Jag Darshan Ka Mela

Jag Darshan Ka Mela

Language:

Hindi

Category:

Biographies-and-autobiographies

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Book Details

कुछ लेख मेरे पढ़े हुए थे, कई अन्य पहली बार पढ़े और छात्रों को भी दिए (यद्यपि आज के सामान्य छात्रों से यह आशा रखना प्राय: व्यर्थ सिद्ध होता है कि वे ध्यान दे-देकर कोई किताब या लेख पढ़ेंगे)। आप सहज, पारदर्शी गद्य लिखते हैं। कई सवाल इस तरह उठाते हैं कि नया पाठक भी समझ जाए।</p>
<p>—प्रो. कृष्णकुमार</p>
<p>इन दिनों शिक्षा को बृहत्तर आशयों और आदर्शों से काटकर ‘कौशल विकास’ में बदलने का अभियान ज़ोर-शोर से चल रहा है। सरकारी उपक्रम हों या निजी, हर जगह शिक्षा का लक्ष्य यही मान लिया गया है कि वह इनसानों को व्यावसायिक या तकनीकी कौशल में दक्ष ‘मानव-संसाधन’ में रूपान्तरित कर दे। यह ‘कौशल’ नितान्त प्राथमिक धरातल का है या परम जटिल स्तर का, इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता। भाषा, साहित्य, कला और मानविकी आदि इन दिनों, इस शक्तिशाली ‘शिक्षा-दर्शन’ की समझ के चलते, शिक्षा जगत में हर स्तर पर जैसे दूसरे दर्जे के नागरिक हैं। ऐसे समय में <br />शिवरतन जी के लेखों को पढ़ना शिक्षा के वास्तविक आशय, मूल्य-बोध और व्यावहारिक समस्याओं के निजी अनुभवों पर आधारित आकलन से गुज़रना है।</p>
<p>—पुरुषोत्तम अग्रवाल</p>
<p>शिक्षा पर लिखनेवाले अधिकतर लोग या तो किसी विचारधारा को टोहते दिखाई देते हैं या आँकड़ों का पुलिंदा खोलकर अच्छी-बुरी तस्वीर उकेरते हुए। शिक्षा पर सिद्धान्तों की कमी नहीं है। इसलिए उस पर लिखनेवाले लोग इनमें से या तो किसी सिद्धान्त के साथ नत्थी हो जाते हैं, या उसके किसी एक पहलू के आँकड़ों को बटोरकर प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोग कम हैं जो तमाम सिद्धान्तों को पचाकर और शिक्षा की नई-नई बहसों को समझकर, लेकिन उनमें बहे बिना, स्वतंत्र होकर सोच सकें। शिवरतन थानवी ऐसे चुनिन्दा लोगों में ही हैं।</p>
<p>—बनवारी</p>
<p>शिक्षक एकबारगी बस हो नहीं जाते हैं, वह होते रहने की एक अन्तहीन और अनवरत प्रक्रिया है। उसके लिए चाहिए ‘प्रयोगशील सत्य’ में यक़ीन, और उसका व्यवहार करने का साहस और कौशल। शिवरतन जी पुरानी काट के शिक्षक हैं; लेकिन यहाँ पुराने का मतलब बीत जाने से, अप्रासंगिक या ग़ैरफ़ैशनेबल होने से नहीं है। उनके निबन्धों में आपको एक उदग्र सजगता मिलेगी, सावधानी और चौकन्नापन। जो कुछ भी नया दिमाग़ सोच रहा है, उससे परिचय की उत्सुकता तो है, लेकिन वे सख़्ती से हर किसी की जाँच करते हैं। ग्रहणशीलता उनका स्वभाव है और वे शिक्षा और समाज के रिश्ते के अलग-अलग पहलू पर विचार करने के लिए जहाँ से मदद मिले, लेने को तैयार हैं। उन्मुक्त रूप से लेने और देने को ही वे शिक्षा मानते हैं।</p>
<p>—अपूर्वानंद</p>
<p>शिवरतन जी पिछले छह दशकों से सक्रिय हैं और लगातार एक विद्यार्थी की निष्ठा से पूरी शिक्षा व्यवस्था को देखते-परखते और उस पर लिखते रहे हैं।...किसी किताब की प्रासंगिकता इस बात में भी होती है कि वह अपने समय के ज्वलन्त प्रश्नों से कितना मुठभेड़ करती है। वह लेखक या शिक्षक ही क्या जो समाज में व्याप्त अन्धविश्वासों, जादू-टोने के ख़िलाफ़ न लिखे; बराबरी, सामाजिक समरसता की बात न कहे।</p>
<p>—प्रेमपाल शर्मा

ISBN: 9788126730780

Pages: 136

Avg Reading Time: 5 hrs

Age : 18+

Country of Origin: India

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