Bharata: The Natyasastra
Author:
Kapilav VatsyayanPublisher:
Sahitya AkademiLanguage:
EnglishCategory:
General-non-fiction4 Reviews
Price: ₹ 145.25
₹
175
Available
The theory of rasa enunciated by Bharata has stimulated both creativity and critical discourse in the Indian arts for nearly two thousands years. The text of the Natyasastra is as relevant to literature, poetry and drama as ut is to architecture, sculpture, painting, music and dance. Its comprehensive treatmentof artistic experience, expression and communication, content and form emerges from an integral vision which flowers as many branched tree of all the Indian arts.
The analogy of the perennial flow of the river with its multiple streams, without loss of continuity and identity but potential for change and renewal makes this work as fresh as unconventional in its appraoch. It makes compelling reading for the specialist and the layer reader.
ISBN: 9788126018089
Pages: 218
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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यह पुस्तक लगभग ढाई हज़ार साल में फैले पाश्चात्य दर्शन के इतिहास को समेटती है। किन्तु उक्त ऐतिहासिक विकासक्रम का सिलसिलेवार अध्ययन करना इसका उद्देश्य नहीं है। इस लिहाज़ से देखें तो यह ध्यान में रखना होगा कि रामविलास जी उन इतिहासकारों में से नहीं थे, जो आँकड़ों को अतिरिक्त महत्त्व देते हैं। दर्शन के इतिहास से सम्बन्धित अनिर्णीत विवादों की विवेचना के लक्ष्य के मद्देनज़र रामविलास जी अपनी मान्यता प्रस्तुत करने में किसी दुविधा या हिचक का अनुभव नहीं करते। भाषाविज्ञान, पुरातत्त्व, इतिहास, समाजशास्त्र और साहित्य के अद्यतन ज्ञान से लैस होने तथा चिन्तन की द्वन्द्वात्मक पद्धति के सटीक विनियोग के परिणामस्वरूप उनके निष्कर्ष वैचारिक उत्तेजना तो पैदा करते ही हैं, रोचक और ज्ञानवर्द्धक भी होते हैं।
मानव-सभ्यता के विकास के क्रम में दर्शन का उद्भव और विकास कैसे हुआ? क्या यूनानी दर्शन के उद्भव के मूल में मिस्र, बेबिलोन, भारत, चीन आदि का भी योगदान था? समाज की ठोस अवस्थाओं के सापेक्ष सन्दर्भ के बिना क्या किसी दार्शनिक चिन्तन, किसी दार्शनिक धारा अथवा अवधारणाओं का अभिप्राय समुचित ढंग से समझा जा सकता है? इन प्रश्नों के अतिरिक्त, दर्शन को ज्ञान की अन्य शाखाओं और अनुशासनों के साथ किस प्रकार समझा जा सकता है, इस दृष्टि से भी पाश्चात्य दर्शन पर रामविलास जी का लेखन सार्थक और मूल्यवान है।
यूनानी दर्शन, रिनासां काल के चिन्तन, दार्शनिक प्रतिपत्तियों पर सामाजिक अन्तर्विरोध के प्रभाव, अधिरचना और बुनियाद के जटिल अन्तर्सम्बन्ध, एशिया-अफ़्रीका की सभ्यता के प्रति पश्चिमी दृष्टि के पूर्वग्रह आदि पर रामविलास जी दो टूक ढंग से अपनी बात कहते हैं।
हिन्दीभाषी लोगों के लिए यह पुस्तक दर्शन-सम्बन्धी ज़रूरी ज्ञान का एक सुग्राह्य संचयन है।
Dr. Lohia Ka Samajwad
- Author Name:
Ramgopal Yadav
- Book Type:

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भारतीय समाजवाद के आकाश में डॉ. राममनोहर लोहिया का उदय एक ऐतिहासिक घटना थी। उनका सम्पूर्ण जीवन सदियों से उपेक्षित रहे लोगों के प्रति समर्पित था—फिर चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या वर्ग का हो। यही कारण है कि समाजवाद के पुरोधा के रूप में उनका नाम हमेशा अग्रणी रहा है।
समाजवादी चिन्तक प्रो. रामगोपाल यादव द्वारा प्रणीत यह पुस्तक डॉ. लोहिया के अक्षय व्यक्तित्व एवं कृतित्व का बहुआयामी मूल्यांकन प्रस्तुत करती है। डॉ. लोहिया की वैश्विक दृष्टि की व्यापकता का संज्ञान कराती एवं सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में परिवर्तन के अग्रदूत के रूप में उन्हें प्रतिष्ठित करती हुई यह कृति एक नया चिन्तन प्रस्तुत करती है। डॉ. लोहिया का जीवन-संघर्ष निरन्तर सामाजिक या उत्थानवादी चेतना के द्वन्द्व को रूपायित करता है। आर्थिक ग़ैर-बराबरी दूर करने और समतामूलक समाज बनाने में उनका चिन्तन मार्क्सवादियों से भिन्न था।
भारतीय समाजवाद के प्रवर्तक डॉ. लोहिया की 105वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में प्रो. यादव द्वारा रचित इस किताब की उपादेयता समाजवाद के विकास की दिशा में एक अमूल्य योगदान है। पुस्तक की उपादेयता इस अर्थ में भी बढ़ जाती है कि यह लोहिया जी के व्यक्तित्व और उनकी निज परिमार्जित की हुई विचारधारा और उनके योगदान सब पर समुचित प्रकाश डालती है।
Chalen Gaon Ki Ore
- Author Name:
M.D. Mishra 'Anand'
- Book Type:

- Description: कहानियाँ अंतर्मन की वेदनाओं, समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वास और अन्याय तथा राग-द्वेष को उजागर करते हुए सचेत करती हैं, सही मार्ग प्रशस्त करती हैं। हमारा देश कृषि प्रधान और ग्रामों का समूह है। इसमें निवास करनेवाला वर्ग प्रारंभ से ही शोषित रहा है। किसानों की स्थिति दयनीय रही और आज भी है। पहले से ग्राम्य जीवन में बहुत बदलाव आए हैं। किसानों और खेतिहर मजदूरों की स्थिति सुधारने के लिए शासन द्वारा अनेक योजनाएँ चलाकर उनके उत्थान के प्रयास किए जा रहे हैं, किंतु बुनियादी परिवर्तन नहीं हो पा रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि नीचे से ऊपर शासन और प्रशासन जिन भावनाओं के साथ योजनाएँ बनाते हैं, उनका क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। लालची और भ्रष्ट लोगों की जो शृंखला बनी हुई है, उसको तोड़ पाना कठिन हो रहा है। वे प्रत्येक मार्ग में अवरोध और अड़ंगे लगाने के विकल्प ढूँढ़ लेते हैं। तू डाल-डाल, मैं पात-पात—इसी साँप-सीढ़ी के खेल में कृषक, मजदूर तथा असहाय वर्ग फँसे हुए हैं। उनके द्वारा भोगे जा रहे यथार्थ का चित्रण ग्राम्य जीवन की इन कहानियों में समाहित है। ग्रामीण परिवेश और देहात में किसान एवं आम जन को होने वाली कठिनाइयों, विसंगतियों, ज्यादतियों एवं उत्पीड़न को कहानियों के माध्यम से सामने लानेवाला यह कहानी-संग्रह ‘चलें गाँव की ओर’ रोचक-मनोरंजक तो है ही, पाठकों के मन को उद्वेलित करनेवाला भी है।
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