Vartman Bharat
Author:
Vedpratap VaidikPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 236
₹
295
Unavailable
वर्तमान भारत हमारे समय का दर्पण है। समसामयिक भारत की ज्वलन्त समस्याओं पर प्रखर एवं निर्भीक प्रतिक्रियाओं का यह दस्तावेज़ हिन्दी की विशिष्ट उपलब्धि है। वर्तमान भारत के निबन्ध वर्णनात्मक नहीं, विश्लेषणात्मक हैं। प्रत्येक निबन्ध विचाराधीन विषय के कार्य-कारण में गहरे उतरता है, इतिहास को खँगालता है और अनागत के आयामों को अनावृत्त करता है। इसीलिए यह ग्रन्थ पत्रकारिता का पाथेय तो है ही, इसमें दर्शन, राजनीतिशास्त्र और इतिहास का भी प्रांजल परिपाक हुआ है।
इस ग्रन्थ के निबन्ध हिन्दी में मौलिक चिन्तन और उसकी सशक्त अभिव्यक्ति के नए प्रतिमान क़ायम करते हैं। भारत के भवितव्य से वेलेंटाइन डे तक, सोनिया गांधी के ग़ुस्से से फूलन के बहाने तक, परमाणु विस्फोट से तहलका तक, धर्म की मोमबत्ती से भगवाकरण तक और कश्मीर से ट्रिनिडाड तक फैले विषयों की विविधता इन निबन्धों को मौलिक विचारों के इन्द्रधनुष में ढाल देती है। मौलिक विचार ही नहीं, मौलिक विचार-भाषा के लिए भी हिन्दी जगत इन निबन्धों का स्वागत करेगा।
हिन्दी को कविता, कहानी और उपन्यास के दायरे से ऊपर उठाकर शुद्ध विचार और विश्लेषण का माध्यम बनानेवालों में वेदप्रताप वैदिक का नाम अग्रणी है। समसामयिक इतिहास पर लिखना इतिहास का निर्माण करना ही है, ख़ास तौर से तब जबकि लिखे हुए को सर्वोच्च नीति-निर्माताओं से लेकर जनसाधारण तक लाखों लोग एक साथ पढ़ते हों। इतिहास की लकीरें क़लम की नोक से गहरी खिंचती हैं या तलवार की नोक से, यह कहना कठिन है लेकिन इन निबन्धों में क़लम तलवार की तरह चली है, इसमें ज़रा भी शक नहीं है। मूर्धन्य पत्रकार और शीर्ष चिन्तक डॉ. वैदिक की क़लम से निसृत ये निबन्ध चिन्तनशील पत्रकारों, विद्वानों, राजनीतिज्ञों और प्रबुद्ध पाठकों के लिए सद्यः सन्दर्भ की भाँति उपयोगी सिद्ध होंगे।
ISBN: VartmanBharatHardCover
Pages: 231
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: इस पुस्तक का हर लेख एक विषय पर केंद्रित है। किसी को कम श्रेष्ठ कहना कठिन काम है। पुस्तक के लेखों का समग्र फलक बहुत बड़ा है। इसकी व्यापकता में राजनीति, संसद्, राजनीतिक मर्यादा, संस्कृति, राजनीतिक इतिहास, शिक्षा, देश के ज्वंलत प्रश्न, हिंदू-मुसलिम संबंध, पाकिस्तान और काला धन आदि विषय समाए हुए हैं। राजनीति के केंद्र और परिधि में जो-जो विषय आ सकते हैं, उन्हें इसमें पाया जा सकता है। एक अर्थ में यह कहना ज्यादा उचित है कि इसमें समसामयिक विषयों में से कुछ छूटा ही नहीं है। सब कुछ आ गया है। विषय अलग-अलग हैं। इन्हें पढ़ते हुए पाठक भाषा का मनोरम प्रवाह अनुभव कर सकेंगे। उलझाव तो कहीं नहीं है। एक राजनीतिक दल के नेता और सांसद की कलम पर कई बार इतना बोझ आ जाता है कि वह ठिठक जाती है। कुंठित हो जाती है। इसे लेखन में लेखक कोशिश कर छिपाता है, पर वह छिपता नहीं है। रवींद्र किशोर सिन्हा ने न तो बोझ महसूस किया है और न ही वे लेखन में कहीं से पाठक को गुफाओं से गुजारते हैं। इसलिए इन लेखों को पढ़ते हुए किसी गुफा से गुजरने की ऊब नहीं होती। हर पाठक अनुभव कर सकता है कि वह पौ फटने की बेला में है। नया दिन नए विचार और नए दृष्टिकोण से शुरू करने का उसे सुअवसर प्राप्त हो रहा है। अपनी राजनीतिक-सांस्कृतिक निष्ठा बनाए रखते हुए वे पेशेवर मर्यादाओं का अपने लेखों में पूरा पालन करते देखे जा सकते हैं। —इसी पुस्तक से
Hindustan Mein Jaat Satta
- Author Name:
Jan Dalosh
- Book Type:

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Description:
मुग़ल साम्राज्य की अवनति के बारे में उपलब्ध यूरोपीय प्रलेखों में पादरी एफ.एक्स. वैदेल द्वारा फ़्रेंच भाषा में लिखित वृत्त-लेखों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। टीफैनथेलर और मोदाव के समकालीन वैदेल ने उत्तर भारत के राजनीतिक मामलों के सम्बन्ध में बहुत कुछ लिखा है। उसमें जाट-सत्ता सम्बन्धी वृत्त-लेख प्राथमिक स्रोत होने के कारण सबसे मूल्यवान हैं। ये वृत्तलेख मुग़ल राजतंत्र की तत्कालीन स्थिति और मुग़ल साम्राज्य के पतन में जाटों की भूमिका को समझने के लिए एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ हैं।
वस्तुत: वैदेल धर्मप्रचारक के छद्म वेश में अंग्रेज़ों के लिए तत्कालीन शक्तिशाली जाट-शक्ति की जासूसी कर रहा था। आभिजात्य संस्कार वाला वैदेल जब किसी भारतीय घटना, वस्तु या व्यक्ति के किसी एक पक्ष की सूचना देता है तो वह व्यक्तिनिष्ठ अवधारणा के वशीभूत होकर उनको यूरोपीय मानदंड से परखता है और भारतीयों को हेयदृष्टि से देखता है। परन्तु जब वह परिस्थिति, घटना और व्यक्तियों का उनकी समग्रता में वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन करता है तो वह तीक्ष्ण बुद्धिवाला विश्लेषक दृष्टिगोचर होता है। इतिहासकारों की तथ्य-अन्वेषक दृष्टि इस अन्तर को समझकर, पूर्वग्रह के झीने परदे को हटाकर इन तर्कसंगत विश्लेषणों को खोज लेती है। तत्कालीन मुख्य घटनाओं के ये विश्लेषण इतिहास की थाती हैं। इसी प्रकार वैदेल ने मुग़ल साम्राज्य के पतन के ज़िम्मेदार मुहम्मदशाह, अहमदशाह आदि अयोग्य शासकों, गुटबन्दी में लिप्त सफ़दरजंग, ग़ाज़ीउद्दीन ख़ाँ और नजीबुद्दौला, उनके स्वार्थी वजीरों तथा जाट-शक्ति के उन्नायक बदनसिंह, सूरजमल उघैर जवाहरसिंह के चरित्रों का उनकी समग्रता में मूल्यांकन करने में सफलता प्राप्त की है। संक्षेप में, वैदेल ने अठारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में पश्चिमोत्तर भारत की मुख्य रूप से मुग़ल और जाट-शक्तियों के साथ-साथ मराठा, सिख एवं राजपूतों की राजनैतिक शक्तियों की रूपरेखाओं का अंकन करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। तत्कालीन सामान्य अवनति और राजनैतिक अस्थिरता के परिदृश्य में वैभवशाली जाट-सत्ता के कृषि-आधारित आर्थिक विकास के कारण सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन के शोध के लिए भी वैदेल ने पर्याप्त सामग्री उपलब्ध कराई है, जिसकी ओर विद्वानों का अभी तक ध्यान नहीं गया है।
Namo Sarkar Ke Teen Varsh
- Author Name:
Praveen Gugnani
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Jatiyon Ka Loktantra : Jati Aur Chunav
- Author Name:
Arvind Mohan
- Book Type:

- Description: इस किताब का उद्देश्य भारत के चुनावी लोकतंत्र और उसमें जाति की भूमिका को समझना है। यह एक कठिन काम है, क्योंकि एक सामाजिक शक्ति के रूप में खुद जाति को समझना भी आसान नहीं है। आधुनिकता, शिक्षा और समझदारी के भूमंडलीय विस्तार के बावजूद भारतीय समाज में जाति जहाँ थी, अब भी वहीं है। बल्कि अब वह ज्यादा आत्मविश्वास के साथ सामने आ रही है। चुनावों में अब उसकी निर्णायक स्थिति को हर कोई स्वीकार कर चुका है; जातिवार जनगणना की बातें हो रही हैं; राजनीतिक पार्टियाँ, नेता और मतदाताओं के बीच जातियों के आधार पर नए ध्रुवीकरण हो रहे हैं, टूट भी रहे हैं, फिर बन भी रहे हैं। इसलिए यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि क्या जाति की इस राजनीतिक सक्रियता का कोई पैटर्न भी है, क्या कोई तरीका है यह जानने का कि जातियों की सतत गतिशील चुनावी गोलबन्दियाँ कैसे काम करती हैं। जाहिर है जिस देश में साढ़े चार हजार से ज्यादा समुदाय मौजूद हों, वहाँ इस सवाल को लेकर समाज में उतरना समुद्र में उतरने जैसा है। वरिष्ठ पत्रकार, अरविन्द मोहन ने इस किताब में यही किया है। पत्रकारिता और चुनाव-अध्ययन के लगभग चार दशक के अपने अनुभव के आधार पर उन्होंने इस किताब में पिछले 76 सालों के बदलावों को समझने और कुछ निर्णायक प्रतीत होनेवाली प्रवृत्तियों को रेखांकित करने की कोशिश की है। यह जटिल और सुदीर्घ अध्ययन उन्होंने राज्यवार विश्लेषण के आधार पर किया है। इससे पता चलता है कि यूपी-बिहार ही नहीं, लगभग पूरे देश का चुनावी भूगोल जातियों के आधार पर बनता-बिगड़ता है।
Vikalphin Nahin Hai Duniya
- Author Name:
Kishan Patnayak
- Book Type:

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Description:
‘विकल्पहीन नहीं है दुनिया’ किशन पटनायक के राजनैतिक चिन्तन का पहला प्रतिनिधि संकलन है। इस पुस्तक के अधिकांश निबन्ध पिछले दो दशकों में लिखे गए हैं जब देश और दुनिया के बदलते चेहरे को समझने में स्थापित विचार की अक्षमता ज़ाहिर हो गई है। स्थापित राजनैतिक विचारधाराएँ जड़ तथा अप्रासंगिक होती जा रही हैं और बुद्धिजीवी आज की दुनिया के सवालों से पलायन कर रहे हैं। बढ़ती विषमता और नैतिक पतन के सवालों को उठाने की इच्छा, सामर्थ्य और भाषा तक ख़त्म होती जा रही है। विचार के इस संकट के दौर में यह पुस्तक एक नया युगधर्म ढूँढ़ने की कोशिश करती है।
इस नए युगधर्म को यहाँ कोई नाम नहीं दिया गया है। यह किंचित् अनगढ़ देशीय चिन्तन गांधी और समाजवादी विचार परम्परा के साथ–साथ जनान्दोलनों के अनुभव से प्रेरणा ग्रहण करता है, लेकिन किसी इष्ट देवता या वैचारिक बाइबिल का सहारा नहीं लेता है। समता और नैतिकता की कसौटियों का पुनरुद्धार करने के इस प्रयास की परिधि में एक ओर आधुनिक सभ्यता के संकट, विज्ञान और टेक्नोलॉजी के चरित्र और नैतिकता के स्रोत जैसे अमूर्त सवाल शामिल हैं। दूसरी ओर यह चिन्ता अपने मूर्त रूप में सोमालिया के अकाल से कालाहांडी की भुखमरी तक फैली है, नाइजीरिया में सारो वीवा की हत्या और मणीबेली की डूब को एक सूत्र में पिरोती है, शूद्र राजनीति की सम्भावनाओं और धर्मनिरपेक्षता के भविष्य के रिश्ते की शिनाख़्त करती है।
इस पुस्तक के ‘प्रवक्ता’ किशन पटनायक राजनीति में वैचारिक स्पष्टता, चारित्रिक शुद्धता और बुद्धि तथा मन के बीच मेल के लिए जाने जाते हैं। अकादमिक पांडित्य के बोझ और राजनैतिक वाक् युद्ध के गाली–गलौज से अलग हटकर यह पुस्तक वैचारिक बारीकी और राजनैतिक प्रतिबद्धता को गूँथने की एक नई शैली प्रदान करती है।
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