The Gandhian Statesman of Bihar Nitish Kumar
Author:
Shambhavi Choudhary, Ashok ChoudharyPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
EnglishCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
"In the eyes of those who had lost all hopes in Bihar, Nitish Kumar has acquired the status of a miracle man. After all, how did he work for the revival of the state? Nitish Kumar is not a professional manager, he is a politician. When he took over as the Chief Minister of Bihar in November 2005, he frequently reminded the officials that the performance of the government was at stake in his ministry and not in the bureaucracy. If the government succeeds, then all the credit will be given his ministry. If it fails, his ministry will have to own the responsibility. Bureaucrats would not lose their jobs, but he (the Chief Minister) will have to go.
Inspite of all this, Nitish Kumar earned a permanent place in the hearts of the people by working towards solving the issues related to the basic needs of the people and he emerged as the pioneer of social revolution. This process of improvement continues unabated.
A readable and collectable saga that introduces you to the untold, inspiring, interesting, and adventurous campaigns of the social revolution of Nitish Kumar."
ISBN: 9789355623324
Pages: 164
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Gandhi : Charkha Se Swaraj
- Author Name:
Suman Jain
- Book Type:

-
Description:
प्रस्तुत कृति वर्तमान सन्दर्भ में गाँधी विचार समझने का प्रयास है, गाँधी साहित्य विचार का अध्ययन, प्रश्न, जिज्ञासाएँ इस कृति के लेखन का आधार हैं।
महात्मा गाँधी वर्तमान भारत के सांस्कृतिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक आन्दोलन के लिए प्रासंगिक हैं। इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर चुका भारत साधन सम्पन्न विकसित राष्ट्र, आर्थिक साम्राज्य विस्तार की भावना से भूमंडलीकरण, उदारीकरण एवं वैश्वीकरण जैसी नीतियों के सहारे विकासशील राष्ट्रों के प्रचुर संसाधनों पर नियंत्रण करने में लगभग सफल है। पूँजीवादी आर्थिक अर्थव्यवस्था को मानवता के ख़िलाफ़ माननेवाले गाँधी जी ने देशी पूँजीवादी को उससे भी घातक बताया।
गाँधी जी चाहते थे कि धर्म की शक्ति विघटनकारी होने के बजाय मैत्रीपूर्ण हो। सभी धर्मवाले एक-दूसरे के सम्पर्क से अपने को बेहतर इन्सान बनाने की कोशिश करें तो हमारा यह संसार मनुष्य के रहने के लिए अधिक सुन्दर स्थान बनने के साथ ही ईश्वर का सन्धि बन जाएगा।
Uttar Pradesh Ka Swatantrata Sangram : Balrampur
- Author Name:
Pawan Bakshi
- Book Type:

-
Description:
सन् सत्तावन के स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी करनेवाली रानी तुलसीपुर का उल्लेख कहीं-कहीं ऐश्वर्य राजेश्वरी देवी के रूप में भी मिलता है और ईश्वरी कुमारी के रूप में भी। इस पुस्तक में उनके और अन्य स्वतंत्रता-सेनानियों के संघर्ष को रेखांकित किया गया है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपने-अपने समय पर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले ऐसे अनेक सेनानी हैं जिनके बारे में आज बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है। रानी तुलसीपुर भी उनमें से एक हैं। उनके बारे में अभी तक इतना ही ज्ञात था कि विद्रोह के दौरान वे बेगम हजरत महल के साथ नेपाल चली गई थीं। यह पुस्तक उनकी पूरी वीरगाथा को सामने लाती है जिसके लिए लेखक ने लिखित इतिहास के अलावा सैकड़ों गाँवों में घूम-घूमकर बुजुर्गों से कहानियाँ भी सुनीं और फिर वास्तविक तथ्यों के आधार पर यह पुस्तक लिखी।
रानी तुलसीपुर के साथ-साथ इसमें स्वतंत्रता आंदोलन में बलरामपुर जिले की भूमिका भी स्पष्ट होती है।
Bharat-Nirman Mein Bharatiya Manishiyon Ki Prerak Bhoomika
- Author Name:
Dr. Saravan Singh Baghel "Shravan"
- Book Type:

- Description: भारत के महापुरुषों ने देश में ही नहीं, संपूर्ण विश्व में अपने ज्ञान, साहस, संयम, वीरता और धीरता का ध्वज लहराया है। राष्ट्र-निर्माण में भारतीय मनीषियों द्वारा समाज को दिया गया विचार-दर्शन उसकी चिरस्थायी संपत्ति है। उनके विचारों को समाज के हित में जीवित रखना हमारा परम कर्तव्य है। ये दिव्य महापुरुष ईश्वर की प्रेरणा से राष्ट्र-चिंतन के विचार की धुन में भारत माता की सेवा के लिए निकल पड़ते हैं और उसके प्रचार में मस्त होकर अपने समाज और राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर अपने विचारों को प्रतिपादित करते हैं। वह स्वयं को कठोर बनाकर समाज के लिए लचीला रहकर समाज के लिए आदर्श और पथ-प्रदर्शक का कार्य करते हैं। उन्हें हम योद्धा संन्यासी भी कहते हैं। स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, गोपाल कृष्ण गोखले, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, श्रीगुरुजी गोलवलकर, स्वातंत्र्यवीर सावरकर जैसी विभूतियों ने अपना सर्वस्व राष्ट्र के लिए न्योछावर कर भारत के सर्वोत्कर्ष के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया। उन्हीं के पुण्य-प्रताप से भारत का सामाजिक-सांस्कृतिक पुनरुत्थान और नवोत्थान हुआ। भारत के इन्हीं महापुरुषों के सामाजिक और राजनीतिक विचारों को इस पुस्तक में प्रकाशित किया गया है। अत्यंत प्रेरणाप्रद पुस्तक, जो हर भारतीय को अपने स्वर्णिम अतीत का गौरवबोध कराएगी और उनमें राष्ट्रीय भाव जाग्रत् करेगी।
Dekho Hamri Kashi
- Author Name:
Hemant Sharma
- Book Type:

- Description: काशी ज्ञान की शलाका है और बनारस औघड़ों का ठहाका है। काशी रहस्यों की गहराई है, बनारस किस्सों की ठंडाई है। काशी दिव्य है, बनारस भव्य है। काशी प्रणम्य है, बनारस रम्य है | काशी मुक्ति है, विरक्ति है; लेकिन बनारस हेमंतजी की परम आसक्ति है। यदि काशी में बनारस की तलाश है तो “देखो हमरी काशी ' की उँगली पकड़िए'''रस-ही- रस। गद्य में पद्य का रस, राग और लय का आनंद इस पुस्तक की हर कथा की प्रत्येक पंक्ति में है। इन कथाओं में तथ्य, तर्क और भाव-प्रवाह भरपूर है। जैसा रस “बैताल पचीसी' की कथाओं में है कि उन्हें कोई सामान्य पाठक भी पढ़े तो उसका मनोरंजन होगा। कोई समझदार व्यक्ति पढ़े तो उसे जहाँ ज्ञान प्राप्त होगा, वहीं उसे जीवन जीने का मार्ग भी मिल सकता है। यही बात हेमंतजी की इन कथाओं में है । इसमें ऐसे पात्र हैं, जो हेमंतजी के या हमारे-आपके अपने रोजमर्रा के जीवन के ताने-बाने में गुँथे हुए हैं । वे इतने अभिन्न हैं कि उन्हें अलग-अलग देखना संभव नहीं हो पाता । यह पुस्तक संस्मरण विधा में एक नवोन्मेष है। यह संस्मरण काशी की संस्कृति और बनारसी जीवन का रंगमंच प्रतीत होता है। इसमें वर्णित व्यक्तियों के जरिए काशी की संस्कृति, परंपरा और जीवनधारा की खोज की गई है। जो सदियों से सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के अपरिहार्य अंग रहे हैं । ऐसे लोगों को केंद्र में रखकर कथा बुनी गई है । इस पुस्तक के पात्र चाहे जो हों, वे सामाजिक जीवन में साधारण भले माने जाते हों, पर कथा में वे असाधारण हैं ।
Jungle Ki Kahaniyan
- Author Name:
Neelkanth Kundan
- Book Type:

- Description: "जंगल और जंगल के अनोखे जीव-जंतु कहानियाँ में आज भी बाल पाठकों की पहली पसंद होते हैं। शायद यही कारण रहा है कि ‘पंचतंत्र’ एवं ‘जातक कथाएँ’ जैसे ग्रंथ आज भी लोकप्रिय है। प्रस्तुत पुस्तक में बाल पाठकों की इसी रुचि को ध्यान में रखकर ‘जंगल’ और जंगल में रहनेवाले अनेक अद्भुत एवं विचित्र जीवों की कहानियों को संग्रहीत किया गया है। ये कहानियाँ मनोरंजक और रोचकता के साथ-साथ बच्चों को नैतिक ज्ञान, संस्कार, धर्म, प्रेम और त्याग का पाठ भी पढाएँगी। प्रस्तुत पुस्तक के रोचक एवं सरल बनाने हेतु सरल भाषा एवं सुंदर चित्रों का प्रयोग किया गया है। अतः कहना अनुचित नहीं होगा कि पुस्तक आयु वर्ग के लिए उपयोगी होगी। "
British Samrajyavad ke Sanskritik Paksha Aur 1857
- Author Name:
Vandita Verma
- Book Type:

-
Description:
1857 के डेढ़ सौ से ज़्यादा वर्ष बीत जाने के बाद आज इतिहास के इस पड़ाव को सही सन्दर्भों में स्थापित किया जाना नितान्त आवश्यक है।
गम्भीरता से जाँचा-परखा जाए तो यह पड़ाव मात्र एक रोमांचकारी अनुभूति देनेवाला न होकर हिन्दुस्तान के इतिहास की तमाम ऐसी प्रवृत्तियों का संवर्द्धन करनेवाला और उनका उद्गम स्रोत भी दिखाई देता है जिनका नाता उस उत्तर-औपनिवेशिकता से भी बनता दिखता है जिसकी कल्पना बीसवीं शताब्दी के मध्य में आकर ही विश्व के विचारकों द्वारा की जा सकी।
सांस्कृतिक साम्राज्यवाद यदि उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही पश्चिमी विश्व की एक सुविचारित विचारधारा का स्वरूप ग्रहण कर चुका था तो उपनिवेशवाद के प्रारम्भिक स्वरूप का गवाह रहा हिन्दुस्तान, और वहाँ सांस्कृतिक दिशा में प्रवृत्त साम्राज्यवादी नीतियों की प्रतिक्रियाएँ भी उसी स्तर के प्रतिरोध पैदा करने में पूर्ण सक्षम थीं।
भारत में आनेवाले आधुनिक प्रभाव यहाँ की ज़मीन के लिए सहज तो थे ही नहीं, बल्कि कई अर्थों में बिलकुल भिन्न भी थे। फिर ये विचार पश्चिमी आधुनिकता का डंका पीटनेवालों और हर अन्य सभ्यता व संस्कृति को हेय दृष्टि से देखनेवाले पश्चिम के ईसाई विश्व द्वारा लाए जा रहे थे। किन्तु इन सबके साथ सबसे महत्त्वपूर्ण यह था कि ये उन औपनिवेशिक हुक्मरानों द्वारा लाए जा रहे थे जो इसे ज़बर्दस्ती लागू करने की मंशा और क्षमता दोनों ही रखते थे। यह परिदृश्य भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को एक तरफ़ अन्तर्द्वन्द्वों में जकड़ता गया, साथ-साथ उसके इन दंभी हुक्मरानों को अनायास एक अदृश्य, अप्रत्याशित संकट की ओर भी खींचता चला गया।
गहराइयों तक पहुँचकर ही हम वे सारी सम्भावनाएँ तलाश सकते हैं जिन्होंने 1857 के इस पड़ाव को निर्मित किया। एक ऐसा पड़ाव जो युद्ध के रूप में सामने आया, और जिसका नायक एक सिपाही बना। वह सिपाही जो हिन्दुस्तान के आम आदमी, किसान और उच्च जाति, सबका प्रतिनिधि था और अंग्रेज़ सरकार के कार्यकलापों का साक्षी भी। इस सिपाही के द्वारा किए गए विद्रोह के अर्थ निश्चित रूप से गम्भीर थे।
अपने तमाम ऐतिहासिक पड़ावों से गुज़रती एक ज़रूरी और महत्त्वपूर्ण पुस्तक है ‘ब्रिटिश साम्राज्यवाद के सांस्कृतिक पक्ष और 1857’।
Uttar Pradesh Ka Swatantrata Sangram : Gonda
- Author Name:
Nisha Gahlot
- Book Type:

-
Description:
भारत की स्वतंत्रता के लिए जनपद गोण्डा के रियासतदारों ने जिस वीरता और समर्पण के साथ अंग्रेजों का मुकाबला किया वह जितना श्लाघनीय है, उतना ही प्रणम्य भी। राष्ट्रीय आंदोलन के हर चरण में इस क्षेत्र की सक्रियता अबाधित रही है। इनमें भी गोंडा नरेश देवी बख्श सिंह की भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस पुस्तक में जिले का वह इतिहास समेटा गया है जिसके केंद्र में देश का स्वतंत्रता संघर्ष है।
ज्ञात हो कि जिला गोंडा की स्वातंत्र्य-चेतना का इतिहास प्राचीन काल तक जाता है। यही नहीं संस्कृति के संदर्भ में भी इसका स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अयोध्या के इक्ष्वाकुवंशीय चक्रवर्ती राजाओं की छत्रच्छाया में यह पावन भूमि आश्रम-संस्कृति का केंद्र बनी और कितनी ही घटनाओं की साक्षी भी। राजा दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ, दशरथ द्वारा मात-पितृभक्त श्रवण कुमार का वध, च्यवन, पाराशर, शौनक और जमदग्नि ऋषि की आश्रम-स्थली से लेकर यह भूमि बुद्ध के संचरण और विश्राम तथा अमर रचनाकार तुलसी के जन्म की साक्षी भी रही।
यह पुस्तक जिला गोंडा की इसी ऐतिहासिकता को समर्पित है।
Swatantrata Sangram Mein Jharkhand Ke Acharchit Nayak
- Author Name:
Vivek aryan
- Book Type:

- Description: ‘स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड के अचर्चित नायक’ इतिहास के एक ओझल लेकिन अपरिहार्य पक्ष को सामने लाता है। आजादी की लड़ाई में झारखंड के आदिवासियों ने भी बढ़-चढ़कर शिरकत की थी। औपनिवेशिक पराधीनता के खिलाफ संघर्ष की शुरूआत और अगुआई करने से लेकर बलिदान देने तक, वे कभी पीछे नहीं रहे। लेकिन बिरसा मुंडा और सिदो-कानू जैसे कुछेक नायकों को छोड़ दें तो उनमें से ज्यादातर सेनानियों और शहीदों के बारे में लोग कुछ नहीं जानते। उन्हें इतिहास की मुख्यधारा में कभी जगह नहीं दी गई। बेशक जन-मन के किस्से-कहानियों-गीतों में उनकी स्मृतियाँ बची रहीं लेकिन वह जन-मन प्रायः उनके अपने वंशजों, समुदाय और क्षेत्र तक सीमित था। स्पष्टतः उन पुरखा नायकों को अपने पन्नों पर यथोचित जगह दिए बिना हमारा इतिहास मुकम्मल नहीं हो सकता था। इस सन्दर्भ में यह पुस्तक विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें झारखंड के कुछेक आदिवासी शहीद स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनगाथा किंचित पहली बार व्यवस्थित रूप से प्रकाशित हुई है। इन शहीदों-सेनानियों में शामिल हैं—हाथीराम मुंडा, हाड़ी मुंडा, होपन मांझी, बैरू मांझी, अर्जुन मांझी, रूपु मांझी, चम्पाइ मांझी, शाम परगना, भाको मुर्मू, भुगलू मुर्मू और जीतराम बेदिया। इनके साथ ही इस शोधपरक पुस्तक में अन्य कई अज्ञात-अल्पज्ञात शहीदों और स्वतन्त्रता सेनानियों का भी उल्लेख किया गया है। एक अध्याय बिरसा मुंडा के आन्दोलन में शामिल महिलाओं पर केन्द्रित है जिसमें इतिहास की एक दिलचस्प विडम्बना नजर आती है, जब कई महिला स्वतंत्रता सेनानियों का जिक्र हम उनके पतियों के हवाले से पाते हैं। दरअसल कालक्रम में उन महिला सेनानियों का नाम खो चुका है। संक्षेप में, यह पुस्तक इतिहास की कई बन्द खिड़कियों को खोलती है और स्वतंत्रता संघर्ष की उस महान परम्परा और विरासत से परिचित कराती है जो अब तक अँधेरे में पड़ी हुई थी।
Corona Kaal
- Author Name:
Akash Mathur
- Book Type:

- Description: This book has no description
DHYEYA YATRA (SET OF 2 VOL.)-(PB)
- Author Name:
Ed. M. Kant +2
- Book Type:

- Description: This book has no description
Mahashakti Bharat
- Author Name:
Vedpratap Vaidik
- Book Type:

-
Description:
इस ग्रन्थ के निबन्धों और हमारी वर्तमान विदेश नीति में एक तरह से आँख–मिचौनी चलती रहती है। कभी विदेश नीति आगे होती है और निबन्ध पीछे और कभी निबन्ध आगे होते हैं और विदेश नीति पीछे। जब निबन्ध पीछे–पीछे चलता है तो वह हर विदेश नीति से सम्बन्धित पहल की चीर–फाड़ करता है, कार्य–कारण में उतरता है, जड़ों तक पहुँचता है और दूध को दूध और पानी को पानी कहता है। ताँगे में जुते घोड़े को वह अगर पुचकारता है तो कभी–कभी उस पर चाबुक भी बरसाता है। इसके अलावा यह भी बताता है कि सरकार ने किसी ख़ास मुद्दे पर जो पहल की है, उसे वह बेतहर ढंग से कैसे उठा सकती थी। जब निबन्ध आगे–आगे चलता है तो उसकी कोशिश होती है कि विदेश नीति को वह अपने पीछे खींचता चले।
भारत सरकार की पाकिस्तान–नीति की विचित्रताएँ और वक्रताएँ इन निबन्धों में जमकर अनावृत हुई हैं। लाहौर का आकाश और आगरा की खाई इस लेखक को जैसे पहले से दिखाई पड़ रही थी, अगर भारत सरकार को भी दिखाई पड़ जाती तो जिस निराशा के दौर में वह बाद में फँसी, वह नहीं फँसती। अन्य पड़ोसी देशों और महाशक्तियों के साथ भारत के सम्बन्धों के अन्त:सूत्रों को खोजने और उन्हें नए आयाम देने का प्रयत्न भी इन निबन्धों में हुआ है।
इस ग्रन्थ के अधिकतर निबन्ध तात्कालिक प्रतिक्रिया के रूप में हैं लेकिन हर तत्काल की जड़ें कई कालों तक फैली हुई होती हैं। व्यक्ति के अपने, अन्य व्यक्तियों के, राष्ट्रों के, संस्कृतियों के कालों तक। कालों के विशेष अनुभवों तक। प्रत्येक विश्लेषण में, वह कितना ही तात्कालिक हो, इन सब अनुभवों का निकष होता है। और सबसे बड़ी बात यह कि अपने मस्तिष्क में अगर कोई चिन्तन का ढाँचा हो, चिन्तन–प्रणाली हो तो अलग–अलग समय पर पिरोए गए अलग–अलग आकार–प्रकार के मोती भी अपने–आप सुघड़ माला का रूप धारण करते चले जाते हैं। वाद्य–यंत्रों की विभिन्नता के बावजूद जैसे आर्केस्ट्रा का संगीत समवेत और समरस होता है, वैसे ही विभिन्न विषयों और विभिन्न तिथियों पर लिखे गए ये निबन्ध पाठकों को विदेश नीति चिन्तन की एक प्रणाली के अनुशासन में बँधे हुए लगेंगे।
Yuva Bharat Ki Nayi Pahachaan
- Author Name:
N. Raghuraman
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Uttar Pradesh Ka Swatantrata Sangram : Sant Kabir Nagar
- Author Name:
Ajay K. Pandey
- Book Type:

- Description: संत कबीर नगर की भौगोलिक व सांस्कृतिक सीमा के अंतर्गत प्राचीनकाल से लेकर मध्यकाल और विशेष रूप से स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान ऐतिहासिक महत्त्व की अनेक घटनाएँ हुई हैं जिनका विवरण इस पुस्तक में दिया गया है। 1857 से लेकर 1947 तक इस क्षेत्र ने देश की आजादी के लिए लड़ी जा रही लड़ाई में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। इसके अलावा देश की सांस्कृतिक अस्मिता के लिहाज से भी इस जनपद का विशेष स्थान है। इस क्षेत्र में शृंगार के कवि रंग नारायण पाल 'रंगपाल' और रामदेव सिंह 'कलाधर' जैसी साहित्यिक विभूतियाँ भी रही हैं जिनकी विस्तृत जानकारी इस पुस्तक में दी गई है। इसके अलावा यहाँ के औद्योगिक तथा वाणिज्यिक परिदृश्य को भी इस अध्ययन में शामिल किया गया है ताकि स्वतंत्रता आंदोलन की गतिविधियों का संपूर्ण परिप्रेक्ष्य स्पष्ट हो सके। प्राचीन मंदिर और उनसे जुड़ी जनश्रुतियाँ भी इस परिदृश्य का अभिन्न अंग हैं।
Meri Jhansi : Ak Parichayatmak Vritt
- Author Name:
Surendra Dubey
- Book Type:

- Description: कोई इतिहास ग्रन्थ नहीं है, किन्तु इसे पढ़कर बुन्देलखण्ड, विशेषकर झाँसी को जाना जा सकता है। झाँसी के इतिहास, साहित्य, संस्कृति, कला, उद्योग-धंधे, समाज, अर्थव्यवस्था आदि के अनेक पहलू ऐसे हैं, जो किसी लिखित दस्तावेज़ में उपलब्ध नहीं हैं, लोकमन में हैं। उन्हें समेटकर संकलित करना ही हमारा लक्ष्य रहा है जिसकी कोशिश हमने की है। लोकमन ने इतिहास से इतर अपने लिए प्रेरक सांस्कृतिक तत्त्वों—साहित्य, संगीत, कला आदि को अपनी स्मृति का हिस्सा बनाया। राजा लड़ते रहे, साम्राज्य बढ़ते-सिकुड़ते और बदलते रहे, किन्तु हमारी संस्कृति ज्यों की त्यों अक्षुण्ण रही और इसीलिए वह लोक-स्मृतियों में जीवित भी रही। इस पुस्तक के लेखकों ने झाँसी से जुड़ा जो भी वृत्त-पुरावृत्त प्रस्तुत किया है, उसे कतिपय काट-छाँट के बाद जस का तस प्रस्तुत किया गया है। लेखकों द्वारा उपलब्ध प्रामाणिकता के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। लेखकों ने अपनी सोच और दृष्टि से सँवारकर जो भी तथ्य उपलब्ध कराए हैं, वे इस संग्रह में मूल रूप में प्रकाशित हैं। पश्चिमी सोच से निर्मित मन के लिए ‘मेरी झाँसी’ उपयोगी हो न हो, भारतीय सोच से निर्मित मन के लिए अवश्य उपयोगी होगी। बुन्देलखण्ड, विशेषकर झाँसी का अतीत और वर्तमान निश्चित ही पाठकों को ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक आदि दृष्टि से उर्वर धरती के विभिन्न पहलुओं से अवगत तो कराएगा ही, रचनात्मक भी बनाने में अपनी भूमिका निभाएगा, ऐसा हमारा विश्वास ह
Jatiyon Ka Loktantra : Jati Aur Rajneeti
- Author Name:
Arvind Mohan
- Book Type:

- Description: दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों के विपरीत भारत में निर्धन, ग्रामीण और दलित-दमित लोगों की चुनावी भागीदारी एक विशेष परिघटना है, जिसे राजनीति-विज्ञानी रजनी कोठारी जाति और लोकतंत्र की अर्न्तक्रिया से आया बदलाव मानते हैं। उनका मानना था कि जाति और लोकतांत्रिक राजनीति की उथल-पुथल के बीच समाज में बदलाव की एक सकारात्मक धारा गतिमान रहती है। यह किताब मोटे तौर पर इसी स्थापना को लेकर चलती है। इसमें संकलित आलेख भारत में जाति व्यवस्था के अहम पड़ावों, उससे जुड़े तर्क-वितर्क और जाति को समझने की जद्दोजहद को सामने लाते हैं। चुनावों में उसकी भूमिका का विश्लेषण भी इसमें है। जाति के गुण-दोषों की विवेचना करनेवाले, उसके परिणामों को रेखांकित करते बाबा साहब, लोहिया और किशन पटनायक के लेख भी इसमें शामिल हैं। गांधी जाति को लेकर कैसे सोचते थे, और इसे लेकर आगे अपने जीवनकाल में क्या करना चाहते थे, इस विषय में भी पुस्तक का एक लेख विचारणीय बिन्दु प्रस्तुत करता है। इस समय जब अपनी पहचानों को लेकर बढ़ती सजगता समाज के हर स्तर पर गहरी बेचैनी पैदा कर रही है, और तकनीक के रास्ते पर तेजी से बढ़ती दुनिया में अपनी अस्मिता को बचाए-बनाए रखने की नई चुनौती सामने है, अपनी उस सामाजिक संरचना को समझना निश्चय ही उत्तेजक होगा, जिसके लिए पूरी दुनिया भारत को आश्चर्य से देखती है। यह किताब हमें इस दिशा में काफी आगे तक ले जाती है।
Himalaya Ka Itihas
- Author Name:
Madan Chandra Bhatt
- Book Type:

-
Description:
हिमालय का गहरा नाता भारत के इतिहास और संस्कृति से है। लेकिन अपनी विशिष्ट भौगोलिक अवस्थिति और अनूठी सांस्कृतिक महत्ता के कारण, यह जन-सामान्य के लिए इतिहास का विषय उतना नहीं रहा है जितना गौरव और श्रद्धा की वस्तु। वास्तव में एक मानवीय पर्यावास और सभ्यता के केन्द्र के रूप में हिमालय का इतिहास अब भी काफी कुछ अजाना है। इस सन्दर्भ में मदन चन्द्र भट्ट की यह पुस्तक एक महत्त्वपूर्ण पाठ है, जिसमें भारत के उत्तरी, दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र का सारगर्भित ऐतिहासिक आकलन प्रस्तुत किया गया है।
लेखक ने हिमालय क्षेत्र में मौजूद शैलचित्रों, अभिलेखों, स्थापत्य और शिल्प अवशेषों, ताम्रपत्रों, सिक्कों जैसे पुरातात्त्विक साक्ष्यों को ही नहीं, बल्कि प्राचीन ग्रन्थों, लोक अनुश्रुतियों और राजस्व विवरणों में उल्लिखित विवरणों को आधार बनाकर एक सिलसिलेवार चित्र उकेरा है। उसका जोर सम्पूर्ण और प्रामाणिक लेखा प्रस्तुत करने तथा सर्वमान्य निष्कर्षों को प्रमुखता देने पर रहा है। जो तथ्य-निष्कर्ष विवादित रहे हैं उनका भी यथास्थान उल्लेख किया गया है।
सुदूर अतीत में अन्य क्षेत्रों की तरह हिमालय क्षेत्र में भी छोटे राज्यों ने आंचलिक और जनपदीय संस्कृतियों का निर्माण किया था। स्वाभाविक ही उनमें स्थानीयता का दृष्टिकोण विकसित हुआ, जब-तब सामाजिक-सांस्कृतिक संकीर्णता के कतिपय तत्त्व भी पनपे। लेकिन अन्य राज्यों और संस्कृतियों से वे कटे नहीं रहे और भारतवर्ष की बुनियादी एकता को मजबूत बनाने में उनका भी योगदान रहा। इस तथ्य को सप्रमाण बतलाते हुए यह पुस्तक एक तरफ उपेक्षित,ओझल पक्षों को सामने लती है, तो दूसरी तरफ भारत के इतिहास में हिमालय क्षेत्र के इतिहास को यथोचित स्थान देने का प्रस्ताव करती है।
इतिहास के अध्येताओं, शोधार्थियों, विद्यार्थियों से लेकर आम पाठक तक के लिए समान रूप से पठनीय और संग्रहणीय कृति!
Yashpal Ka Viplav Vol. 1-4
- Author Name:
Yashpal
- Book Type:

- Description: संकलित लेख स्वातंत्र्योत्तर भारत के लगभग सभी पहलुओं पर मंत्रणा करते दिखते है। फिर चाहे मुद्दा साहित्य, संस्कृति और भाषा का हो, कांग्रेसवाद बनाम मार्क्सवाद का हो, या एक नयी वैश्विक व्यवस्था में भारत की छवि और कर्तव्यों का हो। यहाँ एक ऐसी विस्तृत और समावेशी तस्वीर उभरती है जिसे किसी एक उपन्यास या कई कहानियों में भी समेटना नामुमकिन है। इस लिहाज़ से 'विप्लव' का चौथा भाग भारत के बौद्धिक इतिहास की प्रस्तावना उकेरता है—एक ऐसी पृष्ठभूमि जो आजादी से लेकर अबतक हमारे सामाजिक जीवन को प्रभावित-पोषित करता आई है। इन लेखों में यशपाल एक दुस्साहसी संपादक के रूप में निखरते हैं जो अपनी लेखनी में तटस्थ पत्रकारिता, तथ्यपरक विवेचना और साहित्यिक स्वायत्तता की एक अनूठी मिसाल प्रस्तुत करता है। शैली और भाषा का एक ऐसा नमूना जो आज के दौर में बेहद प्रासंगिक है। यह कहना उचित होगा कि यशपाल का साहित्य और उनकी पत्रकारिता, दोनों क्रांतिकारी संघर्ष की बौद्धिक उपज हैं। और एक दूसरे के पूरक भी हैं। इसलिए यह किताब हिंदी साहित्य और भारतीय इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए अनिवार्य है।
Pracheen Bharat Mein Bhautik Pragati Evam Samajik Sanrachnayen
- Author Name:
Ramsharan Sharma
- Book Type:

-
Description:
प्राचीन भारतीय इतिहास के अन्यतम विद्वान प्रो. रामशरण शर्मा ने अपनी प्रस्तुत पुस्तक में वैदिक और वैदिकोत्तर काल के भौतिक जीवन के विविध रूपों और समाज की विभिन्न अवस्थाओं के आपसी सम्बन्धों के स्वरूप का अध्ययन किया है। उनका मानना है कि वैदिक युग के मध्यभाग में जिस समाज का स्थान-स्थान पर उल्लेख मिलता है, वह मूलतः पशुपालक समाज है। उत्तर वैदिक काल तक आते-आते कृषिकर्म तथा लोहे के सीमित प्रयोग के दर्शन होने लगते हैं। इस काल का कृषक अपने राजा या मुखिया को कर देने की स्थिति में नहीं पहुँच पाया था, लेकिन इसी काल में जनजातीय समाज का वर्गों एवं व्यावसायिक समूहों में परिवर्तन आरम्भ हो गया था। इसमें पुरोहित वर्ग के क्रमिक वर्चस्व के लक्षण दिखने लगते हैं।
बुद्ध के समय तक आते-आते यह प्रक्रिया अधिक जटिल रूप धारण कर लेती है, उत्पादन के साधनों और सम्बन्धों में अप्रत्याशित बदलाव आ जाता है। समाज में वर्ण-व्यवस्था का आरम्भिक रूप इस काल तक आते-आते स्पष्ट आकार ग्रहण करने लगता है। असमानता का विकास, सिक्कों का प्रचलन इस युग की बदली भौतिक स्थिति की सूचना देते हैं।
इसी प्रकार की कुछ और बातें हैं जो सामाजिक स्तरीकरण और भौतिक प्रगति के युगपत सम्बन्धों को दर्शाती हैं। प्रो. शर्मा ने प्रारम्भ से अन्त तक इस विकास को द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी दृष्टि से देखा-परखा है। वैज्ञानिक दृष्टि से इतिहास-लेखन का यह ग्रन्थ सर्वोत्तम उदाहरण है और भारतीय इतिहास में दिलचस्पी रखनेवाले हर व्यक्ति के लिए अपरिहार्य भी।
Bharat : Itihas, Sanskriti aur Vigyan
- Author Name:
Gunakar Muley
- Book Type:

-
Description:
पिछले चार-पाँच दशकों से नए स्वस्थ दृष्टिकोण से भारतीय इतिहास व संस्कृति का अध्ययन करने के प्रयास हो रहे हैं। ऐसे प्रयासों में अग्रणी रहे डॉ. दामोदर कोसंबी। अनेक विद्वानों ने भारतीय इतिहास व संस्कृति के विविध अंगों को आधुनिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। लेकिन वे पुस्तकें गम्भीर पाठकों और अध्येताओं के लिए हैं।
इस पुस्तक में आदिम काल से लेकर आज तक के भारतीय इतिहास की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है। यह पुस्तक मुख्यतः विद्यार्थियों और सामान्य पाठकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर लिखी गई है। चूँकि यह पुस्तक नए ढंग से, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लिखी गई है, इसलिए इसे स्कूलों के अध्यापक भी उपयोगी पाएँगे।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लिखा गया भारत का इतिहास विद्यार्थियों के हाथों में पहुँचे, इसी उद्देश्य से गुणाकर मुळे ने यह पुस्तक लिखी है। इतिहास के प्रति उनका दृष्टिकोण क्या है, इसकी जानकारी उन्होंने प्रथम अध्याय में दे दी है। पुस्तक में राजा-महाराजाओं के क़िस्से कम हैं, संस्कृति के बारे में अधिक जानकारी दी गई है। तिथियों की भी भरमार नहीं है, राजवंशों की तालिकाएँ और प्रमुख घटनाओं की तिथियाँ पुस्तक के अन्त में दी गई हैं।
Narendra Modi Ke Panch Prana
- Author Name:
Himanshu Kumar C.A.
- Book Type:

- Description: 15 अगस्त, 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को विकास की चतुर्दिक ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए देशवासियों के बीच ‘पाँच प्रण’ का बिगुल फूँका। ये पाँच प्रण हैं—बड़े संकल्प के साथ आगे बढऩा है और वह बड़ा संकल्प एक ‘विकसित भारत’ का है। दूसरा प्रण है, हमारे अस्तित्व के किसी भी हिस्से में, हमारे मन या आदतों के किसी कोने में ‘गुलामी का कोई अंश नहीं होना चाहिए।’ तीसरा प्रण है, हमें अपनी ‘विरासत’ पर गर्व अनुभव करना चाहिए, क्योंकि यह वही विरासत है, जिसने भारत को अतीत में स्वर्णिम काल दिया था। चौथा प्रण है—‘एकता और एकजुटता’। 135 करोड़ देशवासियों के बीच जब सद्भाव और सौहार्द होता है तो एकता उसका सबसे मजबूत गुण बन जाती है। पाँचवाँ प्रण ‘नागरिकों का कर्तव्य’ है, जिससे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री भी विमुख नहीं हो सकते, क्योंकि वे भी जिम्मेदार नागरिक हैं और राष्ट्र के प्रति उनका कर्तव्य है। यदि हम अगले 25 वर्षों के लिए अपने सपनों को साकार करना चाहते हैं तो यह गुण महत्त्वपूर्ण जीवन-शक्ति बनने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इन्हीं पाँच प्रणों को विस्तार देती एक रोचक, प्रेरक और संग्रहणीय पुस्तक। इसके अध्ययन से हम भारतवर्ष के अमृतकाल में यशस्विता प्राप्ïत कर पाएँगे और पुन: विश्वगुरु बनकर पूरे विश्व का मार्गदर्शन कर सकेंगे।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...