Madhyakalin Bharat mein Prodhyogiki
Author:
Irfan HabibPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
‘भारत का लोक इतिहास’ श्रृंखला की यह कड़ी भारतीय इतिहास के उस पहलू पर दृष्टिपात करती है जिस पर अभी तक बहुत कम काम हुआ है। इसमें आमजन के साधारणतम औज़ारों से लेकर खगोल-वैज्ञानिकों के उपकरणों और युद्ध में काम आनेवाले हथियारों तक के विकास को रेखांकित किया गया है। अध्ययन का मुख्य तत्त्व यह है कि यह पूर्णतया ऐतिहासिक है, तकनीक के विकास-क्रम की खोज न सिर्फ़ प्रमाणों के साथ की गई है, बल्कि उनके सामाजिक और आर्थिक परिणामों को भी विस्तार से समझा गया है।</p>
<p>श्रृंखला की अन्य पुस्तकों की तरह इसमें भी मूल दस्तावेज़ों के उद्धरणों और आधुनिक-पूर्व तकनीक के विषय में विशिष्ट सूचनाएँ दी गई हैं। तकनीकी शब्दावली, तकनीक के ऐतिहासिक स्रोतों और भारत से बाहर विकसित होनेवाली मध्यकालीन तकनीक पर विशेष टिप्पणियाँ भी दी गई हैं।</p>
<p>छात्रों और सामान्य पाठकों को ध्यान में रखते हुए कोशिश की गई है कि प्रामाणिकता को हानि पहुँचाए बिना पुस्तक जितनी सरल हो सकती है, उतनी हो सके। उम्मीद है कि सिर्फ़ इतिहासकारों को ही नहीं, हर उस पाठक को यह प्रस्तुति मूल्यवान लगेगी जो यह जानना चाहते हैं कि प्राचीन युग में जनसाधारण, आम स्त्री और पुरुषों ने अपने हाथों और औज़ारों से क्या कुछ किया।
ISBN: 9788126727919
Pages: 159
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: स्तावना —Pgs. 7 1. भारत माता के मुकुट कश्मीर का गौरवशाली अतीत —Pgs. 13 2. दिग्विजयी कश्मीर —Pgs. 21 3. धर्मांतरण से राष्ट्रांतरण —Pgs. 31 4. डुग्गर धरती का गौरवशाली अतीत —Pgs. 35 5. आत्म बलिदान की अनूठी मिसाल डुग्गर रत्न बाबा जो —Pgs. 41 6. डुग्गर पौरुष के प्रतीक वीर बंदा वैरागी —Pgs. 45 7. विजयी डोगरा सेनानायक जनरल जोरावर सिंह —Pgs. 49 8. राष्ट्रभत डोगरा शासक —Pgs. 55 9. जम्मू क्षेत्र में संघ —Pgs. 61 10. जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय —Pgs. 66 11. कश्मीर घाटी में संघ —Pgs. 75 12. रक्षा मोरचे पर संघ —Pgs. 78 13. शेख अदुल्ला का उदय —Pgs. 84 14. पं. नेहरू की अदूरदर्शिता —Pgs. 92 15. प्रजा परिषद् आंदोलन —Pgs. 109 16. आत्मनिर्णय का इसलामी जुनून —Pgs. 123 17. देशभत कश्मीरी पंडित —Pgs. 131 18. डोडा क्षेत्र में आतंक —Pgs. 141 19. जम्मू क्षेत्र से भेदभाव —Pgs. 145 20. मंदिरों का शहर बना शरणार्थियों का शहर —Pgs. 150 21. हिंदू स्वाभिमान की विजय —Pgs. 158 22. हिंदू विहीन कश्मीरियत? —Pgs. 179 23. फसाद की जड़ अनुच्छेद 370 —Pgs. 184 24. भारतीय सुरक्षा बल —Pgs. 191 25. लद्दाख में राष्ट्रवाद का जागरण —Pgs. 199 26. खतरे में लद्दाखी सभ्यता —Pgs. 203 27. समाधान की तलाश —Pgs. 205 परिशिष्ट-1 मैंने श्री गुरुजी को ‘कर्ण महल’ में प्रवेश करते देखा —Pgs. 227 परिशिष्ट-2 The Accession of the J&K State and Maharaja Hari Singh —Pgs. 228 परिशिष्ट-3 In Saving Kashmir —Pgs. 230 परिशिष्ट-4 Accession of Kashmir Sangh's Efforts —Pgs. 233 परिशिष्ट-5 महाराजा का सरदार पटेल को पत्र —Pgs. 236 परिशिष्ट-6 महाराजा का भारत में विलय का प्रस्ताव —Pgs. 241 परिशिष्ट-7 26 अतूबर, 1947 को महाराजा हरिसिंह द्वारा कार्यान्वित विलय-पत्र —Pgs. 244 परिशिष्ट-8 भारत के संविधान की धारा-370 —Pgs. 247 परिशिष्ट-9 शिमला समझौता —Pgs. 249 परिशिष्ट-10 कश्मीर समझौता (फरवरी 1975 ) —Pgs. 252 संदर्भ-ग्रंथ —Pgs. 254 पत्र-पत्रिकाएँ —Pgs. 256
Gandhi Aur Akathaniya : Satya Ke Sath Unka Antim Prayog
- Author Name:
James W. Douglass
- Book Type:

- Description: “इतिहास जब-तब जीवन की शक्तियों और मृत्यु की शक्तियों के बीच ऐसे संघर्षों का साक्षी बनता है जहाँ एक ओर, मृत्यु की शक्ति की हर पराजय असत्य पर सत्य की विजय में आस्था को बल प्रदान करती है तो दूसरी ओर, असत्य की हर कामयाबी में मनुष्यता के सम्पूर्ण विनाश की सम्भावना निहित होती है। अहिंसा में गाँधी की आस्था और उनके हत्यारों की पथभ्रष्ट विचारधारा पर आधारित जेम्स डॅगलॅस की यह गहन शोधपरक, छोटी-सी अद्भुत कृति उन दो परस्पर विरोधी फ़लसफ़ों की एक वाग्मितापूर्ण कहानी है जिनका सामना आज मानव-जाति कर रही है—एक ऐसी कहानी जो हमें ठहरकर सोचने के लिए विवश करती है।” —नारायण देसाई
Upari Gangaghati Dwitiya Nagarikaran
- Author Name:
Sanju Mishra
- Book Type:

- Description: ऊपरी गंगा के मैदान में नगरीकरण से सम्बन्धित ज्ञान के मुख्य आधार साहित्यिक साक्ष्यों के साथ-साथ पुरातात्त्विक अन्वेषण एवं उत्खनन है। भारत में नगरों के आविर्भाव की प्राचीनता ताम्राश्म काल में हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो नामक स्थानों पर बने हुए नगरों के सन्निवेश तथा उनके सामाजिक एवं आर्थिक जीवन के दृष्टान्तों से सिद्ध हो जाती है, किन्तु द्वितीय सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व के मध्य में सैन्धव सभ्यता के विनाश के साथ ही सम्पूर्ण भारत पुनः ग्राम्य संस्कृति में लौट आया तथा एक हजार वर्षों के लम्बे अन्तराल के पश्चात् छठी शताब्दी ईसा पूर्व में, गंगा के मैदान में षोडश महाजनपदों का उद्भव राजनीतिक इकाइयों के रूप में उत्तर भारत में हुआ। छठी शताब्दी ईसा पूर्व का काल उत्तर भारत में अनेकानेक नवीन परिवर्तनों का काल था तथा ये परिवर्तन जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में दिखाई देते हैं। इसे द्वितीय नगरीकरण की संज्ञा दी गई है। पुरातात्त्विक भाषा में इसे उत्तरी कृष्ण मार्जित पत्र-परम्परा संस्कृति के प्रारम्भ का काल माना जा सकता है। इस शोध-प्रबन्ध के माध्यम से ऊपरी गंगा के मैदान के पुरातात्त्विक अनुक्रम का तथा द्वितीय नगरीकरण से सम्बन्धित नगरीय साक्ष्यों का क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित ऐतिहासिक एवं पुरातात्त्विक अध्धयन प्रस्तुत करने का यथासम्भव प्रयास किया गया है।
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