त्व सौन्दर्य-विमर्श ही है।</p>
<p>भारतीय कला-दृष्टि, रस-दृष्टि रही है। यह दृष्टि भाववादी दृष्टि ही नहीं, महाभाववादी दृष्टि है। यह महाभाव ही हमारी आलोचना के आर्ष चिन्तन से लेकर अद्यतन वैचारिकी का केन्द्र बिन्दु है। हमने प्रत्यक्ष गोचर से लेकर उसमें अन्तर्निहित सूक्ष्म चेतन सौन्दर्य का विशेष चिन्तन किया। उपनिषद में ‘सत्यधर्म’ के प्रसंग में कहा गया है कि बाह्य जगत सुन्दर तो है, पर उस सुन्दर स्वर्णपात्र की आभा के आवरण के भीतर सत्यधर्म का प्रभावमय सूर्य छिपा है।
ISBN: 9789389742749
Pages: 208
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई क्षेत्र के बारे में आम तौर पर भारत में कम जानकारी है। इस क्षेत्र में भारतीयों का अपेक्षाकृत प्रवास और संपर्क कम ही रहा है। यह पुस्तक इस क्षेत्र और यहाँ के देशों की विशिष्टताओं से पाठकों को परिचित कराती है। प्रारंभिक अध्यायों में इस क्षेत्र के राजनीतिक विकास-क्रम तथा आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों की जानकारी दी गई है। बाद के अध्यायों में भारत के साथ इन देशों के राजनीतिक, आर्थिक, वाणिज्यिक और सांस्कृतिक संबंधों का विवेचन किया गया है। तैंतीस देशों वाले इस क्षेत्र के देशों से मैत्री में भारत के लिए अनेक संभावनाएँ निहित हैं । ये देश विविध संसाधनों से समृद्ध हैं; इन देशों ने आकर्षक विकास-दर हासिल की है और इनकी सामाजिक नीतियों ने स्थिर सरकारों को आधार दिया है। इस पुस्तक से पाठकों को अनेक महत्त्वपूर्ण अंतर्निहित पक्षों की भी जानकारी मिलती है। लेखक ने इस क्षेत्र के देशों से संबंधों की चुनौतियों और संभावनाओं का आकलन करते हुए, अधिक प्रभावी तथा सार्थक संबंधों की दिशा दिखाई है।
Upanyas Aur Varchasva Ki Satta
- Author Name:
Virendra Yadav
- Book Type:

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Description:
प्रायः उपन्यास को मात्र साहित्यिक संरचना मानकर आस्वादपरक दृष्टि से मूल्यांकन का चलन रहा है। वीरेन्द्र यादव हिन्दी की इस आलोचनात्मक रूढ़ि को तोड़ते हुए उपन्यास विधा की नई सामर्थ्य को उजागर करते हैं। अन्तर्वस्तु के सघन पाठ द्वारा वे उपन्यास की उस ‘सबाल्टर्न’ (निम्नवर्गीय) भूमिका को उद्घाटित करते हैं, जो प्रभुत्वशाली विमर्श द्वारा अधिगृहीत कर ली जाती है।
वीरेन्द्र यादव मानते हैं कि उपन्यास साहित्यिक रचना के साथ-साथ सामाजिक निर्मिति भी है और उसकी जनतान्त्रिकता केवल रचाव की कला से नहीं आती, औपन्यासिक विमर्श की सामाजिक दृष्टि से भी निर्मित होती है। इसीलिए वे ‘गोदान’, ‘झूठा सच’, ‘आधा गाँव’, ‘राग दरबारी’, ‘आग का दरिया’ व ‘उदास नस्लें’ सरीखे कालजयी उपन्यासों का विश्लेषण करते हुए सबाल्टर्न इतिहास-दृष्टि की मदद से इन उपन्यासों में किसानों, दलितों, स्त्रियों और अन्य अधीनस्थ वर्गों की उपस्थिति-अनुपस्थिति और उनकी यातना, सामाजिक सजगता तथा संघर्षशीलता की पहचान का आख्यान खोजते हैं। साथ ही वे प्रभुत्वशाली वर्गों से अधीनस्थ वर्गों के अन्तर्विरोधों और द्वन्द्वों का आख्यान रचनेवाली कथादृष्टि की सामाजिक पक्षधरता की भी जाँच-परख करते हैं। यह एक प्रकार से उपन्यास की आलोचना के माध्यम से भारतीय समाज और साहित्य के राष्ट्रवादी विमर्श से बहिष्कृत अधीनस्थ वर्गों की पहचान को विकसित करने के लिए वैचारिक संघर्ष भी है। वीरेन्द्र यादव के आलोचनात्मक निबन्धों में आज के भारतीय समाज के ज्वलन्त प्रश्नों, सामाजिक द्वन्द्वों और वैचारिक टकराहटों की प्रतिध्वनियाँ भी सुनाई देती हैं। उनकी आलोचना दृष्टि की प्रखरता और विश्लेषण की नवीनता के कारण जानदार है और असरदार भी।
‘उपन्यास और वर्चस्व की सत्ता’ के आलोचनात्मक निबन्ध समसामयिक उपन्यास विमर्श में वैचारिक हस्तक्षेप सरीखे हैं। इस पुस्तक के अधिकांश लेख पर्याप्त रूप से चर्चित और प्रशंसित रहे हैं। भारतीय अंग्रेज़ी औपन्यासिक लेखन पर केन्द्रित ‘दि इंडियन इंग्लिश नॉवेल और भारतीय यथार्थ’ शीर्षक लेख तो अंग्रेज़ी बौद्धिकों के बीच चर्चित होकर अन्तरराष्ट्रीय बहसों का हिस्सा बना। वीरेन्द्र यादव के आलोचनात्मक निबन्धों की प्रतीक्षा सुधी बौद्धिकों के बीच लम्बे समय से रही है। विश्वास है, यह पुस्तक उनकी अपेक्षाओं की पूर्ति करने में सक्षम होगी।
Rag Darbari Aalochana Ki Phans
- Author Name:
Rekha Awasthi
- Book Type:

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Description:
‘राग दरबारी’ पर यह पहली आलोचना पुस्तक है। ‘राग दरबारी’ को लेकर हिन्दी समालोचना के क्षेत्र में जो तर्क-वितर्क और विवेचनात्मक वाग्युद्ध हुए हैं, उन्हें ऐतिहासिक क्रम से इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। श्रीलाल शुक्ल पर लिखे गए शोध ग्रन्थों में भी यह सामग्री उपलब्ध नहीं होती है। अत: इस पुस्तक में राग दरबारी से सम्बन्धित तमाम बहसों की जाँच-पड़ताल की गई है।
‘राग दरबारी’ के प्रकाशन के तुरन्त बाद नेमिचन्द्र जैन और श्रीपत राय ने जो समीक्षाएँ लिखी थीं, उनसे कृति को लेकर भयंकर विवाद छिड़ गया था। इस पुस्तक में उस दौर की समीक्षाओं के अतिरिक्त अब तक के अनेक आलोचकों और सृजनकर्मियों के उन आलेखों और टिप्पणियों का संचयन-संकलन भी किया गया है जो अभी तक किसी पुस्तक में संगृहीत नहीं हैं। कथा समालोचना के मौजूदा स्वरूप का वस्तुपरक आकलन करने की दृष्टि से यह पुस्तक सार्थक और महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करती है।
इस संचयन-संकलन के चार खंड हैं। पहला खंड समालोचना पर केन्द्रित है। दूसरा खंड लोकप्रियता और व्याप्ति से सम्बन्धित है जिसके अन्तर्गत रंगकर्मी, फ़िल्म निर्देशक और अनुवादक के संस्मरण समेत पाठकों की प्रतिक्रियाओं का दिग्दर्शन करानेवाले लेख भी सम्मिलित हैं। तीसरा खंड बकलमख़ुद श्रीलाल शुक्ल के ख़ुद के वक्तव्यों को समेटता है और चौथा खंड शख़्सियत उनके व्यक्तित्व से सम्बन्धित टिप्पणियों और संस्मरणों को प्रस्तुत करता है। इतनी भरी-पूरी सामग्री के संचयन के कारण यह पुस्तक ‘राग दरबारी’ का आलोचनात्मक दर्पण बन गई है।
Sahitya, Samaj Aur Jivan
- Author Name:
Ravinandan Singh
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Description:
‘साहित्य, समाज और जीवन’ रविनन्दन सिंह का दूसरा निबन्ध-संग्रह है। इसमें अधिकतर निबन्ध साहित्यिक हैं। लगभग एक दर्जन निबन्ध समाज के विविध पहलुओं तथा सामाजिक विसंगतियों पर केन्द्रित हैं। कुछ निबन्ध मनुष्य की जीवन शैली तथा जीवन-दर्शन से सम्बन्धित हैं।
रविनन्दन सिंह जब कोई विषय चुनते हैं तो उस विषय की गहन पड़ताल करते हैं एवं उस विषय की परतों को खोलकर रख देते हैं। वे विषय का विश्लेषण तथा मूल्यांकन बिना किसी आग्रह के, निरपेक्ष होकर करते हैं। उनके निबन्धों को पढ़ने से उस विषय की तस्वीर बिलकुल स्पष्ट हो जाती है। वे विषय को उलझाते नहीं बल्कि उलझे हुए विषय को भी सुलझाकर प्रस्तुत करते हैं। उनके निबन्धों की भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहपूर्ण है। उनके निबन्ध अत्यन्त सारगर्भित एवं बोधगम्य हैं। भाषा एवं संवेदना से समृद्ध इन निबन्धों से गुज़रना एक रोचक अनुभव की तरह है। स्नातक, स्नातकोत्तर के विद्यार्थियों एवं शोध-छात्रों के लिए ये निबन्ध अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होंगे।
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