kabaadkhana
Author:
GyanranjanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
यह आश्चर्यजनक है कि ‘लौट आ जो धार’ में दूधनाथ सिंह ने ज्ञानरंजन के शिल्प की तुलना सुमित्रानन्दन पन्त से की है और बताना चाहा है कि कुछ दूर तक चलने के बाद ज्ञानरंजन अमूर्त दार्शनिकता में फँस जाते हैं। ज्ञानरंजन की कहानियाँ पढ़ने में तो ऐसा कुछ नहीं लगता। उत्सुकतावश उनकी गद्य रचनाओं के संकलन ‘कबाड़खाना’ को पढ़ा कि शायद यहाँ ऐसा कुछ दिख जाए, लेकिन यहाँ भी ज्ञानरंजन वही हैं–वही सीधी बात करने की जवाँमर्दी, वही सच्चाई का गुरूर। विचारधारा का आग्रह है, मार्क्सवाद का आग्रह है, पर फटी लंगोट बचाने जैसा आग्रह नहीं है, यह लड़ाई को दुश्मन के घर में घुसकर लड़ने का आग्रह है। संग्रह के हिसाब से यह एक बेतरतीब-सा संग्रह है। इसमें संस्मरण हैं, व्याख्यान हैं, सम्पादकीय हैं, रचनात्मक निबन्ध हैं, साक्षात्कार हैं, अखबारी टिप्पणियाँ हैं, और तो और, एक उपन्यास- अंश और काशीनाथ सिंह के नाम लिखा एक पत्र भी है, लेकिन ये सारी की सारी गद्य रचनाएँ मिलकर इस प्रदर्शनप्रिय समय में एक जीवन्त प्रतिवाद का निर्माण करती हैं। ये उसी ‘जेनुइन’ बेचैनी और छटपटाहट का मूर्त रूप बनती हैं, जो साठोत्तरी पीढ़ी की पहचान थी और उससे भी ज्यादा बेचैनी और छटपटाहट आज सर्वत्र मौजूद होने के बावजूद आज की साहित्यिक पीढ़ी की पहचान नहीं है।</p>
<p>‘कबाड़खाना’ पढ़ना दिलचस्प है और इसका हर शब्द झकझोरने वाला है। काफी हद तक यह ज्ञानरंजन के द्वारा कहानी न लिखने या न के बराबर लिखने की भरपाई करता है। यहाँ, ‘राजा हो, तुमने बुढ़ौती में चंचल प्यार कर मारा’ जैसे स्वतःस्फूर्त वाक्य है जो लाख गढ़न के बावजूद कहानियों में भी मुश्किल से ही मिलते हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात है कि इसमें वह बेचैनी है जो सांस्कृतिक हमले और सतहीपन के इस दौर में हमारी भाषा और समाज को बेबस मौत से बचाएगी। सफाई देना ज्ञानजी की फितरत वैसे भी नहीं है लेकिन हिन्दी पाठकों की सन्तुष्टि तब होगी, जब वे ‘कबाड़खाना’ के ही मानदण्डों पर अपनी खास विधा में कुछ लेकर आएँ।</p>
<p>–चन्द्रभूषण
ISBN: 9789393768544
Pages: 195
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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कृष्ण बलदेव वैद की डायरियों की जो पुस्तकें इससे पहले प्रकाशित हुई हैं, उन्हें अपनी बेबाकी, लेखक के निर्मम आत्मालोचन, व्यक्तियों और घटनाओं पर तात्कालिक प्रतिक्रियाओं, अनेक देशी-विदेशी लेखकों और कृतियों के आस्वादन और प्रासंगिक आकलन के लिए याद किया जाता है। उनका अनौपचारिक गद्य, फिर भी, एक बड़े लेखक का गद्य है और ये डायरियाँ अपने समय-समाज-साहित्य आदि को देखने, गुनने का एक लेखकीय उपक्रम। उसके वितान में मित्र, लेखक, कलाकार आदि सब आते हैं और उसमें आपबीती रोचक ढंग से परबीती बनती जान पड़ती है।
—अशोक वाजपेयी
Smriti Chitra
- Author Name:
Mahadevi Verma
- Book Type:

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“संस्मरण में स्मृति का सामंजस्यपूर्ण पुनः अवतरण है। अतः इसमें हमारी मानसिक क्रियाएँ अधिक सक्रिय होकर ही स्मृति के आधारों से हमें एक आत्मीय सम्बन्ध में जोड़ती हैं।
“यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि अतीत की दुःखद स्मृतियाँ भी पुनर्जीवन पाकर सुखद अनुभूति का कारण बन जाती हैं। अतीत-कथाएँ इसी से नित्य रसमयी हैं। स्मृति के आधार जब समय का दीर्घ व्यवधान पार कर लौटते हैं, तब हमें मित्र-मिलन की विस्मयमयी सुखद अनुभूति होती है।
“संस्मरण में हम अपनी स्मृति के आधारों पर से समय की धूल पोंछ-पोंछकर उन्हें अपने मनोजगत के निभृत कक्ष में बैठाकर उनके साथ जीवित रहते हैं और अपने आत्मीय सम्बन्धों को पुनः जीवित करते हैं। इस स्मृति-मिलन में मानो हमारा मन बार-बार दोहराता है, हमें आज भी तुम्हारा अभाव है।
“मेरे संस्मरण उन स्मरणीयों के स्मरण हैं, जिनके अभाव की मुझे तीव्र अनुभूति होती है, चाहे वे मनुष्य हों चाहे पशु-पक्षी।”
—महादेवी
(भूमिका से)।
Gandhi Ki Mezbani
- Author Name:
Muriel Lester
- Book Type:

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महात्मा गांधी के अपने विपुल साहित्य और लेखन के अलावा उन पर लिखी गई सामग्री भी विपुल है। फिर भी उन्हें और नज़दीक से जानने-समझने की इच्छा भी शिथिल नहीं पड़ती। उनके समकालीनों के अनेक संस्मरणों में गांधी जी जब-तब सजीव होते रहते हैं। ऐसी ही एक पुस्तक बीसवीं शताब्दी के चौथे दशक में एक अंग्रेज़ महिला ने प्रकाशित की थी जिन्होंने कुछ समय के लिए गांधी जी की मेज़बानी की थी। उसमें इस अनोखे व्यक्ति की सहज मानवीयता, आत्मविश्वास, अपनी दृष्टि और मूल्यों पर हर हालत में अड़े रहने के प्रसंग सहज प्रवाह में आए हैं। एक ऐसे समय में जब हम पश्चिम के आतंक और अनुकरण में मुदित मन लगे हैं, यह पुस्तक उस आतंक से सर्वथा मुक्त एक भारतीय आत्मा को एक बार फिर सामने लाती है और उसका हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करते हुए हमें प्रसन्नता है।
—अशोक वाजपेयी
Bisnath Ka Balrampur
- Author Name:
Vishwanath Tripathi
- Book Type:

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‘नंगातलाई का गाँव’ के बाद ‘बिसनाथ का बलरामपुर’। इसमें विश्वनाथ त्रिपाठी वर्णन कर रहे हैं अपने विद्यार्थी जीवन और उस समय की सामाजिक-राजनीतिक आबोहवा का। आजादी के ठीक पहले का वातावरण जिसे हम इतिहास की पुस्तकों में उस तरह महसूस नहीं कर सकते, जैसे यहाँ कर सकते हैं—इस आख्यान में।
बलरामपुर यहाँ स्वतंत्रता-पूर्व के मिनी भारत के रूप में दिखाई देता है—वहाँ रियासत है, अंग्रेज अधिकारी हैं, स्वतंत्रता आन्दोलन और उसके नेताओं को लेकर बड़े शहरों जैसी सजगता-सक्रियता है, हिन्दू-मुसलमान के प्रश्न हैं, मुस्लिम लीग है और आर.एस.एस. है जिसके जादुई आकर्षण ने युवा और विचारशील बिसनाथ को सालों बाँधे रखा। वे उसके लिए जेल भी गए, और फिर अपनी विचारशीलता के चलते उससे मुक्त हुए।
विश्वनाथ त्रिपाठी बतौर आलोचक पाठ की जितनी तहों को देख पाते हैं, रचनात्मक आख्यान में उससे भी ज्यादा समाज की और मनुष्य की परतों को देख लेते हैं, और उसे जिस तरह लिखते हैं, वह उन्हें उत्तम कोटि का किस्सागो बनता है।
इस स्मृति-यात्रा में उन्होंने पूर्वी अवध के सांस्कृतिक-सामाजिक और राजनीतिक जीवन का अत्यन्त जीवन्त और व्यापक चित्र खींचा है। बच्चों के खेलों से लेकर लोक में रचे-बसे कला-रूपों, गीत-संगीत और जीवन की दैनन्दिनी में दिखाई पड़नेवाली विडम्बनाओं, आपदाओं और संकटों को भी उन्होंने बहुत नजदीक से देखा-जाना है; और यह सब एक सामर्थ्यवान गद्य के रूप में इस पुस्तक के पन्नों पर अंकित हुआ है। ‘संकट के समय में कविता’ शीर्षक अध्याय में उनकी स्मृतियाँ वर्तमान तक चली आती हैं जिसमें उन्होंने कोविड के दौर के साथ-साथ कुछ और मार्मिक क्षणों को भी लिपिबद्ध किया है।
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