Uttar Pradesh Ka Swatantrata Sangram : Shravasti
Author:
Pawan BakshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
श्रावस्ती कोसल का प्रमुख नगर था। इसे बुद्धकालीन भारत के छह महानगरों—चंपा, राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, कोशांबी और वाराणसी में से एक माना जाता था।</p>
<p>आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व यह क्षेत्र अत्यंत वनाच्छादित था जिसके चलते स्वतंत्रता आंदोलन में श्रावस्ती एक प्रमुख पड़ाव हुआ करता था और आंदोलनकारियों के लिए विशेष रूप से सुरक्षित माना जाता था। इस कारण और यहाँ के सामान्य जन की स्वातंत्र्य-चेतना के कारण आजादी के आंदोलन में इसकी महती भूमिका रही। 1857 में अंग्रेजों को बहराइच में कड़ा विरोध झेलना पड़ा। यहाँ के सभी छोटे ताल्लुकेदार खुलकर उनके विरुद्ध खड़े हो गए थे। इकौना रियासत का योगदान इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में दर्ज है। वीरांगना रानी ईश्वरी देवी का संघर्ष भी एक उल्लेखनीय घटना थी।</p>
<p>इस पुस्तक में स्वतंत्रता आंदोलन में श्रावस्ती जिले की भूमिका को तथ्यों के साथ स्पष्ट किया गया है। साथ ही यहाँ के भौगोलिक व सांस्कृतिक महत्त्व को भी रेखांकित किया गया है।
ISBN: 9789394902558
Pages: 152
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
समाज-विज्ञान के क्षेत्र में ऐसी किताबें कम ही हैं जो अपने भारी-भरकम विषय में प्रमुख स्थान बनाने के साथ ही अपने लेखक को स्थापित कर दें। यह एक ऐसी ही किताब है। पर इसके लिए तर्कों और विचारों की नवीनता और विलक्षणता के साथ लेखक का श्रम भी श्रेय का हक़दार है। हिन्दू-मुस्लिम दंगों सम्बन्धी काफ़ी विवरणों को छान डालने के बाद लेखक ने छह शहरों का सघन अध्ययन भी किया है—इसमें वर्षों का श्रम लगा है, अनेक सहयोगियों की मदद लेनी पड़ी है और सम्भवतः लाखों डॉलर ख़र्च हुए हैं।
लेकिन दंगों और नागरिक समाज की मुस्तैदी या ढील में एकदम स्पष्ट रिश्ता देखने-दिखाने वाली इस किताब ने इस सब श्रम-ख़र्च और बौद्धिक ऊर्जा के ख़र्च की सार्थकता साबित की है, लेखक ने ठोस प्रमाणों के आधार पर अभी तक प्रचलित जातीय दंगों सम्बन्धी उन सब सिद्धान्तों को ख़ारिज किया है जो अनेक प्रश्न अनुत्तरित ही छोड़ देते थे। यही कारण है कि भारतीय शहरों के अध्ययन पर आधारित इस पुस्तक की चर्चा दुनिया-भर में हुई है।
पर यह किताब सिर्फ़ अकादमिक जगत् की चर्चा-भर की चीज़ नहीं है। यह हर पाठक, इस विषय में दिलचस्पी रखनेवाले हर व्यक्ति के मन में कुछ सवाल उठाती है, विभिन्न क़िस्म के संगठनों से जुड़कर अपना कुछ वक़्त समाज को देने की प्रेरणा देती है, पार्टियों-मजदूर संघों, व्यापार संगठनों, पेशागत संगठनों वग़ैरह से सामाजिक चौकसी की माँग करती है। यह स्थापित करती है कि बड़े शहरों के उदय के साथ इस चौकसी के बिना दंगे होंगे ही और सामाजिक चौकसी ही दंगे रोकने का अचूक मंत्र है।
Panchatantra Ki Kahaniyan
- Author Name:
Shyamji Verma
- Book Type:

- Description: लोक-गाथाओं से उठाए गए दृष्टातों से भरपूर इस रोचक ग्रंथ का अध्ययन करके तीनों अशिक्षित और उद्दंड राजपुत्र ब्राह्मण की प्रतिज्ञा के अनुसार छह मास में से नीतिशस्त्र मे पारंगत हो गए।
Naxalwad Aur Samaj
- Author Name:
K. Satyanarayana
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक, नक्सलवाद और समाज पर लेखक के नक्सलियों और उनके परिवारों के भावपूर्ण अध्ययन का परिणाम है। यह अध्ययन एक पुलिस अधिकारी के रूप में उनके अनुभवों और बचपन की उनकी यादों से फलीभूत हुआ है। लेखक का जन्मस्थान नक्सलवाद के कुख्यात केंद्र के निकट हुआ; अत: बाल्यकाल से हुए अनुभव के आधार पर लिखी इस पुस्तक में उन्होंने नक्सलवाद और एक नक्सली के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डाला है। नक्सलवाद के विभिन्न पहलुओं को समझने में इसने काफी मदद की है। एक प्रकार से इसे नक्सलवाद एनाटॉमी कहा जा सकता है।
Poorv Madhyakalin Samaj
- Author Name:
Ratna
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक में पूर्वमध्यकालीन सामाजिक संरचना को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है, क्योंकि पूर्वमध्यकाल प्राचीन भारतीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण काल माना जाता है। इस काल के दौरान राजनीतिक मंच पर ही केवल उतार-चढाव नहीं आए, अपितु सामाजिक और आर्थिक धरातल पर भी अनेक परिवर्तन दृष्टिगत होते हैं। परिणामस्वरूप भारतीय सामाजिक संरचना नया रूप ग्रहण करती है। इसी कारण पूर्वमध्यकालीन सामाजिक आर्थिक धरातल पर निहित व्यावसायिक समुदायों का अर्थपूर्ण विवेचना करने का पूर्ण प्रयास किया गया है और समाजार्थिक घटक के रूप में मान्य कृषि, व्यापार, उद्योग तथा अन्य विविध व्यवसायों से सम्बन्धित व्यावसायिक समुदायों का गहराई के साथ अध्ययन करना ही हमारा मुख्य केन्द्र रहा है। साथ-ही-साथ पेशेवर समुदायों की सामाजिक आर्थिक स्थिति का निरूपण तत्कालीन अभिलेखीय एवं साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर किया है और उनकी विविध व्यावसायिक गतिविधियों का विश्लेषण करना हमारा मुख्य ध्येय रहा है। जैसाकि स्पष्ट है कि भारतीय सामाजिक आर्थिक जीवन में पेशेवर समुदायों के स्थान-निर्धारण बिना सामाजिक जीवन का चित्रण एकांगी रह जाएगा।
Madhyakalin Bharat Me Rajniti
- Author Name:
Heramb Chaturvedi
- Book Type:

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Description:
इस पुस्तक को लिखने की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई क्योंकि इतिहास और राजनीति शास्त्र के विद्यार्थी मात्र इतिहासक्रम के अध्ययन से ही संतुष्ट नहीं होते अपितु वे ऐतिहासिक प्रक्रिया के विश्लेषण को भी महत्व प्रदान करते हैं और यही विषय को समझने की उनकी दृष्टि को भी विकसित करती है। इसी प्रकार के अध्ययन से समाज की शक्तियों और राज्य की शक्तियों की परस्परता और अंतरक्रियाएं समझ आती हैं।
इस कृति में इस्लाम के अंतर्गत राज्य की अवधारणा की पृष्ठभूमि में मध्यकालीन भारत में राज्य की प्रकृति का विश्लेषण; दोनों विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों, यथा उलेमा (धर्माधिकारियों) तथा उमरा (अमीरों) की संरचना, विशेषताओं और समकालीन राज्य में उनकी भूमिका की व्याख्या की गई है अर्थात ऐतिहासिक घटनाक्रम के कारणों की पड़ताल पर विशेष जोर दिया गया है।
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