Aadhunik Kavya Shastra : Kavi Sena Manifesto
Author:
Sheshendra SharmaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 716
₹
895
Available
भारतीय भाषाओं के संभवतः सर्वाधिक ख्यात और चर्चित कवि तथा विचारक ने यहाँ अपने उस स्वप्न को पूरा किया है जिस में साहित्य-चितन की चार धाराओं का एक साथ विचार होना है, अर्थात् प्राचीन भारतीय काव्यशास्त्र, प्राचीन पाश्चात्त्य काव्यशास्त्र, आधुनिक पाश्चात्त्य काव्यशास्त्र तथा मार्क्सवादी काव्यशास्त्र। यह मैनिफेस्टो, जैसा कि इसे कहा गया है, शेषेन्द्र की शीर्षस्थ उपलब्धियों का द्योतक है। इस के माध्यम से पूर्व, पश्चिम और मार्सीय काव्य-दर्शन का समग्र तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत होता है, जिसने शेषेन्द्र को यशस्वी बनाया है।</p>
<p>मैनिफेस्टो विचक्षण है, साहित्य के विद्यार्थियों के लिए आयामहीन अध्ययन, और काव्यशास्त्र के अध्यापकों के लिए मूल्यवान निर्देशिका, एक अग्रणी विचारक द्वारा काव्यशास्त्रीय विज्ञान का तुलनात्मक मूल्यांकन देनेवाला है।</p>
<p>कवि सेना एक नया बौद्धिक आंदोलन है जिस का उद्देश्य है नयी मनीषा को विकसित करना, युवा विकसनशील पीढ़ियों को सत्य की क्षमता प्रदान करना। मैनिफेस्टो उन्हें सिखाता है कैसे कविता की चुंबकीय शक्ति से सामान्य शब्दों को संपन्न किया जा सकता है, और साहित्य को परिवर्त्तन तथा प्रगति का एक अस्त्र बनाया जा सकता है। यह संभवतः भारत में पहला अवसर है जब एक कवि ने अपने समय का काव्यशास्त्र रचने के लिए लेखनी उठाई है, और अपनी मेधा का उपयोग अपने देश के सामान्य जीवन और समस्याओं के निदान के लिए किया है।
ISBN: 9788119996568
Pages: 242
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: 'सुन मेरे बंधु रे' नारायण सिंह की नव्यतम कृति है। यहाँ उपस्थित अलग-अलग आलेख आपस में गुम्फित हैं, एक-दूसरे के साथ आबद्ध हैं। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है; क्योंकि लेखक किसी कहानी-उपन्यास में उपस्थित घटना, रंग-ढंग और दृष्टि को महज आलोचकीय दृष्टि से नहीं देख रहा, बल्कि तत्कालीन समय में उनकी उपस्थिति को, कहानी के पीछे मौजूद जीवन को भी देखना-दिखाना चाहता है। ये आलेख किसी कहानी, उपन्यास के ज़रिये शुरू तो होते हैं लेकिन उक्त कहानी उपन्यास या सिनेमा से बाहर आकर हमारी दृष्टि का आयतन विस्तारित करते मिलते हैं। एक दृष्टि सम्पन्न कथाकार अपने पूर्वज कथाकारों, सृजनशील व्यक्तित्वों के जीवन, उनके अन्तर्विरोध और मनुष्य के दुख को, सामाजिक विभेदकारी दृष्टि की जाँच-पड़ताल करते हुए उन मूल्यों को सामने लाने की कोशिश करता है जिन वजहों ने रचना को रचना बनाये रखा है। नारायण सिंह स्वयं एक कथाकार-उपन्यासकार हैं लेकिन यहाँ कथाकार अपने कथा प्रतिमान के आलोक में किसी रचना की व्याख्या नहीं करता, बल्कि रचना की केन्द्रीय समस्या को उठाते हुए सिंहावलोकन और विहंगावलोकन दोनों आयामों का भरपूर इस्तेमाल करता है। यह सिफत ही इन आलेखों को परंपरागत समीक्षकीय पद्धति से इतर पहचान लिये पाठकों से मुखातिब है। चेखव की कहानी के ज़रिये प्रेम को पुनर्परिभाषित करती बात हो या 'सुजाता' में उपस्थित अकुंठ प्रेम गीत में उपस्थित पुरुष बोध को सामने लाती आलोचकीय निगाह हो; हर जगह लेखक कलात्मकता, बुनावट और ध्वनि सौंदर्य के पीछे दबे जा रहे या दबाये जा रहे मनुष्य की पीड़ा से सहानुभूति प्रकट करता मिलता है। इसीलिए यहाँ उपस्थित रचनाओं का पाठ नये सिरे से पढ़े जाने की माँग करता मिलता है। —आशीष सिंह
Aacharya Ramchandra Shukla Aur Hindi Aalochana
- Author Name:
Ramvilas Sharma
- Book Type:

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Description:
डॉ. रामविलास शर्मा हिन्दी के उन गिने-चुने आलोचकों में हैं जिन्होंने साहित्य का मूल्यांकन एक सुनिश्चित जनवादी दृष्टिकोण के आधार पर किया है। बहुत स्पष्ट, सुलझे हुए विचारों के सहारे अपने विश्लेषण में वे कहीं भी भटकते नहीं हैं और आदि से अन्त तक तटस्थता को अपने हाथ से नहीं जाने देते। इसीलिए चाहे उनके सबसे प्रिय कवि निराला हों या आदर्श आलोचक रामचन्द्र शुक्ल, जहाँ भी उन्हें कोई दोष दिखाई दिया है, उसकी दो-टूक आलोचना करने से वे नहीं चूके हैं।
प्रस्तुत कृति रामविलास जी द्वारा की गई आलोचना की आलोचना है, और इसलिए कुछ लोगों के विचार से यह केवल एक छात्रोपयोगी चीज़ है; लेकिन स्वयं रामविलास जी के शब्दों में, ‘‘शुक्लजी ने न तो भारत के रूढ़िवाद को स्वीकार किया, न पच्छिम के व्यक्तिवाद को। उन्होंने बाह्य-जगत् और मानव-जीवन की वास्तविकता के आधार पर नए साहित्य-सिद्धांतों की स्थापना की और उनके आधार पर सामन्ती साहित्य का विरोध किया और देशभक्ति और जनतंत्र की साहित्यिक परम्परा का समर्थन किया। उनका यह कार्य हर देश-प्रेमी और जनवादी लेखक तथा पाठक के लिए दिलचस्प होना चाहिए। शुक्ल जी पर पुस्तक लिखने का यही कारण है।’’
एक लम्बे अन्तराल के बाद इस महत्त्वपूर्ण आलोचना-कृति का यह संशोधित-परिवर्धित संस्करण शुक्लजी के अध्ययन के लिए एक नई दृष्टि देता है, जिससे स्पष्ट हो सकेगा कि ‘शुक्लजी अपने युग के हिन्दी-अहिन्दी विचारकों से कितना आगे थे और उनकी विचारधारा कितनी वैज्ञानिक है।’
Stree Kavita : Paksh Aur Pariprekshya—1
- Author Name:
Shobha Nigam
- Book Type:

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Description:
एक मानवीय इकाई के रूप में स्त्री और पुरुष, दोनों अपने समय व यथार्थ के साझे भोक्ता हैं लेकिन परिस्थितियाँ समान होने पर भी स्त्री-दृष्टि दमन के जिन अनुभवों व मन:स्थितियों से बन रही है, मुक्ति की आकांक्षा जिस तरह करवटें बदल रही है, उसमें यह स्वाभाविक है कि साहित्यिक संरचना तथा आलोचना, दोनों की प्रणालियाँ बदलें। स्त्री-लेखन स्त्री की चिन्तनशील मनीषा के विकास का ही ग्राफ़ है जिससे सामाजिक इतिहास का मानचित्र गढ़ा जाता है और जेंडर तथा साहित्य पर हमारा दिशा-बोध निर्धारित होता है। भारतीय समाज में जाति एवं वर्ग की संरचना जेंडर की अवधारणा और स्त्री-अस्मिता को कई स्तरों पर प्रभावित करती है।
स्त्री-कविता पर केन्द्रित प्रस्तुत अध्ययन जो कि तीन खंडों में संयोजित है, स्त्री-रचनाशीलता को समझने का उपक्रम है, उसका निष्कर्ष नहीं। पहले खंड, 'स्त्री-कविता : पक्ष और परिप्रेक्ष्य' में स्त्री-कविता की प्रस्तावना के साथ-साथ गगन गिल, कात्यायनी, अनामिका, सविता सिंह, नीलेश रघुवंशी, निर्मला पुतुल और सुशीला टाकभौरे पर विस्तृत लेख हैं। एक अर्थ में ये सभी वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य में विविध स्त्री-स्वरों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। उनकी कविता में स्त्री-पक्ष के साथ-साथ अन्य सभी पक्षों को आलोचना के केन्द्र में रखा गया है, जिससे स्त्री-कविता का बहुआयामी रूप उभरता है। दूसरा खंड, 'स्त्री-कविता : पहचान और द्वन्द्व' स्त्री-कविता की अवधारणा को लेकर स्त्री-पुरुष रचनाकारों से बातचीत पर आधारित है। इन रचनाकारों की बातों से उनकी कविताओं का मिलान करने पर उनके रचना-जगत को समझने में तो सहायता मिलती ही है, स्त्री-कविता सम्बन्धी उनकी सोच भी स्पष्ट होती है। स्त्री-कविता को लेकर स्त्री-दृष्टि और पुरुष-दृष्टि में जो साम्य और अन्तर है, उसे भी इन साक्षात्कारों में पढ़ा जा सकता है। तीसरा खंड, 'स्त्री-कविता : संचयन' के रूप में प्रस्तावित है...।
इन सारे प्रयत्नों की सार्थकता इसी बात में है कि स्त्री-कविता के माध्यम से साहित्य और जेंडर के सम्बन्ध को समझते हुए मूल्यांकन की उदार कसौटियों का निर्माण हो सके जिसमें सबका स्वर शामिल हो।
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