Jannayak Atalji (Sampoorn Jeevani)
Author:
Kingshuk NagPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Unavailable
सहृदय-दूरदर्शी राजनेता, संवेदनशील कवि। मित्रों और विरोधियों द्वारा समान रूप से चाहे जानेवाले अटल बिहारी वाजपेयी सच में एक जननायक हैं।
राजनीतिक सफर का प्रारंभ भारतीय जनसंघ के सबसे पहले सदस्यों में से एक के रूप में किया। फिर 1960 के दशक के आखिर में वाजपेयी एक प्रमुख विपक्षी दल के सांसद के रूप में निखरकर सामने आए। थोड़े समय के लिए सत्ता में आई जनता सरकार में विदेश मंत्री बने और 1999 में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का नेतृत्व किया, जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया। यह उपलब्धि और विशिष्ट बन जाती है, क्योंकि एक गठबंधन सरकार ने ऐसा कर दिखाया था।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पं. दीनदयाल उपाध्याय जैसे जनसंघ के दिग्गजों के शिष्य रहे वाजपेयी जवाहरलाल नेहरू की प्रशंसा के पात्र बने; जिनसे उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने सलाह-मशवरा किया; जिनकी आलोचना करने में वह कभी पीछे नहीं रहे; और उग्र मजदूर संघ के नेता जॉर्ज फर्नांडिस से दोस्ती की, जो आगे चलकर उनके सहयोगी भी बने। इस प्रकार उन्होंने सभी प्रकार के राजनीतिक विचारों को साथ लेकर चलने की अद्भुत क्षमता प्रदर्शित की। उन्हीं के नेतृत्व में राजग सरकार ने छह साल में भारत के नवनिर्माण की नींव रखने का काम किया।
वरिष्ठ पत्रकार किंगशुक नाग इस पुस्तक में भारतीय राजनीतिक क्षितिज के जाज्वल्यमान नक्षत्र जननायक अटलजी के संपूर्ण व्यक्तित्व एवं कृतित्व को रेखांकित कर रहे हैं। उनके जीवन को संपूर्णता में जानने हेतु एक प्रामाणिक पुस्तक।
ISBN: 9789389982695
Pages: 200
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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‘स्मरणांजलि’ दिनकर जी के मित्रों और समकालीन महापुरुषों, जिन्होंने उनके हृदय पर अमिट छाप छोड़ी, के विषय में निबन्धों और यात्रा–संस्मरणों की अनूठी कृति है।
इस पुस्तक में देश के प्रख्यात विद्वानों–साहित्यकारों और राजनेताओं के अन्तरंग जीवन की झाँकियाँ हैं तथा उनके अनजाने रूप, देश की राजनीति को प्रभावित करनेवाले प्रसंगों और उन मानवीय गुणों का भी इसमें उद्घाटन हुआ है जिन्होंने इन विभूतियों को सबका श्रद्धास्पद बना दिया।
यह पुस्तक जहाँ एक तरफ़—राजर्षि टंडन, राजेन्द्र प्रसाद, काका साहब कालेलकर, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन्, लालबहादुर शास्त्री, लोहिया साहब, डॉ. जाकिर हुसेन, श्रीकृष्ण सिंह, पुण्यश्लोक जायसवाल, राहुल सांकृत्यायन, पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी, आचार्य रघुवीर, पंडित किशोरीदास वाजपेयी, आचार्य शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी, डॉ. लक्ष्मीनारायण ‘सुधांशु’, पंडित वंशीधर विद्यालंकार, नलिन विलोचन शर्मा, मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानन्दन पंत, महादेवी वर्मा, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, हरिवंश राय ‘बच्चन’—इन विभूतियों का परिचय देती है, वहीं राष्ट्रकवि दिनकर की यूरोप, जर्मनी, चीन और मॉरिशस यात्रा का रोचक वर्णन भी करती है।
संस्मरणात्मक निबन्धों और महत्त्वपूर्ण यात्रा–वृत्तान्तों से सुसज्जित, सरस भाषा–शैली में लिखित यह पुस्तक अमूल्य है।
Loknayak Samarthguru Ramdass
- Author Name:
Sachchidanand Parlikar
- Book Type:

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Description:
डॉ. सच्चिदानंद परळीकर ने अत्यन्त तटस्थता से और बिना किसी पूर्वग्रह के समर्थगुरु रामदास का चरित्र प्रस्तुत किया है। इसके पहले लिखी गई समर्थ रामदास की जीवनियों में उनके राजनीतिक सम्बन्धी विचारों एवं कार्य की इतने विस्तार से चर्चा नहीं की गई है। इस ग्रन्थ के सातवें अध्याय में समर्थ रामदास के समग्र काव्य का जो सरसरी निगाह से परिचय करा दिया है, वह इस ग्रन्थ की एक अनोखी विशेषता मानी जा सकती है। इसके दसवें अध्याय में समर्थ रामदास के समन्वयात्मक दृष्टिकोण की जो सोदाहरण चर्चा की गई है, उस प्रकार की चर्चा समर्थ रामदास पर लिखे गए मराठी, अंग्रेज़ी या हिन्दी के चरित्रग्रन्थों में कहीं भी नहीं की गई है। इस चर्चा को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए लेखक ने बहुत ही समीचीन सन्दर्भ प्रस्तुत किए हैं। आठवें तथा नौवें अध्याय में समर्थ रामदास के भक्तिमार्ग एवं दार्शनिक विचारों का विवेचन करते समय लेखक ने बड़ी ख़ूबी से दिखाया है कि महाराष्ट्र के अन्य सन्तों के इस विषय में सम्बन्धित विचारों में बहुतांश में मतैक्य पाया जाता है।
एक महत्त्वपूर्ण और संग्रहणीय कृति।
Nangatalai Ka Gaon
- Author Name:
Vishwanath Tripathi
- Book Type:

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Description:
‘नंगातलाई का गाँव’—इस ‘स्मृति-आख्यान’ में डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी अपने दो लेखकीय रूपों में उपस्थित हैं। पहला—अपनी जीवनी के क़िस्सागो अर्थात् नंगातलाई और दूसरा—इस आख्यान के सजग लेखक यानी बिसनाथ। इस विलक्षण जुगलबन्दी के कारनामे में ‘आत्म’ लेखक का है और ‘कथा’ बिस्कोहर के बहाने भारतीय ग्रामीण जीवन सभ्यता की। ‘आत्म-व्यंग्य’ के कठिन शिल्प में दु:ख को मज़े लेकर कहने का करिश्मा जिस निरायास ढंग से सम्भव हुआ है उससे निराला, परसाई और नागार्जुन का स्मरण हो आता है।
दस अध्यायों में बमुश्किल समाहित बिस्कोहर कथा में लेखक ने पं. जगदम्बा पांडे जगेश, लक्खाबुआ, बल्दी बनिया, जनक दुलारी, सुग्गनजान, नदवी साहब, कृष्ण मोहम्मद, नैपाले, माने, अम्मा-दादा से लेकर अनेक अविस्मरणीय पात्रों का जो यथार्थ पुनर्सृजन किया है और उसमें उपस्थित-जागृत आम कुँजड़ा, बेड़नी, बनिया, मौलवी, भंगी, ठाकुर, ब्राह्मण आदि वर्ग के जय-पराजय, दु:ख-सुख, हास-परिहास, प्रेम-घृणा, मान-अभिमान, क्रोध-प्रसन्नता, विनम्रता-अहंकार आदि का सजीव उद्घाटन जिस निर्वैयक्तिता में किया है, वह आत्मकथा के आभिजात्य से मुक्ति का ऐसा बिन्दु है जिसमें नंगातलाई की यह कथा महाकाव्यात्मक गाथा के क़रीब पहुँच जाती है।
इस कालजयी आख्यान में लोक-सौन्दर्य के स्वाभिमान से पगी ऐसी सजल भाषा है जो शोख़, तीखी, मीठी, चोट खाई, लचीली और विदग्ध है। शब्द यहाँ अनेक अदेखी अनूठी भंगिमाओं में अर्थों का नया संसार रचते हैं। शब्दों की विपन्नता के रुदन के बीच यह किताब एक ऐसे आधार ग्रन्थ की तरह है जिसमें पूरबी अवधी का अजाना समृद्ध भाषा-संसार है।
प्रस्तुत कृति चूँकि लेखक के दो रूपों (जीवनीकार, आत्मकथा-लेखक) से बने प्रयोगधर्मी शिल्प में अपना कथा-विन्यास पाती है, अतः उसमें अतीत से लेकर भूमंडलीकरण तक के प्रभावों का यथार्थ इन्दराज है।
डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने स्मृति आख्यान की विधा के गौरव को जिस तरह पुनर्स्थापित किया है, वह हमारे समय की अनूठी और अप्रतिम साहित्यिक उपलब्धि मानी जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।
—लीलाधर मंडलोई
Premchand Smriti
- Author Name:
Premchand
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Paalatu Bohemian
- Author Name:
Prabhat Ranjan
- Book Type:

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Description:
हिन्दी में ऐसे लेखक अधिक नहीं हैं जिनकी रचनाएँ आम पाठकों और आलोचकों के बीच सामान रूप से लोकप्रिय हों। ऐसे लेखक और भी कम हैं जिनके पैर किसी विचारधारा की बेड़ी से जकड़े ना हों। मनोहर श्याम जोशी के लेखन, पत्रकारिता को अपने शोध-कार्य का विषय बनाने की ‘रिसर्च स्कॉलर्स’ में होड़ लगी थी। प्रभात रंजन ने न सिर्फ़ जोशी जी के लेखन पर अपना शोध-कार्य बख़ूबी किया, बल्कि उनके साथ बिताए गए समय को इस संस्मरण की शक्ल देकर एक बड़ी ज़िम्मेदारी पूरी की है।
“प्रभात ने आत्मीय वृत्तान्त लिखा है।”
—भगवती जोशी (मनोहर श्याम जोशी की सहधर्मिणी)
—हिन्दी फ़िल्मों और डेली सोप ओपेरा के लीजेंड्री राइटर मनोहर श्याम जोशी के जीवन से जुड़े अनेक वृत्तांत इस पुस्तक में हैं जो न सिर्फ़ दिलचस्प हैं, बल्कि प्रेरक और ज्ञानवर्द्धक भी हैं।
—हिन्दी कथा-साहित्य/पत्रकारिता/फ़िल्म/टेलीविज़न में रूचि रखनेवालों के लिए अनिवार्य पठनीय सामग्री।
—संस्मरण विधा में एक उपलब्धि जैसी किताब।
Shankho Chaudhury
- Author Name:
Madan Lal
- Book Type:

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Description:
– शंखो चौधुरी आधुनिक भारतीय कला के एक मूर्धन्य हैं : मूर्तिकार होने के अलावा आधुनिक कलाबोध को सक्रिय-व्यापक करने में उनकी निजी और संस्थापरक भूमिका भी रही है। वे शान्तिनिकेतन, बड़ौदा, ललित कला अकादेमी आदि से जुड़े रहे और उनकी जीवन-कथा भारत में आधुनिक कला के वितान और विस्तार की, उसकी अन्तर्भूत बहुलता, निजी और सार्वजनिक प्रसंगों की रोचक गाथा भी है। जिन कई लोगों ने शंखो दा से प्रेरणा और शिक्षा पाई, उनमें से वरिष्ठ शिल्पकार मदन लाल हैं जिन्होंने बहुत जतन से, अध्यवसाय और कल्पनाशीलता से, एक तरह से गुरु ऋण चुकाने के भाव से, यह पुस्तक तैयार की है। इसमें जो सामग्री एकत्र है वह शंखो दा के अनेक पक्षों का मार्मिक, समझदार और कलात्मक बखान और विश्लेषण करती है। मेरे जानने में हमारे अनेक मूर्धन्य कलाकारों पर ऐसी पुस्तकें कम ही हैं और हिन्दी में शायद यह पहली है।
इस पुस्तक में जीवनी, कला-विश्लेषण, संस्मरण और स्मृतियों का बहुत मानवीय और रोचक गड्डमड्ड है—उसमें कई दृष्टिकोण भी उभरते हैं जो हमें शंखो दा को समझने में कई तरह से मददगार हैं। इस समय व्यापक विस्मृति और दुर्व्याख्या का जो दौर चल रहा है, उसमें एक बड़े कलाकार को इस तरह से याद करना उस विस्मृति को प्रतिरोध देना भी है। कला हमेशा जीवन के प्रति कृतज्ञ होती है और कलाकार अपने दिशा दिखानेवाले पुरखों के प्रति। शंखो चौधुरी के प्रति यह पुस्तक कृतज्ञता-ज्ञापन है और वह उसकी प्रासंगिकता को और प्रखर करता है। रज़ा पुस्तक माला में इसे प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है।
—अशोक वाजपेयी
Kursi Pahiyonwali
- Author Name:
Naseema Hurjuk
- Book Type:

- Description: ‘कुर्सी पहियोंवाली’ एक ऐसी विकलांग महिला के जीवन की अन्तरंग कथा है, जिसने अपनी उम्र के आरम्भिक सोलह साल एक स्वस्थ और सामान्य व्यक्ति की तरह बिताए और उसके बाद पक्षाघात से सहसा व्हीलचेयर उसका सम्बल बनी। किसी भी विकलांग व्यक्ति के भीतर इतनी जिजीविषा हो, ऐसा विरले ही दिखाई देता है। आरम्भिक बदहवासी के दौर में आत्महत्या तक कर लेने का विचार था, फिर उससे उबरने की कोशिश और उत्कर्ष! यह एकदम नए सिरे से उठने जैसी परिवर्तनकामी कथा है, जो अपनी विकलांगता की व्यथा को दूसरे विकलांग जन की पीड़ा में परिवर्तित करती है। यह कहानी एक ज़िन्दा स्त्री के संघर्ष की है। नौकरशाहों का विकलांगों के प्रति होनेवाला व्यवहार विश्वास की सीमा से परे अव्यावहारिक एवं अमानवीय रहा है। इसके बरअक्स, नसीमा एक प्रसिद्ध कार्यकर्ता बनकर उभरती हैं। एक बड़ा क़द और रोशनी बनकर सामने आती हैं। वह विकलांगों के लिए आशा की किरण हैं। पहियेवाली कुर्सी पर बैठकर भी वह हम जैसे स्वस्थ जनों को अस्वस्थ, बेचैन कराने की क्षमता रखती हैं। यह पुस्तक पहले मराठी भाषा में छपी, उसके बाद इसका अनुवाद अंग्रेज़ी, गुजराती, कन्नड़ तथा तेलगू भाषा में हुआ और उपर्युक्त भाषाओं के पाठकों ने इसे बेहद पसन्द किया। हमें विश्वास है, हिन्दी में भी नसीमा की यह कहानी वही अनुभव दोहराएगी। नसीमा हुरजूक की यह कहानी सिर्फ़ उनके अकेले की नहीं, बल्कि भारत के अनगिनत विकलांग जन का सच बयान करती है। इस क्रम में नसीमा एक बेहद अलग और निराला व्यक्तित्व हैं। उन्होंने विकलांगता के बावजूद न केवल अपने जीने की राह बनाई, बल्कि वह अपने चरम उत्कर्ष तक पहुँचीं। उन्होंने दूसरे विकलांग लोगों के सामने एक मिसाल रखी और उन सबको पाठ पढ़ाया। —जावेद आबिदी; निदेशक, ‘डिसेबल्ड राइट्स ग्रुप’ मैं अपने जीवन में नसीमा जैसी किसी महिला से पहले कभी नहीं मिला। उन्होंने अपने तथा दूसरों के जीवन के उत्कर्ष की राह में अपनी विकलांगता को पूरी तरह बेमानी कर दिया। उन्होंने विकलांगता को एकदम नई नज़र से देखा और मंत्र दिया, ‘...कि तुममें कोई कमी नहीं है, बस, तुम दूसरों से अलग हो...’ सचमुच, यह बहुत ही प्रेरक और अनुकरणीय पुस्तक है। —अनन्त दीक्षित; सम्पादक ‘दैनिक लोकमत’, पुणे
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