
Joothan-1
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
164
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
328 mins
Book Description
आज़ादी के पाँच दशक पूरे होने और आधुनिकता के तमाम आयातित अथवा मौलिक रूपों को भीतर तक आत्मसात् कर चुकने के बावजूद आज भी हम कहीं-न-कहीं सवर्ण और अवर्ण के दायरों में बँटे हुए हैं। सिद्धान्तों और किताबी बहसों से बाहर, जीवन में हमें आज भी अनेक उदाहरण मिल जाएँगे, जिनमें हमारी जाति और वर्णगत असहिष्णुता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। ‘जूठन' ऐसे ही उदाहरणों की श्रृंखला है जिन्हें एक दलित व्यक्ति ने अपनी पूरी संवेदनशीलता के साथ ख़ुद भोगा है। इस आत्मकथा में लेखक ने स्वाभाविक ही अपने उस 'आत्म' की तलाश करने की कोशिश की है जिसे भारत का वर्ण-तंत्र सदियों से कुचलने का प्रयास करता रहा है, कभी परोक्ष रूप में, कभी प्रत्यक्षत:। इसलिए इस पुस्तक की पंक्तियों में पीड़ा भी है, असहायता भी है, आक्रोश और क्रोध भी और अपने आपको आदमी का दर्जा दिए जाने की सहज मानवीय इच्छा भी।