Akbar Aur Tatkalin Bharat
Author:
Irfan HabibPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
प्रसिद्ध इतिहासकार इरफ़ान हबीब द्वारा सम्पादित यह पुस्तक ऐसे कई महत्त्वपूर्ण अध्ययनों को हमारे सामने रखती है, जिनमें अकबर, उसके साम्राज्य और तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक व आर्थिक वातावरण पर प्रकाश पड़ता है। मध्यकालीन भारतीय इतिहास के अधिकारी विद्वानों द्वारा लिखित इन गवेषणात्मक आलेखों से पाठक चार सदी पूर्व के भारत की राजनीति और सांस्कृतिक स्थिति की जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं।</p>
<p>अकबरकालीन प्रशासनिक व्यवस्था, राजनीतिक इतिहास, धार्मिक रीति तथा विचार, विज्ञान और तकनीकी की स्थिति, समाजार्थिक स्थितियाँ आदि कुछ विषय हैं जिनके बारे में ये निबन्ध हमें प्रामाणिक तथ्य उपलब्ध कराते हैं तथा मौजूदा अवधारणाओं का परिष्कार करते हुए तत्कालीन इतिहास के क्षेत्र में नई चुनौतियों और क्षेत्रों को चिह्नित करते हैं।</p>
<p>आज भारतीय जन-गण के लिए यह जानना भी बहुत ज़रूरी हो गया है कि एक राष्ट्र के रूप में हम एक संगठित राजनीतिक और सांस्कृतिक परम्परा के वारिस हैं। इस अर्थ में भी अकबर का राजनीतिक और सांस्कृतिक विज़न फ़ौरी तौर पर हमारे लिए अत्यन्त उपयोगी साबित हो सकता है।
ISBN: 9788126709793
Pages: 327
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: भारत के हृदय में स्थित विंध्याचल और सतपुड़ा की उपत्यकाएँ सघन वनों और पर्वत श्रेणियों के कारण प्राचीनकाल से ही दुर्गम रही हैं और भारत के इतिहास में इस क्षेत्र का उपयुक्त ऐतिहासिक विवरण मुश्किल से मिलता है। इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण इस पर उत्तर और दक्षिण की राजनीति का कम ही प्रभाव पड़ा। प्राचीनकाल में यहाँ मौर्यों, सातवाहनों, वाकाटकों, राष्ट्रकूटों, यादवों का आधिपत्य रहा। एक लम्बे अन्तराल के बाद खलजी और तुगलकों ने यादव सत्ता की चूलें हिला दीं। इसके बाद इस क्षेत्र में करीब दो सदियों तक कोई प्रबल सत्ता नहीं रही। दो सदियों के इस अंधकार युग के बाद चाँदा राज्य का उदय हुआ। इस कृति में चाँदा राज्य के उत्थान और पतन का वर्णन करने हेतु नवीनतम सामग्री का उपयोग किया गया है। इस सामग्री में समकालीन और लगभग समकालीन फारसी अखबारात और मराठी पत्रों का स्थान महत्त्वपूर्ण है। इस कृति की विशेषता यह भी है कि चाँदा के गोंड राज्य की वंशावली तथा जल-आपूर्ति व्यवस्था पर इसमें विशेष चर्चा की गयी है जो विभिन्न दृष्टिकोणों से इन विषयों पर प्रकाश डालने का प्रयास करती है। चूँकि मूल फारसी मराठी स्रोतों में तथा सनदों में इसे चाँदा राज्य कहा गया है अतः इस कृति में इसे चाँदा राज्य ही कहा गया है।
Bisaveen Sadi Ke Tanashah
- Author Name:
Ashok Kumar Pandey
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- Description: तानाशाही एक व्यक्ति की महत्वाकांक्षा का नतीजा होती है या कुछ सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक परिस्थितियाँ होती हैं जो किसी एक व्यक्ति के रूप में खुद को प्रकट करती हैं? क्या समाजों और राष्ट्रों के जीवन में कोई ऐसा क्षण आता है जब जन-गण स्वयं आत्मघाती हो उठता है और आँख मूँदकर किसी अधिनायक के पीछे चल पड़ता है? आज इक्कीसवीं सदी के इतने पारदर्शी समय में तानाशाही क्या किसी नए रूप की तलाश करेगी; और इन सवालों की रोशनी में हम, जो दुनिया के लोकतान्त्रिक देशों में अग्रणी रहे हैं, खुद को कहाँ देखते हैं! ‘बीसवीं सदी के तानाशाह’ मोटे तौर पर इन्हीं सवालों के जवाब तलाश करती है; कहने की जरूरत नहीं कि आज हमारे सामने मौजूद सबसे अहम सवाल भी यही है। हिटलर, स्तालिन, मुसोलिनी, उत्तरी कोरिया के किम इल-सुंग, चिली के ऑगस्तो पिनोशे और युगांडा के ईदी अमीन पर केन्द्रित इस पुस्तक का हर अध्याय इन नेताओं के समय की आन्तरिक और विश्व-राजनीति के निर्णायक आयामों पर रोशनी डालते हुए बताता है कि ये लोग कैसे उठे, कैसे गिरे और दुनिया ने, दुनिया के विचारकों ने उन्हें कैसे देखा-समझा। इतिहास अध्येता के रूप में अशोक कुमार पाडेय इतिहास के उन अध्यायों को हिन्दी पाठक के समक्ष लाते रहे हैं जिनका सीधा सम्बन्ध हमारी मौजूदा और आवश्यक प्रश्नाकुलताओं से है। इस प्रक्रिया में विचार उनका सहगामी रहा है। यह किताब इस यात्रा का एक और पड़ाव है और पाठकों को निश्चय ही अपने समय को लेकर सोचने और अपना पक्ष चुनने में मदद करेगी।
1857 Ke Amar Nayak Raja Jailal Singh
- Author Name:
Pratap Gopendra
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Description:
अखण्ड राष्ट्र के रूप में संगठित होने के पूर्व भारतवर्ष ने साहस एवं उत्सर्ग की अनगिनत परीक्षाएँ दी हैं। धीरोदात्त वीरों ने सैकड़ों वर्षों की आततायी शोषणकारी राज्य व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने के लिए अदम्य संघर्ष किये हैं। इन संघर्षो को इतिहास के अनेक स्वनाम-गुमनाम नायकों ने शक्ति एवं नेतृत्व प्रदान किया है। सूचना क्रान्ति के इस युग में ऐसी शख्सियतों व उनकी अमर कृतियों की खोज कर दिग्-दिगन्त तक उनका उद्घोष किया जाना चाहिए, जिससे युवा पीढ़ी को जीवन संघर्ष में अडिग रहने की प्रेरणा तो मिले ही, स्वतन्त्रता का मूल्य भी उनके हृदयों में दृढ़ता से स्थापित हो सके। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में राजा जयलाल सिंह ऐसे ही देदीप्यमान नक्षत्र हैं जिन्हें समय के बादलों ने आच्छादित कर रखा है। सत्तावनी क्रान्ति का एक ऐसा किरदार जिसने ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध व्यक्तिगत शौर्य का परिचय देते हुए न केवल प्रत्यक्ष युद्ध लड़े वरन सम्पूर्ण भारतवर्ष में क्रान्तिकारियों की आश्रयस्थली बने शहर लखनऊ में पूरे युद्ध-तन्त्र का संचालन व प्रबन्धन करते हुए अन्तिम नवाबी सरकार के मन्दराचल को कूर्मावतार बन अपनी पीठ पर धारण किया। स्वतन्त्र भारत का भव्य प्रासाद नींव के जिन कीर्त्ति स्तम्भों पर खड़ा है, निःसन्देह राजा जयलाल सिंह उनमें से एक हैं।
यह पुस्तक उनके व्यक्तित्व एवं उत्सर्गपूर्ण कृतित्वों को जानने-समझने का एकमात्र प्रामाणिक दस्तावेज है।
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