Yaksha Prashna Barkarar
Author:
Manikant BajpaiPublisher:
Antika Prakashan Pvt. Ltd.Language:
HindiCategory:
Media0 Reviews
Price: ₹ 164
₹
200
Available
Media
ISBN: 9789380044859
Pages: 104
Avg Reading Time: 3 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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पूँजी के भूमंडलीकरण और आर्थिक उदारवाद के आगमन के साथ शुरू हुए विस्मयकारी विस्तार ने मीडिया को यदि शक्तिशाली बनाया है तो उसका चरित्र भी बदल डाला है। वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार के ‘हंस’ में लिखे स्तम्भ लेखों का संकलन है—यह पुस्तक। जिसके माध्यम बताया है कि मीडिया में आए इस परिवर्तन की वजहें क्या हैं, कौन से दबाव और प्रभाव इसके पीछे काम कर रहे हैं और इनके उद्देश्य क्या हैं? यह एक बहुत ही ज़रूरी काम था जो हिन्दी में बहुत देर से शुरू हुआ और बहुत कम हुआ। ‘हंस’ और मुकेश कुमार को इसका श्रेय जाता है कि उन्होंने इस ज़िम्मेदारी को पूरी गम्भीरता के साथ निभाया।
मुकेश कुमार पिछले लगभग चालीस साल से ज़्यादा समय से पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं। ‘हंस’ में प्रकाशित उनके लेखों से ज़ाहिर हो जाता है कि इस दौरान पत्रकारिता के सामने आनेवाली चुनौतियों को वे देखते-समझते रहे हैं। साथ ही उन्होंने इन समस्याओं के भीतर झाँककर उनके कारणों को भी जानने की कोशिश की है। मीडिया के सामने खड़ी चुनौतियों का सामना करने के रास्तों पर भी उनकी नज़र रही है। उन्होंने मीडिया उद्योग के हर आयाम को क़रीब से देखा-समझा है, इसलिए वे मीडिया में आए परिवर्तनों को ज़्यादा विश्वसनीय तरीक़े से लिख सके। ऐसा करते हुए उन्होंने अतिरिक्त साहस का परिचय भी दिया, क्योंकि अपने ही पेशे की ख़ामियों को बेबाकी से लिखना सबके लिए आसान नहीं।
मुझे लगता है कि मुकेश कुमार ने इस पूरे दौर में पैदा हुई मीडिया की हर आहट, उसकी हर करवट और हर दिन बदलते उसके पैतरों को अपनी नज़रों से ओझल नहीं होने दिया है। फिर चाहे वह स्टिंग ऑपरेशन की सच्चाई हो, साम्राज्यवाद और बाज़ारवाद का दबदबा हो, फ़िल्मी चकाचौंध हो या क्रिकेट का कारवाँ हो, दंगा-फसाद हो या चमत्कारियों का संसार हो। हर चीज़ को उन्होंने ईमानदारी से परखा है और अपनी साफ़ राय दी है। मीडिया के बदलते रंग-ढंग की परीक्षा करते हुए उनका नज़रिया बहुत ही स्पष्ट रहता है और वे यह काम पूरी जनपक्षधरता के साथ करते हैं। टीआरपी की होड़ से पैदा हुई दुष्प्रवृत्तियों के ख़िलाफ़ सख़्त रुख़ अपनाने से वे कभी पीछे नहीं हटे। उनकी क़लम ने मीडिया के उन्मादी स्वरूप की जमकर चीर-फाड़ की और उसके जातीय तथा साम्प्रदायिक चरित्र को बेनकाब करने में अगुआ रहे।
इन लेखों में एक चिन्ता साफ़ दिखाई देती है कि ख़बर जो भी हो मीडिया अक्सर असल मुद्दे से हटकर, उसे भावुकता की चाशनी में डुबाकर उन्माद पैदा करने की कोशिश करता है। मुकेश कुमार ने इस बात को प्रभावशाली ढंग से रेखांकित किया है कि रामजन्मभूमि विवाद के ज़माने में भी हालात ऐसे ही थे, और गुजरात के दंगे को लेकर विवाद हो या भारत पाक के बीच संकट की स्थिति, मीडिया में उन्माद के सिवा कुछ दिखाई नहीं देता।
Un Social Network
- Author Name:
Geeta Yadav +1
- Book Type:

- Description: ‘अनसोशल नेटवर्क’ किताब भारत के विशिष्ट सन्दर्भों में सोशल मीडिया का सम्यक् आकलन प्रस्तुत करती है। जनसंचार का नया माध्यम होने के बावजूद, सोशल मीडिया ने इस क्षेत्र के अन्य माध्यमों को पहुँच और प्रभाव के मामले में काफी पीछे छोड़ दिया है और यह दुनिया को अप्रत्याशित ढंग से बदल रहा है। इसने जितनी सम्भावनाएँ दिखाई हैं, उससे कहीं अधिक आशंकाओं को जन्म दिया है। वास्तव में राजनीति और लोकतंत्र से लेकर पारिवारिक और व्यक्तिगत सम्बन्धों तथा उत्पादों और सेवाओं की खरीद-बिक्री तक शायद ही कोई क्षेत्र होगा, जो सोशल मीडिया के असर से अछूता हो। यह एक ओर जनसंचार के क्षेत्र को अधिक लोकतांत्रिक बनानेवाला नजर आया तो दूसरी ओर इस क्षेत्र को प्रभुत्वशाली शक्तियों के हित में नियंत्रित करने का साधन भी बना है। ऐसे ही अनेक पहलुओं का विश्लेषण करते हुए यह किताब सोशल मीडिया की बनावट के उन अहम बिन्दुओं की शिनाख्त करती है जो इसे ‘अनसोशल’ बनाती हैं। यह किताब सोशल मीडिया के अध्येताओं के साथ-साथ इसके यूजरों के लिए भी खासी उपयोगी है।
Bharat Mein Jansanchar Aur Prasaran Media
- Author Name:
Madhukar Lele
- Book Type:

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Description:
भारत जैसे विशाल और पारम्परिक सभ्यता के देश में बीसवीं सदी के आरम्भ में जब आधुनिक विकास का दौर शुरू हुआ तो नए युग की चेतना के उन्मेष को देश के विशाल जनसमूह में फैलाना एक गम्भीर चुनौती थी। ऐसे समय में जनसंचार के प्रभावी माध्यम के रूप में रेडियो ने भारत में प्रवेश किया। कालान्तर में टेलीविज़न भी उससे जुड़ गया। दोनों माध्यमों ने हमारे देश में अब तक अपनी यात्रा में कई मंज़िलें पार की हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन ने भारत में प्रसारण मीडिया के विकास में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है।
भारत जैसे भाषा-संस्कृति-बहुल और विविधता-भरे देश में राष्ट्रीय प्रसारक की भूमिका और ज़िम्मेदारियाँ बड़ी चुनौती-भरी रही हैं। प्रसारण टेक्नोलॉजी में हाल के कुछ वर्षों में जो ज़बर्दस्त प्रगति हुई और उसके साथ ही जब भूमंडलीकरण का दौर चला तो लाज़िमी था कि तेज़ी के साथ फलते-फूलते वैश्विक मीडिया उद्योग को भी भारत में अवसर दिए जाते। यह नया दौर निश्चित ही अपने साथ नई और अधिक गम्भीर चुनौतियाँ लेकर आया है।
मधुकर लेले ने आकाशवाणी और दूरदर्शन सेवा में लम्बी पारी पूरी की है और दोनों प्रसारण माध्यमों के विकास, विस्तार और उससे जुड़े विमर्श को उन्होंने नज़दीक से देखा-जाना है। प्रस्तुत पुस्तक में भारत में प्रसारण मीडिया की इस चुनौती-भरी यात्रा के मुख्य पड़ावों पर उन्होंने विहंगम दृष्टि से प्रकाश डाला है।
Prabhash Parv
- Author Name:
Prabhash Joshi
- Book Type:

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Description:
‘प्रभाष पर्व' पुस्तक प्रभाष जोशी पर अब तक लिखे गए महत्त्वपूर्ण लेखों का प्रतिनिधि संग्रह है। इसमें उनके समकालीन और बाद की पीढ़ी के पत्रकारों, लेखकों तथा नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करनेवाले लोगों ने उनका मूल्यांकन किया है। उनको लेकर संस्मरण लिखे हैं।
इन लेखों में अपने समय और समाज के साथ प्रभाष जोशी की रचनात्मक रिश्ता विस्तार से परिभाषित हुआ है। समकालीन राजनैतिक और सामाजिक समस्याओं को लेकर उनके विचार और सक्रियता को नए सिरे से समझने की कोशिश की गई है। इसलिए यह पुस्तक प्रभाष जोशी की ज़िन्दगी के साथ ही उनके समय का भी दस्तावेज़ है। पुस्तक के अध्याय हैं : ‘धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्रֺ’, ‘पत्रकारिता की नई ज़मीन’, ‘जनसत्ता की दुनिया’, ‘क़रीब से प्रभाष जोशी’ तथा ‘प्रभाष जोशी घर में’। इन्हीं के तहत विभिन्न कोणों से प्रभाष जी की भीतरी-बाहरी दुनिया को बारीकी से समझने की कोशिश की गई है।
पुस्तक के अन्त में प्रभाष जी के कुछ व्याख्यान भी दिए गए हैं जो सुव्यवस्थित ढंग से कहीं प्रकाशित नहीं हुए थे। ‘नई दुनिया’ में 50 साल पहले प्रकाशित उनकी दो कविताएँ और कहानियाँ भी दी गई हैं। इन कहानियों में प्रभाष जोशी के श्रेष्ठ कथाकार व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं। पत्रकरिता की व्यस्तताओं के बीच वे ज़्यादा कहानियाँ लिख नहीं पाए। उनकी कविताओं में नैराश्य के साथ जीवन संकल्प है। गीतात्मकता की अनुगूँज है।
यह पुस्तक पत्रकार प्रभाष जोशी की समाज-सम्बन्ध, मानवीय और संवेदनात्मक दुनिया में प्रवेश का पारपत्र है।
Kavi Shailendra : Zindagi Ki Jeet Mein Yakeen
- Author Name:
Prahlad Agarwal
- Book Type:

- Description: कुछ अकेले नहीं हैं और पहले भी नहीं हैं—शैलेन्द्र, विद्वज्जनों ने जिनकी ओर नज़र नहीं डाली—ऐसे अनेकानेक लोककवि हैं। यूँ हर ज़माने ने अपने ज़माने की लोकरचना की सादगी की संश्लिष्टता को स्वीकार करने में कोताही की—और होकर यूँ रहा कि समय के साथ वह रंग और गहरा होता चला गया। पीढ़ियाँ-दर-पीढ़ियाँ उनके शब्दों में ज़िन्दगी के नए मायने तलाशती रहीं। शैलेन्द्र के गीत हमारे बचपन की गुनगुनाहटों में शामिल होकर आज तक हमसफ़र हैं। दुनिया-भर की पुरकशिश कविता की तरह उन्होंने ज़िन्दगी की पुरपेच गलियों में आलोकित राजपथ प्रशस्त किया। इतने सरल और लुभावने कि आवारामिज़ाजी से ज़ुबाँ पर चढ़ जाएँ, क़दम-ब-क़दम ज़िन्दगी के फ़लसफ़े में तब्दील होते हुए। अपनी मासूम गुनगुनाहटों के शब्द के फ़नकार का नाम हमें सालों बाद पता चला और इस परिचय के ऊषाकाल में ही वह सितारा टूट गया। जब शैलेन्द्र ने आत्मघात किया, हम उन्नीस साल के थे। इसके चंद महीने पहले ही शैलेन्द्र निर्मित एकमात्र फ़िल्म ‘तीसरी क़सम’ प्रदर्शित हुई थी। नहीं मालूम सच है या झूठ, लेकिन कहा जाता है कि शैलेन्द्र को यक़ीन था, इसे ‘राष्ट्रपति स्वर्णपदक’ मिलेगा—और मिला, लेकिन वह दिन देखने के लिए शैलेन्द्र नहीं थे। जनकवि शैलेन्द्र के बहुआयामी रचनात्मक अवदान का आकलन करने की विनम्र कोशिश है यह पुस्तक।
Reporter On The Ground
- Author Name:
Parimal Kumar
- Book Type:

- Description: ग्राउंड रिपोर्टिंग पत्रकारिता की बुनियाद है। साफ़-सुथरी और तथ्यपरक रिपोर्ट के बिना ऐसी पत्रकारिता सम्भव नहीं है जिसे लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहा जाता रहा है। रिपोर्टिंग जितना अनुशासन की माँग करती है उतना ही अभ्यास की; यह जितना तैयारी की माँग करती है उतना ही तकनीक की। इसके लिए सजगता जितनी ज़रूरी है, सचाई भी उतना ही ज़रूरी है। वास्तव में, करियर के अन्य बहुतेरे माध्यमों की तरह रिपोर्टिंग भी जितनी कला है उतना ही विज्ञान भी है। इसकी अपनी बारीकियाँ हैं, अपना ग्रामर है जिनसे वाक़िफ़ हुए बिना पत्रकारिता के मैदान में उतरना लाइफ़ जैकेट पहने बिना किसी तूफ़ानी नदी के प्रवाह में कूदने जैसा हो जाता है। लेकिन पत्रकारिता का कोई छात्र यह बारीकी, यह ग्रामर कहाँ से जाने? इसी सवाल से जाने-माने रिपोर्टर परिमल कुमार के रू-ब-रू होने का नतीजा है यह किताब। ‘रिपोर्टर ऑन द ग्राउंड’ में सैद्धान्तिक के मुक़ाबले रिपोर्टिंग के व्यावहारिक पहलुओं पर ज़ोर दिया गया है। बेशक इसमें सैद्धान्तिक पहलू छोड़े नहीं गए हैं लेकिन परिमल ने रिपोर्टिंग के अपने लम्बे अनुभवों को आधार बनाकर ऐसा सिलसिलेवार पाठ तैयार किया है जिसे रिपोर्टिंग का ‘प्रैक्टिकल गाइड’ कहा जा सकता है।
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