Chor Ka Roznamcha
Author:
Jean GenetPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Unavailable
‘चोर का रोज़नामचा’ ज्याँ जेने की सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तकों में एक है। कथा और आत्मकथा के सटीक मिश्रण से तैयार इस पुस्तक में लेखक ने 1930 के दशक में अपनी यूरोप-यात्रा का वर्णन किया है। भूख, उपेक्षा, थकान और दुराचार को झेलते और चिथड़े पहने उन्होंने स्पेन, इटली, ऑस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड, जर्मनी आदि की यात्रा की और तत्कालीन जन-जीवन के एक उपेक्षित पहलू को अपनी भाषा में वाणी दी।
उपन्यास की कथा विभिन्न अपराधियों, कलाकारों, दलालों और यहाँ तक कि एक जासूस के साथ भी लेखक के समलैंगिक सम्बन्धों के इर्द-गिर्द घूमती है। सभी उपकथाओं की सामान्य विषयवस्तु है एक आदर्श-विपर्यय जिसमें समर्पण का चरम रूप विश्वासघात है, क्षुद्र अपचार नायकत्व की पराकाष्ठा है और क़ैद का अर्थ आज़ादी है।
उपन्यास में जेने समलैंगिकता, चोरी और विश्वासघात जैसे ‘गुणों’ से एक वैकल्पिक ‘साधुता’ का निर्माण करते हैं और इसके लिए वे ईसाई शब्दावली को इस्तेमाल करते हैं। हर चोरी वहाँ धार्मिक कर्मकांड की तरह होती है और उसके लिए उनकी तैयारी उसी तरह होती है जैसे संत प्रार्थना के लिए जाते हैं। जिन चीज़ों के लिए इस उपन्यास को विशेष रूप से जाना जाता है, वे हैं : गहन आत्मान्वेषण, रूढ़ नैतिक मूल्यों का अतिक्रमण और सामान्य समझ के अनुसार ‘नीच’ मानी जानेवाली स्थितियों के लिए एक सौन्दर्य शास्त्र गढ़ने का प्रयास।
प्रस्तुत अनुवाद में कोशिश की गई है कि मूल की लय और कथ्य बरक़रार रहे।
ISBN: 9788126714551
Pages: 218
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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डॉ. सच्चिदानंद परळीकर ने अत्यन्त तटस्थता से और बिना किसी पूर्वग्रह के समर्थगुरु रामदास का चरित्र प्रस्तुत किया है। इसके पहले लिखी गई समर्थ रामदास की जीवनियों में उनके राजनीतिक सम्बन्धी विचारों एवं कार्य की इतने विस्तार से चर्चा नहीं की गई है। इस ग्रन्थ के सातवें अध्याय में समर्थ रामदास के समग्र काव्य का जो सरसरी निगाह से परिचय करा दिया है, वह इस ग्रन्थ की एक अनोखी विशेषता मानी जा सकती है। इसके दसवें अध्याय में समर्थ रामदास के समन्वयात्मक दृष्टिकोण की जो सोदाहरण चर्चा की गई है, उस प्रकार की चर्चा समर्थ रामदास पर लिखे गए मराठी, अंग्रेज़ी या हिन्दी के चरित्रग्रन्थों में कहीं भी नहीं की गई है। इस चर्चा को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए लेखक ने बहुत ही समीचीन सन्दर्भ प्रस्तुत किए हैं। आठवें तथा नौवें अध्याय में समर्थ रामदास के भक्तिमार्ग एवं दार्शनिक विचारों का विवेचन करते समय लेखक ने बड़ी ख़ूबी से दिखाया है कि महाराष्ट्र के अन्य सन्तों के इस विषय में सम्बन्धित विचारों में बहुतांश में मतैक्य पाया जाता है।
एक महत्त्वपूर्ण और संग्रहणीय कृति।
Sapnon Ka Saudagar | Hindi Translation of Karma's Child Subhash Ghai: The Story of Indian Cinema's Ultimate Showman
- Author Name:
Subhash Ghai::Shri Suveen Sinha
- Book Type:

- Description: सुभाष घई भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित फिल्म निर्माताओं में से एक हैं। 1976 से 2008 के बीच उन्होंने सोलह फिल्में बनाईं, जिनमें से बारह -कालीचरण, कर्ज, विधाता, हीरो, कर्मा, राम लखन, मेरी जंग, सौदागर, खलनायक, परदेस, ताल और यादें- बड़ी हिट रहीं, जबकि बाकी फिल्मों को भी समीक्षकों की सराहना मिली। घई की फिल्मों की विशेषता उनकी दमदार कहानियाँ, यादगार संगीत और भव्यता थी। उन्होंने अपनी फिल्मों में बड़े सितारों के साथ-साथ नए चेहरों को भी मौका दिया, जो आगे चलकर बॉलीवुड में बड़ा नाम बने। अपने अनोखेपन से उन्होंने दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींचा, खासकर उस दौर में जब वीडियो पायरेसी अपने चरम पर थी। वे भारत में पहले फिल्म निर्माता थे, जिन्होंने फिल्म का संगीत ऑडियो सीडी पर रिलीज किया। साथ ही उन्होंने हिंदी सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक साधारण पृष्ठभूमि से आकर उन्होंने सफलता की बुलंदियों को छुआ। उन्होंने यह साबित किया कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में हर दिन किस्मत बिगड़ती है तो बनती भी है। आज वे व्हिस्लिंग वुड्स फिल्म संस्थान चलाते हैं, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए सहेजने लायक विरासत है। सुवीन सिन्हा की लिखी पुस्तक -'सपनों का सौदागर' एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जो सुभाष घई की तरह ही अपनी किस्मत लिखना चाहता है।"
Irfan
- Author Name:
Ajay Brahmatmaj
- Rating:
- Book Type:

- Description: इरफान की बातों और यादों को समेटती ' ... और कुछ पन्ने कोरे रह गए : इरफान' सभी फिल्म और इरफान प्रेमियों के लिए एक जरूरी पुस्तक है। यह उनकी जीवनी नहीं है। इसमें उनके साक्षात्कार और उन पर लिखे संस्मरण हैं। यह पुस्तक इरफान के अनोखे व्यक्तित्व को उन्हीं के शब्दों में उभारती है। उनके मित्रों-परिचितों के संस्मरण उनके व्यक्तित्व के अनेक पहलुओं को व्यक्त करते हैं। इरफान को जानने-समझने के लिए यह एक अंतरंग पुस्तक है।
Murdahiya
- Author Name:
Tulsi ram
- Book Type:

- Description: ‘मुर्दहिया’ हमारे गाँव धरमपुर (आज़मगढ़) की बहुद्देशीय कर्मस्थली थी। चरवाही से लेकर हरवाही तक के सारे रास्ते वहीं से गुज़रते थे। इतना ही नहीं, स्कूल हो या दुकान, बाज़ार हो या मन्दिर, यहाँ तक कि मज़दूरी के लिए कलकत्ता वाली रेलगाड़ी पकड़ना हो, तो भी मुर्दहिया से ही गुज़रना पड़ता था। हमारे गाँव की ‘जिओ-पॉलिटिक्स’ यानी ‘भू-राजनीति’ में दलितों के लिए मुर्दहिया एक सामरिक केन्द्र जैसी थी। जीवन से लेकर मरन तक की सारी गतिविधियाँ मुर्दहिया समेट लेती थी। सबसे रोचक तथ्य यह है कि मुर्दहिया मानव और पशु में कोई फ़र्क़ नहीं करती थी। वह दोनों की मुक्तिदाता थी। विशेष रूप से मरे हुए पशुओं के मांसपिंड पर जूझते सैकड़ों गिद्धों के साथ कुत्ते और सियार मुर्दहिया को एक कला-स्थली के रूप में बदल देते थे। रात के समय इन्हीं सियारों की ‘हुआँ-हुआँ’ वाली आवाज़ उसकी निर्जनता को भंग कर देती थी। हमारी दलित बस्ती के अनगिनत दलित हज़ारों दु:ख-दर्द अपने अन्दर लिए मुर्दहिया में दफ़न हो गए थे। यदि उनमें से किसी की भी आत्मकथा लिखी जाती, उसका शीर्षक ‘मुर्दहिया’ ही होता। मुर्दहिया सही मायनों में हमारी दलित बस्ती की ज़िन्दगी थी। ज़माना चाहे जो भी हो, मेरे जैसा कोई अदना जब भी पैदा होता है, वह अपने इर्द-गिर्द घूमते लोक-जीवन का हिस्सा बन ही जाता है। यही कारण था कि लोकजीवन हमेशा मेरा पीछा करता रहा। परिणामस्वरूप मेरे घर से भागने के बाद जब ‘मुर्दहिया’ का प्रथम खंड समाप्त हो जाता है, तो गाँव के हर किसी के मुख से निकले पहले शब्द से तुकबन्दी बनाकर गानेवाले जोगीबाबा, लक्कड़ ध्वनि पर नृत्यकला बिखेरती नटिनिया, गिद्ध-प्रेमी पग्गल बाबा तथा सिंघा बजाता बंकिया डोम जैसे जिन्दा लोक पात्र हमेशा के लिए गायब होकर मुझे बड़ा दु:ख पहुँचाते हैं। —भूमिका से
Apni Khabar
- Author Name:
Pandey Bechan Sharma 'Ugra'
- Book Type:

- Description: अपनी ख़बर लेना और अपनी ख़बर देना—जीवनी साहित्य की दो बुनियादी विशेषताएँ हैं। और फिर उग्र जैसे लेखक की ‘अपनी ख़बर’। उनके जैसी बेबाकी, साफ़गोई और जीवन्त भाषा-शैली हिन्दी में आज भी दुर्लभ है। उग्र—पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’—हिन्दी के प्रारम्भिक इतिहास के एक स्तम्भ रहे हैं और यह कृति उनके जीवन के प्रारम्भिक इक्कीस वर्षों के विविधता-भरे क्रिया-व्यापारों का उद्घाटन करती है। हिन्दी के आत्मकथा-साहित्य में ‘अपनी ख़बर’ को मील का पत्थर माना जाता है। अपने निजी जीवनानुभवों, उद्वेगों और घटनाओं को इन पृष्ठों में उग्र ने जिस खुलेपन से चित्रित किया है, उनसे हमारे सामने मानव-स्वभाव की अनेकानेक सच्चाइयाँ उजागर हो उठती हैं। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि मनुष्य का विकास उसकी निजी अच्छाइयों-बुराइयों के बावजूद अपने युग-परिवेश से भी प्रभावित होता है। यही कारण है कि आत्मकथा-साहित्य व्यक्तिगत होकर भी सार्वजनीन और सार्वकालिक महत्त्व रखता है।
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