Vishwa ki Mahan Krantiyan
Author:
Sadanand RaiPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Unavailable
"क्रांति का अर्थ उस अवस्था को समाप्त करके, जिसमें रहना ही असहनीय होता जा रहा हो, नई व्यवस्था की स्थापना करना था। अतः जहाँ-जहाँ भी विश्व में क्रांतियाँ हुईं, वहाँ देशकाल और स्थितियों के अनुसार ही इनका सूत्रपात हुआ।
दिन-प्रतिदिन बढ़ते साधनों ने क्रांति को नया रूप दे दिया था। हिंसक और अहिंसक दोनों ही रूपों ने इस क्रांति विचारधारा को प्रश्रय दिया और 17वीं शताब्दी के अंत में विश्व ने इस क्रांति से परिचय किया, जो आज 21वीं शताब्दी के घोर आधुनिक युग में भी अपनी आवश्यकता एवं प्रासंगिकता बनाए हुए हैं। विश्व का यह आधुनिक और विहंगम स्वरूप इन्हीं क्रांतियों की देन है। तानाशाहों, साम्राज्यवादियों, निरंकुश और अयोग्य शासकों के चंगुल से निकलकर जनता ने आधुनिकता की ओर कदम रखे तो इन्हीं क्रांतियों के कारण, जिनमें प्राणों की आहुति दी गई और शत्रुओं को सबक भी सिखाया गया।
इस पुस्तक में विश्व की उन महान् क्रांतियों का वर्णन किया गया है, जिन्होंने विश्व का भविष्य तय कर दिया; जैसे— औद्योगिक क्रांति : क्रांतियों का आधार, वैज्ञानिक क्रांति, इंग्लैंड की महान् क्रांति, फ्रांस की गौरवपूर्ण क्रांति, इटली की संघर्ष-क्रांति, भारत छोड़ो आंदोलन, जर्मनी की एकीकरण क्रांति, तिब्बत की धार्मिक क्रांति, जापान की तकनीकी क्रांति।"
ISBN: 9788193295601
Pages: 208
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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पूर्वमध्यकाल का इतिहास सम्पूर्ण भारतीय इतिहास का सर्वाधिक विवादास्पद, रुचिपूर्ण और अत्यधिक महत्त्वपूर्ण चरण है। अध्ययन की सुविधा के लिए 600 ई. और 1200 ई. के बीच के काल को परिपक्व पूर्वमध्यकाल कहते हैं। गहराई से देखने पर पता चलता है कि पूर्वमध्यकाल की प्रमुख विशेषताओं का जन्म गुप्तकाल में ही हो चुका था। इस काल को सामन्तवाद, नगरों का पतन और उत्थान, नवीन सामाजिक-व्यवस्था का काल, क्षेत्रीय भाषा और क्षेत्रीय धर्म का काल अथवा मन्दिरों का युग के नाम से भी जाना जा सकता है।
दक्षिण भारत में विशाल मन्दिरों का निर्माण इस काल में हुआ। देवदासियों की नवीन परम्परा विकसित हुई। भारतीय दर्शन में नवीन तत्त्व देखे जाने लगे। भक्ति, तंत्र-मंत्र (और जादू-टोना का महत्त्व बढ़ा। शंकराचार्य के दर्शन को नवीन शैली में लोकप्रियता प्राप्त हुई। क्षेत्रीय शासकों, क्षेत्रीय धर्म एवं क्षेत्रीय भाषा की संख्या बढ़ी। प्रशासनिक एवं धार्मिक केन्द्रों की संख्या बढ़ी और व्यापारिक नगरों की संख्या नगण्य रही। जातियों एवं उपजातियों की संख्या सौ से अधिक हो गई। छोटे-बड़े और काले-गोरे देवी-देवता पाए जाने लगे। जनसमुदाय की आर्थिक दशा संकटपूर्ण रही। क्षत्रिय के बदले राजपूत पाए जाने लगे। राजाओं के बीच हमेशा युद्ध का माहौल बना रहता था। इनकी आपसी अनेकता से विदेशी शक्तियों ने लाभ उठाया। सबसे पहले अरबों के आक्रमण हुए और उसके बाद गोरी और गज़नी के आक्रमणों ने भारत में मुस्लिम शासन की नींव डाल दी।
इन सभी तथ्यों पर इस पुस्तक में प्रकाश डाला गया है। गुप्तकाल के पतन के बाद से लेकर गोरी-गज़नी के आक्रमण और उनके प्रभाव तक की इसमें विवेचना की गई है।
केन्द्रीय प्रतियोगी परीक्षाओं, प्रान्तीय प्रतियोगी परीक्षाओं और दिल्ली तथा पटना विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत पुस्तक को तैयार किया गया है। विश्वास है, छात्रों के लिए यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी।
Rusi Sanskriti : Udbhav Aur Vinash
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Kamlesh
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‘‘कवि कमलेश हमारे समय के सबसे पढ़े-लिखे व्यक्ति थे, हालाँकि उन्होंने कभी विद्वता का कोई दावा नहीं किया। उनकी रुचि साहित्य के अलावा संस्कृति और विचार के अनेक अनुशासनों जैसे—दर्शन, मनोविज्ञान, नृतत्त्व आदि में थी। महान् रूसी कवियों और उनके माध्यम से रूसी संस्कृति की उद्भव-गाथा और उसके विनाश की शोक-कथा प्रस्तुत करनेवाली यह अनूठी पुस्तक है। इसमें कवियों का सिर्फ़ वैचारिक विश्लेषण भर नहीं है—कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी है। किसी विदेशी भाषा के इतने सारे महान् कवियों और उनके माध्यम से किसी देश की संस्कृति के अध्ययन का ऐसा कोई दूसरा उदाहरण हिन्दी में तो क्या शायद किसी अन्य भारतीय भाषा में भी न होगा। इस अद्वितीय पुस्तक को रज़ा पुस्तक माला के अन्तर्गत हम सहर्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
—अशोक वाजपेयी
Constitution Of India : Brief Introduction
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