Basics of Tarot
Author:
Manisha KoushikPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
EnglishCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Unavailable
Tarot is a divination tool that not only shows the current situation of the person concerned but also gives an idea of what steps should be taken. This clarity is obtained through the pictorial presentation of the cards. Once the cards are held in the hands and are concentrated upon, the answers appear automatically in the cards.
Through this book one can quickly and easily learn the meanings of the cards along with a few spreads that would help in day to day readings. The tarot cards are 56 in number and for ease are divided into 4 suits namely � Wands, Cups, Swords and Coins. Seems Tough? Do not worry! For making it simple, a grid between numerology and the archetypes of the four suits has been provided which would help a novice to easily remember the meanings. Thus instead of 56 cards only 18 cards have to be understood. The tricks and shortcuts further simplify the cards and make it easy to memorize them.
The main aim of writing this book is to equip one with a reference book to guide those interested in learning this mystical science. Easy keywords have been given to memorize the cards, and short descriptions provided for reference.
ISBN: 9788184302257
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Bharatiya Rajsatta : Kitni Samvaidhanik
- Author Name:
Ram Lochan Singh
- Book Type:

- Description: यह पुस्तक परिश्रमपूर्वक इकट्ठी की गई शोध सामग्रियों के वैज्ञानिक विश्लेषणों के आधार पर लिखी गई एक ऐसी कृति है, जो यह दरशाती है कि स्वतंत्र भारत के संविधान की ‘प्रस्तावना’, ‘मौलिक अधिकारों’ और ‘राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों’ में प्रदत अवधारणाओं और भारतीय राजसत्ता के बीच जो विरोधाभाषी प्रवृत्ति आज पैदा हो गई है, उसका विकास किस तरह से क्रमिक गति से होता गया है। एक समाजवादी और लोक कल्याणकारी भारतीय गणतंत्र की जिस अवधारणा को स्वावलंबी आर्थिक विकास, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र की आर्थिक इकाइयों को सर्वोपरि महत्त्व के स्थान पर रखकर ‘समाजवादी ढाँचे के समाज’ के निर्माण के लिए चलाई जा रही आर्थिक-नीति में किस तरह के सैद्धांतिक भटकाव क्रमिक गति से आते गए कि उन्होंने इजारेदारियों को आगे बढ़ा दिया, सामंतवादी उत्पादन प्रणाली के अवशेषों को संपूर्णता में समाप्त करने में असपफल हो गए और सबसे बढ़कर साम्राज्यवादी वित्तीय पूँजी के साथ भारतीय राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के संबंधों को इस हद तक मजबूती प्रदान कर दी कि देश क्रमिक गति से आर्थिक तौर पर संकटग्रस्त होता चला गया। खास कर राजीव गांधी के शासन काल में नव-उदारवादी नीतियों की तरफ हुए अत्यधिक झुकाव के कारण भारत गहरे आर्थिक संकट में फँस गया। जरूरत थी पूर्व की कमजोरियों और गलतियों को ठीक करने की मगर नरसिम्हा राव सरकार ने इसके बदले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के सामने आत्मसमर्पण की नीति को अख्तियार कर पूर्व की सर्वमान्य स्वावलंबी विकास नीति के ठीक विपरीत नव-उदारवादी आर्थिक विकास नीति को स्वीकार करके विकास प्रक्रिया को एक विपरीत दिशा में मोड़ दिया। इसके परिणामस्वरूप जिस आर्थिक आधार का निर्माण भारत में हो रहा है वह वर्तमान संविधान की आत्मा के ठीक उल्टा है। अब तो संविधान को ही बदल देने की माँग बड़ी पूँजी के तावेदार राजनीतिक दल करने लगे हैं, जो भारत को न तो समाजवादी-लोक कल्याणकारी राज्य रहने देगा न अर्थव्यवस्था पर सरकार का नियंत्राण। इससे राज सत्ता का स्वरूप ही बदल दिए जाने का खतरा है।
Bharat : Ek Vichar-Parampara
- Author Name:
Prem Kumar Mani
- Book Type:

- Description: भारत क्या है—आज इस सवाल को पूछना, इसके उत्तर तलाश करना और एक राष्ट्र के रूप में भारत की संरचना को समझना बहुत ज़रूरी हो गया है। समय है कि अकादमिक बहसों-विमर्शों से आगे बढ़कर इस सवाल पर आम जन की आम भाषा में बात हो। ‘भारत : एक विचार-परम्परा’ इसी दिशा में एक बड़ा क़दम है। इसका उद्देश्य भारतखंड की हज़ारों वर्षों की सामाजिक-सांस्कृतिक यात्रा पर दृष्टिपात करते हुए यह जानना है कि वह क्या चीज़ है कि ‘हस्ती मिटती नहीं हमारी’? वह क्या तत्व है जो आरम्भ से अब तक इस इतने लम्बे सफ़र की प्रेरणा-पूँजी रहा है। सिन्धु नदी के किनारे उगी-उभरी सभ्यता कैसे आगे बढ़ी; वेदों का, उपनिषदों का समय आया, हड़प्पा और मुअन-जो-दड़ो विकसित हुए, तक्षशिला जैसे ज्ञान के महान केन्द्र अस्तित्व में आए, मगध में विचारों और विचारकों का इतना जमावड़ा हुआ; बौद्ध दर्शन, जहाँ उद्भूत हुआ, मध्यकाल में जिसने विदेशी आक्रान्ताओं का सामना किया, ब्रिटिश शासन का लम्बा औपनिवेशिक दौर देखा, और लम्बे संघर्ष के उपरान्त विभाजन जैसी विभीषिका के साथ स्वतंत्रता प्राप्त की। लेकिन एक विचार के रूप में भारत भारत ही बना रहा; समय से सीखता ख़ुद को बदलता, आगे बढ़ता। यह पुस्तक इस पूरी यात्रा पर दृष्टिपात करती है और हमें अपनी सुदीर्घ वैचारिक परम्परा के मद्देनज़र एक मत स्थिर करने में मदद करती है।
Writing on the Wall: Reflections on the North-East
- Author Name:
Sanjoy Hazarika
- Rating:
- Book Type:

- Description: Decades of State and non-State violence in PBI – India’s landlocked North-east have taken a heavy toll on livelihoods, incomes, governance, growth and image, besides lives. Despite vast amounts of money being pumped into the region, basic needs and minimum services are yet to be met in terms of connectivity, health, education and power. What are the possible ways forward as the region stands at a crossroads? These fifteen personal essays provide an insider’s take on wide-ranging issues: from the Brahmaputra and the use of natural resources to peace talks in Nagaland; from the Centre’s failure to repeal the hated Armed Forces Special Powers Act, threats to the environment, corruption in government and extortion by armed groups to New Delhi’s Look East Policy and much more. Yet, as these essays make clear, hope, though distant, is not absent or lost. Restoring governance through people-driven development programmes, peace building through civil society initiatives, assuring the pre-eminence of local communities as evident in Hazarika’s conversations with the legendary Naga leader, Th. Muivah, and simple economic interventions through appropriate technologies — boats and health care, community mobilization and micro-credit — hold promise for solutions to the web of violence, poverty and marginalization. Writing on the Wall is a passionate call to all stakeholders in the North-east to embrace dialogue and use given platforms for peace, to go beyond the politics of tolerance to that of mutual respect. Only such multi-disciplinary, innovative approaches, rooted in realism, can bring stability and sustainable change to the region.
Afghanistan : Kal, Aaj Aur Kal
- Author Name:
Vedpratap Vaidik
- Book Type:

- Description: अफ़गान-संकट पर दुनिया की अनेक भाषाओं में सैकड़ों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं लेकिन यह ग्रन्थ ज़रा लीक से हटकर है। यह अफ़ग़ानिस्तान के वर्तमान संकट की जड़ों को खोजने के लिए उसके अतीत को खँगालता है और अतीत की व्याख्या उसके वर्तमान के सन्दर्भ में करता है। अफ़ग़ानिस्तान के अतीत और वर्तमान इस ग्रन्थ में सतत संगोष्ठी करते हुए दिखाई पड़ते हैं। यह ग्रन्थ अफ़ग़ानिस्तान का कोरा इतिहास नहीं है। उसके इतिहास, वर्तमान और भविष्य का दर्शन है। यह अफ़ग़ानिस्तान के त्रिकाल की जीवन्त और सरस व्याख्या है। हिन्दी में ही नहीं, दुनिया की किसी भी भाषा में समसामयिक अफ़ग़ानिस्तान पर प्रस्तुत किया जानेवाला यह सर्वप्रथम मौलिक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ से पाठकों को पता चलेगा कि आर्यों, बौद्धों और हिन्दुओं का यह देश कभी ‘आर्याना’ कहलाता था। पाणिनी, गांधारी और गोरखनाथ का यह देश इस्लामी कैसे बना? यह देश अब भी इस्लाम से संचालित होता है या उसके पहले से चली आ रही जातीय परम्पराओं से? अफ़ग़ानिस्तान में ऐसे कौन-से ख़ज़ाने छिपे हुए हैं, जिन्हें पाने के लिए ब्रिटिश और रूसी साम्राज्यों ने काबुल में अपने घुटने तुड़वाए और विश्व-विजेता सिकन्दर, सम्राट अशोक तथा चंगेज़ ख़ान ने हिन्दुकुश के गगनचुम्बी हिम-शिखरों को पार किया? पिछले दो सौ वर्षों में महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा ने अफ़ग़ानिस्तान में क्या-क्या विविध और विलक्षण रूप धारण किए और आगामी समय में उसका हश्र क्या हो सकता है, इसका विवेचन डॉ. वेदप्रताप वैदिक जैसे अधिकारी विद्वान से बेहतर कौन कर सकता है? रूसी और फ़ारसी भाषा के जानकार तथा कई दशकों से अफ़ग़ानिस्तान की शोध-यात्राएँ करनेवाले डॉ. वैदिक ने अफ़ग़ान राजवंशों की अन्दरूनी खींचतान और सत्तारूढ़ गुटों की राजनीति के अनेक अनजाने पहलुओं को भी इस ग्रन्थ में उजागर किया है। अफ़ग़ानिस्तान आतंकवाद का अड्डा कैसे बना और उससे मुक्त कैसे हुआ, इसका चित्रोपम वर्णन तो इस ग्रन्थ में है ही, भारत-पाक-अफ़ग़ान सम्बन्धों के अनेक रहस्यमय और रोचक पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया है। यह ग्रन्थ प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों, शोधकर्त्ताओं और नीति-निर्माताओं के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगा।
Swatantrata Aandolan Ka Itihas (1857-1947)
- Author Name:
Shashiprabha Srivastav
- Book Type:

-
Description:
स्वतंत्रता का महापर्व पीड़ा, यातना, त्याग व बलिदान के बीहड़ मार्ग से होकर आया है। इस मार्ग पर लहूलुहान होती, मरती-खपती एक पूरी की पूरी पीढ़ी ने अपना जीवनकाल गुज़ारा है। न्याय व अधिकार के लिए संघर्षरत पिछली पीढ़ी के साहस, ओज, शक्ति और साथ ही उसकी पीड़ा, यातना, त्याग का ज्ञान अपनी पूरी गरिमा के साथ नई पीढ़ी को होना ही चाहिए। यह संघर्ष उस शक्ति से था जिसके राज्य में सूर्य कभी अस्त ही नहीं होता था। हम विजयी हुए, इसलिए कि पूरा भारत अपनी विभिन्न प्रतिरोधक शक्तियों के साथ उठ खड़ा हुआ। यह युद्ध एक साथ राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक सभी मंचों से लड़ा गया। अंग्रेज़ों के साथ लड़ते हुए हमने अपनी बुराइयों तथा अपने लोगों से भी युद्ध किया।
इस पुस्तक के दादा जी यूँ तो काल्पनिक पात्र हैं, लेकिन यदि कहा जाए कि राष्ट्रीय आन्दोलन की आत्मा को उनमें केन्द्रित किया गया है तो झूठ न होगा। उस दौर में अनेक ऐसे लोग थे जिन्होंने आन्दोलन के पीछे रहकर काम किया। साम्राज्यवाद की मार से बिखरे-टूटे परिवार के सदस्यों को सहारा ही नहीं दिया, उन्हें माता-पिता की कमी तक खलने नहीं दी। साम्प्रदायिक दंगों तथा विभाजन के अवसर पर हारे-थके बेसहारा लोगों की रक्षा की। अपने को, अपने व्यक्तिगत सुख, लाभ-हानि को भुलाकर पूरी तरह गांधीवादी विचारधारा में डूब गए। मगर आज वे गुमनामी की दुनिया में खो गए हैं। ऐसी सभी पुण्य आत्माओं को दादा जी के रूप में याद किया गया है। दादा जी के सहारे ही इस इतिहास खंड को कथात्मक रूप दिया जा सका है।
ज़रूरत इस बात की है कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता-संग्राम से किशोर पाठकों का भावनात्मक लगाव उत्पन्न
हो। वे इस संघर्ष की गौरवमय कथा को जानें, स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करें और आज़ादी के वास्तविक मूल्य को पहचानें। किशोर पाठकों के लिए सरल-सहज भाषा-शैली में लिखी गई यह पुस्तक निश्चय ही चाव से पढ़ी जाएगी, ऐसा हमारा विश्वास है।
Gram Swarajya
- Author Name:
Mohandas Karamchand Gandhi
- Book Type:

- Description: ग्राम स्वराज्य—महात्मा गांधी, यह सोचना गलत है कि गांधीजी आज के उद्योगीकरण के बारे में बहुत पुराने विचार रखते थे। सच पूछा जाए तो वे उद्योगों के यंत्रीकरण के विरुद्ध नहीं थे। गाँवों के लाखों कारीगरों को काम दे सकनेवाले छोटे यंत्रों में जो भी सुधार किया जाए, उसका वे स्वागत करते थे। गांधीजी बड़े-बड़े कारखानों में विपुल मात्रा में माल पैदा करने के बजाय देश के विशाल जन-समुदायों द्वारा अपने घरों और झोंपड़ों में माल का उत्पादन करने की हिमायत करते थे। वे भारत के प्रत्येक सबल व्यक्ति को पूरा काम देने के बारे में बहुत अधिक चिंतित रहते थे और मानते थे कि यह ध्येय तभी सिद्ध होगा जब गाँवों में सुचारु रूप से ग्रामोद्योगों तथा कुटीर उद्योगों का संगठन और संचालन किया जाएगा। महात्मा गांधी ग्राम-पंचायतों के संगठन द्वारा आर्थिक और राजनीतिक सत्ता के विकेंद्रीकरण का जोरदार समर्थन करते थे। दुर्भाग्य से आर्थिक जीवन के नैतिक और आध्यात्मिक पहलू की हमेशा उपेक्षा की गई है, जिसके फलस्वरूप सच्चे मानव-कल्याण को बड़ी हानि पहुँची है। आधुनिक अर्थशास्त्री अब इस महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पर जोर देने लगे हैं कि यदि हमें विशाल पैमाने पर तीव्र गति से आर्थिक विकास साधना है तो ‘वस्तुओं की गुणवत्ता’ बढ़ाने के साथ ‘मनुष्यता की गुणवत्ता’ भी बढ़ानी चाहिए। अतः वर्तमान परिस्थिति में गांधीजी के ‘ग्राम स्वराज्य’ की अवधारणा के पठन-पाठन की महती आवश्यकता है।
Hitopadesh Ki Kahaniyan
- Author Name:
Shyamji Verma
- Book Type:

- Description: "मानवजाति के विकास का मूल अधिकार ही मानवाधिकार है। मानवाधिकारों के विश्वव्यापी घोषणा-पत्र में नागरिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों पर 30 अनुच्छेद हैं। भारत के संविधान के अंतर्गत मानवीय मूल्यों का विकास और मानव के सम्मान की रक्षा हो सके, यह मानवाधिकार आयोग के कार्यक्षेत्र में है। विश्व समुदाय में शांति, सद्भाव, भाईचारा बना रहे और वह अपनी निजता के साथ अपने नैसर्गिक अधिकारों का उपयोग कर सके, इस बात को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर, 1948 को मानवाधिकारों के विश्वव्यापी घोषणा-पत्र को स्वीकार किया गया। ऐसे सभी अधिकार, जो व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं प्रतिष्ठा से जुड़े हैं, भारतीय संविधान के भाग-3 में मूलभूत अधिकारों के रूप में वर्णित हैं। इसके अतिरिक्त ऐसे अधिकार, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मान्यता प्राप्त है, मानवाधिकार कहा गया है। मानवाधिकारों का सही ढंग से संरक्षण हो और उसका उल्लंघन करनेवालों को दंडित किया जाए, इस उद्देश्य से मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया है। आयोग को मुख्यत: मानवाधिकारों के संरक्षण, प्रशासन व्यवस्था में सुधार आदि की जिम्मेदारी सौंपी गई है। पीड़ित व्यक्ति आयोग के माध्यम से अपने अधिकारों का संरक्षण कर सकता है। मानवाधिकार आयोग समाज में मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता जाग्रत् करने के लिए निरंतर प्रयासरत है। प्रस्तुत पुस्तक आम जन को इस विषय में विस्तृत जानकारी देने का विनम्र प्रयास है। "
Meri Vichar Yatra (Dalit-Muslim:Saman Samasyayen Saman Dharatal)
- Author Name:
Ramvilas Paswan
- Book Type:

- Description: यह रामविलास पासवान के वैचारिक लेखों की दूसरी पुस्तक है। इस पुस्तक में 63 लेख संकलित हैं, जिन्हें अपने आक्रामक तेवर के लिए भी जाना जाता है। ये लेख देश की ज्वलन्त समस्याओं पर रोशनी डालते हैं। ये आलेख यह भी बताते हैं कि सामाजिक न्याय ही देश की खुशहाली का एकमात्र विकल्प है। छह अध्यायों में विभाजित इस पुस्तक का प्रथम अध्याय जहां दलित-मुस्लिम एकता से सम्बन्धित विषयों पर प्रकाश डालता है, वहीं दूसरा अध्याय बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कश्मीर आदि से सम्बन्धित समस्याओं की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित करता है। तीसरे अध्याय में रामविलास जी ने संवैधानिक मुद्दों को बेबाकी से रेखांकित किया है। इन लेखों को अपने सरोकारों और चिन्तनपरकता के कारण नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता, खासकर दलितों में क्रीमी लेयर: किस बात की बहस' तथा 'भारतीय न्यायिक सेवा का गठन जरूरी है। जैसे लेख ।अध्याय चार और पांच आतंकवाद और परमाणु नीति को लेकर हैं, जिनमें रामविलास जी ने प्रभावशाली ढंग से सटीक तर्कों के साथ अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। अन्तिम अध्याय विदेश नीति और अन्तर्राष्ट्रीय गतिविधियों से जुड़ा है। इस अध्याय को पढ़कर रामविलास जी के व्यक्तित्व के एक नये पहलू का पता चलता है। विश्व की घटनाओं पर उनकी पैनी नजर हमेशा रही है। गोर्बाचोव के बाद रूस, भारत-पाक वार्ता, अफगानिस्तान, इराक, अमेरिका और उसके नये राष्ट्रपति बराक ओबामा, नेपाल तथा सद्दाम से जुड़े लेख उनके से राजनीतिक व्यक्तित्व को कई नए आयाम देते हैं।
Narendra Modi Ka Sainya-Prem
- Author Name:
Mahesh Dutt Sharma
- Book Type:

- Description: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रकाश का पर्व दीवाली कभी पाकिस्तान की सीमा से लगे राजस्थान के जैसलमेर में जवानों के साथ मनाते हैं तो कभी कश्मीर के नौशेरा में। वे हमेशा सेना के मनोबल को सर्वोच्च बनाए रखने के हिमायती रहे हैं। उनका यह स्वभाव उनके अनन्य सैन्य-प्रेम को दरशाता है। मोदीजी को एक ऐसा मजबूत राजनेता माना जाता है, जो दृढ़ संकल्प के साथ भारत की क्षेत्रीय रक्षा कर सकता है; क्योंकि उन्होंने वर्ष 2016 में पाकिस्तान में संदिग्ध आतंकवादी शिविरों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक का आदेश दिया; फिर लद्दाख में चीनी सैन्य दबाव को समाप्त करने के लिए उनकी दृढ़ नीति और जम्मू व कश्मीर में ऑपरेशन ‘ऑल आउट’ द्वारा भी मोदी ने आतंकवाद व देश विरोधी गतिविधयों के विरुद्ध ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाई है। अपनी मजबूत सैन्य-प्रेमी छवि का विस्तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सर्जिकल स्ट्राइक हो या कश्मीर में आतंकवाद से मुकाबला, प्रधानमंत्री मोदी ने सेना को स्वयं निर्णय लेने की पूरी छूट दी है। इस कारण न केवल सेना का मनोबल बढ़ा है वरन सामान्य भारतीय के मन में सेना के प्रति सम्मान बढ़ा है। सेना के आधुनिकीकरण और अधुनातन अस्त्र-शस्त्र, टैंक, मिसाइल, लाइट वेट हेलीकॉप्टर—ये सब अब भारत में बन रहे हैं। सेना के आधुनिकीकरण के साथ ही स्वदेशी की अवधारणा को भी प्रधानमंत्री मोदी ने संपुष्ट किया है। प्रस्तुत पुस्तक में प्रधानमंत्री मोदी के सैन्य-प्रेम और भारतवर्ष की एकता-अखंडता को अक्षुण्ण रखने के उनके संकल्प की यशोगाथा है।
Tughluq Kaleen Bharat : Vol. 1
- Author Name:
Saiyad Athar Abbas Rizvi
- Book Type:

-
Description:
यह ग्रन्थ तुग़लक़ बादशाहों के महत्त्वपूर्ण कालखंड सन् 1320 से 1351 ई. पर केन्द्रित है। इस दौर में शासन की बागडोर सुल्तान ग़यासुद्दीन और मुहम्मद बिन तुग़लक़ जैसे बादशाहों के हाथों में थी। यह ग्रन्थ उस युग की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध कराता है।
फ़ारसी, अरबी, अंग्रेज़ी और हिन्दी के विद्वान और इतिहासकार डॉ. सैयद अतहर अब्बास रिज़वी ने इस ग्रन्थ का सम्पादन-अनुवाद किया है। उन्होंने इस ग्रन्थ में तत्सम्बन्धी अरबी और फ़ारसी में उपलब्ध तमाम ऐतिहासिक दस्तावेज़ों और सामग्रियों का उपयोग किया है जिनमें ज़ियाउद्दीन बरनी, एसामी, बद्रे चाच, अमीर ख़ुर्द, इब्ने बतूता, शिहाबुद्दीन अल उमरी, यहया, मुहम्मद बिहामद ख़ानी, निज़ामुद्दीन अहमद, अब्दुल क़ादिर बदायूँनी, अली बिन अज़ीज़ुल्लाह तबातबा, मीर मुहम्मद मासूम और फ़िरिश्ता जैसे विद्वान लेखकों, इतिहासकारों के ग्रन्थ शामिल हैं।
अनुवाद में फ़ारसी, अरबी के प्रचलित नियमों को, जिनका पालन इतिहासकार करते रहे हैं, ध्यान में रखा गया है। साथ ही आवश्यक टिप्पणियाँ भी जगह-जगह दर्ज कर दी गई हैं ताकि पाठकों को विषय को समझने में सुविधा हो।
इतिहास के छात्रों, शिक्षकों, शोधार्थियों और इतिहासकारों के साथ-साथ इतिहास में रुचि रखनेवाले आम पाठकों के लिए भी ग्रन्थ संग्रहणीय है।
Vishwa Itihas Ki Bhumika
- Author Name:
Ramsharan Sharma
- Book Type:

-
Description:
पृथ्वी की आयु चार अरब साठ करोड़ वर्ष से ज़्यादा मानी गई है और पृथ्वी तल पर जीवन की उत्पत्ति कोई तीन अरब पचास करोड़ वर्ष पहले। 15-20 लाख वर्ष पहले पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में प्रथम मानव कहे जानेवाले ‘होमो हैविलिस’ का आविर्भाव हुआ तथा ‘होमो सेपीयन्स’ का दक्षिणी अफ्रीका में जन्म 1,15,000 वर्ष पूर्व हुआ। आधुनिक मनुष्य का उद्भव इसी से माना जाता है, जिसका इतिहास पुरापाषाण युग (6 लाख वर्ष ई.पू. से 10 हजार ई.पू.) से आरम्भ होता है, और हम तक आता है।
प्रख्यात इतिहासकार रामशरण शर्मा और कृष्णकुमार मंडल की यह पुस्तक हमें इस पूरी इतिहास-यात्रा का संक्षिप्त, लेकिन सारगर्भित और सप्रमाण ब्यौरा उपलब्ध कराती है। आदिम सभ्यता से लेकर यूरोप के धर्मसुधार के समय तक चरणबद्ध रूप में लिखा गया यह इतिहास सिर्फ़ राजनीतिक घटनाओं तक सीमित नहीं है, इसमें विज्ञान, समाज और दर्शन के क्षेत्र में होनेवाले वैचारिक परिवर्तनों तथा उद्भावनाओं के रास्ते से भी विश्व की प्रगति को समझा गया है।
इतिहास के जिन महत्त्वपूर्ण चरणों का विवरण इस पुस्तक में समाहित है, वे हैं : आदिम सभ्यता, प्राचीन मिस्र की सभ्यता, शहरी सभ्यताओं का उदय, पहली सहस्राब्दी ई.पू. के धर्मसुधार-आन्दोलन, यूनान, रोम और प्राचीन भारत की सभ्यता, इस्लाम का उदय और प्रसार, सामन्त प्रथा और मध्यकालीन यूरोप, यूरोप का रेनेसाँ और धर्मसुधार।
पुस्तक की विशेषता है रोचक उपशीर्षकों के माध्यम से प्रत्येक कालखंड के क्रम-विकास का रेखांकन जिससे इसे न सिर्फ़ पढ़ना रुचिकर हो जाता है, बल्कि सम्बन्धित विषय की जानकारी तक भी सुगमतापूर्वक पहुँचा जा सकता है। इतिहास के जिज्ञासुओं तथा विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी पुस्तक।
Rashtriya Swayamsevak Sangh : Swarnim Bharat Ke Disha-Sootra
- Author Name:
Sunil Ambekar
- Book Type:

- Description: यद्यपि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दीर्घ-यात्रा पर अनेक पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं, फिर भी संघ सदैव ही सुर्खियों में रहता है। हाल के दिनों में संघ के कामकाज को लेकर उत्सुकता बढ़ गई है, क्योंकि एक ओर इन दिनों में बहुत से स्वयंसेवक सरकार में शीर्ष पदों पर पहुँचे हैं, वहीं दूसरी ओर संघ के हिंदू-राष्ट्र और एकात्मता के मूल विचार अब हमारे सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र की मुख्यधारा बन गए हैं। भारत के लिए संघ का दृष्टिकोण क्या है? यदि भारत एक हिंदू-राष्ट्र बन जाता है, तो इसमें मुसलमानों और अन्य धर्मों का क्या स्थान होगा? इतिहास-लेखन की संघ की परियोजना कितनी बड़ी है? क्या हिंदुत्व जाति की राजनीति को खत्म कर देगा? परिवार की बदलती प्रकृति और विभिन्न सामाजिक अधिकारों पसंघ का क्या दृष्टिकोण है? संघ के वरिष्ठ प्रचारक सुनील आंबेकरजी ने इस पुस्तक में इन सवालों का विश्लेषण किया है। आंबेकरजी को तथ्यों की गहरी समझ है, इसी कारण से वे विचार की स्पष्टता और उसके विस्तार, दोनों पर ध्यान केंद्रित करने में सफल हुए हैं। एक स्वयंसेवक के रूप में उन्होंने शाखा पद्धति में कार्य किया है और उसे अपने जीवन में जिया है, उसी के आधार पर संघ की आंतरिक कार्य-प्रणाली, निर्णय-प्रक्रिया और समन्वयक-दृष्टि पर गहराई से दृष्टिपात किया है। वास्तविक जीवन के अनुभवों से भरपूर ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र’ उन सभी के लिए एक पठनीय पुस्तक है, जो संघ-शक्ति की कार्यप्रणाली और इसकी भविष्य की योजनाओं को समझने के इच्छुक हैं।
Kaushambi : Prachin Bharat Ka Ek Gauravshali Nagar
- Author Name:
Kumar Nirmalendu
- Book Type:

- Description: प्राचीन भारत का एक गौरवशाली नगर कौशाम्बी ऐतिहासिक दृष्टि से अशोक, कनिष्क, समुद्रगुप्त, हर्षवर्द्धन आदि प्रतापी शासकों की महत्वाकांक्षा का एक प्रमुख केन्द्र था। उत्तर वैदिक काल से मुग़लकाल तक कौशाम्बी का पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक महत्त्व भारतीय ग्रन्थों में प्रतिबिम्बित है। कौशाम्बी के उत्खनन के दौरान प्रथम सहस्राब्दी ई.पू. की आरम्भिक शताब्दियों में नगरीकरण और नगर के दुर्गीकरण के स्पष्ट संकेत मिले हैं। यहाँ यमुना नदी के बाएँ तट पर उदयिन का बनवाया हुआ एक क़िला था, जिसके भग्नावशेष एक विशाल टीले के रूप में कोसम और गढ़वा नामक ग्रामों के बीच में स्थित है। गुप्त-साम्राज्य के विघटन के साथ ही कौशाम्बी नगर भी पतनोन्मुख हो गया। गुप्त-साम्राज्य के बाद छोटे-बड़े कई राजवंशों का प्रादुर्भाव हुआ। नए राजधानी नगरों के उदय के कारण कौशाम्बी का महत्त्व स्वाभाविक रूप से कम हो गया। इसी बीच हूण हमलावरों के आक्रमण के कारण कौशाम्बी नगर तहस-नहस हो गया। इतिहास की एक समृद्ध थाती को अपने सीने में सँजोए यह पुरातन नगर अपने गौरवशाली अतीत को पुनर्जीवित करने के लिए मानो आकुल है। यह पुस्तक कौशाम्बी की उसी अकुलाहट से उपजा एक क्षीण-मन्द राग है। इसमें इतिहास के तमाम आरोहों-अवरोहों को यथासम्भव स्वर देने का प्रयास किया गया ह
Bhartiya Samantwad
- Author Name:
Ramsharan Sharma
- Book Type:

-
Description:
भारतीय इतिहास में सामन्ती ढाँचे के स्वरूप को लेकर इतिहासकारों के बीच आज भी मतभेद बरक़रार हैं, अब भी पत्र-पत्रिकाओं में इस विषय पर बहस चलती रहती है। प्रस्तुत पुस्तक में प्रो. रामशरण शर्मा ने पहली बार भारतीय सामन्तवाद के सम्पूर्ण पक्षों को लेकर उन पर सांगोपांग विवेचन प्रस्तुत किया था। तब से लेकर आज तक न केवल इस पुस्तक के अंग्रेज़ी में एक से अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं, बल्कि भारतीय सामन्तवाद के सर्वांगीण अध्ययन के लिए दूसरी कोई पुस्तक आज तक सामने नहीं आई है।
प्रस्तुत पुस्तक में प्रो. शर्मा ने भारतीय सामन्तवाद के जन्म से लेकर उसके प्रौढ़ होने तक प्रायः नौ सौ वर्षों के इतिहास का विवेचन किया है, जिसके दायरे में उन्होंने अनेक समस्याएँ उठाई हैं और कालान्तर से उनके विशद विवेचन का मार्ग प्रशस्त किया है। क्षेत्र की दृष्टि से उनका यह अध्ययन मुख्यतः उत्तर भारत तक सीमित है और इसमें उन्होंने सामन्तवाद के राजनीतिक तथा आर्थिक पहलुओं पर ही विशेष रूप से विचार किया है। सामन्तवादी व्यवस्था में किसानों और किराए के मज़दूरों की दुर्दशा का सविस्तार विवेचन करते हुए प्रो. शर्मा ने दिखाया है कि कैसे श्रीमन्त वर्ग अपने उच्चतर अधिकारों के द्वारा उपज का सारा अतिरिक्त हिस्सा हड़प लेता था और किसानों के पास उतना ही छोड़ता था जितना खा-पीकर वे उस वर्ग के लाभ के लिए आगे भी मेहनत-मशक़्क़त करते रह सकें।
भारतीय इतिहास, भारतीय समाज और भारतीय संस्कृति के अध्येताओं के लिए यह पुस्तक न सिर्फ़ उपयोगी है बल्कि अपरिहार्य भी है। इसमें प्रस्तुत की गई मूल स्थापनाएँ आज भी अकाट्य हैं।
Gandhi Aur Akathaniya : Satya Ke Sath Unka Antim Prayog
- Author Name:
James W. Douglass
- Book Type:

- Description: “इतिहास जब-तब जीवन की शक्तियों और मृत्यु की शक्तियों के बीच ऐसे संघर्षों का साक्षी बनता है जहाँ एक ओर, मृत्यु की शक्ति की हर पराजय असत्य पर सत्य की विजय में आस्था को बल प्रदान करती है तो दूसरी ओर, असत्य की हर कामयाबी में मनुष्यता के सम्पूर्ण विनाश की सम्भावना निहित होती है। अहिंसा में गाँधी की आस्था और उनके हत्यारों की पथभ्रष्ट विचारधारा पर आधारित जेम्स डॅगलॅस की यह गहन शोधपरक, छोटी-सी अद्भुत कृति उन दो परस्पर विरोधी फ़लसफ़ों की एक वाग्मितापूर्ण कहानी है जिनका सामना आज मानव-जाति कर रही है—एक ऐसी कहानी जो हमें ठहरकर सोचने के लिए विवश करती है।” —नारायण देसाई
Bhrashtachar Bharat Chhodho
- Author Name:
Kiran Bedi
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Hadappa Sabhyata Aur Vaidik Sahitya
- Author Name:
Bhagwan Singh
- Book Type:

-
Description:
हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य (1987) के प्रकाशन से पहले तक इतिहासकार और पुरातत्त्वविद् अपने-अपने क्षेत्रों में अर्ध-दिग्भ्रमित से प्राचीनतम इतिहास को समझने का प्रयत्न कर रहे थे और अपने साक्ष्यों से टकराते हुए ख़ुद पछाड़ खाकर गिर जाते थे। अन्तर्विरोधी दावों का ऐसा दबाव था कि उनके पक्ष में प्रमाण भी नहीं मिल रहे थे और फिर भी उनका निषेध नहीं हो पा रहा था। सच तो यह है कि न तो इतिहास को अपना पुरातत्त्व मिल रहा था, न पुरातत्त्व को अपना इतिहास। ‘हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य’ के प्रकाशन ने इन दोनों अनुशासनों और इनके प्रमाण-पुरुषों के आत्मनिर्वासन को पहली बार पूरे अधिकार और विपुल प्रमाणों के साथ खंडित किया और उसके बाद भारतीय पुरातत्त्व में पुरातात्त्विक सामग्री को साहित्य से जोड़कर भी देखने का आरम्भ हुआ। इस अर्थ में इसे एक युगान्तरकारी कृति के रूप में स्वीकार किया गया।
इस बीच शब्दमीमांसा को आधार बनाकर भी लेखक ने ऋग्वैदिक भाषा का अध्ययन किया और साहित्यिक सन्दर्भ से हटकर उनके शब्दों के मूलार्थ को ग्रहण करते हुए तकनीकी शब्दावली के आधार पर अपनी स्थापनाओं की जाँच करते हुए लेखक इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इनसे उसकी स्थापनाओं की पुष्टि ही नहीं होती, अपितु ‘हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य’ में प्रकाशित उसकी स्थापनाएँ आइसबर्ग के दृश्य भाग को ही प्रकट कर पाई हैं। हड़प्पा सभ्यता के लगभग सभी प्रमुख पार्थिव लक्षणों की पुष्टि तो ऋग्वेद से होती ही है, यह ऐसे अनेक उदात्त और जीवन्त सांस्कृतिक पक्षों का भी उद्घाटन करता है जिनकी आशा पार्थिव अवशेषों से की ही नहीं जा सकती। उसके इस अध्ययन का सार The Vedic Harappans (1995) के रूप में प्रकाशित हुआ।
इस पुस्तक के वर्तमान संस्करण में इस पक्ष का समावेश भी किया गया है जिससे इसकी सार्थकता इसके ही पूर्व संस्करणों से अधिक बढ़ जाती है। इस संस्करण को आदि से अन्त तक सम्पादित करते हुए कुछ और भी परिवर्द्धन-संशोधन किए गए हैं। हड़प्पा सभ्यता का वैभव और वैदिक साहित्य की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को समझने की दृष्टि से यह पुस्तक अनन्य है।
Swadheenta Sangharsh Aur Police
- Author Name:
Ajay Shankar Pandey
- Book Type:

-
Description:
इस पुस्तक में अत्यन्त विरोधाभासपूर्ण मनःस्थिति से गुज़र रहे समाज में क़ानून-व्यवस्था स्थापित करनेवाले तंत्र की सफलता या असफलता का मूल्यांकन करने का प्रयास किया गया है। एक ऐसे समाज में शान्ति-व्यवस्था बनाए रखना, अपराध स्थिति पर नियंत्रण रखना उतना दुष्कर कार्य नहीं है, जो प्रशासनिक एवं पुलिस ढाँचे को अपना ही सृजन एवं अंग स्वीकृत करता हो; परन्तु जिस समाज की मनोदशा यह रही हो कि प्रशासनिक तंत्र उसके लक्ष्यों के मार्ग में बाधक है, उनका दुश्मन है, उसमें शान्ति-व्यवस्था स्थापित करना, अपराध स्थिति पर नियंत्रण रखना अत्यन्त कठिन एवं दुष्कर कार्य अवश्य होता है।
जिस समाज में शान्ति छोड़कर या प्रशासनिक तंत्र को चुनौती देकर अपना लक्ष्य हासिल होने की उम्मीद हो, ऐसे मनोभावों वाले समाज में क़ानून-व्यवस्था स्थापित करना, अपराध स्थिति पर नियंत्रण रखना किस प्रकार, कितनी सफलता के साथ सम्भव हो सका?—निष्कर्षात्मक रूप में ऐसे मूल प्रत्ययों को विश्लेषणात्मक रूप से स्थापित करने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है।
पुस्तक में राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे स्वतंत्रता आन्दोलन एवं विचारधारा को चरणबद्ध तरीक़े से विवेचित किया गया है। राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रत्येक चरण की विवेचना के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में अपराध स्थिति एवं पुलिस तंत्र के गठन एवं उनमें होनेवाले परिवर्तनों को भी विवेचना का विषय बनाया गया है। यह देखने एवं मूल्यांकित करने का प्रयास किया गया है कि राष्ट्रीय आन्दोलन की विचारधारा एवं राष्ट्रीय आन्दोलन की घटनाओं ने अपराध स्थिति को कहाँ तक प्रभावित किया है। पुलिस तंत्र के ढाँचे में होनेवाले परिवर्तनों को भी राष्ट्रीय आन्दोलन की घटनाओं, अपराध स्थिति पर उसके अनुवर्ती प्रभाव के दृष्टिकोण से विवेचित करने का प्रयास किया गया है।
The Hero of Kargil & Other Stories
- Author Name:
Lt. Gen. Yashwant Mande
- Book Type:

- Description: The stories in this book pertain to the wars, which India has fought since its Independence in 1962, 65, 71 and 99. The war stories have always aroused the curiosity of the readers. Although many books have been written on conflicts between India and its neighbours, no author has attempted to write stories. This book is therefore unique, the only one of its kind, a book of fiction on events and characters, in the background of war. The wars have topical interest and as time passes, one forgets them and gets engrossed in current issues. This is natural. However, certain events such as missile attack on Karachi, shattering of enemy offensive by Hunter aircraft at Longewala, the role played by the aircraft carrier INS VIKRANT and the heroics of men in uniform have a lasting value, an element of permanence. These stories provide insight into ethos, culture and lifestyle of the armed forces, their values, hardships and character. The stories narrate the account of war and unfold its conduct in easy and interesting manner. The stories have been written in simple and endearing style. It is a book, which ought to be read by all, the old and young.
Yashpal Ka Viplav Vol. 1-4
- Author Name:
Yashpal
- Book Type:

- Description: संकलित लेख स्वातंत्र्योत्तर भारत के लगभग सभी पहलुओं पर मंत्रणा करते दिखते है। फिर चाहे मुद्दा साहित्य, संस्कृति और भाषा का हो, कांग्रेसवाद बनाम मार्क्सवाद का हो, या एक नयी वैश्विक व्यवस्था में भारत की छवि और कर्तव्यों का हो। यहाँ एक ऐसी विस्तृत और समावेशी तस्वीर उभरती है जिसे किसी एक उपन्यास या कई कहानियों में भी समेटना नामुमकिन है। इस लिहाज़ से 'विप्लव' का चौथा भाग भारत के बौद्धिक इतिहास की प्रस्तावना उकेरता है—एक ऐसी पृष्ठभूमि जो आजादी से लेकर अबतक हमारे सामाजिक जीवन को प्रभावित-पोषित करता आई है। इन लेखों में यशपाल एक दुस्साहसी संपादक के रूप में निखरते हैं जो अपनी लेखनी में तटस्थ पत्रकारिता, तथ्यपरक विवेचना और साहित्यिक स्वायत्तता की एक अनूठी मिसाल प्रस्तुत करता है। शैली और भाषा का एक ऐसा नमूना जो आज के दौर में बेहद प्रासंगिक है। यह कहना उचित होगा कि यशपाल का साहित्य और उनकी पत्रकारिता, दोनों क्रांतिकारी संघर्ष की बौद्धिक उपज हैं। और एक दूसरे के पूरक भी हैं। इसलिए यह किताब हिंदी साहित्य और भारतीय इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए अनिवार्य है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...