Madhyakalin Bharat Ka Arthik Itihas
Author:
Sunil Kumar SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 236
₹
295
Available
यह पुस्तक नवीनतम स्रोत सामग्री को सन्दर्भित करते हुए लिखी गई है। लेखक ने बड़ी कुशलता के साथ सन्दर्भ ग्रन्थों को समन्वयित किया है कि विशेषज्ञों के अलावा साधारण पाठकों को भी आख्यान बोधगम्य हो सके।</p>
<p>इस पुस्तक में मुगलों की नई काराधान व्यवस्था के आने से कृषि के क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली संकटपूर्ण परिस्थितियों को उजागर किया है। लेखक का मानना है कि इस संकट के बावजूद ग्रामीण घरों में सूत कातने और कपड़ा बुनने की परम्पराएँ कायम रहीं। किन्तु मुग़ल नीतियों का दूरगामी परिणाम यह हुआ कि कृषि और शिल्प दो अलग-अलग व्यवसायों के रूप में नज़र आने लगे। अध्याय के अन्त में लेखक ने परम्परागत शिल्पों को स्वतन्त्र व्यवसाय के रूप में प्रस्तुत कर लम्बे अरसे से चली आ रही भ्रान्तियों को दूर किया है। शिल्प उत्पादन के सम्बन्ध में विस्तृत वृत्तान्त मिलता है।</p>
<p>दक्षिण भारत के राजस्व इतिहास को समाहित कर इस पुस्तक को पूर्णतः समावेशी बना दिया गया है। पाँचवें अध्याय में मध्यकालीन कराधान की व्यवस्था, शहरी उत्पादन, सिक्कों के प्रकार और प्रसार का उल्लेख है। मध्यकालीन भारत में नाप-तौल की प्रणालियों, मजदूरी और उत्पादकों पर विदेशी पूँजी के बढ़ते दबाव से सम्बन्धित है। लेखक ने तालिकाओं और आँकड़ों की सहायता से व्यापार और व्यवसायों के समक्ष बढ़ती चुनौतियों को स्पष्ट किया है।</p>
<p>विश्वास है कि सुधी पाठकों तथा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे पाठकों को यह रचना समान रूप से पसन्द आएगी।</p>
<p>ललित जोशी</p>
<p>प्रोफेसर, इतिहास विभाग
ISBN: 9789393603678
Pages: 239
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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हुमायूँ से सम्बन्धित फ़ारसी स्रोतों का अनुवाद ‘मुग़लकालीन भारत’ भाग-1 और भाग-2 में प्रकाशित किया गया है। इन दोनों भागों में भी पूर्व ग्रन्थों की भाँति हुमायूँ के समकालीन फ़ारसी स्रोतों का हिन्दी भाषान्तर प्रस्तुत किया गया है। प्रथम भाग में जिन इतिहासकारों के ग्रन्थों के हिन्दी अनुवाद सम्मिलित किए गए हैं, उनमें मुख्य हैं : ख़्वन्द मीर का ‘क़ानूने हुमायूँनी’, मिर्ज़ा हैदर का ‘तारीख़े रशीदी’, मीर अल्ला उद्दौला का ‘नफ़ायसुल मआसिर’, गुलबदन बेगम का ‘हुमायूँनामा’ एवं शेख अबुल फ़ज़ल का ‘अकबरनामा’ आदि। यही नहीं, डॉ. अतहर अब्बास रिज़वी ने हुमायूँ के इतिहास से सम्बन्धित अफ़ग़ान स्रोतों को भी इस भाग में सम्मिलित किया है। कुछ ग्रन्थों के अनुवाद मूल पाठ में न देकर पादटिप्पणियों में सम्मिलित कर लिए गए हैं। इन ग्रन्थों के अनुवादों के कारण ग्रन्थ की उपादेयता में वृद्धि हो गई है।
जिन ग्रन्थों के संक्षिप्त अनुवाद किए गए हैं, उनका अनुवाद करते समय इस बात का प्रयत्न किया गया है कि कोई भी महत्त्वपूर्ण घटना अथवा सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक महत्त्व की बात छूटने न पाए।
अन्य ग्रन्थों की तरह यह ग्रन्थ भी हुमायूँकालीन इतिहास के अध्ययन के लिए अत्यन्त उपयोगी है। विशेषत: उनके लिए, जो फ़ारसी से अनभिज्ञ हैं लेकिन इस काल पर शोध करना चाहते हैं, उनको एक ही स्थान पर सम्पूर्ण सामग्री उपलब्ध हो जाती है।
Ram Prasad Bismil Ko Phansi V Mahavir Singh Ka Balidan
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Malvender Jit Singh Waraich
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- Description: शताब्दियों की पराधीनता के बाद भारत के क्षितिज पर स्वतंत्रता का जो सूर्य चमका, वह अप्रतिम था। इस सूर्य की लालिमा में उन असंख्य देशभक्तों का लहू भी शामिल था, जिन्होंने अपना सर्वस्व क्रान्ति की बलिवेदी पर न्योछावर कर दिया। इन देशभक्तों में रामप्रसाद बिस्मिल का नाम अग्रगण्य है। संगठनकर्ता, शायर और क्रान्तिकारी के रूप में बिस्मिल का योगदान अतुलनीय है। ‘काकोरी केस’ में बिस्मिल को दोषी पाकर फ़िरंगियों ने उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया था। इस प्रकरण का दस्तावेज़ी विवरण प्रस्तुत पुस्तक को ख़ास बनाता है। शहीद महावीर सिंह साहस व समर्पण की प्रतिमूर्ति थे। तत्कालीन अनेक क्रान्तिकारियों से उनके हार्दिक सम्बन्ध थे। इनका बलिदान ऐसी गाथा है, जिसे कोई भी देशभक्त नागरिक गर्व से बार-बार पढ़ना चाहेगा। पुस्तक पढ़ते समय रामप्रसाद बिस्मिल की ये पंक्तियाँ मन में गूँजती रहती हैं—‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है/देखना है ज़ोर कितना बाज़़ू-ए-क़ातिल में है।’ एक महत्त्वपूर्ण और संग्रहणीय पुस्तक।
Aaj Ka Hind Swaraj
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Sandeep Joshi
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Description:
महात्मा गाँधी को सिरे से ख़ारिज करने या उनका अवमूल्यन करने की मुहिम, इन दिनों, सुनियोजित ढंग से चलायी जा रही है। हमारा समय, कम से कम इस समय सत्तारूढ़ शक्तियों के किये-लेखे, गाँधी के अस्वीकार का, गाँधी-विरोध का समय है। यह विरोध या अस्वीकार गाँधी को एक नयी और तीक्ष्ण प्रासंगिकता देता है। उस प्रासंगिकता का ही हिस्सा है प्रश्नवाचकता जबकि प्रश्न पूछना लगभग गुनाह क़रार दिया जा रहा है। गाँधी ने अपने समय में निर्भयता से प्रश्न उठाये और उनके समुचित उत्तर देने की कोशिश की। युवा चिन्तक और कर्मशील संदीप जोशी हमारे समय के कुछ ज़रूरी प्रश्न और उसके बेचैन उत्तर खोजने की 'गुस्ताख़ी' कर रहे हैं। यह गाँधी की दृष्टि का हमारे कठिन समय के लिए पुनराविष्कार है।
—अशोक वाजपेयी
Amar Shaheed Ashfaq Ulla Khan
- Author Name:
Banarsidas chaturvedi
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Description:
‘‘जब तुम दुनिया में आओगे तो मेरी कहानी सुनोगे और मेरी तस्वीर देखोगे। मेरी इस तहरीर को मेरे दिमाग़ का असर न समझना। मैं बिलकुल सही दिमाग़ का हूँ और अक़्ल ठीक काम कर रही है। मेरा मक़सद महज़ बच्चों के लिए लिखना यूँ है कि वह अपने फ़राइज़ महसूस करें और मेरी याद ताज़ा करें।’’
उक्त बातें क्रान्तिकारी शहीद अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ ने अपने भतीजों के लिए, फाँसी से ठीक पूर्व लिखी थीं। उनका मक़सद देश की नौजवान पीढ़ी को उनके दायित्वों और प्रतिबद्धताओं से वाक़िफ़ कराना था। देशभक्ति से सराबोर ऐसे क्रान्तिकारी आज विस्मृत कर दिए गए हैं। क्रान्तिकारियों और स्वतंत्रता-सेनानियों के हमदर्द बनारसीदास चतुर्वेदी द्वारा सम्पादित यह पुस्तक अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के क्रान्तिकारी जीवन और उनके काव्य-संसार से पाठक का परिचय कराती है। दरअसल उनकी रचनाओं और जीवन के मुक़ाम के रास्ते दो नहीं एक रहे हैं। पुस्तक में अशफ़ाक़ उल्ला का बचपन, सरफ़रोशी की तमन्नावाले जवानी के दिन, अंग्रेज़ों के प्रति मुखर विद्रोह और अन्ततः देश की ख़ातिर फाँसी के तख़्ते पर चढ़ाए जाने तक की सारी बातें सिलसिलेवार दर्ज हैं। किताब का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है—अशफ़ाक़ के पत्र, उनके सन्देश, उनकी ग़ज़लें, शायरी तथा उनके लेख जिनमें वह अपनी ‘ख़ानदानी हालत’, ‘बचपन और तालीमी तरबियत’, ‘स्कूल और मायूस ज़िन्दगी’ और ‘जज़्बाते-इत्तिहादी इस्लामी’ का यथार्थ वर्णन करते हैं। रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला को जानना देश की गंगा-जमना तहज़ीब की विरासत और उनके रग-रेशे में प्रवाहित देशभक्ति और मित्रभाव को भी जानना है। बनारसीदास चतुर्वेदी के अलावा रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, मन्मथनाथ गुप्त, जोगेशचंद्र चटर्जी और रियासत उल्ला ख़ाँ के लेख भी अशफ़ाक़ की वतनपरस्ती और ईमान की सच्ची बानगी पेश करते हैं। निस्सन्देह, यह पुस्तक अशफ़ाक़ को नए सिरे से देखने और समझने में मददगार साबित होती है।
Itihas Aur Vichardhara : Khalsa Ke Teen Sau Sal
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J.S. Grewal +1
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- Description: प्रोफ़ेसर जे.एस. ग्रेवाल और प्रोफ़ेसर इंदु बंगा द्वारा सम्पादित यह पुस्तक भारत के सामान्य इतिहास के सन्दर्भ में सिख पंथ के इतिहास को स्थापित करके खालसा की त्रिशताब्दी मनाने का एक प्रयास है। इस पुस्तक में संकलित लेख 1935 में उसकी स्थापना के बाद से भारतीय इतिहास कांग्रेस के वार्षिक सत्रों में प्रस्तुत लेखों में से चुने गए हैं। ये 18वीं से 20वीं सदी तक के सिख इतिहास के सभी प्रमुख चरणों को समेटते हैं। ये विश्व के प्रमुख सार्वभौम धर्मों में एक, सिख धर्म के विकास को उजागर करते हैं और इसके लिए उन समृद्ध धाराओं को स्पष्ट करते हैं जो भारत की समन्वित राष्ट्रीय धरोहर में सिखों के सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक इतिहास के योगदान की उपज रही हैं।
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