Aadi Dharam : Bhartiya Aadivasiyon Ki Dharmik aastayen
Author:
Ramdayal Munda, Ratan Singh MankiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 1196
₹
1495
Available
भारतीय संविधान ने देश के क़रीब 10 करोड़ आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) के रूप में एक सामाजिक, आर्थिक पहचान दी है किन्तु जनगणना प्रक्रिया में आदिवासी आस्थाओं को प्रतिबिम्बित करनेवाले किसी निश्चित ‘कोड’ के अभाव में इस आबादी के बहुलांश को ‘हिन्दू जैसा’ मानकर हिन्दू घोषित कर दिया गया है। एक अनिश्चित कोड ज़रूर है ‘अन्य’, किन्तु भूले-भटकों के इस विकल्प में कोई जानबूझकर सम्मिलित होना नहीं चाहता। सभी धर्मों के साथ वृहत्तर दायरे में अल्पांश में मेल रहते हुए और सतही तौर पर आपसी वैभिन्न्य के रहते हुए भी आदिवासी आस्थाएँ अन्दर से जुड़ी हुई हैं। यह पुस्तक आदिवासी आस्थाओं की इन्हीं विशिष्टताओं को उजागर करती है और उन्हें ‘आदि धरम’ के अन्तर्गत चिन्हित करने और क़ानूनी मान्यता देने का प्रस्ताव करती है। वे विशिष्टताएँ हैं—
परमेश्वर के ‘घर’ के रूप में किन्हीं कृत्रिम संरचनाओं पर ज़ोर न देकर प्रकृति के अवयवों (पहाड़, जंगल, नदियों) को ही प्राथमिकता देना।
मृत्यु के बाद मनुष्य का अपने समाज में ही वापस आना और अपने पूर्वजों के साथ हमेशा रहना। इसलिए समाज सम्मत जीवन बिताकर पुण्य का भागी होना सर्वोत्तम आदर्श। समाज विरोधी होने को पापकर्म समझना। इसलिए स्वर्ग-नरक इसी पृथ्वी पर ही। अन्यत्र नहीं।
आदि धरम सृष्टि के साथ ही स्वतःस्फूर्त है, किसी अवतार, मसीहा या पैगम्बर द्वारा चलाया हुआ नहीं। समुदाय की पूर्व आत्माओं के सामूहिक नेतृत्व द्वारा समाज का दिशा-निर्देश।
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ISBN: 9788126717514
Pages: 452
Avg Reading Time: 15 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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