Krishna Ki Leelabhumi : 21vin Sadi Mein Vrindavan
Author:
John Stratton HawleyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
कृष्ण की लीलाभूमि : 21वीं सदी में वृन्दावन एक अत्यन्त प्यारे स्थान के बारे में है—कई लोग इसे भारत की आध्यात्मिक राजधानी भी कहते हैं। दिल्ली से कोई सौ मील की दूरी पर यमुना नदी के एक नाटकीय मोड़ पर स्थित वृन्दावन वह स्थान है जहाँ माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने अपना बचपन और युवावस्था बिताई थी। हिन्दुओं के लिए यह युवावस्था का प्रतीक रहा है—प्रेम और सुन्दरता का एक क्षेत्र जो दुनिया के बोझ और कठोरता को त्यागने में सक्षम बनाता है। हालाँकि, अब दुनिया वृन्दावन को निगल रही है। दिल्ली का महानगरीय फैलाव दिन-ब-दिन करीब आ रहा है—आधा शहर एक विशाल अचल सम्पत्ति के रूप में विकसित हो चुका है—और यमुना का पानी पीने तो क्या नहाने के लिए भी सुरक्षित नहीं है। मन्दिर अब खुद को थीम पार्क के रूप में बदल रहे हैं और कृष्ण के स्वर्गिक चरागाह में दुनिया की सबसे ऊँची धार्मिक इमारत निर्माणाधीन है।<br>क्या होता है जब एंथ्रोपोसीन युग हर चीज को वर्चुअल बना देता है? क्या होता है जब स्वर्ग को जोता जाता है? हमारे इस पूरे दौर की तरह, वृन्दावन शक्तिशाली ऊर्जा से सराबोर है, लेकिन क्या खतरे के संकेत धीरे-धीरे सामने नहीं आ रहे?
ISBN: 9788119028788
Pages: 376
Avg Reading Time: 13 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Wo Satrah Din
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Brajesh Rajput
- Book Type:

- Description: राजनीति में जो होता है वो दिखता नहीं और जो दिखता है वो होता नहीं इसलिये पर्दे के पीछे की कहानी बताना एक पत्रकार के लिये बहुत चुनौती भरा काम होता है। इस किताब के जरिये आप ये समझ पायेंगे कि कांग्रेस और बीजेपी की राजनीति में ऐसा क्या हुआ कि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता की विरासत वाली पार्टी छोड़कर बीजेपी में चले गये और कमलनाथ की सरकार भरभराकर गिर गयी। अभिज्ञान प्रकाश, जाने माने टीवी पत्रकार तेज़ी से घटने वाली राजनीतिक घटनाओं पर नज़र रखना और उनका विश्लेषण दर्शकों तक पहुँचाना हम टीवी पत्रकारों के लिए बेहद चुनौती का काम होता है मगर उन घटनाओं को क़लमबद्ध कर उसे किताब की शक्ल देना उससे भी मुश्किल काम होता है जो ब्रजेश राजपूत ने किया है। रोचक अंदाज़ में लिखी इस किताब को पढ़कर आप कुछ जगहों पर चौंक जाएँगे और कहेंगे ये तो हमें मालूम ही नहीं था। मध्यप्रदेश की पल-पल बदलती राजनीति और रंग बदलते नेताओं पर लिखी गयी एक बेहतर किताब है "वो सत्रह दिन"। -सुमित अवस्थी, एबीपी न्यूज़ "कहते हैं कि ब्रजेश राजपूत का है अंदाज़-ए-बयाँ और..." जी हाँ, राजनीतिक रिपोर्टिंग की आँखों देखी, कानों सुनी, दिलचस्प दास्ताँ ब्रजेश के कलम से कुछ अलग ही रंग रूप रखती है। "वह सत्रह दिन" उसका एक बेहतरीन नमूना है । सत्ता के उतार चढ़ाव में लालसा, प्रतिस्पर्धा, तिरस्कार का भाव, रणनीति, साधन व कुटिलता.... कुछ भी ब्रजेश की नजर व कलम से बच नहीं सकता -रशीद किदवई, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक
Shalbhanjika
- Author Name:
Uday Narayan Rai
- Book Type:

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Description:
‘शालभञ्जिका’ शब्द प्राचीन भारतीय कला की एक विशेष लोकप्रिय ललित मुद्रा का वाचक था। इसके ज्वलन्त उदाहरण भारत के विविध ऐतिहासिक केन्द्रों से प्राप्य हैं, जिसमें उच्चित्रित सुन्दरी अपने एक हाथ से वृक्ष-शाखा को नमित एवं दूसरा कटि-प्रदेश पर अलम्बित करती त्रिभङ्ग मुद्रा में विलसित है। कला के अतिरिक्त संस्कृत, पालि एवं प्राकृत साहित्य में भी इस ललित कला-मुद्रा का प्रचुर निरूपण प्राप्य है। इससे विशेष रूप से प्रभावित होनेवाले कवियों, लेखकों एवं समीक्षकों में अश्वघोष, कालिदास, श्रीहर्ष, बाणभट्ट, राजशेखर एवं गोवर्द्धनाचार्य उल्लेखनीय हैं। इनके ग्रन्थों में प्राप्य तत्सम्बन्धी विवरण कला, इतिहास एवं दर्शन की दृष्टि से रोचक, सारगर्भित एवं ज्ञानवर्द्धक हैं।
भारतीय कला के मर्मज्ञ डॉ. उदय नारायण राय ने प्राचीन ग्रन्थों का मन्थन कर साहित्यिक एवं पुरातत्त्वीय साक्ष्यों में सुन्दर सामंजस्य स्थापित करते हुए प्रस्तुत ग्रन्थ में इस ललित कला-मुद्रा का विस्तृत ऐतिहासिक परिचय एकत्र उपलब्ध कराने का अभिमत प्रयास किया है।
Hum, Bharat Ke Rajyon Ke Log
- Author Name:
Sanjeev Chopra
- Book Type:

- Description: भारत के नौ प्रान्त तथा वे 562 रियासतें जो अगस्त, 1947 में मौजूद थीं, आज आज़ादी के 75वें साल में देश के नक़्शे पर कहीं दिखाई नहीं देतीं, यह तथ्य अपनी राजनीतिक व प्रशासनिक सीमाओं को लेकर अपने नागरिकों को विश्वास में लेने की राष्ट्र की क्षमता को दर्शाता है। राज्यों के मद्देनज़र भारत की पुनर्कल्पना की प्रक्रिया एक तरफ़ जहाँ प्रशासनिक ज़रूरतों से प्रभावित हुई, वहीं आन्तरिक सीमाओं का पुनर्गठन विभिन्न भाषायी और जातीय समूहों की आकांक्षाओं को समायोजित करने के लिए भी हुआ, वे समूह जो राज्य और संघीय राजनीति में अपना स्थान चाहते थे। प्रस्तुत अध्ययन डॉ. संजीव चोपड़ा ने राज्य अभिलेखों और भूमि बन्दोबस्त के लिए भूमि मापन उपकरणों पर शोध के रूप में शुरू किया था, जो होते-होते राज्य सीमाओं के मानचित्रण तथा भारत के भूगोल के माध्यम से इसके समकालीन राजनीतिक इतिहास के आख्यान के रूप में बदल गया। इस पुस्तक में राज्य पुनर्गठन आयोग, भाषायी पुनर्गठन आयोग, राजकीय दस्तावेजों और विदेश तथा राष्ट्रमंडल कार्यालय के दस्तावेजों से ली गई मूल्यवान सामग्री के साथ इस आख्यान को रचा गया है। राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों के 1947 से अब तक हुए एकाधिक सीमा-निर्धारणों के बारे में यह पुस्तक प्रामाणिक तथ्यों के साथ प्रकाश डालती है। यह बताती है कि भारत ने कैसे अपने आपको लगातार पुनर्परिभाषित किया है और कर रहा है।
Uttar Pradesh Ka Swatantrata Sangram : Siddharthnagar
- Author Name:
Dr. Arun Kumar Tripathi
- Book Type:

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Description:
यह पुस्तक आजादी के आंदोलन में सिद्धार्थनगर जनपद के योगदान को रेखांकित करती है। विद्वान लेखक ने सम्यक् अध्ययन एवं शोध के उपरांत इस पुस्तक को लेखनीबद्ध किया है। मुगल आक्रांताओं से लोहा लेने के लिए सतासी राज्य के इतिहास से लेकर 1857 में हुई देशव्यापी ब्रिटिश विरोधी क्रांति तक इस जनपद के जन-गण ने अपनी भूमि और अपने देश के लिए जान हथेली पर रखकर संघर्ष किया।
19वीं सदी के आंदोलनों में यहाँ के लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। चौरी-चौरा जनक्रांति के पश्चात् इस जनपद के लोगों के आंदोलित होने पर तत्कालीन अधिकारियों ने शोहरतगढ़ के कांग्रेस कार्यालय को जला दिया था।
पं. परमेश्वर दत्त को कोड़ों से पीटा गया। शहीद बुधई की जान भी ऐसे ही अत्याचार के कारण गई। शहीद हबीबुल्लाह ने जेल में अनशन करके अपने प्राण त्याग दिए। ऐसी तमाम घटनाएँ इस जनपद के इतिहास में आज अपनी अलग ही चेतना से जगमगा रही हैं जिन्हें इस पुस्तक के माध्यम से देशभक्त जन के सामने लाया जा रहा है।
Magadhnama : Magadh Ke Itihas Ki Kathatmak Yatra
- Author Name:
Kumar Nirmalendu
- Book Type:

- Description: अपने आरम्भिक दिनों में वैदिक आर्य संस्कृति के प्रभाव से मुक्त रहा है। तब वह 'व्रात्य-सभ्यता' का केन्द्र हुआ करता था। वैसे आगे चलकर च्यवन और दधीचि जैसे ऋषियों का जन्म मगध में ही हुआ। अथर्ववेद की रचना भी यहीं हुई। मगध की धरती पर तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को तत्वज्ञान हुआ, चौबीसवें तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर को कैवल्य ज्ञान मिला; और गौतम सिद्धार्थ क्रो बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई। मगध की धरती पर यदि शूरवीरों की तलवारों की झंकार गूँजी; तो पूरी दुनिया को प्रेम, सत्य और अहिंसा का संदेश देनेवाले बुद्ध और महावीर की अमृतवाणी भी मुखरित हुई। महावीर ने राजगृह में पहला सामूहिक उपदेश दिया; और राजगृह के समीप पावापुरी में राजा संस्थिपाल के राजभवन में उनका देहान्त हुआ। कुल चौबीस जैन तीर्थंकरों में से दो को छोड़कर अन्य सभी ने मगध की धरती पर ही निर्वाण प्राप्त किया। यहीं खगोलविद् आर्यभट पैदा हुए और गद्यकवि बाणभट्ट भी। यहाँ चाणक्य और कामन्दक जैसे कूटनीति-दक्ष आचार्य हुए; तो जीवक और धनवन्तरि जैसे आयुर्वेदाचार्य भी। बिम्बिसार, अजातशत्रु, उदयिन, कालाशोक, महापद्मनन्द, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, पुष्यमित्र शुंग, चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य जैसे प्रतापी राजाओं की एक लम्बी शृंखला है, जिनकी जन्मदात्री होने पर किसी को भी गर्व हो सकता
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