Nepal Ka Samvaidhanik Vikas
Author:
Dr. Rakesh Kumar MeenaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 408
₹
510
Unavailable
यह पुस्तक नेपाल के संवैधानिक और राजनीतिक विकास को हिंदी भाषा में प्रस्तुत करने का एक अनूठा प्रयास है। इस पुस्तक में नेपाल के संविधानवाद के विकास का कालक्रमानुसार विवरण दिया गया है। वर्ष 1948 से लेकर नेपाल के वर्तमान संविधान तक के सभी संविधानों के उद्भव और पतन का विश्लेषण तत्कालीन नेपाली राजनीति के अनुसार पुस्तक में चित्रित किया गया है। यह पुस्तक नेपाल के राणाओं द्वारा प्रदत्त संविधान, पंचायती काल संविधान, 1990 के संवैधानिक राजतंत्र के संविधान और वर्ष 2015 के लोकतंत्रीय संविधान के सभी पहलुओं का विवरणात्मक एवं आलोचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। नेपाल के माओवादी आंदोलन और मधेश संकट को भी यहाँ वर्णित किया गया है। अध्ययन को व्यवस्थित और सरल बनाने के लिए पुस्तक को सात अध्यायों में बाँटा गया है।
ISBN: 9789390315581
Pages: 216
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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हमारा विश्व आज जिन स्थितियों से गुज़र रहा है, वे सारी स्थितियाँ केवल आर्थिक और राजनीतिक ही नहीं, वरन् सांस्कृतिक चिन्ता का विषय भी हैं। भले ही यह कहा जा रहा हो या मान लिया गया हो कि सोवियत रूस के पतन के बाद, विश्व अब द्वि-ध्रुवीय नहीं रह गया है, किन्तु अपने वर्तमान को समझने और विभिन्न भटकावों के बीच से सही मार्ग खोजने के लिए उन प्रभाव-शक्तियों का अवलोकन-प्रत्यावलोकन करना आवश्यक है, जिनका एक सुदीर्घ इतिहास है।
विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं से लेकर आज तक मानव-सभ्यता के विकास के जो भी चरण रहे हैं, उनमें कहाँ-कहाँ कौन-कौन-सी प्रभाव-शक्तियाँ परस्पर सहयोग की भूमिका में रहीं, और कौन-कौन प्रतिस्पर्द्धा या प्रतियोगिता की भूमिका में रहीं, यह हम समझते चलें तो सम्भव है, भविष्य के लिए अपना सही मार्ग चुनने में हमारी सहायता करनेवाली प्रेरणाएँ हमें अपने वर्तमान में मिल सकें।
विभिन्न समाजों की अपनी-अपनी संस्कृतियों की परिधि में, राजसत्ताओं-धर्मतंत्रों ने (और आगे चलकर विकसित होनेवाली लोकतंत्रात्मक सत्ताओं ने भी) किन-किन तत्त्वों या वर्गों को प्रश्रय दिया और प्रश्रय-प्राप्त तत्त्वों या वर्गों ने समाज को कितनी गति दी या कितने अवरोध उपस्थित किए, यह सब लक्षित करने के मूल में इस लेखक का उद्देश्य यह रहा है कि मानवीय मूल्यों के ह्रास और विकास, दोनों के वस्तुगत पक्ष सामने लाए जा सकें जिससे मनुष्य—व्यक्ति और समाज—दोनों रूपों में अपने दायित्व और अपने स्वातंत्र्य के अविच्छिन्न सम्बन्धों को आत्मसात् कर सके।
—भूमिका से
Krishna Ki Leelabhumi : 21vin Sadi Mein Vrindavan
- Author Name:
John Stratton Hawley
- Book Type:

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Description:
कृष्ण की लीलाभूमि : 21वीं सदी में वृन्दावन एक अत्यन्त प्यारे स्थान के बारे में है—कई लोग इसे भारत की आध्यात्मिक राजधानी भी कहते हैं। दिल्ली से कोई सौ मील की दूरी पर यमुना नदी के एक नाटकीय मोड़ पर स्थित वृन्दावन वह स्थान है जहाँ माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने अपना बचपन और युवावस्था बिताई थी। हिन्दुओं के लिए यह युवावस्था का प्रतीक रहा है—प्रेम और सुन्दरता का एक क्षेत्र जो दुनिया के बोझ और कठोरता को त्यागने में सक्षम बनाता है। हालाँकि, अब दुनिया वृन्दावन को निगल रही है। दिल्ली का महानगरीय फैलाव दिन-ब-दिन करीब आ रहा है—आधा शहर एक विशाल अचल सम्पत्ति के रूप में विकसित हो चुका है—और यमुना का पानी पीने तो क्या नहाने के लिए भी सुरक्षित नहीं है। मन्दिर अब खुद को थीम पार्क के रूप में बदल रहे हैं और कृष्ण के स्वर्गिक चरागाह में दुनिया की सबसे ऊँची धार्मिक इमारत निर्माणाधीन है।
क्या होता है जब एंथ्रोपोसीन युग हर चीज को वर्चुअल बना देता है? क्या होता है जब स्वर्ग को जोता जाता है? हमारे इस पूरे दौर की तरह, वृन्दावन शक्तिशाली ऊर्जा से सराबोर है, लेकिन क्या खतरे के संकेत धीरे-धीरे सामने नहीं आ रहे?
Madhyakalin Bharat Ka Arthik Itihas
- Author Name:
Sunil Kumar Singh
- Book Type:

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Description:
यह पुस्तक नवीनतम स्रोत सामग्री को सन्दर्भित करते हुए लिखी गई है। लेखक ने बड़ी कुशलता के साथ सन्दर्भ ग्रन्थों को समन्वयित किया है कि विशेषज्ञों के अलावा साधारण पाठकों को भी आख्यान बोधगम्य हो सके।
इस पुस्तक में मुगलों की नई काराधान व्यवस्था के आने से कृषि के क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली संकटपूर्ण परिस्थितियों को उजागर किया है। लेखक का मानना है कि इस संकट के बावजूद ग्रामीण घरों में सूत कातने और कपड़ा बुनने की परम्पराएँ कायम रहीं। किन्तु मुग़ल नीतियों का दूरगामी परिणाम यह हुआ कि कृषि और शिल्प दो अलग-अलग व्यवसायों के रूप में नज़र आने लगे। अध्याय के अन्त में लेखक ने परम्परागत शिल्पों को स्वतन्त्र व्यवसाय के रूप में प्रस्तुत कर लम्बे अरसे से चली आ रही भ्रान्तियों को दूर किया है। शिल्प उत्पादन के सम्बन्ध में विस्तृत वृत्तान्त मिलता है।
दक्षिण भारत के राजस्व इतिहास को समाहित कर इस पुस्तक को पूर्णतः समावेशी बना दिया गया है। पाँचवें अध्याय में मध्यकालीन कराधान की व्यवस्था, शहरी उत्पादन, सिक्कों के प्रकार और प्रसार का उल्लेख है। मध्यकालीन भारत में नाप-तौल की प्रणालियों, मजदूरी और उत्पादकों पर विदेशी पूँजी के बढ़ते दबाव से सम्बन्धित है। लेखक ने तालिकाओं और आँकड़ों की सहायता से व्यापार और व्यवसायों के समक्ष बढ़ती चुनौतियों को स्पष्ट किया है।
विश्वास है कि सुधी पाठकों तथा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे पाठकों को यह रचना समान रूप से पसन्द आएगी।
ललित जोशी
प्रोफेसर, इतिहास विभाग
Bapu Ki Paati : Mahatma Gandhi Ke Jeevan Prasang
- Author Name:
Sopan Joshi
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Bogi Number 2003
- Author Name:
Harish Naval
- Book Type:

- Description: "‘बोगी नंबर 2003’ इतिहास का वह हिस्सा है जहाँ संस्कृति, शिक्षा, जन सेवाएँ, राजनीति और समाज केविभिन्न वर्गों के कालापन से उपजी विसंगतियाँ, विडंबनाएँ और विद्रूपताएँ इस उपन्यास में रोचकतापूर्ण मनोरंजन सहित ढली हैं। इस व्यंग्य-उपन्यास में की पीढ़ी उस राजनीतिक काल की पीढ़ी है, जब देश के नियामक रक्षक से भक्षक बनने लगे थे। बहुत से राजनेता धन जमा करने की होड़ में जुटने लगे थे और भ्रष्टाचार जीवन का मूलमंत्र बनने लगा था। ‘काले धन की बैसाखी’ शासन-कर्ताओं को अनिवार्य लगने लगी थी। इन्हीं भ्रष्ट जन का अनुकरण जीवन का व्यवहार बनने लगा था, जिससे बेईमानी का कद बढ़ रहा था। इसके अतिरिक्त इस पीढ़ी पर फिल्मों का प्रभाव बेहद रहा। विवेकानंद, स्वामी दयानंद, सुभाष, भगतसिंह, चंद्रशेखर से कहीं अधिक यह पीढ़ी फिल्मी सितारों को चाहने लगी। महात्मा गांधी तो केवल दो अक्तूबर तक सीमित रह गए, गांधी के नाम पर लूट-खसोट करनेवालों को देख यह पीढ़ी उनकी तरह तुरंत अमीर होना और अय्याशी परस्ती पसंद करने लगी थी। प्रस्तुत कृति में इसका विशद चित्रण आप प्रत्यक्ष भी और परोक्ष भी पाएँगे। "
Uttar Taimoorkaleen Bharat : Vol. 2
- Author Name:
Saiyad Athar Abbas Rizvi
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Description:
इस पुस्तक में 1399 से 1526 ई. तक के देहली के सुल्तानों के इतिहास से सम्बन्धित समस्त प्रमुख समकालीन एवं बाद के फ़ारसी के ऐतिहासिक ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। पहला भाग देहली के सुल्तानों के राज्य से सम्बन्धित है और दूसरा भाग उन प्रान्तीय राज्यों से जिनका प्रादुर्भाव फ़ीरोज़ तुग़लक़ की मृत्यु के उपरान्त ही धीरे-धीरे होने लगा था और जो तैमूर के आक्रमण के उपरान्त पूर्णतः स्वतंत्र हो गए।
सैयद वंश के इतिहास से सम्बन्धित यहया बिन अहमद बिन अब्दुल्लाह सिहरिन्दी की ‘तारीख़े मुबारकशाही’ एवं ख़्वाजा निज़ामुद्दीन अहमद की ‘तबक़ाते अक़बरी’ भाग-1 के उद्धरणों का अनुवाद किया गया है। दूसरे भाग में अफ़ग़ानों के सुल्तानों के इतिहास के अनुवाद सम्मिलित किए गए हैं। इनमें शेख़ रिज़्कुल्लाह मुश्ताक़ी की ‘वाक़ेआते मुश्ताक़ी’, ख़्वाजा निज़ामुद्दीन अहमद की ‘तबक़ाते अकबरी’, अब्दुल्लाह की ‘तारीख़े दाऊदी’, अहमद यादगार की ‘तारीख़े शाही’ एवं मुहम्मद कबीर बिन शेख़ इस्माइल की ‘अफ़सानए-शाहाने हिन्द’ के उद्धरण शामिल हैं।
भाग-2 के इतिहासकारों में ख़्वाजा निज़ामुद्दीन अहमद के अतिरिक्त सभी अफ़ग़ान इतिहासकार हैं। अहमद यादगार का इतिहास 1930 ई. में प्रकाशित हुआ था और ‘तारीख़े दाऊदी’ 1954 ई. में। इनके अतिरिक्त ‘वाक़ेआते मुश्ताक़ी’ और ‘अफ़सानए-शाहाने हिन्द’ अभी तक प्रकाशित नहीं हुए हैं और इनकी हस्तलिखित प्रतियाँ भी भारतवर्ष में उपलब्ध नहीं हैं, अतः आवश्यक अंशों का अनुवाद करते समय तत्सम्बन्धी पूरे-पूरे इतिहासों का अनुवाद कर दिया गया है। इस कारण एक ही घटना की कई बार पुनरावृत्ति अनुपेक्षणीय हो गई है। इतिहासकारों तथा उनकी कृतियों का परिचय अनुवाद के प्रारम्भ में प्रस्तुत किया गया है।
Vasundhara Raje Aur Viksit Rajasthan
- Author Name:
Vijay Nahar
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