Bhartiya Rangmanch Ki Mahila Prampra
Author:
Aparna VenuPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
मानवीय सृजनशीलता की उत्कृष्टतम उपलब्धियों को सूचित करने वाली भारतीय रंगमंच की गरिमामयी परम्परा अति प्राचीन एवं अत्यंत समृद्ध रही है। प्राचीन काल से ही भारत में रंगमंचीय कलाओं का किसी न किसी रूप में प्रचार अवश्य होता रहा है, जो निरंतर विकास की दिशा में अग्रसर होते हुए समय-समय पर अपना परिष्कार करता रहा है। इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि भारत में प्राचीन काल से ही स्त्रियाँ रंगकर्म से अवश्य जुड़ी रही थीं। किन्तु हमारे रंगमंचीय अतीत एवं वर्तमान में महिलाओं की जो भूमिका रही है उसको विवेचित-विश्लेषित करना व इतिहासबद्ध तरीके से अंकित करने का कार्य तथाकथित रंगमंचीय इतिहासकारों व अध्येताओं ने नहीं के बराबर ही किया है। चाहे नाट्य-कृतियों का साहित्यिक इतिहास हो अथवा नाट्य-प्रदर्शन का रंगमंचीय इतिहास, महिला कलाकारों के योगदान को प्रायः हाशिए पर डाल दिया गया दिखाई देता है।
ISBN: 9788119133109
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: "देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कार्य क्षमता, बोलने की अनूठी शैली और आम व्यक्ति के साथ हर पल जुड़े रहने की इच्छा ने उनके व्यक्तित्व को अप्रतिम बना दिया है। नरेंद्र मोदीजी आज केवल एक व्यक्तित्व भर नहीं हैं, बल्कि वे हमारे देश के एक-एक नागरिक की आँखों की चमक हैं। नरेंद्र मोदीजी केवल अपने कदम बढ़ाने में यकीन नहीं रखते हैं, बल्कि वे कहते हैं कि मेरे साथ 130 करोड़ भारतीयों के कदम साथ चलेंगे, तो देश विकास के पथ पर अग्रसर होगा और भारत की पताका सदैव विश्व में सबसे ऊपर नजर आएगी। वे सकारात्मकता से भरपूर हैं। कठिन से कठिन परिस्थिति भी उन्हें विचलित नहीं करती। वे जितना अधिक राजनीति में बेजोड़ हैं, उतने ही शब्दों और विचारों के अधिकारी। उनकी बातें और उनका लेखन हर भारतीय में ऊर्जा, जोश और आत्मविश्वास का संचार करता है। यह पुस्तक नरेंद्र मोदीजी के प्रेरक विचारों का नवनीत है। यह पुस्तक हर भारतीय की सकारात्मकता को ऊर्जावान बनाने और उन्हें राष्ट्र के लिए समर्पित होने का भाव जाग्रत् करेगी।"
Bharat Ke Ateet Ki Khoj
- Author Name:
Virendra Kumar Pandey
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Description:
भारतीय धर्म ग्रंथ यह स्पष्ट संदेश देते हैं कि आधुनिक इतिहासकार जिन्हें भारतीय आर्य कहते हैं वे प्रथमत: हिमालय के उस पार के पर्वतीय अंचल में रहते थे। सीमित संसाधन और बढ़ते जन-घनत्व के कारण यहाँ के लोग हिमालय के इस पार आने और बसने लगे। ये लोग मुख्य रूप से दो शाखाओं में बँटकर दो भिन्न कालों में आये। एक शाखा कश्मीर में (हिमालय के आर-पार) बसी और दूसरी शाखा सरस्वती एवं सिन्धु के मैदानी भागों में जगह-जगह आबाद हुई। इन्हीं लोगों ने तथाकथित सिन्धु घाटी सभ्यता को जन्म दिया।
पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार 3200-3100 ई.पू. में कश्मीर मंडल में एक महाप्रलय आया और बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए। उनमें से एक समूह सरस्वती के पार कुरुक्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किये। समय के साथ इनका राज्य पूरे भारत में फैल गया। इन्हीं लोगों ने सर्वप्रथम अपने को आर्य घोषित किया और इसी वंश के एक प्रतापी राजा भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। इस प्रकार आर्य और भारत दोनो समानार्थी शब्द हैं।
अतएव शब्द आर्य भारत की शाब्दिक सम्पत्ति है, इसे भारतीयों ने जन्म दिया, कभी प्रजाति के अर्थ में प्रयोग नहीं किया, इसे केवल श्रेष्ठता के अर्थ में प्रयोग किया जाता रहा है और इतिहास को इसी अर्थ में इसे संरक्षित करना चाहिए। इसलिए किसी अन्य देश का इसपर कोई दावा नहीं बनता है और न ही किसी इतिहासकार द्वारा किसी भी अन्य देश में आर्यों के मूल स्थान को ढूँढ़ने का आधार प्रदान करता है।
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