Aadhunik Bharat Mein Samajik Parivartan
Author:
M.N. ShrinivasPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Society-social-sciences0 Reviews
Price: ₹ 716
₹
895
Available
भारत के प्रमुख समाज एवं नृ-विज्ञानवेत्ता एम.एन. श्रीनिवास की यह महत्त्वपूर्ण कृति विश्व-कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर-स्मृति-भाषणमाला के सारभूत तत्त्वों पर आधारित है। आधुनिक भारतीयता के सन्दर्भ में रवीन्द्रनाथ ठाकुर की विचारक के रूप में एक अलग महत्ता है। अपनी अमरीकी और यूरोपीय यात्राओं के दौरान विश्वकवि ने जो विचार प्रकट किए हैं, वे इस बात का प्रमाण हैं कि भारतीय सामाजिक परिवर्तनों में पाश्चात्य प्रभावों के प्रति उनकी गहरी रुचि थी।</p>
<p>स्वाधीनता-प्राप्ति के बाद भारतीय समाज में पश्चिमीकरण की प्रक्रिया और भी तेज़ हुई है, जिसके व्यापक प्रभावों को सांस्कृतिक जीवन पर स्पष्ट देखा जा सकता है। लेखक ने इन प्रभावों को संस्कृतीकरण और पश्चिमीकरण के सन्दर्भ में व्याख्यायित किया है तथा एक अखिल भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता बताई है। उसके अनुसार पश्चिमीकरण भारतीय समाज के किसी विशेष अंश तक सीमित नहीं है और उसका महत्त्व—उससे प्रभावित होनेवालों की संख्या और प्रभावित होने के प्रकार, दोनों ही दृष्टियों से—लगातार बढ़ रहा है। वस्तुत: आधुनिक भारतीय समाज के अन्तर्विकास और उसके अन्तर्विरोधों को समझने के लिए यह एक मूल्यवान पुस्तक है।
ISBN: 9788126717026
Pages: 181
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: भारतीय जन-जीवन का एक लम्बा दौर ऐसा भी रहा जिसमें हिन्दू और मुस्लिम धर्मों के अति-साधारण लोग बिना किसी वैचारिक आग्रह या सचेत प्रयास के, जीवन की सहज धारा में रहते-बहते एक साझा सांस्कृतिक इकाई के रूप में विकसित हो रहे थे। एक साझा समाज का निर्माण कर रहे थे, जो अगर विभाजन-प्रेमी ताकतें बीच में न खड़ीं होतीं तो एक विशिष्ट समाज-रचना के रूप में विश्व के सामने आता। हमारे गाँवों, कस्बों और छोटे शहरों में आज भी इसके अवशेष मिल जाते हैं। परम्परा का एक बड़ा हिस्सा तो उसके ऐतिहासिक प्रमाण के रूप में हमारे पास है ही। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत भी उसी विरासत का हिस्सा है जो इस उपन्यास के केंद्र में है। खिलजी शासनकाल में देवगिरी के महान गायक गोपाल नायक और अमीर खुसरो के मेल से जिस संगीत की धारा प्रवाहित हुई, अकबर, मुहम्मद शाह रंगीले और वाजिद अली शाह के दरबारों से बहती हुई वह संगीत के अलग-अलग घरानों तक पहुँची। मैहर के बड़ो बाबा अलाउद्दीन खान की तरह इस उपन्यास के बड़ो नानू उस्ताद मह्ताबुद्दीन खान के यहाँ भी संगीत ही इबादत है। इसीलिए उत्तर प्रदेश के खुर्शीद जोगी और बंगाल के बाउल परम्परा के कमोल उनके घर से दामाद के रूप में जुड़े। लेकिन इक्कीसवीं सदी के भारत में विभाजन-प्रेम एक नशे के तौर पर उभर कर आता है। गुजरात में सदी के शुरू में जो हुआ वह अब यहाँ की सामाजिक-सांस्कृतिक मुख्यधारा का सबसे तेज़ रंग है। इस जहरीले परिवेश में नानू अयूब खान, अब्बू खुर्शीद जोगी, बाबा मदन बाउल और अंत में कमोल कबीर एक-एक कर खत्म कर दिए जाते हैं। बच जाती है एक रुलाई जो खुलकर फूट भी नहीं पाती। हलक तक आकर रह जाती है। यह उपन्यास इसी रुलाई का कोरस है। विभाजन को अपना पवित्रतम ध्येय मानने वाली वर्चस्वशाली विचारधारा के खोखलेपन और उसकी रक्त-रंजित आक्रामकता को रेखांकित करते हुए यह उपन्यास भारतीय संस्कृति के समावेशी चरित्र को हिन्दुस्तानी संगीत की लय-ताल के साथ पुनः स्थापित करने का प्रयास करता है।
Ek Safar Hamsafar Ke Sath…
- Author Name:
Arjun Ram Meghwal +1
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- Description: "भारतीय दर्शन के अनुसार वैवाहिक संस्कार सोलह संस्कारों में से सबसे महत्त्वपूर्ण होता है । इस संस्कार के द्वारा जब दापत्य जीवन की शुरुआत होती है और किसी पुरुष को पत्नी के रूप में हमसफर का साथ मिलता है तो जीवन के अहम पड़ावों में हमसफर की प्रकृति और उसके स्वभाव के कारण पुरुष सफलता के शिखर पर पहुँचता है । जब वह पीछे मुड़कर अपने जीवन को देखता है तो यह स्पष्ट है कि प्रत्येक पुरुष की सफलता में उसकी पत्नी का हर मोड़ पर सबसे बड़ा योगदान होता है। मैं भी मेरे जीवन में बाल्यकाल व किशोरावस्था से निकलकर वैवाहिक जीवन की जटिलताओं को समझता हुआ, गृहस्थ जीवन के उतार-चढ़ाव को देखता हुआ आगे बढ़ा तो मैंने पाया कि मेरे जीवन की सफलता में यदि सबसे बड़ा योगदान किसी का है तो वह है मेरी धर्मपत्नी पानादेवी का। रेते के धोरों (टीलों ) से निकलकर, जीवन के उतार-चढ़ावों से गुजरते हुए सफलता की इस यात्रा को मैं मेरी धर्मपत्नी पानादेवी के समर्पण के बिना पूरी नहीं कर सकता था। यह पुस्तक ' एक सफर हमसफर के साथ' समर्पित है मेरी अर्धांगिनी को ।
Parivartan Aur Vikas Ke Sanskritik Ayaam
- Author Name:
Puran Chandra Joshi
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Description:
समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और सांस्कृतिक क्षेत्र के मर्मज्ञ विद्वान प्रो. पूरनचन्द्र जोशी की यह कृति भारतीय सामाजिक परिवर्तन और विकास के सन्दर्भ में कुछ बुनियादी सवालों और समस्याओं पर किए गए चिन्तन का नतीजा है। चार भागों में संयोजित इस कृति में कुल पन्द्रह निबन्ध हैं, जो एक ओर आधुनिक आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन को सांस्कृतिक आयामों पर और दूसरी ओर सांस्कृतिक जगत की उभरती समस्याओं के आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं पर नया प्रकाश डालते हैं।
हिन्दी पाठकों के लिए यह कृति विभिन्न दृष्टियों से मौलिक और नए ढंग का प्रयास है। एक ओर तो यह सांस्कृतिक सवालों को अर्थ, समाज और राजनीति के सवालों से जोड़कर संस्कृतिकर्मियों तथा अर्थ एवं समाजशास्त्रियों के बीच सेतुबन्धन के लिए नए विचार, अवधारणाएँ और मूलदृष्टि विचारार्थ प्रस्तुत करती है और दूसरी ओर उभरते हुए नए यथार्थ से विचार एवं व्यवहार—दोनों स्तरों पर जूझने में असमर्थ पुरानी बौद्धिक प्रणालियों, स्थापित मूलदृष्टियों और व्यवहारों की निर्मम विवेचना का भी आग्रह करती है। दूसरे शब्दों में, यह पुस्तक-संस्कृति, अर्थ और राजनीति को अलग-अलग कर खंडित रूप में नहीं, बल्कि इन तीनों के भीतरी सम्बन्धों और अन्तर्विरोधों के आधार पर समग्र रूप में समझने का आग्रह करती है।
प्रो. जोशी के अनुसार स्वातंत्र्योत्तर भारत में जो एक दोहरे समाज का उदय हुआ है, उसका मुख्य परिणाम है नवधनाढ्य वर्ग का उभार, जो पुराने सामन्ती वर्ग से समझौता कर सभी क्षेत्रों में प्रभुतावान होता जा रहा है और जिसका सामाजिक दर्शन, मानसिकता एवं व्यवहार गांधी और नेहरू-युग के मूल्य-मान्यताओं के पूर्णतया विरुद्ध हैं। वह पश्चिम के निर्बन्ध भोगवाद, विलासवाद और व्यक्तिवाद के साथ निरन्तर एकमेक होता जा रहा है। फलस्वरूप उसके और बहुजन समाज के बीच अलगाव ही नहीं, तनाव और संघर्ष भी विस्फोटक रूप ले रहे हैं। प्रो. जोशी सवाल उठाते हैं कि भारतीय समाज में बढ़ रहा यह तनाव और संघर्ष उसके अपकर्ष का कारण बनेगा या इसी में एक नए पुनर्जागरण की सम्भावनाएँ निहित हैं? वस्तुत: प्रो. जोशी की यह कृति पाठकों से इन प्रश्नों से वैचारिक स्तर पर ही नहीं, व्यावहारिक स्तर पर भी जूझने का आग्रह करती है।
Bharat Aur Bharatiya Mansikata
- Author Name:
Bhagwan Singh
- Book Type:

- Description: यदि इतिहास का सम्बन्ध सामान्य जन से है तो इतिहासकार उन संस्थाओं, विश्वासों, आग्रहों और विचारों की उपेक्षा नहीं कर सकता जिनसे जनसाधारण की मानसिकता निर्मित होती है। लेकिन आज हम समाज-चिन्तन के एक ऐसे समय से गुजर रहे हैं जहाँ इतिहास पर ही बात करना खतरनाक होता जा रहा है। एक मनस्वी के रूप में इतिहासकार खत्म हो रहा है। उसका पुनर्जन्म एक योद्धा के रूप में हो रहा है। ‘भारत और भारतीय मानसिकता’ पुस्तक में शामिल निबन्ध इतिहास-लेखन की वास्तविक भूमिका को रेखांकित करते हुए भारतीय समाज की प्राचीनतम अवस्था से लेकर आधुनिक काल तक के कुछ प्रश्नों को उठाते हैं। मुख्य रूप में जो एक बात इन आलेखों में उभरकर आती है वह है एक राष्ट्र के रूप में भारतीय चेतना के विकास का इतिहास और यह प्रश्न कि भारत के सन्दर्भ में ‘नेशन’ की यूरोपीय उन्मादी अवधारणा का कोई अर्थ है या नहीं। ‘नेशन’ की मौजूदा अवधारणा औद्योगिक क्रान्ति के बाद तेजी से विकास करने वाले देशों के व्यवसायियों की जरूरत थी, फिर ऐसा हुआ कि हर देश उसे एक आदर्श मानने लगा। पुस्तक में शामिल ‘आदिम भारत में भाषाओं का अन्तर्मिलन’ भारतीय बोलियों की शब्दावली के अध्ययन की जरूरत को रेखांकित करता है जिससे दसियों हजार साल पहले के विषय में अहम जानकारियाँ मिल सकती हैं जब अनेक भाषाभाषी समूह इस महाद्वीप में विचरण कर रहे थे। बहुलता में एकात्मता के ऐसे ही सूत्रों की तलाश करती यह पुस्तक आज हर उस पाठक की समझ को विस्तार देगी, जो इस देश की सहिष्णु चेतना को समझना-जानना चाहता है!
Vivek Ki Aawaj: Andhvishwas Unmulan Par Dus Bhashan
- Author Name:
Narendra Dabholkar
- Book Type:

- Description: तर्कवाद और अन्धविश्वास के उन्मूलन के लिए आन्दोलन की शुरुआत अन्धविश्वास के उन्मूलन से हुई थी। हालाँकि यह आन्दोलन अन्धविश्वास के उन्मूलन से शास्त्रीय विचार, शास्त्रीय विचार से वैज्ञानिक दृष्टिकोण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से धर्मशास्त्र, धर्मशास्त्र से धर्मनिरपेक्षता, धर्मनिरपेक्षता से तर्कवाद और मानवतावाद की ओर बढ़ना चाहता है तो स्वाभाविक रूप से, ‘तर्कवाद’ का मूल्य अन्धविश्वास विरोधी आन्दोलन के व्यापक दर्शन का हिस्सा है। विवेकवाद का दर्शन क्या है? विवेकवाद सुखी जीवन का दर्शन है। लेकिन साथ ही यह खुशी भौतिक, बौद्धिक, भावनात्मक, नैतिक और रचनात्मक है। दूसरी ओर, यह खुशी पूरी मानव जाति, सभी जानवरों और प्रकृति के अनुकूल है। दूसरी ओर, जब यह सुख अस्तित्व में आता है, तो साध्य-साधन की शुचिता का पालन किया जाता है। अतः इतने सन्तुलित और व्यापक अर्थ में ‘विवेकवाद’ सुखी जीवन का दर्शन है।
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