
Chor Ka Roznamcha
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
218
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
436 mins
Book Description
‘चोर का रोज़नामचा’ ज्याँ जेने की सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तकों में एक है। कथा और आत्मकथा के सटीक मिश्रण से तैयार इस पुस्तक में लेखक ने 1930 के दशक में अपनी यूरोप-यात्रा का वर्णन किया है। भूख, उपेक्षा, थकान और दुराचार को झेलते और चिथड़े पहने उन्होंने स्पेन, इटली, ऑस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड, जर्मनी आदि की यात्रा की और तत्कालीन जन-जीवन के एक उपेक्षित पहलू को अपनी भाषा में वाणी दी। उपन्यास की कथा विभिन्न अपराधियों, कलाकारों, दलालों और यहाँ तक कि एक जासूस के साथ भी लेखक के समलैंगिक सम्बन्धों के इर्द-गिर्द घूमती है। सभी उपकथाओं की सामान्य विषयवस्तु है एक आदर्श-विपर्यय जिसमें समर्पण का चरम रूप विश्वासघात है, क्षुद्र अपचार नायकत्व की पराकाष्ठा है और क़ैद का अर्थ आज़ादी है। उपन्यास में जेने समलैंगिकता, चोरी और विश्वासघात जैसे ‘गुणों’ से एक वैकल्पिक ‘साधुता’ का निर्माण करते हैं और इसके लिए वे ईसाई शब्दावली को इस्तेमाल करते हैं। हर चोरी वहाँ धार्मिक कर्मकांड की तरह होती है और उसके लिए उनकी तैयारी उसी तरह होती है जैसे संत प्रार्थना के लिए जाते हैं। जिन चीज़ों के लिए इस उपन्यास को विशेष रूप से जाना जाता है, वे हैं : गहन आत्मान्वेषण, रूढ़ नैतिक मूल्यों का अतिक्रमण और सामान्य समझ के अनुसार ‘नीच’ मानी जानेवाली स्थितियों के लिए एक सौन्दर्य शास्त्र गढ़ने का प्रयास। प्रस्तुत अनुवाद में कोशिश की गई है कि मूल की लय और कथ्य बरक़रार रहे।