
Sarabjit Singh ki Ajeeb Dastan
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
148
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
296 mins
Book Description
सरबजीत के मामले में अभियोजन पक्ष के सबूत बहुत ही कमज़ोर हैं। उसका नाम एफ़आईआर में भी दर्ज नहीं था।</p> <p>—न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू<strong>; </strong>पूर्व अध्यक्ष<strong>, </strong>प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया<strong>, </strong>भारत के उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और फ्री सरबजीत कमेटी के अध्यक्ष</p> <p><strong> </strong></p> <p>सीमा के दोनों ओर इस तरह के कई मामले हैं। इन मामलों का पुनर्निरीक्षण होना चाहिए और अविलम्ब कैदियों की अदला-बदली होनी चाहिए। भारत और पाकिस्तान<strong>, </strong>दोनों को ही इस तरह के कैदियों की पहचान करके उन्हें जेनेवा कन्वेंशन के प्रावधानों के आधार पर छोड़ना चाहिए।</p> <p>—कमल एम. मोरारका<strong>; </strong>पूर्व केन्द्रीय मंत्री<strong>, </strong>समाजसेवी एवं फ्री सरबजीत कमेटी के सदस्य</p> <p><strong> </strong></p> <p>दोनों देशों की सरकारें एक दूसरे के नागरिकों के साथ बन्धकों जैसा व्यवहार करती हैं<strong>, </strong>यद्यपि लोग अच्छे पड़ोसियों की तरह रहने की कामना करते हैं। लोगों को सरकारों पर दबाव बनाने के लिए आगे आना चाहिए<strong>, </strong>ताकि भारत और पाकिस्तान में कोई दूसरा सरबजीत न हो।</p> <p>संतोष भारतीय<strong>; </strong>प्रधान सम्पादक<strong>, </strong>‘चौथी दुनिया’<strong>, </strong>साप्ताहिक अख़बार</p> <p><strong> </strong></p> <p>सरबजीत के केस की निष्पक्ष सुनवाई नहीं हुई। यह विडम्बना है। अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों की विचित्रता और दोषपूर्ण न्याय-प्रणाली का आपसी मेल इस व्यक्ति के दुर्भाग्य का कारण बना।</p> <p>—ज़ुबैदा मुस्तफ़ा<strong>; </strong>पॉपुलेशन इंस्टीट्यूट<strong>, </strong>वाशिंगटन<strong>, </strong>अमेरिका द्वारा दिए जानेवाले <strong>‘</strong>ग्लोबल मीडिया अवार्ड फ़ॉर एक्सीलेंस<strong>’</strong> 1986 व 2004 की विजेता