Dishom Guru Shibu Soren
Author:
Anuj Kumar SinhaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
शिबू सोरेन यानी गुरुजी यानी दिशोम गुरु झारखंड आंदोलन और झारखंड के सबसे बड़े आदिवासी नेता रहे हैं। उन्होंने झारखंड राज्य के लिए 40 साल से ज्यादा संघर्ष किया। अधिकांश समय जंगलों में रहकर संघर्ष में काटा, आदिवासियों को महाजनों के चंगुल से मुक्ति दिलाई। लेकिन देश उनके इस संघर्ष को नहीं जानता। युवा पीढ़ी को तो पुराने शिबू सोरेन के बारे में जानकारी ही नहीं है। इस पुस्तक में यही प्रयास किया गया है कि देश-दुनिया का परिचय असली शिबू सोरेन से कराया जाए। इसलिए इस पुस्तक में उन घटनाओं और संघर्ष को प्रमुखता से उठाया गया है, जिसे लोग नहीं जानते हैं। पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन कैसे आंदोलन में कूदे, कैसे वे कई बार मौत के मुँह से जाने से बचे, कैसे उन्होंने पारसनाथ की पहाडि़यों की तलहटी में बसे गाँवों में अपना ठिकाना बनाकर आदिवासियों को एकजुट किया— यह सारी जानकारी इस पुस्तक में है। आपातकाल के बाद समर्पण कर जंगल से बाहर आना, जेल जाना, वहाँ से निकलकर बाद में इंदिरा गांधी से मुलाकात करने तक की जानकारी इस पुस्तक में है। शिबू सोरेन के पुराने साथियों को खोज-खोजकर उनसे बात करके जानकारी हासिल की गई। उनके राजनीतिक जीवन का भी विस्तार से जिक्र है। शिबू सोरेन के स्वभाव, उनकी जीवन शैली आदि की भी चर्चा पुस्तक में है। शिबू सोरेन ने कैसे और कब-कब चुनाव लड़ा, कब मंत्री-मुख्यमंत्री बने, कैसे वे संकट में भी फँसे, कैसे वे इससे उबरे, इन सभी बातें की चर्चा पुस्तक में है। इस पुस्तक को पढ़ने से शिबू सोरेन की पूरी जिंदगी, उनके संघर्ष आदि की संपूर्ण जानकारी पाठक को मिल जाए, ऐसा प्रयास रहा है। पुस्तक में कुछ रोमांचक और दुर्लभ तसवीरें इसकी रोचकता को और बढ़ाती है।
ISBN: 9789390315000
Pages: 216
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Description:
हिन्दी साहित्य के समकालीन परिदृश्य पर कृष्णा सोबती एक विशिष्ट रचनाकार के रूप में समादृत हैं। यह कृति उनके बहुचर्चित कथा-साहित्य, संस्मरणों, रेखाचित्रों, साक्षात्कारों और कविताओं से एक चयन है। उनके कुछ विचारोत्तेजक निबन्धों को भी इसमें रखा गया है। इसके साथ ही ‘ज़िन्दगीनामा-2’ से कुछ महत्त्वपूर्ण अंश भी इसमें शामिल हैं, जिसे वे अभी लिख रही हैं।
उल्लेखनीय है कि अपनी विभिन्न कथाकृतियों के माध्यम से कृष्णा सोबती ने संस्कृति, संवेदना और भाषा-शिल्प की दृष्टि से हिन्दी साहित्य को एक नई व्यापकता प्रदान की है। इस सन्दर्भ में उनकी इस मान्यता से सहमत हुआ जा सकता है कि हिन्दी अगर किसी प्रदेश-विशेष या धर्म-वर्ग की भाषा नहीं है तो उसे अपने संस्कार को व्यापक बनाना होगा। वस्तुत: उन्होंने बने-बनाए साँचे, चौखटे और चौहद्दियाँ हर स्तर पर अस्वीकार की हैं तथा रचना के साथ-साथ स्वयं भी एक नया जन्म लिया है। उनके लिए रचनाकार की ही तरह रचना भी एक जीवित सच्चाई है; उसकी भी एक स्वायत्तता है। उन्हीं के शब्दों में कहें तो ‘रचना न बाहर की प्रेरणा से उपजती है, न केवल रचनाकार के मानसिक दबाव और तनाव से। रचना और रचनाकार—दोनों अपनी-अपनी स्वतंत्र सत्ता में एक-दूसरे का अतिक्रमण करते हैं और एक हो जाते हैं। इसी के साथ लेखक पर रचना की शर्तें लागू हो जाती हैं और रचना पर लेखकीय संयम और अनुशासन।’
कहना न होगा कि यह एक ऐसी कृति है जो न सिर्फ़ एक लेखक की बहुआयामी रचनाशीलता को समझने का अवसर जुटाती है, बल्कि समकालीन रचनात्मकता से जुड़े अनेक सवालों को भी हमारी चिन्ताओं में शामिल करती है।
Shri Rambhakt : Shaktipunj Hanuman
- Author Name:
Jairam Mishra
- Rating:
- Book Type:

- Description: ‘मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम’ ने कहा है—लोक पर जब कोई विपत्ति आती है तब वह त्राण पाने के लिए मेरी अभ्यर्थना करता है परन्तु जब मुझ पर कोई संकट आता है तब मैं उसके निवारणार्थ पवनपुत्र का स्मरण करता हूँ। अवतार श्रीराम का यह कथन हनुमानजी के महान व्यक्तित्व का बहुत सुन्दर प्रकाशन कर देता है। श्रीराम का कितना अनुग्रह है उन पर कि वे अपने लौकिक जीवन के संकटमोचन के श्रेय का सौभाग्य सदैव उन्हीं को प्रदान करते हैं और कैसे शक्तिपुंज हैं हनुमान कि जो श्रीराम तक के कष्ट का तत्काल निवारण कर सकते हैं। भगवान श्रीराम के प्रति अपनी अपूर्व, अद्भुत, अप्रतिम, एकान्त भक्ति के कारण अन्य की इसी प्रकार की भक्ति का आलम्बन बन जानेवाला हनुमान जैसा कोई अन्य उदाहरण विश्व में नहीं। यही कारण है कि संस्कृत से लेकर समस्त मध्यकालीन और आधुनिक भारतीय भाषाओं में श्री हनुमान में परम पावन चरित्र का गान किया गया है और उनके मन्दिर भारतवर्ष के प्रत्येक कोने में पाए जाते हैं। इस पुस्तक की रचना में ‘वाल्मीकीय रामायण’, ‘अध्यात्म रामायण’ तथा ‘आनन्द रामायण’ से विशेष सहायता ली गई है। ‘स्कंदपुराण’, ‘पद्मपुराण’ आदि एवं ‘महाभारत’ (वनपर्व) भी रचना में सहायक सिद्ध हुए हैं। गोस्वामी तुलसीदास की कृतियों—‘रामचरितमानस’, ‘विनयपत्रिका’, ‘गीतावली’, ‘कवितावली’ एवं ‘कम्बन’ रचित ‘कम्ब रामायण’ (तमिल रचना) से भी यत्र-तत्र सहायता ग्रहण की गई है। इनके अतिरिक्त श्री सुदर्शन सिंह ‘चक्र’ रचित ‘आंजनेय' कल्याण पत्रिका के ‘हनुमानांक’ (1975 ई.) तथा डॉ. गोविन्दचन्द्र राय की पुस्तक ‘हनुमान के देवत्व और मूर्ति का विकास’ आदि से भी यथावसर सामग्री प्राप्त की गई है।
Shishir Samagra
- Author Name:
Sabitri Badaik
- Book Type:

- Description: शिशिर टुडू सबके आत्मीय थे। उनके व्यक्तित्व की जो सबसे बड़ी खूबी सबको आकर्षित करती थी, वह थी उनके आदिवासियत से लबरेज होने के बावजूद हमारे-आपके जैसे सामान्य ‘इनसान’ होना। उनमें न आदिवासी होने की हीनता थी और न दंभ। एक निहायत विनम्र, सहृदय और जिंदादिल इनसान थे वे, जिन्हें किसी ने कभी भी तीखा होते नहीं देखा, न सुना। आदिवासियत का सबसे बड़ा गुण यह कि वह समभाव से जीवन के सुख-दुख को ग्रहण करता है। अपनी भवनाओं को संयत रूप में प्रकट करता है। शिशिर टुडू इसके मूर्त रूप थे। कला, संस्कृति और संघर्ष से जुड़ा उनका लंबा जीवनानुभव था। हिंदी, अंग्रेजी सहित कई आदिवासी भाषाओं पर उनका समान अधिकार था। वे एक संवेदनशील व्यक्ति थे और लिखते वक्त उनकी भाषा-शैली जीवंत हो उठती थी। वे फिल्मकार भी थे। लेकिन उन्होंने कभी भूले से भी अपने व्यक्तित्व की इन खूबियों का प्रदर्शन नहीं किया। वे बस जरूरत के हिसाब से उसका यथा समय उपयोग करते थे। उन्होंने अपने ज्ञान का, यश और आर्थिक क्षमता बढ़ाने में दुरुपयोग नहीं किया। वे अपने मूल से गहरे जुड़े, देश-दुनिया के अद्यतन ज्ञान से संपन्न आदिवासी थे। वे हमें हमेशा याद रहेंगे, एक संपूर्ण व्यक्ति के रूप में।
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