Swaatantrya Samara Simha Lokamaanya Baala Gangaadhara Tilak
Author:
M S Mannar Krishna RaoPublisher:
Sahitya Loka PublicationsLanguage:
KannadaCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 420.75
₹
495
Available
DESCRIPTION AWAITED
ISBN: sahityalokalokmanya
Pages: 404
Avg Reading Time: 13 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Ismat Chugtai
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- Description: उर्दू की विद्रोहिणी लेखिका इस्मत चुग़ताई हिन्दी पाठकों के लिए भी उर्दू जितनी ही आत्मीय रही हैं। भारतीय समाज के रूढ़िवादी जीवन-मूल्यों और घिसी–पिटी परम्पराओं पर इस्मत चुग़ताई ने अपनी कहानियों से जितनी चोट की है और इसे एक अधिक मानवीय समाज बनाने में जितना बड़ा योगदान किया है, उसकी बराबरी कर पानेवाले लोग बिरले ही हैं। पाठकों के मन में सहज ही यह सवाल उठता रहा है कि इतनी पैनी नज़र से अपने परिवेश को टटोलनेवाली और इतने जीते–जागते पात्र रचनेवाली इस लेखिका की ख़ुद अपनी बनावट क्या है, किस प्रक्रिया में उसका निर्माण हुआ है। इस्मत आपा ने शायद अपने पाठकों की इस जिज्ञासा को ध्यान में रखते हुए ही अपनी आत्मकथा ‘काग़ज़ी है पैरहन’ शीर्षक से क़लमबंद की। कहने को ही यह पुस्तक आत्मकथा है। पढ़ने में यह बाक़ायदा उपन्यास और उपन्यास से भी ज़्यादा कुछ है। एक पूरे समय और समाज का इतना जीवन्त, इतना प्रामाणिक वर्णन मुश्किल से ही मिल सकता है। तॉल्स्ताय ने गोर्की के बारे में कहा था कि उनकी कहानियाँ दिलचस्प हैं, लेकिन उनका जीवन और भी दिलचस्प है। यही बात इस्मत चुग़ताई के बारे में भी शब्दश: कही जा सकती है। तीस के दशक में पर्देदार कुलीन मुस्लिम परिवार में एक लड़की के पढ़ने–लिखने में कितनी मुश्किलें आती होंगी, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। ये मुश्किलें ‘काग़ज़ी है पैरहन’ की मुख्य कथावस्तु बनी हैं। लेकिन जो पीड़ा ये मुश्किलें एक ज़िद्दी लड़की के भीतर पैदा करती रही होंगी, उसका अन्दाज़ा पाठक को ख़ुद ही लगाना होगा, क्योंकि अपने दु:खों को बयान करना, आत्म–दया दिखाना इस्मत चुग़ताई की फ़ितरत ही नहीं रही है। गद्य की लय क्या होती है, कितनी सहजता से यह लय ज़िन्दगी की घनघोर उलझनों का बयान करा ले जाती है, इसका अप्रतिम उदाहरण यह पुस्तक है। ख़ुद इस्मत आपा के शब्दों में : “लिखते हुए मुझे ऐसा लगता है जैसे पढ़नेवाले मेरे सामने बैठे हैं, उनसे बातें कर रही हूँ और वो सुन रहे हैं। कुछ मेरे हमख़याल हैं, कुछ मोतरिज़ हैं, कुछ मुस्कुरा रहे हैं, कुछ ग़ुस्सा हो रहे हैं। कुछ का वाक़ई जी जल रहा है। अब भी मैं लिखती हूँ तो यही एहसास छाया रहता है कि बातें कर रही हूँ।”
Naye Daur Ki Ore
- Author Name:
Kishore Biyani
- Book Type:

- Description: नए दौर की ओर’ भारतीय ग्राहक तथा फ्यूचर ग्रुप, बिग बाजार एवं पैंटलून्स की किशोर बियानी के अपने शब्दों में लिखी कहानी है। एक मध्यवर्गीय परिवार में जनमे किशोर बियानी ने ‘स्टोन वॉश’ कपड़े को रिटेल व्यापारियों को बेचने से अपने व्यापारिक जीवन की शुरुआत की। कुछ ही वर्षों में पैंटलून्स, बिग बाजार, फूड बाजार, सेंट्रल और अन्य कई रिटेल मॉडल शुरू कर उन्होंने भारतीय रिटेल व्यापार को एक नया आयाम और नई दिशा दी। किशोर बियानी की कोशिश रही कि वे मुंबई के निवेशक से लेकर मेरठ के किसान तक की जेब में रखे हर नए पैसे को अपने रिटेल व्यापार की तरफ आकर्षित कर सकें। बियानी शॉपिंग मॉल बनाने एवं उपभोक्ता ब्रांड्स बनाने से बीमा बेचने तक, हर उस क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं जहाँ उपभोक्ता है और पैसा खर्च करता है। ‘नए दौर की ओर’ में सिर्फ उनके शब्द ही नहीं हैं, बल्कि इस उतार-चढ़ाव की यात्रा में उनके मित्र, सहयोगी, पार्टनर, परिवार के सदस्यों की राय एवं संस्मरण शामिल हैं। ‘रिटेल के राजा’ के रूप में प्रसिद्ध किशोर बियानी अनेक पुरस्कारों एवं सम्मानों से विभूषित हुए हैं। पैंटलून्स को अमेरिका के नेशनल रिटेल फेडरेशन ने ‘अंतरराष्ट्रीय रिटेलर-2007’ से सम्मानित किया है। ‘नए दौर की ओर’ दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास एवं अदम्य इच्छाशक्ति से सपने सच करने की कहानी है और ‘नियमों को बदलो—मूल्यों को बनाए रखो’ मंत्र का सजीव चित्रण है।
Nitish Kumar Aur Ubharta Bihar
- Author Name:
Arun Sinha
- Book Type:

- Description: ‘नीतीश कुमार और उभरता बिहार’ में वरिष्ठ पत्रकार अरुण सिन्हा ने विपरीत परिस्थितियों में बिहार का शासन सँभालने वाले नीतीश बाबू की उस कर्मठ एवं जुझारू कार्यशैली का बेबाक वर्णन किया है, जिसने बिहार को एक नई दिशा दी, एक नई पहचान दी। उन्होंने बिहार के सामाजिक और राजनीतिक परिवेश में नीतीश कुमार के उदय की कहानी बताई है और 1960 के दशक के आखिर से शुरू हुए समतावादी आंदोलनों तथा इनके फलस्वरूप 1990 में हुए सत्ता-परिवर्तन का विस्तार से वर्णन किया है। नीतीश कुमार शुरू में लालू प्रसाद यादव के साथ भी रहे, लेकिन बाद में उन्होंने अस्मिता की राजनीति को खारिज करते हुए यह महसूस किया कि बिहार को आगे बढ़ना है तो जाति की राजनीति से ऊपर उठना होगा। इस ग्रंथ में भारतीय राजनीति का स्पष्ट और गहन अध्ययन है। इसमें राजनीतिक नाटकबाजी को सामने लाया गया है तथा राज्य के उथल-पुथल भरे सफर की कड़वी सच्चाई और गहन अध्ययन को प्रस्तुत किया गया है। अरुण सिन्हा ने बिहार की राजनीति की जटिलता के बीच नीतीश कुमार के उदय और कानून-व्यवस्था, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार करने को विस्तार से समझाया है। सामंतवाद से जातीय अस्मिता और अंततः विकास के पथ पर आकर बिहार ने भारत की स्वतंत्रता के बाद की यात्रा में स्वयं को आदर्श साबित किया है। नीतीश बाबू के नेतृत्व में बिहार की राजनीति एवं वहाँ हो रहे ताजा विकास को जानने-समझने में सहायक एक उपयोगी पुस्तक।
Kabra Bhi Quaid Aur Janjeeren Bhi
- Author Name:
Alpana Mishra
- Book Type:

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Description:
अल्पना मिश्र हिन्दी कहानी के सूची-समाज में अनिवार्य रूप से शामिल नहीं हैं लेकिन वे उसकी सबसे मज़बूत परम्परा का एक विद्रोही और दमकता हुआ नाम हैं। उन्हें उखड़े और बाज़ार-प्रिय लोगों द्वारा सूचीबद्ध नहीं किया जा सका। कहानी का यह धीमा सितारा मिटनेवाला, धुँधला होनेवाला नहीं है, निश्चय ही यह स्थायी दूरियों तक जाएगा।
अल्पना मिश्र की कहानियों में अधूरे, तकलीफ़देह, बेचैन, खंडित और संघर्ष करते मानव जीवन के बहुसंख्यक चित्र हैं। वे अपनी कहानियों के लिए, बहुत दूर नहीं जातीं, निकटवर्ती दुनिया में रहती हैं। आज पाठक और कथाकार के बीच की दूरी कुछ अधिक ही बढ़ती जा रही है, अल्पना मिश्र की कहानियों में यह दूरी नहीं मिलेगी। आज बहुतेरे नए कहानीकार प्रतिभाशाली तो हैं पर कहानी तत्त्व उनका दुर्बल है, वे अपनी निकटस्थ, खलबलाती, उजड़ती, दुनिया को छोड़कर नए और आकर्षक भूमंडल में जा रहे हैं। इस नज़रिए से देखें तो अल्पना मिश्र उड़ती नहीं हैं, वे प्रचलित के साथ नहीं हैं, वे ढूँढ़ती हुई, खोजती हुई, धीमे-धीमे उँगली पकड़कर लोगों यानी अपने पाठकों के साथ चलती हैं।
‘ग़ैर-हाज़िरी में हाज़िर’, ‘गुमशुदा’, ‘रहगुज़र की पोटली’, ‘महबूब ज़माना और ज़माने में वे’, ‘सड़क मुस्तक़िल’, ‘उनकी व्यस्तता’, ‘मेरे हमदम मेरे दोस्त’, ‘पुष्पक विमान’ और ‘ऐ अहिल्या’ कहानियाँ इस संग्रह में हैं। इन सभी में किसी-न-किसी प्रकार के हादसे हैं। भूस्खलन, पलायन, छद्म आधुनिकता, जुल्म, दहेज हत्याएँ, स्त्री-शोषण से जुड़ी घटनाएँ अल्पना मिश्र की कहानियों के केन्द्र में हैं। इन सभी कहानियों में लेखिका की तरफ़दारी और आग्रह तीखे और स्पष्ट हैं। वे अत्याधुनिक अदाओं और स्थापत्य के लिए विकल नहीं हैं। उनकी कहानियाँ आलंकारिक नहीं हैं, वे उत्पीड़न के ख़िलाफ़ मानवीय आन्दोलन का पक्ष रखती हैं और इस तरह सामाजिक कायरता से हमें मुक्त कराने का रचनात्मक प्रयास करती हैं। मुझे इस तरह की कहानियाँ प्रिय हैं।
—ज्ञानरंजन
Vyomkesh Darvesh
- Author Name:
Vishwanath Tripathi
- Book Type:

- Description: आकाशधर्मा गुरु आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी अपने जीवन-काल में ही मिथक-पुरुष बन गए थे। हिन्दी में ‘आकाशधर्मा’ और ‘मिथक’ इन दोनों शब्दों के प्रयोग का प्रवर्तन उन्होंने ही किया था। उनका रचित साहित्य विविध एवं विपुल है। उनके शिष्य देश-विदेश में बिखरे हैं। लगभग साठ वर्षों तक उन्होंने सरस्वती की अनवरत साधना की। उन्होंने हिन्दी साहित्य के इतिहास का नया दिक्काल एवं प्राचीन भारत का आत्मीय-सांस्कृतिक पर्यावरण रचा। हिन्दी की जातीय संस्कृति के मूल्यों की खोज की, उन्हें अखिल भारतीय एवं मानवीय मूल्यों के सन्दर्भ में परिभाषित किया। परम्परा और आधुनिकता की पहचान कराई। सहज के सौन्दर्य को प्रतिष्ठित किया। वे उन दुर्लभ विद्वान सर्जकों की परम्परा में हैं जिसके प्रतिमान तुलसीदास हैं और जिसमें पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी स्मरणीय हैं। उनका जीवन-संघर्ष विस्थापित होते रहने का संघर्ष है। उनकी जीवन-यात्रा के बारे में लिखना जितना ज़रूरी है उससे ज़्यादा मुश्किल। इस पुस्तक के लेखक को दो दशकों से भी अधिक समय तक उनका सान्निध्य और शिष्यत्व प्राप्त होने का सौभाग्य मिला। इसलिए पुस्तक को संस्मरणात्मक भी हो जाना पड़ा है। प्रयास किया गया है कि प्रसंगों और स्थितियों को यथासम्भव प्रामाणिक स्रोतों से ही ग्रहण किया जाए। आदरणीयों के प्रति आदर में कमी न आने पावे। काशी की तत्कालीन साहित्य-मंडली, लेखक की मित्र-मंडली अनायास पुस्तक में आ गई है।
Manikarnika
- Author Name:
Tulsi ram
- Book Type:

- Description: ‘मणिकर्णिका’ डॉ. तुलसी राम की आत्मकथा का दूसरा खंड है। पहला खंड ‘मुर्दहिया’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कि ‘मुर्दहिया’ को हिन्दी जगत की महत्तपूर्ण घटना के रूप में स्वीकार किया गया। साहित्य और समाज विज्ञान से जुड़े पाठकों, आलोचकों व शोधकर्ताओं ने इस रचना के विभिन्न पक्षों को रेखांकित किया। शीर्षस्थ आलोचक डॉ. नामवर सिंह के अनुसार ग्रामीण जीवन का जो जीवन्त वर्णन ‘मुर्दहिया’ में है, वैसा प्रेमचन्द की रचनाओ में भी नहीं मिलता। ‘मणिकर्णिका’ में ‘मुर्दहिया’ के आगे का जीवन है। आज़मगढ़ से निकलकर लेखक ने क़रीब 10 साल बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में बिताए। बनारस में आने पर जीवन के अन्त की प्रतीक ‘मणिकर्णिका’ से ही लेखक का जैसे नया जीवन शुरू हुआ। लेखक के शब्दों में ‘गंगा के घाटों तथा बनारस के मन्दिरों से जो यात्रा शुरू हुई थी, अन्ततोगत्वा वह कम्युनिस्ट पार्टी के दफ़्तर में समाप्त हो गई। मार्क्सवाद ने मुझे विश्व-दृष्टि प्रदान की, जिसके चलते मेरा व्यक्तिगत दुःख दुनिया के दुःख में मिलकर अपना अस्तित्व खो बैठा। मुर्दहिया में जो विचार सुप्त अवस्था में थे, वे ‘मणिकर्णिका’ में विकसित हुए।’ लेखक ने अपने जीवनानुभवों का वर्णन करते हुए उस ख़ास समय को भी विश्लेषित किया है जिसके भीतर प्रवृत्तियों का सघन संघर्ष चल रहा था। बनारस जैसे इस कृति के पृष्ठों पर जीवन्त हो उठा है। इस स्मृति-आख्यान में कलकत्ता भी है, अनेक वैचारिक सन्दर्भों के साथ। ‘मणिकर्णिका; डॉ. तुलसी राम के जीवन-संघर्ष की ऐसी महागाथा है जिसमें भारतीय समाज की अनेक संरचनाएँ स्वतः उद्घाटित होती जाती हैं।
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