Patrakarita : Naya Daur, Naye Pratiman
Author:
Santosh BhartiyaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Media0 Reviews
Price: ₹ 144
₹
180
Unavailable
संतोष भारतीय ने महत्त्वपूर्ण पत्रकारिता की है। वे कुशल संवाददाता रहे हैं और ‘चौथी दुनिया’ से सम्पादन की निपुणता भी दिखा चुके हैं। मगर फ़ैज़ के भाव में ‘कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया’ की उधेड़बुन के चलते शायद वे कहीं ठहर-से गए। राजनीति की तरफ़ वे ज़्यादा न झुकते तो और सार्थक काम करते। बहरहाल, उनकी किताब ‘पत्रकारिता : नया दौर, नए प्रतिमान’ सिरे से पढ़ने के क़ाबिल है। इसमें उनके ‘रविवार’ और ‘चौथी दुनिया’ के दिनों के संस्मरण हैं, अपने रपट-रिपोर्ताज हैं और साथ में सम्पादक-उपसम्पादक और संवाददाता आदि की ज़िम्मेवारियों का विवेचन है। इस तरह एक मायने में किताब पत्रकारिता की पाठ्य-पुस्तक बन गई है। साफ़गोई और बेबाक टिप्पणियों के लिए यह किताब अलग से जानी जाएगी। हालाँकि उनके कुछ निष्कर्ष भावुकता-भरे हैं, कुछ से आप शायद सहमत न हों। पर वे बहुत दिलचस्प हैं और हमें हिन्दी पत्रकारिता के एक अहम दौर की घटनाओं पर फिर से सोचने को उकसाते हैं।</p>
<p>—ओम थानवी
ISBN: PatrakaritaNayaDaurNayePratimanPaperBack
Pages: 311
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: इस पुस्तक के उद्देश्य और स्वरूप को लेकर लेखकीय टिप्पणी इस प्रकार है—“प्रशासनिक, व्यावसायिक एवं कार्यालयी स्तर पर हिन्दी प्रयोग के प्रयास विभिन्न स्तरों पर किए जा रहे हैं, किन्तु उनमें विभिन्न कारणों से एकरूपता और एकसूत्रता का अभाव है। प्रस्तुत पुस्तक में इन अभावों के आधारभूत कारणों को तलाशते हुए, प्रायोगिक स्तर पर हिन्दी के व्यावहारिक स्वरूप का एक सुस्पष्ट प्रतिमान सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है।” निश्चय ही लेखक–द्वय के इस प्रयास को यहाँ सार्थक हुआ देखा जा सकता है। उन्होंने इस पुस्तक को तीन अध्यायों में विभाजित कर विषय–विवेचन को एक सुसंगति प्रदान की है, ख़ासकर ‘समाचार–लेखन’ और ‘प्रारूप– लेखन’ नामक अध्यायों में। इनके अतिरिक्त तीसरे अध्याय ‘अशुद्धि–शोधन’ में अशुद्धि के विभिन्न स्तरों का गम्भीरतापूर्वक विवेचन किया है। कहने की आवश्यकता नहीं कि अपने संक्षिप्त कलेवर में भी अपने विषय की यह एक संग्रहणीय पुस्तक है।
Khabrein Vistar Se
- Author Name:
Shyam Kashyap +1
- Book Type:

-
Description:
भारतीय भाषाओं में टीवी पत्रकारिता के बारे में पढ़ने-पढ़ाने के लिए किताबें या तो लिखी ही नहीं गईं या फिर वे ऐसी नहीं हैं जो इस कमी को पूरी तरह भर सकें। हिन्दी में तो एक भी ढंग की किताब नहीं है। ‘ख़बरें विस्तार से’ का प्रकाशन इस दिशा में सार्थक प्रयास है।
टेलीविज़न के समाचारों का संकलन, सम्पादन, प्रस्तुतीकरण, वाचन और प्रसारण कैसे और किस तरह से होता है—यानी वे कौन लोग हैं जो ख़बरें लाते, बनाते और दिखाते हैं? एंकर, रिपोर्टर, प्रोड्यूसर, कैमरामैन, वीडियो एडिटर आदि बनने के लिए कहाँ जाएँ, क्या करें? या फिर समाचार चैनलों में कैसे काम होता है? ख़बरों की शूटिंग से लेकर प्रसारित होने तक में किस तरह की तकनीक का प्रयोग होता है? इन सारे सवालों का जवाब पाठक को ‘ख़बरें विस्तार से’ में मिल सकता है। इसे ठेठ भारतीय सन्दर्भ को ध्यान में रखकर लिखा गया है। यह किताब टीवी और ख़बरों की दुनिया को पूरी तरह समझने में मदद करती है। पुस्तक की रूपरेखा इस ढंग से तैयार की गई है कि पाठकों का परिचय टीवी न्यूज़ की बदलती दुनिया से भी हो और ख़बरें बनने की प्रक्रिया को समझने में भी उन्हें सुविधा हो। पुस्तक में न्यूज़ चैनलों की सम्पादकीय और तकनीकी कार्यप्रणाली की विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है। ‘ख़बरें विस्तार से’ टेलीविज़न पत्रकारिता के छात्रों व शिक्षकों के साथ सामान्य पाठकों के लिए भी उपयोगी होगी, ऐसा हमारा विश्वास है।
Dakhinn Bharat Ki Hindi Patrakarita
- Author Name:
Ravindra Katyayan
- Book Type:

- Description: Dakhinn Bharat Ki Hindi Patrakarita
Media Jantantra Aur Atankvad
- Author Name:
Sudhish Pachauri
- Book Type:

-
Description:
ग्यारह सितम्बर की सुबह दो अमेरिकी टॉवरें ही नहीं गिरीं, मीडिया की ‘बाइनरी’ यानी ‘विलोमवाची मीडिया’ टावरें भी गिर गईं। ग्यारह सितम्बर के बाद का मीडिया एक क़िस्म के विकेन्द्रण की चपेट में है। अब एक मामूली-सा अरबी चैनल ‘अलजजीरा’, ‘सी.एन.एन.’ पर भारी है। मीडिया का कंटेंट अब ‘पहचान के चिह्नों’ को, उसके ‘भावकों’ को सक्रिय करता है और वे ही पलटकर उसका कंटेंट बनाते हैं। आप स्टूडियो में जो बनाते हैं, वही कंटेंट नहीं होता। जो उसे रिसीव करता है, ग्रहण करता है वह अपना कंटेंट बनाता है। यह एक प्रकार की उत्तर-संरचनावादी अनेकार्थता है जो मीडिया बनाने लगा है और जो नज़र आने लगी है।
आतंकवाद जनतन्त्र का विलोम है। वह स्वयं किसी जनतन्त्र को नहीं मानता। न उसे बने रहने देना चाहता है। ऐसे में यदि जनतन्त्र स्वयं ही सिकुड़ने लगे या कि उसे सत्ता सिकोड़ने लगे तो आतंकवाद को ही ताकत मिलती है। शुरू में लग सकता है कि आतंकवादी जनतन्त्र का लाभ उठा रहे हैं, उन्हें रोकना चाहिए। चूँकि मीडिया अब तक सत्ता संवलित जनतन्त्र पर पलता आया है और उसने आतंकवाद को हमेशा ऑफ़िसियल नज़र से देखा है, इसलिए वह उसे न दिखाने में यक़ीन किया करते हैं। इससे आतंकवाद की साख बढ़ती है, बिन लादेन का मिथक्करण इसी कारण है। तब क्या करें ? इस मामले में बाबा तुलसीदास हमारे बड़े काम के हैं और अपने चैनलों को तुलसीदास का रावण-वर्णन इन दिनों ज़रूर पढ़ना चाहिए। आतंकवाद सूचना की पकड़ से बाहर रहस्य बनकर सूचना बनता है। उसे और बाहर कर देने से उसी की मदद होती है। आतंकवाद मीडिया युग की राजनीतिक कार्रवाई है। उसका भूत मीडिया ही उतार सकता है। वह जितना सूचना में रहेगा उतना ही संवाद में रहेगा। जितना संवाद में रहेगा उतना ही जनतन्त्र में आकर सहज बनेगा।
Vigyapan Aur Jansampark
- Author Name:
Mukti Nath Jha
- Book Type:

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Description:
यह पुस्तक विज्ञापन और जनसम्पर्क संचार की विधा को रेखांकित करती है। इस पुस्तक में विज्ञापन के विविध स्वरूपों की विस्तार से चर्चा की गई है। विज्ञापन को परिभाषित करते हुए इसके विविध प्रकार, माध्यमों एवं लाभ की विस्तृत विवेचना की गई है। जनसम्पर्क की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए जनसम्पर्क की विविध विधाओं पर विस्तार से चर्चा की है। कारपोरेट जनसम्पर्क की आवश्यकता और उपयोगिता की विस्तृत विवेचना इस पुस्तक को और भी उपयोगी बनाती है।
भारत सरकार की नई शिक्षा नीति के पाठ्यक्रमानुसार लिखित यह पुस्तक जहाँ एक ओर पत्रकारिता एवं जनसंचार के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी वहीं दूसरी ओर विज्ञापन एवं जनसम्पर्क के क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिए भी मार्गदर्शक के रूप में लाभप्रद होगी।
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