Pracheen Itihas Mein Vigyan
Author:
Om Prakash PrasadPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 600
₹
750
Unavailable
हमारे यहाँ विज्ञान की जो तरक़्क़ी बहुत ज़्यादा नहीं हो सकी, उसका प्रमुख कारण जातिभेद रहा। मेहनत-मशक्कत यानी शूद्र शिल्पकारों के योगदान को सुविधाभोगियों और धामक ग्रन्थों ने छोटा काम समझ लिया; वेदान्त ने संसार को मिथ्या माया बताया, ऐसे में पृथ्वी को जानने-समझने का उत्साह कहाँ से आएगा। ध्यान से बड़ा है विज्ञान; जानने को ही विज्ञान कहते हैं। वैज्ञानिक कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि एक दृष्टि, एक विचार होता है।</p>
<p>यूँ तो भारत में वैज्ञानिक प्रागैतिहासिक काल से पाए जाते हैं किन्तु उनका नाम-पता हमें ज्ञात नहीं है। विश्व-प्रसिद्ध सिन्धु-सभ्यता का निर्माण ऐसे ही अनजान वैज्ञानिकों ने किया था। भूख, रोग, सर्दी एवं गर्मी से हमारी सुरक्षा भी वैज्ञानिकों ने की। पशुपालन और खेती से नया युग आया। इससे आदिम समाज का ख़ात्मा और श्रेणी अर्थात् वर्गीय समाज का आरम्भ हुआ। व्यापार की तरक़्क़ी, रोज़मर्रा के कामों में रुपए-पैसे का चलन और शहरों का जन्म—इन ऐतिहासिक घटनाओं ने शिल्पकार-शूद्र-कृषक वर्ग के पैरों में पड़ी ज़ंजीरों को खोलने का उपाय किया। परम्परावादी बन्धन अपने आप ढीले हो गए। माना जाने लगा कि आज़ाद लोग अच्छी और सख़्त मेहनत करते हैं।</p>
<p>पुरानी सभ्यताओं की टूटी-फूटी निशानियाँ धरती की छाती पर आज भी शेष हैं। यह स्पष्ट करने के लिए कि विज्ञान ही इतिहास का वास्तविक निर्माता होता है, इस पुस्तक में कुछ नवीन शीर्षक वाले लेखों को रखा गया है। इनमें प्रमुख हैं—प्राचीन विज्ञान एवं वैज्ञानिक, महाभारत, रामायण, शूद्र, मन्दिर, सिक्के, कला में विज्ञान, दक्षिण भारतीय अभिलेख, ज्योतिष विद्या : मिथक या यथार्थ, शिल्पकार आदि।</p>
<p>अभी तक इतिहास की मुख्यधारा से जनसाधारण को अलग ही रखा गया है। उदाहरण के लिए किसान-मज़दूर, इमारत बनाने वाले, बढ़ई, मछुआरा, हज्जाम, दाई, चरवाहा, कल-कारख़ानों में काम करने वाले और शहरों की स़फाई करने वाले आदि। इस पुस्तक में इन सबके योगदान की यथासम्भव चर्चा की गई है ताकि उनकी वैज्ञानिक दृष्टि और तकनीकी ज्ञान को समझा जा सके।
ISBN: 9789388183154
Pages: 312
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Shri Guruji : Prerak Vichar
- Author Name:
Sandeep Dev
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- Description: विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य ‘श्रीगुरुजी’ आध्यात्मिक विभूति थे। सन् 1940 से 1973 तक करीब 33 वर्ष संघ प्रमुख होने के नाते उन्होंने न केवल संघ को वैचारिक आधार प्रदान किया, उसके संविधान का निर्माण कराया, उसका देश भर में विस्तार किया, पूरे देश में संघ की शाखाओं को फैलाया। इस दौरान देश-विभाजन, भारत की आजादी, गांधी-हत्या, भारत व पाकिस्तान के बीच तीन-तीन युद्ध (कश्मीर सहित) एवं चीन का भारत पर आक्रमण जैसी ऐतिहासिक घटनाओं के भी साक्षी बने और उस इतिहास-निर्माण में लगातार हस्तक्षेप भी किया। श्रीगुरुजी सही मायने में न केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सारथि थे, बल्कि बँटवारे के समय वे पाकिस्तानी हिस्से के उस हिंदू समाज के उद्घाटक की भूमिका में भी थे, जिसे बँटवारे से उपजे सांप्रदायिक उन्माद से जूझने के लिए तत्कालीन सरकार ने बेबस छोड़ दिया था। यह पुस्तक श्रीगुरुजी के त्यागपूर्ण प्रेरणाप्रद जीवनी के साथ ही उनके ओजस्वी विचारों का नवनीत भी है।
Krishna Ki Leelabhumi : 21vin Sadi Mein Vrindavan
- Author Name:
John Stratton Hawley
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Description:
कृष्ण की लीलाभूमि : 21वीं सदी में वृन्दावन एक अत्यन्त प्यारे स्थान के बारे में है—कई लोग इसे भारत की आध्यात्मिक राजधानी भी कहते हैं। दिल्ली से कोई सौ मील की दूरी पर यमुना नदी के एक नाटकीय मोड़ पर स्थित वृन्दावन वह स्थान है जहाँ माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने अपना बचपन और युवावस्था बिताई थी। हिन्दुओं के लिए यह युवावस्था का प्रतीक रहा है—प्रेम और सुन्दरता का एक क्षेत्र जो दुनिया के बोझ और कठोरता को त्यागने में सक्षम बनाता है। हालाँकि, अब दुनिया वृन्दावन को निगल रही है। दिल्ली का महानगरीय फैलाव दिन-ब-दिन करीब आ रहा है—आधा शहर एक विशाल अचल सम्पत्ति के रूप में विकसित हो चुका है—और यमुना का पानी पीने तो क्या नहाने के लिए भी सुरक्षित नहीं है। मन्दिर अब खुद को थीम पार्क के रूप में बदल रहे हैं और कृष्ण के स्वर्गिक चरागाह में दुनिया की सबसे ऊँची धार्मिक इमारत निर्माणाधीन है।
क्या होता है जब एंथ्रोपोसीन युग हर चीज को वर्चुअल बना देता है? क्या होता है जब स्वर्ग को जोता जाता है? हमारे इस पूरे दौर की तरह, वृन्दावन शक्तिशाली ऊर्जा से सराबोर है, लेकिन क्या खतरे के संकेत धीरे-धीरे सामने नहीं आ रहे?
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