Maimood
Author:
Shailesh MatiyaniPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Unavailable
"“ससुरी, शंकर धामी के तंत्र को बबाल कहती है?” शंकरधामी ने, उसके सिर के बालों को फिर खींचकर, सिंदूर मलना शुरू किया, “ठकुरानी, इसकी बातों में मत आओ। यह तुम्हारा बेटा नहीं बोल रहा है। ऐसा बोलनेवाला कल तक क्यों नहीं बोलता था? क्यों री, शंकर धामी से चाल चलती है? बचने का सहारा ढूँढ़ती है? बोल, सिंदूर-चूड़ी लेकर जाएगी? बोल, कंघी-फुन्ना लेके जाएगी? बोल-बोल, खिचड़ी खाके जाएगी? या करूँ चिमटा लाल? दूँ मिर्चों की खड़ी धूनी?”
बाहर उपन्याठीराम का ढोल बज रहा था। नगाड़े बज रहे थे। शंकर धामी ने फिर बाल खींचे, तो करन चीख उठा, क्षीण स्वर में, “माँ !...” ठकुरानी का कलेजा मुँह तक आ गया, “मेरे बेटे...!”
शंकर धामी शरीर को जोर से कँपकँपाते हुए बोला, “ससुरी, मंत्र मारूँ...? आँख से कानी, पाँव से लूली बनाऊँ? औरत जात है, दया करूँ, तो और सिर चढ़े! बोल, बोल, ओं, हींग-क्लींग-कुरू-कुरू-फट्-फट्-घमसानी...शमशानी...शंकरा...कंकरा... फट्-फट्...!”
—इसी अंक से
लोक की भाषा में उन्हीं की बात कहते-सुनते प्रसिद्ध साहित्यकार शैलेश मटियानी की सामाजिक कहानियों का एक और पठनीय संग्रह।
"
ISBN: 9789380183831
Pages: 200
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Ramchandra Guha +1
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- Description: भारतीय स्वातंत्र्यासाठी झालेला संघर्ष आणि लढा यांचा असाधारण इतिहास म्हणजे ‘रिबेल्स अगेन्स्ट द राज' हे पुस्तक होय. जो देश स्वत:चा नाही, त्याच्यासाठी लढणाऱ्या सात वीरांची ही बव्हंशी अपरिचित अशी कहाणी आहे. भारताच्या स्वातंत्र्यलढ्याला हातभार लावण्यासाठी एकोणिसाव्या शतकाच्या अखेरीपासून हे विदेशी वीर देशात दाखल होऊ लागले होते. या सातांपैकी चार ब्रिटिश होते, दोन अमेरिकी होते, तर एक आयरिश होती. त्यांत चार पुरुष आणि तीन स्त्रिया होत्या. कारावास भोगण्याआधी वा हद्दपार केले जाण्याआधी त्यांनी अनेक क्षेत्रांत पायाभूत कार्य केले होते. त्यांत पत्रकारिता, सामाजिक सुधारणा, शिक्षण, सेंद्रीय शेती आणि पर्यावरण यांचा अंतर्भाव होता. हे पुस्तक त्यांच्या कहाण्या सांगते. प्रत्येक बंडखोर आदर्शवाद आणि सच्च्या समर्पणवृत्तीने भारावलेला होता. प्रत्येक या ना त्या प्रकारे गांधींशी जोडला गेलेला होता. त्यांतील काही अनुयायी म्हणून तर काही त्यांच्या दृष्टिकोनाचे संतप्त विरोधक म्हणून. संघर्षाची परिणती तुरुंगवासात होऊ शकते, आणि त्यांचे उर्वरित आयुष्य भारतातच जाऊ शकते वा येथेच त्यांचा मृत्यूही होऊ शकतो, याची खूणगाठही प्रत्येकाने मनाशी बांधलेली होती. आपापल्या कार्यक्षेत्रात प्रत्येकाने आपला अमीट ठसा उमटवला होता आणि त्यांनी उभ्या केलेल्या संस्था तसेच त्यांनी घडविलेल्या पिढ्या व व्यक्ती यांच्या रूपाने त्यांचा वारसा आजही जिवंत आहे. आपसात गुंतलेल्या त्यांच्या जीवन प्रवासाच्या या गोष्टी, जगातील सर्वोत्तम इतिहासकारांमध्ये गणल्या जाणाऱ्या लेखकाने लक्षवेधकपणे मांडल्या आहेत. अर्थात या केवळ गोष्टी नाहीत, तर भारत आणि पाश्चात्त्य जग यांचे संबंध, ब्रिटिश वसाहतवादी सत्तेपलीकडील आपली ओळख तसेच नागरी स्वातंत्र्ये यांचा शोध घेणारे राष्ट्र म्हणून भारताची धडपड, यांविषयीची सखोल अंतर्दृष्टी देणाऱ्या अनोख्या कहाण्या आहेत. Rebels Against The Raj | Ramachandra Guha Translated By : Satish Kamat रिबेल्स अगेन्स्ट द राज | रामचंद्र गुहा अनुवाद : सतीश कामत
RSS : Kaya Aur Maya
- Author Name:
Devanura Mahadeva
- Book Type:

- Description: अब सौ साल का हुआ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दरअसल है क्या? इसकी काया के पीछे छुपी माया क्या है? अब जबकि संघ से जुड़ी एक पार्टी सत्ता पर मज़बूती से क़ाबिज़ है, यह भारत को किस दिशा में ले जा रहा है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके ग़ौरतलब जवाब देवनूर महादेव ने आर.एस.एस. : काया और माया में दिए हैं। मिथकों को आधुनिकता के और लोकवार्ताओं को गहरी राजनीतिक अन्तर्दृष्टि के बरअक्स रखकर देखने-परखने से हासिल इन जवाबों को पेश करते हुए, अपने ख़ास अन्दाज़ में वे पाठकों से आग्रह करते हैं : जब आर.एस.एस. का मायावी दानव भेष बदलकर हमारे दरवाज़े पर आता है, तब हमें उसकी बातों में नहीं आना चाहिए। ‘आज नक़द कल उधार’ की तर्ज़ पर हमें भी ग्रामवासियों की तरह अपने दरवाज़ों पर ‘नाले बा’ (कल आना) लिख देना चाहिए! कन्नड़ सहित अनेक भाषाओं में बिक्री के कीर्तिमान बना चुकी यह असाधारण किताब सांस्कृतिक आलोचना और ऐतिहासिक व्याख्या के साथ-साथ राजनीतिक कार्रवाई का आह्वान भी है।
Bharat Ke Shashak
- Author Name:
Rammanohar Lohia
- Book Type:

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Description:
राममनोहर लोहिया द्वारा गोवा हाईकोर्ट के चीफ़ जज को लिखे एक ख़त को ‘हरिजन सेवक’ के अक्टूबर, ’46 के एक अंक में पुनर्प्रकाशित करते हुए गांधी ने लिखा था कि ‘डॉ. लोहिया कोई मामूली आदमी नहीं’। यह तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य में लोहिया की महत्ता को रेखांकित करता है। लोहिया उन दिनों गोवा में आज़ादी की पैरवी कर रहे थे और गिरफ़्तार भी हुए थे।
इस पुस्तक में लोहिया के वे आलेख संकलित किए गए हैं जो उन्होंने समय-समय पर राजनीति, समाज, संस्कृति और भाषा आदि विषयों पर विचार करते हुए लिखे। भाषा और शब्दावली के लिहाज से उनका लेखन एक ऐसे व्यक्ति का लेखन है जिसके विचार उसके व्यवहार से पुष्ट होकर आते हैं और इसलिए अत्यन्त स्पष्ट रूप में व्यक्त होते हैं।
यहाँ संकलित लेखों में सबसे ध्यानाकर्षक हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की एकता की इच्छा को लेकर लिखे गए उनके लेख हैं जो उन्होंने बँटवारे के मात्र तीन-चार साल बाद लिखे थे। उनकी कामना थी कि अगर दोनों देशों के लोग थोड़ी भी विद्या-बुद्धि से काम करते चले गए तो दस-पाँच बरस में फिर से एक होकर रहेंगे। लेकिन दुखद है कि यह विद्या-बुद्धि प्रयोग में नहीं लाई जा सकी। इस सकारात्मक दृष्टि की हमें आज और ज़्यादा ज़रूरत है।
इसके अलावा भारत में शासक-परम्परा, समाजवाद, गांधीवाद और समाजवाद, जाति, स्त्री-पुरुष समानता, मातृभाषा की स्थिति, छुआछूत और मन्दिर प्रवेश जैसे विषयों पर भी आप यहाँ (उनके विचार) पढ़ सकेंगे। यह पुस्तक चिन्तक लोहिया के समग्र का एक प्रतिनिधि संकलन है।
Yashpal Ka Viplav-Vol. 4
- Author Name:
Yashpal
- Book Type:

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Description:
‘यशपाल का विप्लव’-4 में संकलित लेख स्वातंत्र्योत्तर भारत के लगभग सभी पहलुओं पर मंत्रणा करते दिखते है। फिर चाहे मुद्दा साहित्य, संस्कृति और भाषा का हो, कांग्रेसवाद बनाम मार्क्सवाद का हो, या एक नयी वैश्विक व्यवस्था में भारत की छवि और कर्तव्यों का हो। यहाँ एक ऐसी विस्तृत और समावेशी तस्वीर उभरती है जिसे किसी एक उपन्यास या कई कहानियों में भी समेटना नामुमकिन है। इस लिहाज़ से 'विप्लव' का चौथा भाग भारत के बौद्धिक इतिहास की प्रस्तावना उकेरता है—एक ऐसी पृष्ठभूमि जो आजादी से लेकर अबतक हमारे सामाजिक जीवन को प्रभावित-पोषित करता आई है।
इन लेखों में यशपाल एक दुस्साहसी संपादक के रूप में निखरते हैं जो अपनी लेखनी में तटस्थ पत्रकारिता, तथ्यपरक विवेचना और साहित्यिक स्वायत्तता की एक अनूठी मिसाल प्रस्तुत करता है। शैली और भाषा का एक ऐसा नमूना जो आज के दौर में बेहद प्रासंगिक है। यह कहना उचित होगा कि यशपाल का साहित्य और उनकी पत्रकारिता, दोनों क्रांतिकारी संघर्ष की बौद्धिक उपज हैं। और एक दूसरे के पूरक भी हैं। इसलिए यह किताब हिंदी साहित्य और भारतीय इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए अनिवार्य है।
Vikas Ki Rajneeti
- Author Name:
Vinay Sahasrabuddhe
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
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