Bin Pani Sab Soon
Author:
Anupam MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
अनुपम मिश्र हमारे समय के उन बिरले सोचने-समझनेवाले चौकन्ने लोगों में से थे जिन्होंने लगातार हमें पानी के संकट की याद दिलाई, चेतावनी दी, पानी के सामुदायिक संचयन की भारतीय प्रणालियों से हमारा परिचय कराया। उनका इसरार था कि हम लोकबुद्धि से भी सीखें। उनकी असमय मृत्यु के बाद जो सामग्री मिली है उसमें से यह संचयन किया गया है। वह हिन्दी में बची ज़मीनी सोच और लोकचिन्ताओं से एक बार फिर हमें अवगत कराता है। वह इसका साक्ष्य भी है कि साफ़-सुथरा गद्य साफ़-सुथरे माथे से ही लिखा जा सकता है।”
—अशोक वाजपेयी
ISBN: 9789389577716
Pages: 399
Avg Reading Time: 13 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
‘दर्शनशास्त्र : पूर्व और पश्चिम’ ग्रन्थमाला की यह दूसरी पुस्तक है जिसमें विश्व की एक प्राचीनतम दार्शनिक धारा का परिचय प्रस्तुत किया गया है।
चीन में दर्शन की परम्परा यों तो बहुत पुरानी है, लेकिन ईसा-पूर्व की पाँचवीं से तीसरी शताब्दी का काल दार्शनिक चिन्तन की दृष्टि से समृद्धि का काल माना जाता है। कन्फ्यूशियस का चिन्तन इसी काल की देन है। तब से लेकर कुछ शताब्दी पहले तक इस देश में अनेक दार्शनिक मतवाद अस्तित्व में आए। प्रस्तुत पुस्तक में इन सभी मतवादों की पृष्ठभूमि स्पष्ट करने के लिए अनेक सदियों के कालक्रम में चीन के राजवंशों की एक संक्षिप्त रूपरेखा दी गई है। उसके बाद विभिन्न सम्प्रदायों के सिद्धान्तों और उनके सामाजिक-राजनीतिक निहितार्थों का विवेचन किया गया है। चीन में बौद्ध मत का आगमन एक महत्त्वपूर्ण घटना थी, जिसके फलस्वरूप चिन्तन के क्षेत्र में कई धाराओं-उपधाराओं का जन्म हुआ। चीनी दर्शन में चूँकि इन धाराओं-उपधाराओं का विशेष महत्त्व है, इसलिए लेखक ने ख़ास तौर पर इनका विश्लेषण और इनके दार्शनिक लक्ष्यों का मूल्यांकन किया है। इसी प्रकार, इन्होंने एक ओर महिमामंडित कन्फ्यूशियस को एक सटीक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में स्थापित किया है तो दूसरी ओर लांछित ताओवाद की एक सुबोध व्याख्या भी दी है।
चीनी दर्शन के अनेक सम्प्रदायों का मत रहा है कि दर्शनशास्त्री होने के लिए हर समय तत्त्वमीमांसा के गूढ़ रहस्यों में उलझे रहना आवश्यक नहीं है। इसी प्रकार हमारा भी विश्वास है कि प्रस्तुत पुस्तक को पढ़ने और समझने के लिए दर्शन का पंडित होना आवश्यक नहीं है। थोड़े-से पृष्ठों में चीनी दर्शन का एक व्यापक, फिर भी सुबोध, परिचय इस पुस्तक की विशेषता है, और आशा की जा सकती है कि इससे विशेषतः भारतीय और चीनी दर्शनों के तुलनात्मक अध्ययन की प्रेरणा प्राप्त होगी।
Prakriti Ka Dwandwavad
- Author Name:
Friedrich Engels
- Book Type:

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उन्नीसवीं सदी के आरंभ में, और उससे भी अधिक मध्यकाल में, गणित, ज्योतिष, भौतिकी, रसायन तथा जीव-विज्ञान के क्षेत्र में आविष्कारों और उपलब्धियों का एक तांता-सा लग गया था। नए तथ्यों और प्राकृतिक नियमों की स्थापना हुई, नए सिद्धांतों तथा नई परिकल्पनाओं का बीजारोपण हुआ, और विज्ञान के नए उपांग अस्तित्व में आए।
एंगेल्स ने दिखाया कि प्राकृतिक विज्ञान की उस विजय-यात्रा में तीन सर्वोपरि उत्कर्ष हैं–जैव कोशिका की खोज, ऊर्जा की अविनाशिता, रूपांतरण के नियम की खोज और डार्विनवाद। सन् 1838 तथा 1839 ई. में मत्थियस याकोब श्लेईडैन और थियौडोर श्वान ने वनस्पति एवं पशु कोशिकाओं की एकरूपता सिद्ध की। उन्होंने सिद्ध किया कि कोशिका जीवधारियों की मूल रचना-इकाई है, और उन्होंने आंगिक संरचना के एक सांगोपांग कोशिका सिद्धांत की स्थापना की। इस प्रकार उन्होंने जीव-जगत की एकता को प्रमाणित किया। सन् 1842 और 1847 के बीच के काल में जुलियस मायर, जैम्स जूल, विलियम ग्रोव, एल.ए. कोल्डिंग और हरमान हैल्महोल्ट्ज ने ऊर्जा की अविनाशिता तथा रूपांतरण के नियम की खोज करके इसे प्रमाणित किया। परिणामतः प्रकृति का उद्घाटन एक ऐसी अविरत प्रक्रिया के रूप में हुआ जिसमें द्रव्य की एक प्रकार की सर्वव्यापी गति दूसरे प्रकार में बदलती रहती है। 'प्रकृति का द्वंद्ववाद' में जिन विषयों का समावेश है, उनकी रचना एंगेल्स ने 1873 से 1886 ई. तक के काल में की थी। प्रकृति विज्ञान के इतिहास, विशेषतः पुनर्जागरण से उन्नीसवीं सदी के मध्यकाल तक के इतिहास से, पर्याप्त साक्ष्य लेकर एंगेल्स ने दर्शाया है कि प्रकृति विज्ञान का विकास अंततोगत्वा व्यावहारिक आवश्यकताओं से, उत्पादन से, निर्धारित होता है।
हिन्दी में इस पुस्तक की लम्बे समय से प्रतीक्षा थी लेकिन इसके जटिल पाठ के चलते किसी ने इसके अनुवाद का साहस नहीं किया। विज्ञान और प्रगतिशील सोच के हिमायती गुणाकर मुळे ही ऐसे व्यक्ति थे, जो इस पुस्तक की अहमियत को समझते थे और अनुवाद में इसके साथ न्याय कर सकते थे! कुछ पृष्ठों का जो अनुवाद वे किसी कारणवश नहीं कर पाए थे, वह बाद में कराया गया और पूरी पांडुलिपि को व्यवस्थित किया गया। इस पूरी प्रक्रिया में और पांडुलिपि को प्रकाशन योग्य स्थिति तक लाने में श्रीमती शांति गुणाकर मुळे की भूमिका उल्लेखनीय रही है।
आधारभूत मार्क्सवादी साहित्य में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए यह पुस्तक अमूल्य है।
AAJ KI BAAT KAREN
- Author Name:
Helle Helle
- Book Type:

- Description: हेल्ले हेल्ले का जन्म 1965 में डेनमार्क के चौथे सबसे बड़े द्वीप लोलैंड के नगर नाकस्कॉव में हुआ था। उनका पालन-पोषण द्वीप लोलैंड के ही फेरी शहर रॉड्बी (Rødby) में हुआ था, जहाँ से नौकाएँ पुटगार्डन (जर्मनी) जाती हैं। साहित्य के प्रभाव में हेल्ले हेल्ले बचपन से थीं और अधिकांश समय पुस्तकालय में बिताती थीं। यह आभास उन्हें बहुत जल्दी ही हो गया था कि वह खुद भी एक लेखिका बनेंगी। रॉड्बी में करने के लिए बहुत कुछ नहीं था, इसलिए वे वयस्क होने पर कोपनहेगन शिफ्ट हो गईं। 1985 में उन्होंने कोपनहेगन विश्वविद्यालय में साहित्य अध्ययन में दाखिला लिया और एक लेखिका के रूप में उभरने लगीं। साहित्य में स्नातक करने के पश्चात् उन्होंने 1991 में राइटर्स स्कूल, कोपनहेगन से स्नातक किया। उनकी पहली पुस्तक वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई और तब से ही उनका लोकप्रिय लेखन प्रशंसा और आलोचना दोनों का एक चर्चित विषय रहा है। उन्होंने अभी तक कई कहानियों के अलावा वयस्क साहित्य पर 10 उपन्यास और बाल साहित्य पर एक पुस्तक लिखी है। हेल्ले हेल्ले अनेक साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित हुई हैं डेनिश क्रिटिक्स पुरस्कार, डेनिश अकादमी का बीट्राइस पुरस्कार, पी.ओ. एनक्विस्ट अवार्ड और डेनिश कला परिषद् का प्रतिष्ठित लाइफटाइम अवार्ड। उनकी कहानियों और उपन्यासों का 22 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उपन्यास Dette Burde Skrives I Nutid (...आज की बात करें) के लिए उनको प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार गोल्डन लौरेल से नवाजा गया है।
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