Hum Nahin Change Bura Na Koy
Author:
Surendra Mohan PathakPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
लोकप्रिय साहित्य हिन्दी अकादमिक जगत के लिए मूल्यांकन की चीज़ कभी नहीं रहा, लेकिन हिन्दी के शिक्षित समाज का बड़ा तबका उसके ही असर में रहता आया है। हमें लोकप्रिय साहित्य का बाज़ार तो दिखता है, उसकी आन्तरिक दुनिया की बनावट नहीं दिखती। ऐसे में लोकप्रिय लेखन के एक बड़े नाम सुरेन्द्र मोहन पाठक अपनी आत्मकथा लिखकर बहस और मूल्यांकन की एक नई ज़मीन तैयार कर रहे हैं। उनका अपना जीवन है भी ऐसा जिसके बारे में दूसरों को दिलचस्पी हो। कान में सुनने की मशीन, आँखों पर मोटे लेंस का चश्मा लगाए, नौकरी करते हुए, तीन सौ से अधिक सफल उपन्यास लिखनेवाले पाठक जी अपने ही रचे किसी अमर किरदार जैसे आकर्षक व्यक्तित्व वाले हैं। लेखन के तौर-तरीक़े और ख़ुद के लिए तय किया हुआ अनुशासन अचरजकारी। लाखों पाठकों की रुचि को समझना, उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने के दबाव को धत्ता बताते हुए, उनके दिमाग़ पर क़ब्ज़ा जमाना—यह कोई मामूली बात नहीं है। इन सब बातों को समझने में एक औज़ार का काम कर सकती है यह आत्मकथा—'हम नहीं चंगे बुरा न कोय’। यह सुरेन्द्र मोहन पाठक के लेखकीय जीवन के सबसे हलचल वाले दिनों की कथा है। यह उनके समय के पल्प फ़िक्शन इंडस्ट्री को जानने के लिए भी ज़रूरी किताब है।
ISBN: 9789388933254
Pages: 422
Avg Reading Time: 14 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: सहृदय-दूरदर्शी राजनेता, संवेदनशील कवि। मित्रों और विरोधियों द्वारा समान रूप से चाहे जानेवाले अटल बिहारी वाजपेयी सच में एक जननायक हैं। राजनीतिक सफर का प्रारंभ भारतीय जनसंघ के सबसे पहले सदस्यों में से एक के रूप में किया। फिर 1960 के दशक के आखिर में वाजपेयी एक प्रमुख विपक्षी दल के सांसद के रूप में निखरकर सामने आए। थोड़े समय के लिए सत्ता में आई जनता सरकार में विदेश मंत्री बने और 1999 में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का नेतृत्व किया, जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया। यह उपलब्धि और विशिष्ट बन जाती है, क्योंकि एक गठबंधन सरकार ने ऐसा कर दिखाया था। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पं. दीनदयाल उपाध्याय जैसे जनसंघ के दिग्गजों के शिष्य रहे वाजपेयी जवाहरलाल नेहरू की प्रशंसा के पात्र बने; जिनसे उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने सलाह-मशवरा किया; जिनकी आलोचना करने में वह कभी पीछे नहीं रहे; और उग्र मजदूर संघ के नेता जॉर्ज फर्नांडिस से दोस्ती की, जो आगे चलकर उनके सहयोगी भी बने। इस प्रकार उन्होंने सभी प्रकार के राजनीतिक विचारों को साथ लेकर चलने की अद्भुत क्षमता प्रदर्शित की। उन्हीं के नेतृत्व में राजग सरकार ने छह साल में भारत के नवनिर्माण की नींव रखने का काम किया। वरिष्ठ पत्रकार किंगशुक नाग इस पुस्तक में भारतीय राजनीतिक क्षितिज के जाज्वल्यमान नक्षत्र जननायक अटलजी के संपूर्ण व्यक्तित्व एवं कृतित्व को रेखांकित कर रहे हैं। उनके जीवन को संपूर्णता में जानने हेतु एक प्रामाणिक पुस्तक।
Woh Safar Tha Ki Mukam Tha
- Author Name:
Maitreyi Pushpa
- Book Type:

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Description:
मैत्रेयी पुष्पा और राजेन्द्र यादव को लेकर आधुनिक होने का दम भरनेवाले आज के हिन्दी समाज ने जितनी बातें बनाईं, उतनी शायद ही किसी और के हिस्से में आई हों। लेकिन यह किताब उन बातों की सफ़ाई नहीं है। सफ़ाई को लेकर मैत्रेयी जी स्पष्ट हैं कि सफ़ाई वे दें जिनकी दाढ़ी में तिनके हों। यह किताब उन छोटी-छोटी लकीरों के बरक्स जो समकालीनों ने उनके सामीप्य को लेकर खींचीं, एक बड़ी लकीर है। एक बड़े रिश्ते का बड़ा ख़ाका।
आरम्भ में मैत्रेयी पुष्पा बस लेखक थीं और राजेन्द्र जी उनके सम्पादक, फिर अपने सम्पादकीय-लेखकीय कौशल के चलते ग्रामीण अनुभवों से सम्पन्न इस प्रौढ़-मन लेकिन नई लेखिका के कच्चे माल में उन्होंने इतनी सम्भावनाएँ देखीं कि वे उनके मार्गदर्शक, अध्यापक, प्रेरक, आलोचक—सब हो गए। और इस लेखिका में उन्होंने एक समर्थ लेखक के अलावा पाया एक सखा जो उन्हें न अपने साहित्यिक मित्रों में मिला था न प्रतिद्वन्द्वियों में। एक ऐसा सखा जिसके सामने वे अपने मन के अन्तरतम तक को खँगाल कर देख पाते। अपनी कल्पनाओं की पतंगें उड़ा पाते, डींगें हाँक सकते, अपनी प्रेम-कहानियों और लीलाओं का स्मृति रस ले पाते। पूछ पाते, अच्छा बताओ तो डाक्टरनी, उस सौन्दर्य की देवी युवती ने मुझमें ऐसा क्या देखा! यानी वह व्यक्ति हो पाते जो सार्वजनिक छवि में बिंधा कोई भी आदमी कहीं न कहीं, कभी न कभी होना चाहता है। यहाँ यह कहना भी अप्रासंगिक न होगा कि राजेन्द्र यादव निपट इकहरे व्यक्ति न थे, लेखक और सम्पादक के रूप में उन्हें समझना आसान है, व्यक्ति के रूप में उतना नहीं। ऐसे व्यक्ति को एक निष्कलुष और निराग्रही सखा की ज़रूरत और भी ज़्यादा होती है। मैत्रेयी जी का यह वाक्य जो शायद वे अक्सर राजेन्द्र जी को कहती थीं, मन को पुलक से भर देता है कि ‘राजेन्द्र जी, आप तो हमारी सहेली हैं!’
ये संस्मरण न भक्ति से निकले हैं, न श्रद्धा से, अपने पथ-प्रदर्शक वरिष्ठ लेखक के प्रति समुचित आदर के साथ ये उस व्यक्ति को अपनी स्मृतियों में जस का तस मूर्त करने की कोशिशें हैं जिसने जीवन के अन्त तक आते-आते हिन्दी में ही नहीं, पूरे भारतीय साहित्य-जगत में एक आइकॉन का दर्जा पा लिया था, जिसने अपने प्रयासों से दलित और स्त्री-विमर्श को हिन्दी का दैनिक विषय बना दिया, जिसकी तरफ़ हर उम्र की स्त्री जाने क्यों आकर्षित हो उठती थी और जिसे साहित्यिक दुनिया का खलनायक भी कहा गया, यौन-कुंठित भी, और साहित्यिक पत्रकारिता का आधुनिक मुक्तिदाता भी।
Jayee Rajguru: Khurda Vidhroh ke Apratim Krantikari
- Author Name:
Bijay Chandra Rath
- Book Type:

- Description: "प्रखर देशभक्ति, अटूट विश्वास और अदम्य साहस उनके चरित्र की पहचान थी। वे कभी मृत्यु से नहीं डरे और अपने जीवन को उन्होंने मातृभूमि को भेंट कर दिया था। उनकी मृत्यु अमरता की ओर एक कदम था। वे कोई और नहीं, शहीद जयकृष्ण महापात्र उपाख्य जयी राजगुरु हैं, जो ओडिशा में खोर्र्धा राज्य के राजा के राजगुरु थे, जिन्होंने सन् 1804 में इतिहास को बदलने का साहस किया। यह उल्लेखनीय है कि खोर्र्धा भारत के अंतिम स्वतंत्र क्षेत्र ओडिशा का तटीय राज्य था, जो 1803 में अंग्रेजों के हाथों में आया था। तब तक शेष भारत पहले ही ब्रिटिश शासन के अधीन आ चुका था। संयोग से अगले वर्ष, यानी 1804 में ओडिशा के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था, जो ओडिशा में ‘पाइक विद्रोह’ की शुरुआत थी। खोर्र्धा विद्रोह-1804 के नाम से ख्यात यह विद्रोह वास्तव में कई मायनों में एक जन-विद्रोह का रूप ले चुका था। भारतीय स्वतंत्रता के इस प्रारंभिक युद्ध के नायक जयकृष्ण महापात्र थे, जो कि शहीद जयी राजगुरु (1739-1806) के रूप में अधिक लोकप्रिय हुए। इस महान् जननेता और स्वतंत्रता सेनानी का जीवन निस्स्वार्थ बलिदान, अदम्य साहस और अप्रतिम देशभक्ति की गाथा है, जिसे सन् 1806 में अंग्रेजों द्वारा किए गए क्रूर कृत्य के साथ समाप्त कर दिया गया। उनका शानदार नेतृत्व, तीक्ष्ण कूटनीति और राज्य का सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक जीवन के लिए उनका योगदान राष्ट्रीय इतिहास में प्रेरक है। यह दुर्भाग्य है कि राष्ट्र की स्मृति में उन्हें उचित स्थान प्राप्त नहीं हुआ है। —श्रीदेब नंदा, अध्यक्ष, शहीद जयी राजगुरु न्यास"
Dr. Ambedkar : Jeevan Darshan
- Author Name:
Kishore Makwana
- Book Type:

- Description: "भीमराव रामजी आंबेडकर केवल भारतीय संविधान के निर्माता एवं करोड़ों शोषित-पीडि़त भारतीयों के मसीहा ही नहीं थे, वे अग्रणी समाज-सुधारक, श्रेष्ठ विचारक, तत्त्वचिंतक, अर्थशास्त्री, शिक्षाशास्त्री, पत्रकार, धर्म के ज्ञाता, कानून एवं नीति निर्माता और महान् राष्ट्रभक्त थे। उन्होंने समाज और राष्ट्रजीवन के हर पहलू पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। सामाजिक समता और बंधुता के आधार पर एक नूतन भारत के निर्माण की नींव रखी। उनका व्यक्तित्व एक विराट् सागर और कृतित्व उत्तुंग हिमालय जैसा था। विगत अनेक वर्षों से वैचारिक अस्पृश्यता और राजनीतिक स्वार्थ के लगातार बढ़ते जा रहे विस्तार ने हमारे जिन राष्ट्रनायकों के बारे में अनेक भ्रांतियुक्त धारणाओं को जनमानस में मजबूत करने का दूषित प्रयत्न किया है, उनमें डॉ. बाबासाहब आंबेडकर प्रमुख हैं। उन्हें किसी जाति या वर्ग विशेष अथवा दल विशेष तक सीमित कर दिए जाने के कारण सामाजिक समता-समरसता ही नहीं, राष्ट्रीय एकता की भी अपूरणीय क्षति हो रही है। इस दृष्टि से चार खंडों में उनका व्यक्तित्व-कृतित्व वर्णित है : खंड एक—‘जीवन दर्शन’, खंड दो—‘व्यक्ति दर्शन’, खंड तीन—‘आयाम दर्शन’ और खंड चार ‘राष्ट्र दर्शन’। डॉ. बाबासाहब भीमराव आंबेडकर को समग्रता में प्रस्तुत करने वाला एक ऐसा अनन्य दस्तावेज है, जो उनके बारे में फैले या फैलाए गए सारे भ्रमों का निवारण करने में तो समर्थ है ही, साथ ही उन्हें एक चरम कोटि के दृष्टापुरुष तथा राष्ट्रनायक के रूप में प्रस्थापित करने में भी पूर्णतः सक्षम है।"
Samkaaleenon Se Samvad
- Author Name:
Vijay Bahadur Singh
- Book Type:

- Description: Book
Logaan
- Author Name:
Jabir Husain
- Book Type:

-
Description:
ये वो दिन थे, जब नागभूषण पटनायक को फाँसी की सज़ा सुनाई गई थी। और उन्होंने जनता के नाम एक क्रान्तिकारी ख़त लिखा था। इस ख़त की प्रतियाँ हमारे साथियों के बीच भी बँटी थीं और इस पर गम्भीर बहस का दौर चला था। उन चर्चाओं और बहस के दौरान ही गोविन्दपुर का एक बूढ़ा मुसहर बोल उठा था—‘हम आपकी बात नहीं समझ पाते, बाबू। देश-समाज में हमारी गिनती ही कहाँ है। सभ्यता और संस्कृति जैसे शब्द हमारे लिए अजनबी हैं। हम तो केवल इतना जानते-समझते हैं कि जिस पैला (बर्तन) में हमें मज़दूरी मिलती है, उसका आधा हिस्सा किसानों ने आटे से भर दिया है। पैला छोटा हो गया है। इससे दी जानेवाली मज़दूरी आधी हो जाती है। जो राज आप बनाना चाहते हैं, उसमें पैला का यह आटा खरोंच कर आप निकाल पाएँगे क्या—हमारे लिए तो यही सबसे बड़ा शोषण और अन्याय है। हम इसके अलावा और कोई बात कैसे समझें?’ बूढ़े मानकी माँझी की शराब के नशे में कही गई यह बात बे-असर नहीं थी। हम उसकी समझ और चेतना देखकर स्तब्ध रह गए थे। मानकी ने यह बात मुसहरी में अपने झोंपड़े के सामने पड़ी खाट पर बैठे-बैठे सहज भाव से कह दी थी। मगर हमारे चेहरे पर एक बड़ा सवालिया निशान उभर आया था।
कुछ ऐसी ही पंक्तियाँ बिखरी पड़ी हैं जाबिर हुसेन की इस डायरी के इन पन्नों पर जो आपको इन पन्नों से गुज़रने के लिए आमंत्रित करती हैं।
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