Narendra Modi Ke Panch Prana
Author:
Himanshu Kumar C.A.Publisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
15 अगस्त, 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को विकास की चतुर्दिक ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए देशवासियों के बीच ‘पाँच प्रण’ का बिगुल फूँका।
ये पाँच प्रण हैं—बड़े संकल्प के साथ आगे बढऩा है और वह बड़ा संकल्प एक ‘विकसित भारत’ का है।
दूसरा प्रण है, हमारे अस्तित्व के किसी भी हिस्से में, हमारे मन या आदतों के किसी कोने में ‘गुलामी का कोई अंश नहीं होना चाहिए।’
तीसरा प्रण है, हमें अपनी ‘विरासत’ पर गर्व अनुभव करना चाहिए, क्योंकि यह वही विरासत है, जिसने भारत को अतीत में स्वर्णिम काल दिया था।
चौथा प्रण है—‘एकता और एकजुटता’। 135 करोड़ देशवासियों के बीच जब सद्भाव और सौहार्द होता है तो एकता उसका सबसे मजबूत गुण बन जाती है।
पाँचवाँ प्रण ‘नागरिकों का कर्तव्य’ है, जिससे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री भी विमुख नहीं हो सकते, क्योंकि वे भी जिम्मेदार नागरिक हैं और राष्ट्र के प्रति उनका कर्तव्य है। यदि हम अगले 25 वर्षों के लिए अपने सपनों को साकार करना चाहते हैं तो यह गुण महत्त्वपूर्ण जीवन-शक्ति बनने जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इन्हीं पाँच प्रणों को विस्तार देती एक रोचक, प्रेरक और संग्रहणीय पुस्तक। इसके अध्ययन से हम भारतवर्ष के अमृतकाल में यशस्विता प्राप्ïत कर पाएँगे और पुन: विश्वगुरु बनकर पूरे विश्व का मार्गदर्शन कर सकेंगे।
ISBN: 9789395386661
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: 29 मार्च, 2015 को, 11 अशोक रोड स्थित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पुराने कार्यालय में एक डिजिटल काउंटर आगे बढ़ता जा रहा था। पार्टी कार्यकर्ता, पदाधिकारी, यहाँ तक कि स्टाफ की नजरें भी डिजिटल स्क्रीन पर जमी थीं। स्क्रीन पर पार्टी की सदस्यता लेनेवालों की कुल संख्या दिख रही थी, जिन्हें पार्टी के नए ‘सदस्यता अभियान’ से जोड़ा जा रहा था। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, अमित शाह उस दिन कार्यालय में ही थे। बालसुलभ उत्सुकता के साथ उनकी भी नजरें डिजिटल काउंटर पर ही गड़ी थीं। काउंटर जैसे ही अपने लक्ष्य पर पहुँचा, पूरा कार्यालय खुशी से झूम उठा। 8.8 करोड़ सदस्यों तक पहुँचते ही इसने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को पीछे छोड़ दिया था। इस महत्त्वाकांक्षी सदस्यता अभियान के पीछे अमित शाह की ही सोच थी। यह कैसे संभव हुआ? क्या यह महज आँकड़े जुटाने का अभियान था, जिसने भाजपा के भाग्य को और बलवान बनाया, या इसके पीछे ऐसी सोच थी, जिसका समय आ चुका था? 1984 में लोकसभा में महज दो सीटों वाली पार्टी का विपक्ष को इस प्रकार बुरी तरह परास्त करना और इतना भीमकाय रूप लेना क्या मात्र मोदी-शाह की जोड़ी का कमाल है या इसके कारण हिंदुत्व आंदोलन की उस जटिलता की गहराई में छिपे हैं, जिसे लेकर काफी गलतफहमी है? इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए शांतनु गुप्ता भारत के दक्षिणपंथी आंदोलनों के इतिहास, उनकी वैचारिक उत्पत्ति से राष्ट्रवादी विचारों के विकास तक जाते हैं, और भाजपा पर एक समग्र अध्ययन को लेकर आते हैं, जो मात्र एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि एक वैचारिक संगठन है, जो इस देश के राष्ट्रवादी आंदोलन को इस प्रकार परिभाषित करता है, जैसा पहले कभी नहीं किया गया था।
Hind Swaraj : Nav Sabhyata Vimarsh
- Author Name:
Virendra Kumar Baranwal
- Book Type:

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Description:
गांधी के ‘हिन्द स्वराज’ का प्रखर उपनिवेश विरोधी तेवर सौ साल बाद आज और भी प्रासंगिक हो उठा है। नव उपनिवेशवाद की विकट चुनौतियों से जूझने के संकल्प को लगातार दृढ़तर करती ऐसी दूसरी कृति दूर–दूर नज़र नहीं आती। उसकी शती पर हुए विपुल लेखन के बीच उस पर यह किताब थोड़ा अलग लगेगी। इसकी मुख्य वजह गांधी के बीज–विचारों को अपेक्षाकृत व्यापकतर परिप्रेक्ष्य में समझने की इसकी विशद–समावेशी और संश्लिष्ट दृष्टि है।
इसमें गांधी के सोच और कर्म के मूल में सक्रिय विचारकों और इतिहास नायकों—मैज़िनी, टॉलस्टॉय, रस्किन, एमर्सन, थोरो, ब्लॉवत्स्की, ह्यूम, वेडेनबर्न, नौरोजी, रानाडे, आर.सी. दत्त, मैडम कामा, श्याम जी कृष्ण वर्मा, प्राणजीवन दास मेहता और गोखले आदि के अद्भुत जीवन और चिन्तन की संक्षिप्त पर दिलचस्प बानगी तो है ही, साथ ही गांधीमार्गी मार्टिन लूथर किंग जू., नेल्सन मंडेला, क्वामेन्क्रूमा, केनेथ क्वांडा, जूलियस न्येरेरे, डेसमंड टूटू और सेज़ार शावेज़ आदि के विलक्षण अहिंसक संघर्ष की प्रेरक झलक भी।
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की भ्रष्ट सरकारों के साथ निर्लज्ज दुरभिसन्धि को उजागर कर उनके पर्यावरण और मानवद्रोही चरित्र के विरुद्ध गांधी की परम्परा में संघर्षरत और शहीद नाइजीरिया के अदम्य केन सारो वीवा और उनके साथियों के मार्मिक प्रसंग इसमें गहराई से उद्वेलित करते हैं। आधुनिक सभ्यता की जड़ें मशीन और उससे प्रेरित अन्धाधुन्ध औद्योगीकरण में हैं। उनके प्रबल प्रतिरोध का गांधी का जीवट जगज़ाहिर है। अकारण गांधी उत्तर–आधुनिकता के प्रस्थान–बिन्दु नहीं माने
जाते।पुस्तक सोवियत रूस की कम्युनिस्ट तानाशाही के ख़िलाफ़ हंगरी, चेकोस्लोवाकिया और पोलैंड के आत्मवान राज नेताओं इमरे नागी, वैक्लाव हैवेल और लेस वालेश के अहिंसक प्रतिरोध की गौरव–झाँकी के साथ गांधी की सोच के वैश्विक और उत्तर–आधुनिक आयाम को बख़ूबी उद्घाटित करती है। ‘हिन्द स्वराज’ का गुजराती मूल इस पुस्तक के ज़रिए पहली बार देवनागरी में आया है। कई अनुशासनों से रस ग्रहण करता ‘हिन्द स्वराज’ पर इस अनूठे विमर्श का प्रांजल–ललित गद्य इसे बेहद पठनीय बनाता है।
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